राष्ट्रीय शोक दिवस की घोषणा हो तभी हम शोक मनायेंगे ? यह तो मानवीय शोक है, एक दिन से परे ... जिनके पास दिल है, वे सब दहल गए हैं !
हमारे 42 जवान शहीद हुऐ है क्या आपके पास 2 मिनट हैं उन शहीदो को श्रदांजलि देने के लिये
एक धमाका हुआ है,
एक फ़ौजी अगर किसी ऑपरेशन में होता है तो एक अनजाना सा डर होता है कि कुछ हो सकता है !
शिनाख्त चली है
शब्द चूक गए हैं ...
ऐसे में सवाल. जवाब
राजनैतिक विचार ... या ख़ुदा,
कुछ देर तो मौन हो जाओ !
यह विस्फोटक धुआँ जो फैला है,
उससे दम घुट रहा है,
कुछ और मत कहो,
शहीदों के सम्मान में,
कोई और बहस मत शुरू करो ।
हमारी दो पंक्तियों में
दुश्मनों के प्रति आक्रोश सही है
अपनों के लिए ही प्रश्न उठाकर
दुश्मनों को बढ़ावा मत दो
फिर से,
उनके मंसूबों को आपसी कलह में
पूरे मत करो,
बस मन और आंखों को डबडबाने दें ।
रश्मि प्रभा
कुछ देर के लिए
( रश्मि प्रभा )
( रश्मि प्रभा )
कुछ पल के लिए ही
उस गाड़ी को मैं छूना चाहती हूँ,
जिसमें बिना चीखे
कई चीखें खामोश हो गईं !
उन आहों को सहलाना चाहती हूँ,
कुछ न कहते - सुनते हुए,
बहुत कुछ कहना-सुनना चाहती हूँ ।
छुटियाँ खत्म करके
अगली छुट्टी का वादा करके
आया होगा कोई,
किसी ने किसी को
अपना वैलेंटाइन बनाया होगा,
किसी को मिली होगी ख़बर पिता बनने की,
किसी की शादी पक्की हुई होगी ,
कोई रूठे को मनाने की सोच रहा होगा,
कोई रूठा होगा एक कॉल के लिए ...
मैं उनको छूकर और शक्ति पाना चाहती हूँ,
ताकि दे सकूँ बद्दुआ
घर उजाड़नेवालों को,
इतनी बेरहमी से क़त्ल की योजना बनानेवालों को ...
और उसके बाद मैं चीखना चाहती हूँ,
अपने रुदन का तांडव करना चाहती हूँ ...
कुछ देर रोक दो इस गाड़ी को,
इन अपनों को !!!
एक फ़ौजी की कलम से
एक फ़ौजी अगर किसी ऑपरेशन में होता है तो एक अनजाना सा डर होता है कि कुछ हो सकता है !
इसमें तो कोई सो रहा होगा, कोई गा रहा होगा,कोई गप्पें मार रहा होगा, और एक ब्लास्ट !!! कुछ पता भी नहीं चला और सब ख़त्म ... एक वो भी स्थिति नहीं आई कि घर बात कर लें,सबकी आवाज़ सुन लें कि क्या पता इसके आगे कोई बात हो या नहीं !
बस एक ब्लास्ट !!!
रात खाने में दाल चावल बनाए
दाल में ज़्यादा मिर्च तो डाली नहीं
फिर भी न जाने क्यों बहुत लाल दिखाई दे रही थी
चावल तो सादे थे
वो भी लाल दिखाई दिए..
टीवी पर पुलवामा की ख़बरें चल रही थीं
चम्मच में दाल चावल का कौर भी लाल था
अरे ये तो ख़ून का रंग है
स्वाद..स्वाद भी ख़ून का है
चम्मच हाथ से छूट कर गिर गई
मन क्षोभ और विषाद से भर गया
स्वयं से वितृष्णा हो उठी ..
मैं यहाँ भोजन कर रही हूँ
और आज कितने घरों की रसोई उजड़ी है
मैं रात आराम से बिस्तर पर सोऊँगी
मेरी नींद कितने जवानों की क़र्ज़दार है
देखूँ कहीं मेरा बिस्तर भी तो ख़ून से सना नहीं है ..
मृत्यु तो सभी भयावह होती हैं
परंतु चवालीस घरों में पुत्र शोक
देश को ऐसा जघन्य आघात ..
मिट्टी ख़ून में डूबी है
हवायें शोक में डूबी हैं
आकाश स्याह है..
मृत्यु बिसूर रही है
यूँ निरर्थक
पीछे से वार करते हैं कायर
सामने से वार करते
लड़ने का मौक़ा तो देते ..
इन कायरों का अन्त तय है
हिंद की सेना के हाथों
तुम्हारा धर्म भले तुम्हें जन्नत भेजेगा
पर जहन्नुम यहाँ देख कर जाओगे ..
कि यहाँ एक नहीं असंख्य रक्तबीज हैं
खप्पर वाली काली जागो...
कल की अपनी पोस्ट के लिए बेहद guilty लग रहा है ..... कहाँ हम प्यार-मोहब्बत का जश्न मना रहे थे और वहाँ कोई गलती न होते हुए यूँ मारा गया कि उसके चिथड़े उड़ गए। official figures 37 count दे रहे हैं unofficial पता नहीं पर वो भी तो हैं जो मौत से जूझ रहे हैं।
हम शहीद कहकर छूट गए, social media पर अपना मत ज़ाहिर कर लिया, सरकार ने मुआवज़ा घोषित कर दिया पर इंसान की क़ीमत पैसे क्या चुका पाएंगे। अपने ही देश में पल रहे पाक के हितैषी कैसे खत्म हों
गनीमत है विपक्ष को इतनी बुद्धि है कि सरकार को सपोर्ट कर रही है। सिर्फ most favored nation का दर्जा वापस लेना हाल नहीं इससे आतंकी activity बंद नहीं होती। कंधार की गलती कब तक भुगतेंगे!
लाइन से रखे गए तिरंगे में लिपटे जवान दिल में आग लगाते हैं!
कम से कम आज तो Facebook या Whatsapp पर कोई और बात न करो, इज़्ज़त दो, वे सब आपकी ही सुरक्षा करते मारे गए हैं।
वो दीप बुझ गये , जलते थे जो सीमाओं पर ,
साँसे थम गईं वे , जीती थीं जो सीमाओं पर ,
सन्नाटा छा गया है , खामोशी बिखरी है मनों में ,
अब तो छलनी कर दो , जो गड़ी निगाहें सीमाओं पर ।
कब तक सिर्फ जवान , दफन होंगे सीमाओं पर ,
घर में बैठे चालें चलकर , अँधेरा करोगे सीमाओं पर ,
तुम बैठो पहन चूड़ियाँ , जूझ सकते हो गली में ,
उन तक पहुँचो तुम भी , बाजी लगाओ सीमाओं पर ।
शपथ उठाओ नौजवानों , डट जाना है सीमाओं पर ,
एक के बदले लेंगे दस-दस , कसम उठाओ सीमाओं पर ,
नहीं बंधो अब जाति-धर्म में बस हिन्दुस्तानी बन जाओ ,
तोड़ मंसूबे गद्दारों के , उन्हें बिछा दो सीमाओं पर ।
.
सरहदों पर यह लड़ाई
न जाने कब ख़त्म होगी
क्यों नहीं जान पाते लोग
कि इन हमलों में सरकारें नहीं
परिवार तबाह होते हैं
सरहदों पर यह लड़ाई
न जाने कब ख़त्म होगी
क्यों नहीं जान पाते लोग
कि इन हमलों में सरकारें नहीं
परिवार तबाह होते हैं
.
कितनों का प्रेम
बिछड़ गया आज ऐन
प्रेम के त्यौहार के दिन
जिस प्रिय को कहना था
प्यार से हैप्पी वैलेंटाइन
उसी को सदा के लिए खो दिया
एक ख़ूंरेज़ पागलपन और
वहशत के हाथों
कितनों का प्रेम
बिछड़ गया आज ऐन
प्रेम के त्यौहार के दिन
जिस प्रिय को कहना था
प्यार से हैप्पी वैलेंटाइन
उसी को सदा के लिए खो दिया
एक ख़ूंरेज़ पागलपन और
वहशत के हाथों
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अरे भाई
कुछ मसले हल करने हैं
तो आओ न...
इंसानों की तरह
बैठें और बात करें
सुलझाएं साथ मिल कर
लेकिन नहीं, तुम्हे तो बस
हैवानियत ही दिखानी है
तुम्हे इंसानियत से क्या वास्ता
तुमने तो बस...
चुन लिया है दहशत का रास्ता
अरे भाई
कुछ मसले हल करने हैं
तो आओ न...
इंसानों की तरह
बैठें और बात करें
सुलझाएं साथ मिल कर
लेकिन नहीं, तुम्हे तो बस
हैवानियत ही दिखानी है
तुम्हे इंसानियत से क्या वास्ता
तुमने तो बस...
चुन लिया है दहशत का रास्ता
एक बच्चे ने स्टेटस लगा रखा है, बच्चे ही क्यूं दुनिया भर के लोगों के ऐसे स्टेटस हैं, मैं मानती हूं सबमें रोष है, होना भी चाहिए, कुछ लोग तो हैं ही जो यह मौका चाहते हैं कि किसी भी तरह उन्हें आतंक को खत्म करने का मौका मिल जाए। लेकिन जब भी ऐसा मौका आता है मेरे देश की गौरवशाली सेना ही आगे होती है, न नेता न अभिनेता, न ही हम आगे होते हैं। तो उन वीरों को भी यकीन दिलवाना होगा हम सब उनके साथ हैं, हमें एक होकर उनके परिवारों की देखभाल करनी है, सर्जिकल स्ट्राइक का मतलब है मौत के मुंह में खुद को ले जाना, तो बताइए हमारी जिम्मेदारी भी तो कुछ बनती ही है न?
कुछ कह सकने से / लिखने से कुछ हो सकता तो लिख देते कितनी ही बातें...
नमन शहीदों को
डरी हुई है
की राखी
माँ का आँचल
आँसू से भीगा
चूड़ियाँ टूटी
सिंदूर धुला धुला सा
पिता की आँखे
पथराई जाती
भारती के इतने लाल
गए है काल में
हमारी उदारता ने
ही हमें छला है।
जाने कितने सांप है
पाले हमने
अपनी आस्तीनों में
पहले इनसे निपटो तुम
फिर निपटना तुम
शैतानों और बाहरी
साजिश अपराधी संगीनों से
जो जिम्मेदार हैं शहादत के
उनको ढूंढ ढूँढ मारो
वो भीतर हों
या देश के बाहर
राखी के हत्यारे है वो
कुम कम के हत्यारे जो
कोख के हत्यारे हैं वो
भारती की आँखों मे
बहते आँसू के हत्यारे जो
भीतर हो चाहे बाहर हो
देश के अपराधी को मारो
बस मारो बस मारो।
आतंक से आजाद करो
अब बस आतंक से जंग करो।
की राखी
माँ का आँचल
आँसू से भीगा
चूड़ियाँ टूटी
सिंदूर धुला धुला सा
पिता की आँखे
पथराई जाती
भारती के इतने लाल
गए है काल में
हमारी उदारता ने
ही हमें छला है।
जाने कितने सांप है
पाले हमने
अपनी आस्तीनों में
पहले इनसे निपटो तुम
फिर निपटना तुम
शैतानों और बाहरी
साजिश अपराधी संगीनों से
जो जिम्मेदार हैं शहादत के
उनको ढूंढ ढूँढ मारो
वो भीतर हों
या देश के बाहर
राखी के हत्यारे है वो
कुम कम के हत्यारे जो
कोख के हत्यारे हैं वो
भारती की आँखों मे
बहते आँसू के हत्यारे जो
भीतर हो चाहे बाहर हो
देश के अपराधी को मारो
बस मारो बस मारो।
आतंक से आजाद करो
अब बस आतंक से जंग करो।
4 टिप्पणियाँ:
स्तब्ध हूँ... कई घर उजड़ गए... युद्ध में वीरगति समझ में आती है... यूँ..
नमन और श्रद्धाँजलि। कहने के लिये कुछ नहीं है।
हमारी ये श्रद्धांजलि क्या दे सकती है ? न उन पत्नी बच्चों के आँसू पौंछ सकती है और न एक पल को उन्हें वापस मिला सकती है । बस हमारी आँखों की नमी को अपने में समेट लिया है ।
बहुत दुखद... अश्रुपूरित श्रद्धांजलि...
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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!