प्रिये ब्लॉगर मित्रों
सादर नमन
आज का दिवस हमारे देश में जन्मे महान महापुरुष श्री आर्यभट्ट के नाम
आर्यभट्ट को दुनिया के सबसे बड़े, नवप्रवर्तनशील विचारक और तवारीख के महान अंशदाता के रूप में माना जाता है। उन्होंने खगोल विद्या (ज्योतिष), गणितीय प्रभुता और समस्याओं को एक नया आयाम प्रदान किया।
आर्यभट (४७६-५५० ईस्वी) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने 'आर्यभटीय ग्रंथ' की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसके चार खंड हैं – गीतिकापाद, गणितपाद, काल क्रियापाद, और गोलपाद। गोलपाद खगोलशास्त्र (ज्योतिष) से सम्बन्धित है और इसमें ५० श्लोक हैं। इसके नवें और दसवें श्लोक में यह समझाया गया है कि पृथ्वी सूरज के चारो तरफ घूमती है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है वह केरल निवासी थे।
उन्होंने नालन्दा में शिक्षा पाई थी। गणना (केलकूलेशन) विभाग में उन्हों ने खगोल शास्त्र खण्ड में मौलिक खोज की। जीवा (का्र्डस)की लम्बाई निकालने के लिये अर्ध-जीवा का प्रयोग किया जब कि यूनानी गणितिज्ञ्य पूर्ण-जीवा का ही प्रयोग करते थे। आर्य भट्ट ने ‘पाई ’ की माप 3.1416 तक निकाली। वर्गमूल निकालने के मौलिक सिद्धान्त बनाये तथा मध्यवर्ती समीकरण (अर्थमेटिक सीरीज इन्टरमीडियेट ईक्येशनस) ‘अ ज – ब व बराबर ख’ और साईन तालिकाओं (साईन टेबलस) का निर्माण भी किया।
आर्य भट्ट ने त्रिभुज का तथा आयाताकार का क्षेत्रफल निकालने की विधि का अविष्कार किया। उन्हों ने ऐक सूत्र में वृत की परिधि (त्याज्ञ्य) मापने की विधि भी दर्शायी जो चार दशामलव अंकों तक सही है। सुलभ सूत्र में रेखा गणितानुसार वेदियां बनाने का विस्तरित वर्णन है जो आयत, वर्ग, चतुर्भुज, वृत, अण्डाकार (ओवल)आकार की बनायी जा सकतीं थी तथा उन का क्षेत्रफल और आकार वाँच्छित तरीके से अदला बदला जा सकता था।
आर्यभट के लिखे तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। दशगीतिका, आर्यभटीय और तंत्र। लेकिन जानकारों के अनुसार उन्होने और एक ग्रंथ लिखा था- 'आर्यभट्ट सिद्धांत'। इस समय उसके केवल ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। उनके इस ग्रंथ का सातवे शतक में व्यापक उपयोग होता था। लेकिन इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त कैसे हो गया इस विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती ।
उन्होंने आर्यभटीय नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा, जिसमें वर्गमूल, घनमूल, सामानान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन है। उन्होंने अपने आर्यभट्टीय नामक ग्रन्थ में कुल ३ पृष्ठों के समा सकने वाले ३३ श्लोकों में गणितविषयक सिद्धान्त तथा ५ पृष्ठों में ७५ श्लोकों में खगोल-विज्ञान विषयक सिद्धान्त तथा इसके लिये यन्त्रों का भी निरूपण किया। आर्यभट्ट ने अपने इस छोटे से ग्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती तथा पश्चाद्वर्ती देश के तथा विदेश के सिद्धान्तों के लिये भी क्रान्तिकारी अवधारणाएँ उपस्थित की।
उनकी प्रमुख कृति, आर्यभटीय , गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह है, जिसे भारतीय गणितीय साहित्य में बड़े पैमाने पर उद्धत किया गया है, और जो आधुनिक समय में भी अस्तित्व में है. आर्यभटीय के गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति शामिल हैं. इसमे निरंतर भिन्न (कॅंटीन्यूड फ़्रेक्शन्स), द्विघात समीकरण(क्वड्रेटिक इक्वेशंस), घात श्रृंखला के योग(सम्स ऑफ पावर सीरीज़) और जीवाओं की एक तालिका (टेबल ऑफ साइंस) शामिल हैं ।
आर्य-सिद्धांत, खगोलीय गणनाओं पर एक कार्य है जो अब लुप्त हो चुका है, इसकी जानकारी हमें आर्यभट्ट के समकालीन वराहमिहिर के लेखनों से प्राप्त होती है, साथ ही साथ बाद के गणितज्ञों और टिप्पणीकारों के द्वारा भी मिलती है जिनमें शामिल हैं ब्रह्मगुप्त और भास्कर I. ऐसा प्रतीत होता है कि ये कार्य पुराने सूर्य सिद्धांत पर आधारित है, और आर्यभटीय के सूर्योदय की अपेक्षा इसमें मध्यरात्रि-दिवस-गणना का उपयोग किया गया है. इसमे अनेक खगोलीय उपकरणों का वर्णन शामिल है, जैसे कि नोमोन(शंकु-यन्त्र ), एक परछाई यन्त्र (छाया-यन्त्र ), संभवतः कोण मापी उपकरण, अर्धवृत्ताकार और वृत्ताकार (धनुर-यन्त्र / चक्र-यन्त्र ), एक बेलनाकार छड़ी यस्ती-यन्त्र , एक छत्र-आकर का उपकरण जिसे छत्र- यन्त्र कहा गया है, और कम से कम दो प्रकार की जल घड़ियाँ- धनुषाकार और बेलनाकार।
एक तीसरा ग्रन्थ जो अरबी अनुवाद के रूप में अस्तित्व में है, अल न्त्फ़ या अल नन्फ़ है, आर्यभट्ट के एक अनुवाद के रूप में दावा प्रस्तुत करता है, परन्तु इसका संस्कृत नाम अज्ञात है. संभवतः ९ वी सदी के अभिलेखन में, यह फारसी विद्वान और भारतीय इतिहासकार अबू रेहान अल-बिरूनी द्वारा उल्लेखित किया गया है।
आर्यभट्ट ने गणित और खगोलशास्त्र में और भी बहुत से कार्य किए। ये महाराजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार के माने हुए विद्वानों में से एक थे। इस महान पुरुष की मृत्यु ईसवी सन् ५५० में हुई।
भारत के प्रथम कृत्रिम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गया था। ३६० किलो का यह उपग्रह अप्रैल १९७५ में छोड़ा गया था।
आज भारत के विश्वस्तरीय महान गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और वैज्ञानिक आर्यभट्ट की जयंती है। दुनिया को शून्य की समझ देने वाले ऐसे महान पुरुष को उनकी जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि।
आज के लिनक्स
उम्मीद करता हूँ आज के दिन हम सब मिलकर महान आर्यभट्ट को याद करेंगे और श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे । जल्द ही मिलने का वादा करते हुए आपसे विदा लेता हूँ ।
नमस्कार
हर हर महादेव । जय श्री राम । जय बजरंगबली महाराज । ॐ नमः शिवाय
9 टिप्पणियाँ:
महान गणितज्ञ को नमन, सुन्दर सूत्र।
कितनी आश्चर्य की बात है आज आर्यभट्ट के साथ-साथ विश्व के मशहूर कलाकार लियोनार्दो द विंची (15 अप्रैल, 1452) का भी जन्म दिवस है। सुन्दर बुलेटिन। धन्यवाद।
नये लेख : नया टीवी, सेटअप बॉक्स और कैमरा।
श्रद्धांजलि : अब्राहम लिंकन
मुझे गर्व है कि मैं इस देश का नागरिक हूँ ..आज भी जहाँ कही गणित की बात चलती है तो दुनिया हिंदुस्तान की तरफ देखती हैं।
बहुत अच्छे अच्छे लिंक्स संजोये हो।
मैंने कल ही ब्लॉग बनाया है और मुझ जैसे नोसिखिये ब्लॉगर और हमारी रचनाएँ 'ब्लॉग बुलेटिन' की सहायता से और अधिक प्रसिद्धि प्राप्त करती हैं।
मेरी पहली पोस्ट : : माँ
(आपकी सहायता की महती आवश्यकता है .. अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।)
भारत के विश्वस्तरीय महान गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और वैज्ञानिक आर्यभट्ट जी को उन की जयंती के अवसर पर हमारा भी शत शत नमन! बेहद शानदार बुलेटिन लगाया है तुषार भाई !
आर्यभट्ट को नमन
बढ़िया बुलेटिन
जय हो, दो महान विचारकों का जन्म दिन! बधाई!
शुभकामनायें -
महती जानकारी से भरपूर.बधाईसुंदर प्रस्तुति के लिए.
बिन्दास
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