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शनिवार, 20 अप्रैल 2013

क्यों न जाए 'ज़ौक़' अब दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,

प्रणाम !



जो 'ज़ौक़' साहब आज के दौर मे होते तो हरगिज न कहते कि,

"कौन जाए ज़ौक़ पर दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर ..."
 
कार्टूनिस्ट :- सतीश आचार्य 

कार्टूनिस्ट :- सतीश आचार्य

कार्टूनिस्ट :- मनोज कुरील 

कार्टूनिस्ट :- सुधीर तैलंग 
सादर आपका 
 
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क्या पारम्परिक परिधान रूढ़ीवाद व पिछड़ेपन की निशानी है ?

अपना गाँव… पार्ट 3

बधशाला -7

..............अब और नहीं सहेंगे

क्या आज वर्जनाहीन समाज ही बच्चियों की सुरक्षा की शर्त है

ये तितलियाँ -क्यूँ बदल जाती हैं ?

स्त्री की प्रेम अभिव्यक्ति और हमारे सामाजिक नियम.

उज्जवल प्रकाश की ओर......

समाज भेड़िये पैदा कर रहा है और समाज के ठेकेदार जनता से सुरक्षा-कर वसूल रहे हैं

कब तक ?

अकेला

हे राम...बेटियों के वंदन और मानमर्दन का कैसा खेल

बदल रहा है

ऐ मेरे नादान दिल

आँखें

सप्पोर्ट सिस्टम

थोड़ा अपना सा,थोड़ा बेगाना सा ..

पुरस्कारों की चर्चा :गोलगप्पे वडा पाव की तरह

हंगामा है क्यूं बरपा? डोयिचे वेले पुरस्कारों पर दो टूक!

वीनू - तुम बहुत याद आओगे !

:):)

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!! 

18 टिप्पणियाँ:

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

....हमें अब शर्म करने का भी हक़ नहीं रहा :-(

आशा बिष्ट ने कहा…

अच्छे लिंक्स
पढ़ते हैं एक एक कर
मेरी रचना को स्थान देंने के लिए सादर धन्यवाद शिवम् जी ।।

आशा बिष्ट ने कहा…

कार्टून काफी कुछ बोल गये अब क्या बोले।।

Unknown ने कहा…

एक बार हमरा भी ब्लॉग देख लें कुछ अच्छा लगने लायक हो तो समझूंगा की जीवन सफल हुआ |
तो लिंक है .....
www.appanmadhubani.blogspot.in

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

चित्रों ने बिना बोले सब कुछ कह दिया है भाई | दिल्ली शर्मसार हुई थी, हुई है और अगर यही आलम रहा तो माशाल्लाह होती रहेगी ऐसे ही | और ज़ौक़ आज होते तो यही कहते के "मैं तो चला दिल्ली की गलियां छोड़ कर"... बढ़िया बुलेटिन | मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार भाई |

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

दुखद हालत हैं

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

आज तो कार्टूनिस्ट की सोच को आदाब !!!

rashmi ravija ने कहा…

अच्छे लिंक्स..दिल सबका ही दुखा है..पर सब helpless सा ही महसूस कर रहे हैं ,कोई रास्ता नज़र नहीं आता

shikha varshney ने कहा…

कार्टून बयान कर रहे हैं कितने खराब हैं हालात :(

Jyoti khare ने कहा…

कार्टून बॊल रहे हैं वर्तमान का सच
सुंदर संयोजन

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

मिश्र जी धन्यवाद!

Nidhi ने कहा…

मेरी रचना को शामिल करने हेतु आभार.
बाक़ी लिंक्स भी अच्छे हैं ..इतने सुन्दर लिंक्स संजोने हेतु....बधाई.
!

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

jbaab nahi milegaa...... kiske paas hai ,jo degaa ....... soye ko jagana hai ya mare ko ........ main bhi jinda hoti to Patna airport tak nahi jati ..... use muz. men mar na aati ........

Archana Chaoji ने कहा…

देर से आई "वीनू" को यहां देख कर अच्छा लगा!
बाकी लिंक देखती हूं ..
आभार ...

अजय कुमार झा ने कहा…

शब्द से लेकर शब्द चित्र तक सब एक ही व्यथा उकेरे बैठे हैं । बुलेटिन हमेशा की तरह सामयिक है शिवम भाई । इन पोस्टों को एकत्र करने का प्रयास सराहनीय है ।

Rashmi Swaroop ने कहा…

:( कार्टून्स बयां कर रहे हैं ये दर्द… पता ही नहीं क्या ज़्यादा है मन में, शर्म, दुख, गुस्सा या डर!

यहाँ मेरी पोस्ट को भी स्थान देने के लिये धन्यवाद।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार !

Anupama Tripathi ने कहा…

देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ...!!
शिवम भाई बहुत आभार आपने इस बुलेटिन में मेरी अभिव्यक्ति को स्थान दिया ...!!

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