वो तुम्हारे अपने नहीं थे
जिन्हें साथ लेकर
तुमने सपने सजाये
सूरज मिलते
सब अपनी रौशनी के आगे
एक रेखा खींच ही देते हैं !
शिकायत का क्या मूल्य
या इन उदासियों का ?
'आह' कौन सुनता है ?
वक्त ही नहीं !
गर्व करो-
तुम आज अकेले हो !
साथ है वह सत्य
जिसे कटु मान
तुमने कभी देखा ही नहीं ! … गौर कीजिये, और लिंक्स पढ़िए
7 टिप्पणियाँ:
बढ़िया प्रस्तुति रश्मि जी व बुलेटिन को धन्यवाद !
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बहुत सुन्दर सूत्र...रोचक बुलेटिन...आभार..
कोई न कोई मिल ही जाता है जो इस आहा को सुन लेता है ... अब भले ही वो अपना हो न हो |
बढ़िया बुलेटिन दीदी ... सादर आभार |
आह पर गौर करना और आह का असर होना । दो अलग बात । बुलेटिन बहुत सुंदर है।
very nice links .thanks .
सुन्दर सूत्र।
bahut sunder......
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