आदरणीय ब्लॉगर मित्रगण,
नमस्कार
आज हमारे देश के वरिष्ट रचनाकार, साहित्यकार, लेखक और कहानीकार श्री भीष्म सहनी जी का जन्म दिवस भी है । साहनी साहब का जन्म 08 अगस्त 1915 को रावलपिंडी में हुआ था। विभाजन के पहले अवैतनिक शिक्षक होने के साथ वह व्यापार भी करते थे। विभाजन के बाद वह भारत आ गए और सामाचार पत्रों में लिखने लगे। उन्होंने देश के विभाजन के समय जिस पीड़ा को महसूस किया उसे उन्होंने अपनी रचना और बाद में बना धारावाहिक 'तमस' में बखूबी दर्शाया है । वे अपनी सीधी, स्वच्छ, सटीक और सादगी पसंद रचाओं के लिए विख्यात हैं । उन्होंने सदैव अपने लेखन में अपने ह्रदय में उठते मानवीय मूल्यों को महत्तवता दी । उनके उपन्यास, कहानियां, नाटक और उनके द्वारा रचित रचनाएँ इसका जीता जागता प्रमाण हैं । 'अहं ब्रह्मास्मि', 'अमृतसर आ गया' और 'चीफ की दावत' जैसी उनकी कहानियां अपने सटीक सन्देश एवं सशक्त अभिव्यक्ति के कारण काफी चर्चित रहीं हैं । भीष्म साहनी जी ने अपने जीवन में हमेशा धर्मनिरपेक्षता को महत्व दिया और उसे अपनी रचनाओं और कहानियों में भी दर्शाया ।
साहनी जी ने नई कहानियां नमक पत्रिका का संपादन भी किया । वह भारतीय जन नाट्य संघ [इप्टा] के सदस्य भी रहे । दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर भी रहे । मास्को के फॉरेन लैंग्वेजेस पब्लिकेशन हाउस में अनुवादक के तौर पर दो दर्जन रूसी किताबों का हिंदी में अनुवाद किया। इसमें टालस्टॉय और आस्ट्रोवस्की जैसे लेखकों की रचनाएं भी शामिल हैं। उन्होंने टालस्टॉय के एक परिपक्व उपन्यास का अनुवाद 'पुनरूत्थान' नाम से किया था। उनके उपन्यास झरोखे, तमस, बसंती, मैय्यादास की माड़ी, कहानी संग्रह भाग्यरेखा, वांगचू और निशाचर, नाटक, हानूश, माधवी, कबीरा खड़ा बाजार में, आत्मकथा 'बलराज माई ब्रदर' और बालकथा 'गुलेल का खेल' ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। साहनी साहब की कृति पर आधारित 'तमस' धारावाहिक काफी चर्चित रहा था। उनके 'बसंती' उपन्यास पर भी धारावाहिक बना था। उन्होंने मोहन जोशी हाजिर हो, कस्बा और मिस्टर एंड मिसेज अय्यर नामक फ़िल्मों में अभिनय भी किया था।
उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। साहनी ने कुछ समय अपने बड़े भाई एवं फिल्म अभिनेता बलराज सहानी के साथ मुंबई में रंगमंच पर भी काम किया था।
अपनी बेबाक, आधारपूर्ण, मानवीय, मर्मस्पर्शी और सटीक लेखनी और सौहार्दपूर्ण, शिष्ट और आत्मीय व्यक्तित्त्व के कारण वे सभी के दिलों में हमेशा जीवित रहेंगे । उन्होंने पुराने वरिष्ट लेखों की परंपरा को आगे बढाकर हिन्दुस्तानी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान दिया है | उनका निधन 11 जुलाई 2003 को दिल्ली में हुआ था।
आज हमारे बुलेटिन परिवार की तरफ से उन्हें जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनायें | सहनी साहब सभी के दिलों में जीवित और अमर रहें ऐसी हमारी मनोकामना है | आशा करते हैं वे जहाँ भी हों सुकून से रह रहे हों |
दूसरा अभी कल ही ताज़ा ताज़ा एक कविता लिखी थी । अपनी आवाज़ में इसे रिकॉर्ड करने का प्रयास भी किया । एक बीते दिनों की फिल्म 'दूसरा आदमी' का एक गाना 'क्या मौसम है' जिसे 'किशोर दा, लता दी और मोहम्मद रफ़ी साहब' ने गाया है बैठा सुन रहा था । तभी मन हुआ के कुछ अपने बोल बनाकर इसकी धुन पर लिखा जाये । तो बस खुराफाती दिमाग ने जुम्बिश ली और लिख डाली कविता और रिकॉर्ड भी कर ली ।
वह भी आज की बुलेटिन में पेश-ए-खिदमत है ।
एक जीवन है
वो मतवाले पल
अरे फिर से वो, मुझे मिल जायें
फिर से वो, कहीं मिल जायें
कुछ साथी हैं
मिलने के क़ाबिल
बस इसलिए हम, मिल जाएँ
फिर से हम, कहीं, मिल जायें
मिल के जब हम सभी, हँसते गाते हैं
पड़ोस में चर्चे तब, हो जाते हैं
हे हेहे हे
ऐसा है तो, हो जाने दो, चर्चों, को आज
ये क्या कम है
हम कुछ हमराही
अरे मिल जाएँ, बहक जाएँ
फिर से हम, कहीं, मिल जायें
वो मस्तियाँ, यारों का प्यार
हम हो चले, बेक़रार
लो, हाथ में, शाम का, जाम लो
बेवफ़ा किसी, सनम का, नाम लो
दुनिया को अब खुश, नज़र आयें हम
इतना पियें, के बहक, जाएँ हम
के बहक, जाएँ हम, के बहक, जाएँ हम
के बहक, जाएँ हम
फिर से हम, कहीं मिल जायें
ओ ओओ ओ
अच्छा है, चलो मिल जाएँ
फिर से हम, कहीं मिल जायें
ओ ओ ओ ओ
अच्छा है, चलो मिल जाएँ
आज की कड़ियाँ
जय श्री राम | हर हर महादेव शंभू | जय बजरंगबली महाराज
8 टिप्पणियाँ:
स्व॰ श्री भीष्म सहनी जी को उनकी जयंती के अवसर पर शत शत नमन !
बढ़िया बुलेटिन तुषार भाई !
बढ़िया बुलेटिन
सुन्दर लिंक्स बढ़िया बुलेटिन
bheeshm ji ki "TAMAS " ki yaad aa rahi hai kitna achcha likha hai
... तो आप गाते भी हैं!
बहुत ही सुन्दर सूत्र..
सुंदर प्रस्तुति तुषार जी आपका धन्यवाद ...
अतिसुन्दर
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