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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

ख्वाब





मुट्ठी में कसकर
रखे थे कुछ ख्वाब
...
पाँव में कुछ चुभा
तो जाना
..... जाने कब पकड़ ढीली हुई
ख्वाब बिखर गए




और फिर से 

2 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति।

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति ...

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