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गुरुवार, 13 मार्च 2014

दोगला समाज

आदरणीय ब्लॉगर दोस्तों सादर प्रणाम 

प्रस्तुत है आज की बुलेटिन.....

शादी हुई ... दोनों बहुत खुश थे!

स्टेज पर फोटो सेशन शुरू हुआ!

दूल्हे ने अपने दोस्तों का परिचय साथ खड़ी अपनी साली से करवाया " ये है मेरी साली , आधी घरवाली "

दोस्त ठहाका मारकर हंस दिए !

दुल्हन मुस्कुराई और अपने देवर का परिचय अपनी सहेलियो से करवाया " ये हैं मेरे देवर ..आधे पति परमेश्वर "

ये क्या हुआ ....? अविश्वसनीय ...अकल्पनीय!

भाई समान देवर के कान सुन्न हो गए! 

पति बेहोश होते होते बचा!

दूल्हे , दूल्हे के दोस्तों , रिश्तेदारों सहित सबके चेहरे से मुस्कान गायब हो गयी!

लक्ष्मन रेखा नाम का एक गमला अचानक स्टेज से नीचे टपक कर फूट गया!

स्त्री की मर्यादा नाम की हेलोजन लाईट भक्क से फ्यूज़ हो गयी!

थोड़ी देर बाद एक एम्बुलेंस तेज़ी से सड़कों पर भागती जा रही थी!

जिसमे दो स्ट्रेचर थे! एक स्ट्रेचर पर भारतीय संस्कृति कोमा में पड़ी थी ...

शायद उसे अटैक पड़ गया था! 

दुसरे स्ट्रेचर पर पुरुषवाद घायल अवस्था में पड़ा था ...

उसे किसी ने सर पर गहरी चोट मारी थी!

आसमान में अचानक एक तेज़ आवाज़ गूंजी .... भारत की सारी स्त्रियाँ एक साथ ठहाका मारकर हंस पड़ी थीं !

यह चुटकुला या व्यंग आज मुझे एक मित्र ने भेजा | पढ़कर दिमाग में फितूर उठ गया और अब जाकर यहाँ इस लेख के रूप में शांत हुआ है | यह व्यंग ख़ास पुरुष वर्ग के लिए है जो खुद तो अश्लील व्यंग करना पसंद करते हैँ पर जहाँ महिलाओं कि बात आती है वहां संस्कृति कि दुहाई देते फिरते हैं | अपनी नज़रों में तो गिद्ध के समान लार लिए घुमते हैं और ऊँगली दूसरों पर उठाते हैं | सवाल यह उठता है की यह बात कहाँ तक सार्थक है | क्या नारी को अपनी बात कहने का हक़ इस दोगले समाज में है भी या नहीं है ? 

इस पुरुष प्रधान समाज में नारी को जिस हकारत की नज़र से देखा जाता है और एक भोग की वस्तु, प्रयोग की वस्तु, अपने मौज मज़े की वस्तु, एक बंधवा मज़दूर के रूप में देखा जाता है क्या वह सही है ? मेरी सोच से तो इससे ज्यादा निंदनीय बात कोई और हो ही नहीं सकती | 

आज की नारी स्वाबलंबी है | अपने पैरों पर स्वयं खड़ी है | सबका ख़याल रखने में सक्षम है | वो अपनी व्यावसायिक ज़िन्दगी और निजी ज़िन्दगी में भली भांति समन्वय बनाकर चलने वालो में से हैं फिर क्यों पुरुष इस बात को नहीं समझ और स्वीकार कर पाता की नारी सर्वोच्च है सर्वोत्तम है | 

नारी को लेकर हर जगह मर्द हर प्रकार के अश्लील मज़ाक करता है यदि वही स्त्री करे तो उसे आपत्ति है | क्यों भला? उसे भी पूर्ण अधिकार है हर तरह का मजाक करने का | यदि पुरुष यह समझते हैं कि इस प्रकार के मज़ाक से उनकी गरिमा में चार चाँद लग जाते हैं तो उसी प्रकार नारी की गरिमा भी क्यों नहीं बढती ? ऐसे मज़ाक करने पर उनकी गरिमा पर ऊँगली क्यों उठाई जाती है | 

मर्दों को यह समझना होगा कि यदि नारी एक जन्म देने वाली माँ है, दुखों को बांटने वाली दोस्त है, जीवन भर साथ देने वाली पत्नी है, हंसी-मज़ाक, छेड़छाड़ करके दिल लगाने वाली बहन है, एक पिता का गुरूर बेटी है वही स्त्री समय आने पर ज़रुरत के अनुसार स्त्री शक्ति का प्रतीक देवी दुर्गा और काली भी है | 

मुझे तो बड़े दुःख और खेद के साथ ऐसे दोगले समाज की भत्सना करने का दिल करता है जिसका एक हिस्सा मैं स्वयं भी हूँ | आज जो नारी का सम्मान नहीं कर सकते और उन्हें बराबरी का दर्जा देने में असमर्थ हैं वो आगे भविष्य में क्या करेंगे ? ऐसी लिजलिजी सोच, संकीर्ण मानसिकता, अनैतिक रवैया और बदबूदार विचार वाले लोगों के घटिया मस्तिष्क पर थू करके अपने थूक को भी व्यर्थ करने का दिल भी नहीं करता जो किसी लायक ही नहीं हैं | 

हर रोज़, सुबह शाम, आये दिन कहीं ना कहीं नारी का उत्पीड़न हो रहा है, अश्लील व्यवहार हो रहा है, फिल्म जगत में नारी को एक कठपुतली बनाकर पेश किया जा रहा है, सड़क चलते छेड़खानी हो रही है, मोहल्ले के नुक्कड़ पर फितरे कसे जा रहे हैं, बलात्कार की घटनाएँ हो रही हैं, दहेज़ के कारण हत्याएं हो रही हैं, छोटी छोटी बालिकाओं का शोषण हो रहा है | घरों में, दफ्तरों में, अस्पतालों में, विद्यालाओं में, संगठनो में, राजनीति में, फिल्म जगत में, विज्ञापन जगत में और जहाँ ना देखो वहां भी हर पल नारी के प्रति दुर्भावना रखने वाले पाखंडी देखने को मिल ही जाते हैं | इस दोगलेपन की भी हद है | यहाँ तक अगर गौर फरमाएं तो देसी प्रचलित गलियां भी माँ और बहन पर ही आधारित हैं | अरे यार गरियाने का इतना शौक़ है तो बाप भाई पर बना कर दो नारी पर ही क्यों ? 

आख़िर कब तक ? ऐसा कब तक चलता रहेगा ? कब हमारा समाज और पुरुष सोच इस पाखंड का त्याग करेगी ? कब सच का सामना करने की हिम्मत समाज में आएगी ? कब पुरुष की आँखें खुलेंगी ? कब तक ऐसे ही नकारात्मकता का नंगा नाच समाज में होता रहेगा ? अपनी अशिष्टता और असभ्यता की चूड़ियाँ यह पुरुष प्रधान समाज कब तोड़ेगा और अपनी कायरता के सिन्दूर को कब अपनी मांग से मिटाएगा ? कब अपनी कुरीतियों के साथ पुरुष सती होगा ? कब अपनी यौन इच्छाओं, भद्दी भाषावली, कुसंगति और अश्लीलता और फूहड़ मजाकिया लहजे की चिता जलाकर उनकी विधवा कहलायेगा ? कब तक आखिर कब तक ? इन सवालों का जवाब आज नहीं ढून्ढ पाए तो कल तक शायद बहुत देर हो जाएगी | सोच बदलो समाज बदलो चरित्र बदलो व्यक्तित्त्व बदलो | इस सच पर ज़रा गौर फरमाएं और सोचें ....... !

आज की कड़ियाँ 













अब इजाज़त | आज के लिए बस यहीं तक | फिर मुलाक़ात होगी | आभार
जय श्री राम | हर हर महादेव शंभू | जय बजरंगबली महाराज 

12 टिप्पणियाँ:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

एक से बढ़ कर एक लिंक्स
होली की अग्रिम शुभकामनायें :)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सही विषय, सुन्दर संकलित सूत्र।

Ankur Jain ने कहा…

बहुत सुंदर...मजा आया इस बुलेटिन में।।।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

समाज का यह दोगलापन तो अक्सर ही सामने आता रहता है :(

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर बुलेटिन सुंदर आगाज के साथ :)

HARSHVARDHAN ने कहा…

नये विषय पर बढ़िया तरीके से चर्चा की भईया । सादर।।
अब देखते आज कि बुलेटिन की कड़ियाँ !!

Asha Lata Saxena ने कहा…

विभिन्न विषय सूत्रों के |बढ़िया संयोजन |होली पर अग्रिम बधाई |
आशा

Unknown ने कहा…


वाह बहुत सुन्दर लिंक्स का समावेश करके सुन्दर चर्चा।
हार्दिक बधाई

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति। .

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

shukriya doston. holi ki badhai

ज्योति-कलश ने कहा…

सुन्दर संयोजन ....हृदय से आभार और बहुत बहुत शुभ कामनाएं !!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

वाह...सामयिक और सुन्दर पोस्ट.....
आप को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@हास्यकविता/ जोरू का गुलाम

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