नमस्कार
साथियो,
पुलवामा
में आतंकी हमले के बाद से पूरे देश में सेना के प्रति, सैनिकों के प्रति
संवेदनात्मक माहौल बना हुआ है. किसी हादसे के बाद इन वीर शहीदों के परिजनों के
प्रति चंद दिनों तक तो लोगों की संवेदना बनी रहती है परन्तु कुछ दिनों, महीनों बाद
उस शहीद के परिजन अकेले से पड़ जाते हैं. चंद दिनों के बाद वे जीवन की वास्तविक
कठिनाइयों से जूझने लगते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि बहुतायत सैनिकों के परिवार मध्यम
अथवा निम्न मध्यम आय वर्ग से आते हैं. किसी-किसी परिवार में वही सैनिक एकमात्र
कमाऊ पूत होता है. कहीं-कहीं वही एक सैनिक समूचे परिवार का आधार होता है.
किसी-किसी घर में वही एक सैनिक अपने छोटे भाई-बहिन के भविष्य का ख्याल रखने वाला
होता है. किसी-किसी परिवार में कोई शहीद सैनिक नव-विवाहित होते हैं, कहीं-कहीं वे
नवजात शिशु के पिता बने होते हैं. ऐसे में स्पष्ट है कि शहीद हुए उस जवान के घर पर
चंद दिनों के बाद वास्तविक कठिनाइयाँ सिर उठाना शुरू कर देती हैं. वर्ष भर के पर्व-त्यौहार,
आस-पड़ोस के आयोजन आदि के समय भी उन परिवारों को अपने खोये हुए सदस्य
की याद बहुत गहराई से आती होगी.
यही
वह बिंदु होता है जहाँ जवानों के परिजनों को वास्तविक रूप से हमारे साथ की
आवश्यकता होती है. हम नागरिक जो किसी जवान की शहादत के समय संवेदित होकर एकजुट
होना शुरू कर देते हैं उनको सतत एकजुट और संवेदित बने रहने की आवश्यकता है. इसके
लिए हम अपने-अपने जिले में, अपने-अपने क्षेत्र के सैनिकों की जानकारी कर सकते हैं
और उनके परिजनों से समय-समय पर मिल सकते हैं. उनके साथ पर्व-त्यौहार को मना सकते
हैं. उनकी किसी भी तरह की समस्या का समाधान बन सकते हैं. शहीद सैनिकों के बच्चों
की शिक्षा से सम्बंधित, उनके माता-पिता के स्वास्थ्य, चिकित्सा से सम्बंधित
समस्याओं का निराकरण कर सकते हैं. उनके अन्य परिजनों की परेशानियों का समाधान भी
कर सकते हैं. हमारे एक कदम इस तरह से उठाने पर उन परिजनों को भी गर्व की अनुभूति
होगी और वे अपने आपको कभी भी अकेला महसूस नहीं करेंगे. ये आवश्यक नहीं कि हर मदद
आर्थिक रूप से हो, यह भी जरूरी नहीं कि हर शहादत के बाद ही संवेदित हुआ जाये, हम
सभी ऐसा कभी भी, कहीं भी कर सकते हैं और अपने वीर सैनिकों के परिजनों का हिस्सा बन
सकते हैं.
ऐसा
हम सभी उन सैनिक परिवारों के साथ भी कर सकते हैं, जो अपने घर-परिवार से दूर अपने दायित्व
का निर्वहन कर रहे हैं. हमारी आज़ादी, हमारी सुरक्षा के लिए कहीं
किसी मोर्चे पर तैनात डटे हुए होते हैं. आइये मिलकर एक प्रयास करें अपने सैनिकों
के लिए, उनके परिजनों के लिए.
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8 टिप्पणियाँ:
सार्थक बुलेटिन प्रस्तुति
धन्यवाद भाई साहब।
पथिक की रचना को सम्मान देने के लिये।
आप से सहमत हूँ राजा साहब |
सैनिको के जाने के बाद उनके परिवार के लिए बहुत कुछ किये जाने की जरुरत हैं , लेकिन हमारे यहाँ तो सैनिक भी अलग अलग कैटेगरी में बंटे हैं कुछ को सरकार ही शहीद नहीं मानती | सबसे पहले उनके लिए कुछ करना चाहिए |
नमन सैनिक को।
आदरणीय राजा जी -- आपके इस बुलेटिन में पहली बार अपनी रचना को पाकर बहुत ख़ुशी है | पर इस भावपूर्ण प्रस्तुती मन को बहुत भावुक कर रही है | सैनिकों के सम्मान के लिए हर सम्भव प्रयास किया जाना चाहिए | अपार सम्भावनाओं से भरे ये युवा सैनिक अपने परिवार के लिए किसी मसीहा से कम नहीं होते |असामयिक शहादत से परिवार की वेदना को कोई कलम नहीं लिख सकती ना कोई सांत्वना इस पीड़ा को क कम कर सकती है| सैनिक यदि युद्ध में लड़कर वीरगति को प्राप्त करे तो ये उनके रक्षा -कर्म की सार्थकता है पर आन्तंकी हमलों में उनकी बर्बरतापूर्ण हत्याएं सैन्य बलों के लिए बहुत ही मर्मान्तक हैं और सैनिकों के परिजनों के लिए आकस्मिक आघात |पर समाज के सहयोग और सरकार की दायित्वपूर्ण नीतियों से पीड़ित परिवारों ई पीड़ा को जरुर कुछ हद तक कम किया जा सकता है | राष्ट्र के वीर प्रहरियों को समर्पित सार्थक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत साधुवाद | मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार |
सार्थक बुलेटिन नमन सैनिक को।
लेख पसंद करने के लिए आपका आभार ...
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