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सोमवार, 1 अप्रैल 2013

ब्लॉग बुलेटिन पर मेरी आखरी पोस्ट .....


सरकारी सूचना
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सभी आम और ख़ास ब्लॉगर मित्रों तथा जनहित में जारी : -

सभी मित्रों को सूचित किया जाता है के ३० मार्च, शाम ब्लागस्पाट के मैनेजमेंट और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के सरकारी अधिकारीयों के बीच हुई बैठक ,वार्तालाप और भेंटवार्ता के नतीजे कुछ इस प्रकार हैं | सरकार द्वारा निर्णय लिया गया है और एक अध्यादेश पारित किया है जो ३१ मार्च, २०१३, रात १२ बजे, से लागू हो गया है | इसके अंतर्गत :

- ब्लागस्पाट.कॉम पर ब्लोग्गेर्स की बढती संख्या और सरकार की निंदा में लिखे हुए लेख, कविता, टिप्पणियां, दोहे, हाइकू, कुण्डलियाँ आदि को देखते हुए सरकार ने इस साईट को जल्द से जल्द बंद करने का आदेश पारित कर दिया है | 

- साईट पर अत्यधिक ट्रैफिक के आने की वजह से सरकार ने अपना प्रभाव बनाते हुए ब्लागस्पाट साईट को अपने शिकंजे में ले लिया है और इस पर १० करोड़ का जुरमाना लगा दिया है | 

- जो ब्लोग्गेर्स सरकार के विरोध में लिखना पसंद करते हैं उनकी सूची तयार कर उनपर सकत कार्यवाही करने की योजना बनाई जा चुकी है | 

- ३१ मार्च रात्रि १२ बजे के बाद से सभी तरह के ब्लोग्गेर्स पर ब्लॉग्गिंग करने की रोक लगा दी गई है | इस आदेश को ना मानने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जा सकती है जिसमें १ लाख रूपये जुरमाना अथवा १ वर्ष बामशक्कत क़ैद का प्रावधान है | 

- ब्लागस्पाट और फेसबुक को आपस में जोड़कर पोस्ट सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वालों पर ज्यादा कड़ी कार्यवाही की जाएगी | 

- सरकारी बहु, सरकारी बेटी, सरकारी दामाद, सरकारी बच्चे, सरकारी नाती/पोती,  सरकारी मुलाजिम, सरकारी महकमे, सरकारी प्रसंशक अथवा स्वयं सरकार के बारे में कुछ भी लिखने वाले को ५ लाख रूपये का जुरमाना और २ वर्ष कठोर कारावास की सजा का प्रावधान तय पाया है | 

- फेसबुक, ट्विटर सरीखी सोशल मीडिया साइटों  को भी बैन करने की कवाय्तें शुरू की जा चुकी हैं | 

- जो लोग इन सभी विपदाओं से बचना चाहते हैं वे आने वाले चुनावों से पहले अपनी लेखनी में सिर्फ और सिर्फ सरकारी खानदान और सरकार का गुणगान करेंगे और सिर्फ सरकार के बारे में लिखेंगे | इसमें कवितायेँ, लेख, चाँद, हाइकू, ग़ज़ल, शेर इत्यादि शामिल हैं | 

- पसंद आने पर चयन की गई सर्वश्रेष्ट प्रविष्टि लिखने वाले को उचित इनाम और सरकारी भक्त के ख़िताब से नवाज़ा जायेगा | इसमें इनाम की राशि में २ लाख रूपये नकद, एक बिल्ला, एक प्रशंसा पत्र और सरकारी दामादों वाली खातिरदारी शामिल है | 

उपरोक्त सभी आदेशों का पालन न करने वाले के खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी और उसे निम्बूपानी की सजा दी जाएगी जिससे उसका पेट साफ़ हो जाये और वो सरकार के साफ़ सुथरे प्रतिरूप को समझ सके और उसके बारे में आगे लिख सके | 

भाइयों मैं तो हैण्ड टू हैण्ड अभी से ब्लागिंग बंद कर रहा हूँ. इसे अप्रैल फूल समझने की गलती बिलकुल न करें वरना आपको पछताना पड़ सकता है | 

नमस्कार  
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अप्रैल फूल बनाया तो तुमको गुस्सा आया :)




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अप्रैल फूल मूर्ख दिवस का फिरंगी एंगल
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लो जी आ गया १ अप्रैल, यानी "अप्रैल फूलस डे" | यह दिन समस्त संसार के बहुत से पश्चिम के देशों में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है | यदपि इस दिन किसी भी प्रकार की कोई सरकारी छुट्टी नहीं होती है परन्तु इस दिन सभी लोग एक दुसरे के साथ क्रियात्मक या प्रयोगात्मक मज़ाक करते हैं | हंसी का छल या फिर मजाक के तौर पर झाँसा देना इस दिन सब कुछ चलता है | 

एक अप्रैल के दिन इटली, फ्रांस और बेल्जियम में बच्चे और बड़े मिलकर परंपरागत रूप से कागज़ की मछलियाँ बनाकर एक दुसरे की पीठ पर चिपकाते हैं और जोर जोर से "अप्रैल फिश" अपनी ज़बान में कहकर शोर मचाते हैं | इस प्रकार की मछलियाँ फ्रांस की उन्नीसवी और शुरुवाती बीसवी शताब्दी में छपे पोस्ट कार्ड पर भी देखने को मिलती हैं | 

वैसे अभिलिखित दस्तावेज़ देखें तो १ अप्रैल और मूर्खता के बीच सबसे पुराना आपसी सम्बन्ध "चौसेर्र्स कैंटेबुरी टेल्स ( १३२९) - Chaucer's Canterbury Tales (1392)" में पढने को मिलता है |  

"In Chaucer's Canterbury Tales (1392), the "Nun's Priest's Tale" is set Syn March bigan thritty dayes and two.Modern scholars believe that there is a copying error in the extant manuscripts and that Chaucer actually wrote, Syn March was gon. Thus, the passage originally meant 32 days after April, i.e. May 2,the anniversary of the engagement of King Richard II of England to Anne of Bohemia, which took place in 1381. Readers apparently misunderstood this line to mean "March 32", i.e. April 1.In Chaucer's tale, the vain cock Chauntecleer is tricked by a fox."

- प्राचीन समय में "अप्रैल फूल्स डे" से पहले इसी तरह के एक दिन रोमन त्यौहार "हिलारिया - Hilaria" के नाम से की २५ मार्च को मनाया जाता है |

- इसी से मिलता जुलता एक और त्यौहार "दा मेडिविअल फीस्ट ऑफ़ फूल्स - the Medieval Feast of Fools" के नाम से दिसम्बर २८ को स्पेनिश बोलने वाले देशों में मनाया जाता है |

अप्रैल फूल मूर्ख दिवस का देसी एंगल
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अब अगर हम इस दिन का देसी रूप और स्वरुप पर गौर फरमाएं तो हम पाएंगे की बहुत से लोगों ने बहुत सी बातें कहीं हैं जिनमें से एक हैं हमारे बहुत ही आदरणीय कवी अल्लामा इक़बाल | उन्होंने एक दफा कहा था के - 

"उठा कर फेंक दो बाहर गली में, नई तहज़ीब के अण्डे हैं गंदे"

नई संस्कृति के इन गंदे अन्डो पर गर्व करने और पश्चिम को अन्धो की तरह बिना सोचे समझे नकल करने की जिज्ञासा ने हमारे समझ में विभिन्न बुराईयों को जन्म दिया है जिनकी एक समय पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। उन्हीं सामाजिक बुराइयों में से एक अप्रैल फूल भी है। अप्रैल की प्रथम तिथि को एलेक्ट्रानिक और प्रिंट मेडिया हम से झूठ बोलवाती है। मनोरंजन के लिए....मज़ाक़ करने के लिए....दूसरों को मुर्ख सिद्ध के लिए...दूसरों को परेशान करने के लिए... दूसरों को आश्चर्यचकित करने के लिए।  

इस झूठ ने न जाने कितने लोगों को आर्थिक और मानसिक हानि पहुंचाई  है। कितने लोगों की जानें चली गई हैं। किसी को उसके घर में आग लगने की सूचना दी गई अचानक वह होश व हवास खो बैठा। किसी को उसकी पत्नी के दूसरों के साथ सम्बन्ध की ख़बर दी गई | यहाँ तक कि दोनों में मतभेद शुरू हो गया और तलाक तक की नौबत आ गई । किसी को उसकी माता, उसके पिता, उसके बेटी, उसकी पत्नी के मृत्यु की अचानक सूचना दी गई जिसे सुनने की ताब न ला सके और जीवन से हाथ धो बैठे। इस प्रकार के घटिया और वाहियात मज़ाक से ऐसे दिनों को काला दिवस भी बना दिया जाता है | 

कुछ लोग समझते हैं कि मनोरंजन के लिए झूठ बोलना वैध है हालाँकि झूठ हर स्थिति में झूठ है मनोरंजन में भी इसका पाप इतना ही है जितना सचमुच झूठ बोलने का है। तात्पर्य यह कि झूठ का व्यक्तिगत तथा समाजिक जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है, झूठ से सामाजिक जीवन प्रभावित होता है। कारोबार से बरकत उठ जाती है। मनोवैज्ञानिकों तथा चिकित्सकों ने भी शारीरिक जीवन पर झूठ की विभिन्न हानियाँ बताईं हैं। इस धरती पर पाए जाने वाले प्रत्येक धर्मों ने भी झूठ से रोका और उस पर प्रंतिबंध लगाया है। कोई ऐसा धर्म नहीं है जिसमें झूठ की अनुमति दी गई हो। 

वैसे ऊपर जो भी कथन हैं वो किसी हद तक सही भी हैं पर अगर हम अपने दुसरे दृष्टिकोण से देखें तो पाएंगे के इस दिन को मानाने में कोई ऐसी बुराई भी नहीं है यदि इस दिन में किया हुआ मजाक हल्का फुल्का ही हो और किसी को व्यक्तिगत, मानसिक, आर्थिक और सामाजिक स्तर पर नुक्सान पहुँचाने की मंशा से न किया गया हो | इस दिवस के प्रति मान्यताएं, सोच-विचार, कथन, वचन, समीकरण, भावनाएं, भ्रांतियां, क्रांतियाँ और भी न जाने क्या क्या कितने ही हो सकते हैं | जितने मुंह उतनी बातें और जितने दिमाग उतनी सोचें | मेरा तो बस इतना कहना है के यदि किसी को हानि पहुंचाए बिना कुछ पल हंसी खुशी के मिल जाएँ तो क्या बुराई है | 

तो फिर हँसते रहिये, गुदगुदाते रहिये और मुर्ख दिवस मानते रहियें पर हद में रहकर | 

13 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

फ़ूल दिवस की शुभकामनायें।

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

सच में मुझे तो इस फैसले की जानकारी अभी हुई। दो दिन पहले मेरी कपिल सिब्बल से मुलाकात हुई थी, काफी देर तक बातें हुईं, उन्होंने भी ऐसा कुछ भी नहीं बताया।
मुझे लगता है कि ये तो अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है, इसे कम से कम मैं तो बर्दाश्त नहीं कर सकता। खैर ! अब आपके लिए अच्छी खबर है। मैने अभी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और साइंस टेक्नालाजी मिनिस्टर कपिल सिब्बल से बात की है, इस सरकारी आदेश को वापस ले लिया गया है...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

:) ... main to ban hi gai thi, adha padhkar hi beti ko kaha - are bhai meri rachnayen hata do . wah boli- aisa koi news to aaya nahi to hum aage badhe padhte hue aur ban gaye april fool
.... achha daraya

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बनते बनते ...डरते डरते बची हूँ... :)

रश्मि प्रभा... ने कहा…

वैसे अब यह नहीं गाना चाहिए कि अप्रैल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया ...... अब कहना चाहिए 'उल्लू बनाया ,बड़ा मज़ा आया' ............ ओह,बहुत दिनों बाद बनी हूँ फ़ूल

शिवम् मिश्रा ने कहा…

भाई जो भी हो हमने तो आश्वासन दे दिया है कि अगले चुनावों मे कॉंग्रेस को ही वोट देंगे !





































साल के ३६४ दिन यह सरकार हमें मूर्ख बनती आई है ...आज हमारी बारी है ... ;)

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

शिवम् भाई साल के ३६४ नहीं साल के ३६६ दिन बनाती है ये.....

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

:-)
मुस्कुराने की एक वजह दी आपने तुषार...शुक्रिया.

अनु

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

हाई देखिये.. हमरे ऊपर ई पोस्ट का तनिक्को असर नहीं हुआ.. हम नहीं बने फूल.. अरे भाई जो पहिले से बना हुआ है उसको कोई कहाँ से बनाएगा!!

कविता रावत ने कहा…

कभी कभी मूर्ख बनकर मिलने वाली ख़ुशी आम ख़ुशी के मुकाबले बहुत दिन तक गुदगुदाती है ..
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ...

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

हम भी डर गये थे.... आपने तो सच्ची में डरा ही दिया था... :)
बढ़िया प्रस्तुति!
~सादर!!!

Smart Indian ने कहा…

जे कौन सा जुलम कर रए हौ? हमारी सरकार आएगी तो फ़र्स्ट एप्रिल को कलेंडर से हटा कर उसकी जगह प्रथम नवंबर डाल दिया जाएगा जिससे कि गर्मी थोड़ी कम रहे उस दिन और वैसे भी नवम में थोड़ी भारतीयता भी झलकती है। कहीं नवम नवंबर हो गया तो भाषा भी अलंकृत हो जायेगी।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हम प्रसन्न हुये कि बन्द नहीं हुआ।

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