नमस्कार
दोस्तो,
दूसरे
पर आरोप लगाने के, दूसरे को नीचा दिखाने के
हम सब इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि इसे अपनी आदत ही बना बैठे हैं. किसके
लिए, कब कुबोल बोल जाएँ इसका अंदाज़ा ही नहीं रहता. हालाँकि कई बार ऐसा अनजाने में
होता है किन्तु जब ऐसा बार-बार, लगातार होता रहे तो समझा जा सकता है कि ये हमारी
मानसिकता है, हमारी आदत में शुमार है. कुछ इसी तरह का प्रदर्शन हाल में मुखिया द्वारा
किया गया, जिनकी जुबान पूर्व में भी लड़खड़ा चुकी थी. इस लड़खड़ाती जुबान की यात्रा
‘लड़कों के गलतियाँ होती रहती हैं’ से लेकर ‘चार पुरुष एक महिला का रेप नहीं कर
सकते’ तक आ चुकी है. इस तरह के बयानों से उनकी मानसिकता तो समझ आती है किन्तु ये
समझना मुश्किल है कि कुबोलों की ये यात्रा यहीं थमेगी अथवा और विकृत रूप में सामने
आएगी.
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समझ
नहीं आता कि आखिर इनके साथ समस्या कहाँ है? ऐसा भी नहीं है कि मुखिया मुँह में
चाँदी की चम्मच लेकर पैदा हुए थे; ऐसा भी नहीं है कि उनको विरासतन राजनीति मिली
हो; ऐसा भी नहीं है कि प्रदेश की सत्ता उनको बहुत सहजता से उपलब्ध हो गई हो, ऐसे
में जबकि कोई व्यक्ति जमीन से उठकर इतनी ऊँचाई पर पहुंचा हो उसको किसी जाति-विशेष
मात्र का समर्थन नहीं मिला होगा; लिंग-विशेष का समर्थन नहीं मिला होगा; उम्र-विशेष
का समर्थन नहीं मिला होगा. ज़ाहिर सी बात है कि सब धर्मों का, सभी जातियों का, सभी
लिंग का, सभी आयु-वर्ग का समर्थन उसके साथ है, तब उम्र के इस पड़ाव पर महिलाओं के
लिए इस तरह से आपत्तिजनक बयान देकर वे क्या साबित करना चाहते हैं? किस वोट-बैंक को
अपने साथ लाना चाहते हैं? किसे प्रभावित करना चाहते हैं? संभव है कि ऐसी मानसिकता
के पीछे अहंकारी भाव रहता हो? प्रदेश में सत्ता का शीर्ष उनके पास है ही, देश में
भी सत्ता का शीर्ष वे छू चुके हैं, ये और बात है कि शीर्ष पद प्राप्ति में वे एक
कदम से ही चूक गए थे. ऐसे में सत्ताधारी हनक में ये लोग आम इन्सान को भुनगा मात्र
समझने लगते हैं. ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि ऐसे विवादित बयान महज मुखिया
द्वारा नहीं दिए गए वरन उनकी पार्टी के कई नेताओं द्वारा समय-समय पर अपनी मानसिकता
को दर्शाया गया है; कई दूसरे राष्ट्रीय, क्षेत्रीय दलों के वरिष्ठ नेताओं द्वारा
भी जुबानी नियंत्रण छूटा है. सत्ता की, शक्ति की हनक को इसका कारण इसलिए भी माना
जा सकता है क्योंकि ऐसे कुबोल के पीछे केवल पुरुष ही नहीं हैं वरन महिलाएं भी शामिल
हैं.
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यहाँ
मुखिया की बयानबाज़ी के सम्बन्ध में उनकी सत्ता हनक तो हो सकती है, साथ ही उनका
पुत्र-प्रेम भी इसका कारण हो सकता है. देखा जाये तो उनके पुत्र के सत्तासीन होने
के बाद से वर्तमान तक प्रदेश की स्थिति किसी भी रूप में संतोषजनक भी नहीं कही जा
सकती है. कानून व्यवस्था बुरी तरह से ध्वस्त है, अराजकता अपने चरम पर है, गुंडाराज
सड़कों से गुजरता हुआ घरों के भीतर तक घुस गया है. अपहरण, हत्या, छेड़छाड़, बलात्कार
आदि की घटनाएँ आम हो चुकी हैं. ऐसे में मुखिया को आगामी वर्षों में होने वाले
विधानसभा चुनाव का डर दिखाई देने लगा है, साथ ही पुत्र के दरकिनार किये जाने का भय
भी उन पर हावी हो रहा होगा. आखिर एक बार तो दवाब की राजनीति करके पुत्र को
सत्ता-सुख दिलवाया जा सकता है किन्तु ऐसा बार-बार कर पाना संभव नहीं होगा. संभव है
कि सत्ता का उच्च अतीत, सत्ता की वर्तमान हनक और सत्ता से बेदखल का भावी भय उनको विक्षिप्त
सा कर रहा हो. इस संक्रमण की स्थिति का नकारात्मक प्रभाव उनके मन-मष्तिष्क पर,
उनकी जुबान पर हो गया हो और वे ऐसे कुबोल लगातार बोल जा रहे हों. बहरहाल सत्यता
कुछ भी हो किन्तु एक बात स्पष्ट है कि राजनीति के उच्च पायदानों पर बैठे
व्यक्तियों के लिए आम इंसान कीड़े-मकोड़े के समान है और उसमें भी उनके निशाने पर
सहजता से महिलाएं ही आ जाती हैं. ऐसी सोच, ऐसे बयान निंदनीय हैं, इनकी समवेत निंदा
होनी भी चाहिए और मौका लगने पर ऐसे लोगों को सबक भी सिखाया जाना चाहिए.
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ऐसा
हो पायेगा या नहीं, ये तो भविष्य के गर्भ में है.... आइये हम सब वर्तमान में आकर
आज की बुलेटिन पर दृष्टि डालें.... शायद उसी में से भविष्य की कोई सुनहरी राह
दिखाई दे.... तब तक लिए अनुमति दीजिये.... फिर मिलेंगे, अगले गुरुवार....
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