सोमवार को चीन के बाज़ार के संकट से दुनिया भर के बाज़ार प्रभावित रहे। अमेरिका के वॉल स्ट्रीट से बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के दलाल पथ तक हलचल है। क्रूड अपने सबसे बुरे हाल पर है, दुनिया आर्थिक संकट के मुहाने पर खड़ी है और स्थिति वास्तव में गंभीर नहीं तो कम से कम चिंता जनक तो है ही। बहुत से लोग इस संकट के असली कारण नहीं जानते होंगे और इसके लिए भी वर्तमान मोदी सरकार को ही ज़िम्मेदार ठहराएंगे। आज जब मैं शाम आठ बजे न्यूयॉर्क की ट्रांस हडसन ट्रेन में बैठकर यह पोस्ट लिख रहा हूँ तो संभव है अभी तक किसी विपक्षी दल ने इसके लिए मोदी सरकार का इस्तीफ़ा तक मांग लिया होगा। बहरहाल इस संकट के लिए एक तरह से चीन ही ज़िम्मेदार है। चीन में लोकतंत्र नहीं है और यहाँ सरकार ही सब कुछ है। यहाँ की अर्थ-व्यवस्था में सरकारी दखल हद से ज्यादा है। कुल मिलाकर यदि साफ़ साफ़ कहा जाए तो अपनी अर्थव्यवस्था को चीन दुनिया के सामने बढ़ा चढ़ा कर पेश करता आया है, भले उसकी सच्चाई कुछ भी हो। चीन का मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर आज कल मंदी की मार झेल रहा है और इससे उबरने के लिए चीन ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन किया है। विश्व समुदाय चीन के इस प्रकार लुढ़कने से सकते में है क्योंकि रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट के लॉजिक के आधार पर चीन में इन सभी का पैसा फंस गया है। दूसरा बड़ा झटका क्रूड की कीमत ने दिया है। दुनिया में ओपेक तेल पर अपना एकक्षत्र राज चाहता है और ओपेक में बैठे अरबी देश अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ाते और घटाते रहते हैं। अमेरिका सरीखे देश जो ओपेक की कीमत से सीधे प्रभावित होते हैं, अब भाई यदि ओपेक उत्पादन अधिक करेगा तो उसकी कीमत गिरेगी और यही अमेरिका का नुकसान है।
चीन अपनी मुद्रा का अवमूल्यन और तेल के आयात में कटौती करके अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयास में लगा है और शेयर बाज़ार का यह खून खराबा फ़िलहाल थमता नहीं दिख रहा। बहरहाल चीन के निर्माण क्षेत्र में छाई हुई मंदी का भारत समुचित लाभ ले सकता है और चीन भी इस हकीकत को अच्छी तरह से जानता है। उसे ज्ञान है की भारत की नयी सरकार की मुहीम और अधिक विनिवेश लाने के लिए चल रहे "मेक इन इंडिया" जैसे कार्यक्रम भारत को विश्व की फैक्ट्री बना देंगे। विश्व समुदाय चीनी सरकार की तुलना में स्थिर और लोकतांत्रिक भारत में अपनी रूचि दिखायेगा। यही चीन का डर है और यही भारत के लिए मौका। अच्छी बात यह है कि अब देश में मजबूत मोदी सरकार है सो जो होगा अच्छा ही होगा।
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अब चलते है आज की बुलेटिन की ओर ...
हिन्दी सोशल मीडिया पर मेरे प्रयोग
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क्या सदैव सत्य बोला जा सकता है?
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(दशरथ मांझी नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी के चेहरे में दिखा … और सोच की खलबली होती रही )
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आज के लिए इतना ही ... फ़िर मिलेंगे ...
आपका
10 टिप्पणियाँ:
अब जिम्मेदारी है तो है चीन की ही सही । सुंदर बुलेटिन ।
बहुत सटीक आर्थिक विश्लेषण...बहुत रोचक बुलेटिन...आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए
बहुत सटीक आर्थिक विश्लेषण...बहुत रोचक बुलेटिन...आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए
बहुत सटीक आर्थिक विश्लेषण...बहुत रोचक बुलेटिन...आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए
उतार चढ़ाव आते रहते हैं। तेल की कीमत बढ़ाने से जनता की कठिनाई बढ़ती है तो तेल की कीमत कम होने से भय क्यों है, ज़रा विस्तार से बताइये। वही बात चीनी मुद्रा के अवमूल्यन के बारे में, यदि संसार की फैक्ट्री का उत्पादन सस्ता हो गया तो चीन के बाहर के संसार को भय क्यों है?
बहुत रोचक बुलेटिन
मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार
बढ़िया विश्लेषण किए देव बाबू ... जय हो |
economy kai baare mai sahi jankari di hai ,thanks
शुभ लाभ Seetamni. blogspot. in
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