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रविवार, 30 मार्च 2014

आह' कौन सुनता है ?




वो तुम्हारे अपने नहीं थे
जिन्हें साथ लेकर
तुमने सपने सजाये
सूरज मिलते
सब अपनी रौशनी के आगे
एक रेखा खींच ही देते हैं !
शिकायत का क्या मूल्य
या इन उदासियों का ?
'आह' कौन सुनता है ?
वक्त ही नहीं !
गर्व करो-
तुम आज अकेले हो !
साथ है वह सत्य
जिसे कटु मान
तुमने कभी देखा ही नहीं !  …  गौर कीजिये, और लिंक्स पढ़िए 





7 टिप्पणियाँ:

आशीष अवस्थी ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति रश्मि जी व बुलेटिन को धन्यवाद !
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Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर सूत्र...रोचक बुलेटिन...आभार..

शिवम् मिश्रा ने कहा…

कोई न कोई मिल ही जाता है जो इस आहा को सुन लेता है ... अब भले ही वो अपना हो न हो |
बढ़िया बुलेटिन दीदी ... सादर आभार |

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

आह पर गौर करना और आह का असर होना । दो अलग बात । बुलेटिन बहुत सुंदर है।

Shalini kaushik ने कहा…

very nice links .thanks .

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर सूत्र।

mridula pradhan ने कहा…

bahut sunder......

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