सभी मित्रों को देव बाबा की राम राम....
कुछ साल पहले एक गाना आया था ... "यहाँ पर सब शांति शांति है ..."
आजकल माहौल बदल गया है ... आजकल "यहाँ पर सब राजनीति ... राजनीति है " बिना राजनीति कुछ भी नहीं ! कोई सामाजिक कार्यक्रम बिना राजनीति हुए बचेगा नहीं। कोई भी कार्यक्रम हो.. जैसे की मुम्बई का दही-हांडी उत्सव या फ़िर गणपति या फ़िर दुर्गा पूजा.. या फ़िर ईद को ही ले लीजिए.. हर ओर राजनीतिक दलों के पोस्टर लग जाएंगे। दो दिन पहले मुम्बई में कृष्ण जन्माष्टमी और फ़िर दही हांडी का कार्यक्रम हुआ। मुम्बई में छुट्टी होती है लेकिन हम जैसे लोगों को मजदूरी से मुक्ति नहीं मिलती सो हमें जाना पडा। अब भाई वापसी में जो दिक्कते हुई उनको कैसे बयां करें... इधर डायवर्जन, उधर से लेफ़्ट फ़िर राईट और फ़िर सेन्टर। लगा हम भी संसदीय रास्ते पर चल निकले हैं जो रास्ता शायद किसी पक्के मार्ग की ओर जाएगा जो हमें सीधा हायवे पर ले जाएगा... लेकिन यह हमारी भूल थी। संसदीय रास्ते पर चलकर आप केवल राजनीति देख सकते हैं, उस राजनीति को झेल सकते हैं.. लेकिन विकास की ओर जाएंगे ऐसा कोई तय मापदंड नहीं है। बहरहाल लेफ़्ट राईट और सेन्टर के बीच झेलते हुए हमें अपने इर्द गिर्द जमा गोविन्दाओं के हुडदंग से भी दो चार होना पडा। हर एक गोविन्दा के टी-शर्ट पर किसी न किसी राजनीतिक दल का चिन्ह था। और हर गोविन्दा उस राजनीतिक दल का पोस्टर बना घूम रहा था। कहीं भी कृष्ण का कोई नामो-निशान नहीं था। यह एक ऐसा मौका होता है जब हर राजनीतिक दल अपना दबदबा बनाए रखनें के लिए हर सम्भव प्रयास करता है। मटकी की राशि का अंदाज़ा लगाईए... पचास लाख, एक करोड और एक जगह तो पांच करोड। आखिर इस रकम की कोई लिखा पढी है? इसमें कितना राजनीतिक पैसा है और कितना दो नम्बर का? यह उत्सव वास्तव में हमारे देश की स्थिति को बयां करते हैं। जनता को लेफ़्ट राईट और सेन्टर में फ़ंसा दो.. धर्म का झुनझुना पकडा दो और फ़िर मौज लेते रहो। चलिए देखते हैं हम और आप इस फ़ेरे से निकल कर हायवे तक कब आ पाते हैं।
वैसे अब एक काम की और एडल्ट बात.. बोले तो सिर्फ़ 18 साल से ऊपर के लोगों के लिए... भाई इस बार चुनाव में वोट जरूर देना, नय तो फ़िर से कोई सरफ़िरा कपार पर बैठ जाएगा पांच साल के लिए..
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