प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !
आज कहीं पढ़ा ...
प्रणाम !
आज कहीं पढ़ा ...
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क्या माँ का बुलावा सचमुच आता है ? दूसरा व अंतिम भाग।
*कल बयान किया था कि मां के दरबार मे जाऊं या ना जाऊं कि ऊहापोह के बीच शुरु हुए सफ़र मे शुरु से ही अडचने आती रहीं पर दूर भी खुद ब खुद होती चली गयीं। पर दरबार के बिल्कुल पास आ बर्फ ने जो परेशानी खडी की उससे उस समय कैसे पार पाया था सोच कर ही ताज्जुब होता है। अब आगे - * सूर्य देवता अस्ताचलगामी हो चुके थे। गनीमत यह रही कि अंधेरा होते-होते हम परिसर में पहुंच गये थे। पर यहां का तो नज़ारा ही विचित्र था। हर ओर आदमी ही आदमी। हर कमरा, गलियारा, बाल्कनी, बरामदा, हर कोना भरा पडा था इंसानों से। दर्शन कर लौट ना पाने वालों का हुजुम था यहां। कहीं कोई जगह नहीं। भवन की धर्मशाला के पीछे खुलने वाला हिस्स... more »
रामजन्म प्रसंग : भगवान प्रकट होते हैं!
चाँद चढ़े, सूरज चढ़े दीपक जले हजार। जिस घर में बालक नहीं वह घर निपट अंधियार।। कभी रामलीला में गुरु वशिष्ठ के सम्मुख बड़े ही दीन भाव से राजा दशरथ के मुख से जब भी ये पंक्तियां सुना करती थी तो मन भारी हो जाया करता था। सोचती कि जब एक प्रतापी राजा को नि:संतान होने का इतना दुःख है तो आम आदमी के दुःख की परिधि क्या होगी? समय के साथ ही ऐसी परिस्थिति में जीते लोगों के दुःख को मैंने उनके बहुत करीब जाकर गहराई से जाना ही नहीं अपितु इसका कटु ज्ञान मुझे 10 वर्ष की कठिन तपस्या उपरांत पुत्र प्राप्ति के बाद भी मिला। मैंने अनुभव किया कि संतान न होने की पीड़ा राजा हो या रंक हमेशा ही सबमें समान रूप मे... more »
''ख्यालों को आते ख्याल''
*ऐसा भी हो सकता अगर की खयालों को भी आते ख्याल और उस ख्याल में आती तुम जैसे अक्सर आती हो मेरे ख्यालों में तो मुमकिन हैं खयालों को भी होती बेचैनी रातों में जागता रहता वो भी अक्सर ... करता बाते चाँद से और गिनता रहता सितारे रात भर ख्यालों में ही घूम आता तुम्हारे यादों गलियों से ले आता साथ अपने .... तुम्हारे यादों के सुखे-सुखे पत्ते कुछ साँसों के टुकड़े और कुछ जिस्म की तपिश रात भर जलाता रहता ख़्वाब तुम्हारे जगती आँखों से ... फिर सुबह नहीं होती रात ही रात चलती रहती तन्हाईयों में तुम्हारे बैचेन ख़्वाब ही चलते रहते मगर ये सिर्फ ख्यालों की ही बाते हैं और ख्यालों में ही मुमकिन हैं हो सकता अगर... more »
शोभना सम्मान - 2012 समारोह हुआ संपन्न
शोभना वेलफेयर सोसाइटी रजि. ने दिनांक 17.04.13 को गाँधी शांति प्रतिष्ठान, निकट तिलक ब्रिज, आई.टी.ओ., नई दिल्ली में शोभना सम्मान – 2012 समारोह का आयोजन किया. इस कार्यक्रम के संयोजक की भूमिका में रहे दिल्ली गान व दामिनी गान के लेखक सुमित प्रताप सिंह व संगीता सिंह तोमर. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे डॉ. एच.सी.एल.गुप्ता, अध्यक्ष पूर्वांचल प्रकोष्ठ (भाजपा), नई दिल्ली व विशिष्ट अतिथि क्रमशः थे श्री नीरज गुप्ता, अध्यक्ष, वोट फॉर इंडिया अभियान, डॉ. विनोद बब्बर, संपादक-राष्ट्र किंकर, श्री सुभाष सिंह, चेयरमैन, लीपा एवं श्री प्रदीप महाजन, चेयरमैन, आई.एन.एस. मीडिया. कार्यक्रम के संचालन की बागडोर ... more »
मुझे रावण जैसा भाई चाहिए ...
फेसबुक आदि पर ये कविता पिछले कई दिनों लगातार शेयर होती रही है, लेकिन इसे लिखनेवाले की कोई पुख्ता पहचान नहीं मिली हालांकि *सुधा शुक्ला जी* ने ये कविता १९९८ में लिखी थी ऐसा कई जगह उन्होंने कहा है... खैर, जिसने भी लिखी हो इसे अपने ब्लॉग पर अज्ञात नाम से सहेज रहा हूँ... इस कविता की पंक्तियाँ अच्छी लगीं क्यूंकि सही मायने में, मैं भी कथित मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि से सहमत नहीं हूँ .... ************************************************************************ *गर्भवती माँ ने बेटी से पूछा * *क्या चाहिए तुझे? बहन या भाई * *बेटी बोली भाई* *किसके जैसा? बाप ने लडियाया* * रावण सा, बेटी ने ... more »
बच्चों की समस्या बनता उनका एकाकीपन
कक्षा दो में पढने वाले, १०-११ वर्ष के बच्चे द्वारा खुद को बाथरूम में बंद करके आग लगाके आत्महत्या कर ली जाए तो इसे मात्र एक हृदयविदारक घटना ही न समझा जाए. आज के परिप्रेक्ष्य में इस घटना के कई सन्दर्भ निकाले जा सकते हैं. इस तरह की घटनाएँ हमारे आसपास बहुसंख्यक रूप से हो रही हैं, जिनमें छोटे-छोटे बच्चे अपने जीवन को अकारण ही समाप्त करते दिख रहे हैं. इन घटनाओं के पीछे के कारणों को देखने पर ऐसा कोई कारण नहीं दिखाई पड़ता जिसके कारण आत्महत्या जैसा कदम उठाया जाए. इन घटनाओं के मूल में जाने के पहले ही सम्बंधित पीड़ित परिवार का, आस-पड़ोस वालों का विश्लेषण करना शुरू कर दिया जाता है. परिवार की, मात... more »
रामलाल ! काठमांडु चलबे का रे?
*डिस्क्लैमर: अगर ये आप अपनी बात समझ रहे तो मात्र सन्योग के अलावा कुछ नही :):):)* रामलाल! काठमांडु चलबे का रे? काहे सामलाल? अरे उहाँ इज्जत दी जायेगी सम्मान होगा. नाही रे! हमका लपूझन्ना समझे हौ का? हम एतना पईसा खरच करके इज्जत नाही लेबे. अरे धुत बुडबक अबकी पईसा ना देवे के पडी. काहे रे अबकी पईसवा कहा से आवा? चोप्प! एक त ससुरे के इज्जत देई जात है दूसरे कोश्चन करत बा. अरे रमललऊ ! सूचना के अधिकार त हमै सरकार दिहे बा. तोहरे जईसे डपोरसंख गदहा केत मुहे नाही लागै चाहे अरे सरऊ जरमनी कबहू गये हो... नाही ना कहि रहे है हम तोहार नाम के गदहा सम्मान के खातिर प्रस्तावित कई दिहे हई ... more »
हम सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं...... ?
कल मैं लम्बी यात्रा पर था, रास्ते में देखा कि एक ट्रक खड्ड में गिरी है और उसके पीछे लिखा है - *" हम सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं ।"* मुझे बड़ी हंसी आई, मगर ट्रक पर लिखी उस उक्ति के कारण नहीं, बल्कि यात्रा के दौरान मोबाइल पर फेसबूक की एक टिप्पणी को पढ़कर । संतोष त्रिवेदी जी ने लिखा था कि* "डायचे-वेले के ब्लॉगिंग सम्मान को लेकर कुछ लोग इत्ते उतावले हो रहे हैं कि चार लोगों के सहयोग से जर्मनी जाने से परहेज नहीं है। हमने तो अभी तक यही सुना था कि अंत समय में ही चार कांधों की ज़रूरत होती है .....!"* जैसे ही डायचे-वेले का प्रकरण आया है, मुझसे मेरे एक ब्लॉगर मित्र ने पूछा कि भैया जर्म... more »
किसी की जान जाये, शर्म हमको मगर नहीं आती
घर दिल्ली की पश्चिमी सीमा पर बहादुरगढ़ के पास और दफ्तर यमुना के पूर्व में उत्तर प्रदेश के अंदर। जीवन की पहली नौकरी, सीखने के लिए रोज़ एक नई बात। सुबह सात बजे घर से निकलने पर भी यह तय नहीं होता था कि दस बजे अपनी सीट पर पहुंचूंगा कि नहीं। मो सम जी वाली किस्मत भी नहीं कि सफर ताश खेलते हुए कट जाये। अव्वल तो किसी भी बस में सीट नहीं मिलती थी। कुछ बसें तो ऐसी भी थीं जिनमें से ज़िंदा बाहर आना भी भाग्य की बात थी। तय किया कि घर से सुबह छः बजे निकल लिया जाये। दक्षिण भारतीय बैंक था सो कर्मचारी वर्ग उत्तर का और अधिकारी वर्ग दक्षिण का होता था। संस्कृति का अंतर भी स्पष्ट दिखाता था। अधिकारी वर्ग ... more »
नव संवत्सर का फल तो सुनते जाइये ..............
नव संवत्सर का फल तो सुनते जाइये .............. कोई इसे पराभव कह रहा ही तो कोई प्रभाव । जो भी है इसका एक ही भाव है बह है चुनावी भाव । इस पर आने वाले चुनाव का प्रभाव रहेगा इसीलिये इसका भाव इस प्रकार रहेगा ....... सोए पड़े जिन्न जाग जाएंगे । बोतलों से बाहर निकाले जाएंगे । कभी डराएंगे, कभी रुलाएंगे । चौरासी में बंसी बजाने वाले अब चैन की नींद नहीं सो पाएंगे । टाइटलरों की हवा टाईट रहेगी । विकीलीक्स के खुलासों पर फाईट रहेगी । फूलों की बत्ती गुल रहेगी । शहद को चूस - चूस मधुमक्खी पावरफुल रहेगी । छत्तों में शहद बनेगा ज़रूर । लेकिन जुबां से नीम टपकेगा हुज़ूर । ज़मीन सूखी रहेगी । ज़ुबान रूखी र... more »
शैल शेफाली रश्मि
*शायरी*, गायन, व्यंग्य, निबन्ध, स्त्री मुद्दे, खालिस ब्लॉगरी आदि में निष्णात हैं *स्वप्न मंजूषा 'शैल'*। कनाडा में रहते हुये भी भारत भूमि से गहराई से जुड़ी हुई हैं। भारतीय महाकाव्यों के स्त्री और अन्य पात्रों पर भी अलग दृष्टि से अवगत कराती हैं। इनके *वेब साइट* पर भी यह विविधा मिलती है: [image: shail] रचनात्मक ऊर्जा और साहस इनकी विशेषता हैं; हल्की फुल्की रचनायें गुद्गुदा भी देती हैं: ऊपर वाले की दया से हैण्ड टू माउथ तक आये हैं डालर की तो बात ही छोड़ो सेन्ट भी दाँत से दबाये हैं मोर्टगेज और बिल की खातिर ही तो हम कमाए हैं अरे बड़े बड़े गधों को हम अपना बॉस बनाये हैं इनको सहने की हिम्मत रा... more
डीमैट के जरिये म्यूचयल फ़ंड में निवेश करने के फ़ायदे..
डीमैट के जरिये म्यूचयल फ़ंड में निवेश करने का सबसे बड़ा फ़ायदा होता है कि आपको किसी भी पेपर पर हस्ताक्षर नहीं करने होते हैं, जब आप ऑफ़लाईन याने कि किसी ब्रोकर या सीधे कंपनी से म्यूचयल फ़ंड लेते हैं तो उसमॆं आपको बहुत सारे पेपर पर हस्ताक्षर करना पड़ते हैं, और नये निवेश के लिये, स्थानांतरण और निवेश निकालने के लिये भी पेपर का ही उपयोग करना पड़ता है। डीमैट के जरिये निवेश करने से आपको किसी भी पेपर का सहारा नहीं लेना पड़ेगा, निवेश संबंधित सारे लेने देन बिना किसी पेपर के कर सकते हैं । डीमैट में निवेश लेने से ऐसा कोई फ़ायदा नहीं है कि आपको रिटर्न ज्यादा मिल सके, क्योंकि इसका आपके निवेश पर कोई अस... more »
वह जमादारनी है
सुनीता जमादारनी है। रोज सुबह सात बजे बिल्डिंग का कू ड़ा उठाने आती है और वहां से फिर दस अलग-अलग मोहल्लों के घरों से कूड़ा लेती है। वापसी में उसे तीन बज जाता है। इस काम में उसके पति, देवर, बच्चे सब लगे हुए हैं। रहती वह ठसके से है। साफ, चमकीली, चटख साड़ी पहनती है और सर हमेशा पल्लू से ढका रहता है। जेवर भी खूब पहनती है और होंठ रंगना ·भी नहीं भूलती। वह किसी से ज्यादा बात नहीं करती, जैसे उसे
इलज़ाम न दो...
इलज़ाम न दो... ******* आरोप निराधार नहीं सचमुच तटस्थ हो चुकी हूँ संभावनाओं की सारी गुंजाइश मिटा रही हूँ जैसे रेत पे ज़िंदगी लिख रही हूँ मेरी नसों का लहू आग में लिपटा पड़ा है पर मैं बेचैन नहीं जाने किस मौसम का इंतज़ार है मुझे? आग के राख में बदल जाने का या बची संवेदनाओं से प्रस्फुटित कविता का कराहती हुई इंसानी हदों से दूर चली जाने का शायद इंतज़ार है उस मौसम का जब धरती के गर्भ की रासायनिक प्रक्रिया मेरे मन में होने लगे तब न रोकना मुझे न टोकना क्या मालूम राख में कुछ चिंगारी शेष हो जो तुम्हारे जुनून की हदों से वाकिफ हों और ज्वालामुखी-सी फट पड़े क्या मालूम मुझ पर थोपी गई लाँछन क... more »
"चाय" - आज से हमारे देश का राष्ट्रीय पेय।
चित्र साभार : www.fanpop.com भारत में चाय की बढ़ती प्रसिद्धि को देखते हुए "योजना आयोग" के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने 17 अप्रैल, 2013 से इसे भारत के "राष्ट्रीय पेय" घोषित किये जाने की बात कही थी। इसलिए आज से हमारे देश का राष्ट्रीय पेय "चाय" होगा। भारत के अलावा चीन, मिस्त्र और ईरान पहले से ही चाय को राष्ट्रीय पेय का दर्जा दे चुके हैं चाय की उत्पत्ति चाय की उत्पत्ति का श्रेय "चीन" को जाता है। आज से लगभग 2735 ई . पूर्व चीन के सम्राट शेन नौंग ने चाय की खोज की थी। दरअसल सम्राट शेन पानी को उबाल कर पीते थे। एक बार सम्राट ने अपने बगीचे में टहलते हुए देखा की उन के उबलते हुए पानी ... more »
''नफरत है''...!!!
''नफरत है'' मुझसे जताना ,उनका इक बहाना था , छुड़ा कर मेरा पहलू,बेगाने आगोश में जाना था . कल तक जिनको मेरे बगैर, जीना था ,मुश्किल. नही ज़रुरत है ' उस गोली का मै ही निशाना था. न बनाते ख्वाबों की मंजिलें, मुस्तकबिल के मुहाने पर ,. क्यों करते यूँ ही जाया .,जो वक्त मेरा सुहाना था। इम्तिहानों के दौर चले कितने ,तुझको पाने के वास्ते , वो थी तेरी चाहत ,या महज़ फ़साना था। . 'कमलेश ' की है दरिया
बड़ी हुई बच्ची
कल कहीं पढ़ा था मैंने कुछ लिखा किसी ने ऐसा भी बड़ा हुआ एक बच्चा सच्ची बहुत बड़ा बच्चा पाता है शादी कर के पत्नी रूप में एक ग़च्चा अम्मा बन सर बैठती है झेलती है वो जीवन भर नाज़ और नखरे अपने अपना अस्तित्व अरमान और सपने स्वाह चूल्हे चौके में करती है खुद सदा चुप रहकर वो बच्चे के कसीदे पढ़ती है पालती है वो मुन्ना को लल्ला लल्ला करती है 'निर्जन' कहता कलयुग में क्या ? सच्ची ऐसा होता है उस अम्मा को सब ने झेला है वो हिटलर की छाया रेखा है वो भी बड़ी हुई बच्ची है हाँ! बहुत बड़ी बच्ची है माता पिता परेशां होकर जो मुसीबत दान में देते हैं सुख से न जीने देती है न ख़ुशी से मरने देती है सुबह सवे... more »
हरा...
कुछ जो नहीं बीतता समूचा बीतने के बाद भी आमद की आहटें नहीं ढंक पातीं इंतजार का रेगिस्तान बाद भीषण बारिशों के भी बांझ ही रह जाता है धरती का कोई कोना बेवजह हाथ से छूटकर टूट जाता है चाय का प्याला सचमुच, क्लोरोफिल का होना काफी नहीं होता पत्तियों को हरा रखने के लिए...
वो जो दौड़ते से रस्ते हैं, अब ठहर जायेंगे....
वो जो दौड़ते से रस्ते हैं, अब ठहर जायेंगे तब सोचेंगे लोग, कि वो किधर जायेंगेकोई शहर बस गया है, सहर से पहले ये गाँव, ये बस्ती अब, उजड़ जायेंगे पहुँचे हैं कगार पर, पर आस है बाक़ीहै दिल को यकीं, ये दिन, गुज़र जायेंगेशिद्दत-ए-ग़म से, परेशाँ हैं मेरे गेसू ग़र आईना मिल जाए, ये सँवर जायेंगे उम्मीद के हंगामों में, शामिल है 'अदा' तुम नज़र भर के देख लो, हम निखर जायेंगे जो हमने
रणनीति
हम सभी मोदी जी को ही अगले प्रधानमन्त्री के रूप में देखना चाहते हैं , इसमें कोई दो राय नहीं है। क्योंकि मोदी एक शेर है और राजा तो शेर ही होता है जिसकी एक गर्जना से सभी थर्रा उठते हैं। जिस तरह से JDU आदि बौखलाए हुए हैं वो मोदी के नाम का ही प्रताप है। महाभारत में श्रीकृष्ण ने युद्ध जीतने के चार विकल्प बताये हैं -- साम ,दाम , दंड और भेद। सनद रहे मोदी मात्र एक ही विकल्प हैं , अन्य तीन विकल्प भी हैं हमारे पास। हालात को देखते हुए ही रणनीति बनायी जाती है और किसी भी हालत में अपनी strategy, आउट नहीं की जाती अन्यथा मौके की तलाश में बैठा दुश्मन घेराबंदी कर लेता है , अतः चौकन्ने रहना ज़रूरी है। ... more »
Intellectual Gang against Narendra Modi (Reference : Wharton Business School)
*नरेंद्र मोदी के खिलाफ “अंतर्राष्ट्रीय बुद्धिजीवी गैंग” (सन्दर्भ : व्हार्टन स्कूल प्रकरण)* हाल ही में नरेंद्र मोदी को अमेरिका के व्हार्टन बिजनेस स्कूल में एक व्याख्यान देने हेतु आमंत्रित किया गया था. लेकिन अंतिम समय पर चंद मुठ्ठी भर लोगों के विरोध की वजह से नरेंद्र मोदी का व्याख्यान निरस्त कर दिया गया. हालांकि नरेंद्र मोदी मूर्खतापूर्ण अमरीकी वीसा नीति के कारण, सशरीर तो अमेरिका जाने वाले नहीं थे, लेकिन वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अपनी बात कहने वाले थे. विषय था “गुजरात का तीव्र आर्थिक विकास माडल”. व्हार्टन बिजनेस स्कूल ने स्वयं अपने छात्रों और शिक्षकों की मांग पर नरेंद्र मोदी क... more »
रामचंद्र पाण्डुरग राव यवलकर
रामचंद्र पाण्डुरग राव यवलकर (तात्या टोपे) १८१८ – १८ अप्रैल १८५९ |
13 टिप्पणियाँ:
आपने तो शाम अच्छी बना दी!!
एक से बढ़कर शाम की लालिमा
बढ़िया बुलेटिन, सुन्दर लिंक्स का बेहतरीन संकलन। मेरे लेख "चाय" - आज से हमारे देश का राष्ट्रीय पेय। को शामिल करने के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद।
नये लेख : विश्व विरासत दिवस (World Heritage Day)
सुन्दर लिंक सजाये है शिवम जी
मुझे भी चर्चित करने का आभार्
बहुत बढ़िया बुलेटिन | आज तो देर लगेगी पढने और देखने में इत्ते सारे लिंक जो दिए आपने | मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए आभार भैयाजी |
इसीलिए पहले गुड इवनिंग कह देते हैं कि बेड ख़बरें सुनकर भी थोड़ी बहुत गुड रही आये इवनिंग :).
हमेशा की तरह बढ़िया बुलेटिन।
राम नवमी की शुभकामना !
बहुत ही सुन्दर सूत्र..
बढिया बुलेटिन
बहुत बहुत धन्यवाद मेरी नज्मों को सरहाने और शामिल करने के लिए।।।
बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार ..रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें..
DHANYWAD DOOSARE BLOGGERS JANO SE MILANE KA...BADHIYA
aapka bahut aabhar sunita ek jamadarni hai ...ko shamil karne ke liye.
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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!