हमने आपसे पिछले सप्ताह ही वादा किया था कि अबसे संडे के संडे आपको साप्ताहिक महाबुलेटिन की दुनिया में ले चलेंगे । एक ठो अईसन रैपिड राईड कि आप पूरे ब्लॉगजगत की खूबसूरत पोस्टों पर मजे में टहल के आ सकते हैं , देखिए एक्सप्रेस हाज़िर है ..ऑन राइट टाइम सर जी । यात्री गण अपनी सीट बेल्ट बांध लें और उडान भरने को तैयार हो जाएं1.
बोली बनाम भाषा ऐंड माथापच्ची इन बिहारी
इन्सोम्निया...कितना रसिक सा शब्द है न? सुन कर ही लगता है कि इससे आशिकों का रिश्ता होगा...जन्मों पुराना. ट्रांसलेशन की अपनी हज़ार खूबियां हैं मगर मुझे हमेशा ट्रांसलेशन एक बेईमानी सा लगता है...अच्छा ट्रांसलेशन ऐसे होना चाहिए जैसे आत्मा एक शरीर के मर जाने के बाद दूसरे शरीर में चली जाती है. मैं अधिकतर अनुवादित चीज़ें नहीं पढ़ती हूँ...जानती हूँ कि ऐसे पागलपन का हासिल कुछ नहीं है...और कैसी विडंबना है कि मेरी सबसे पसंदीदा फिल्म कैन्तोनीज (Cantonese)में बनी है...इन द मूड फॉर लव. ऐसा एक भी बार नहीं होता है कि इस फिल्म को देखते हुए मेरे मन में ये ख्याल न आये कि ट्रांसलेशन में कितना कुछ छूट गया होगा...बचते बचते भी इतनी खूबसूरती बरकरार रही है तो ओरिजिनल कितना ज्यादा खूबसूरत होगा.मेरे अनुवाद को लेकर इस पूर्वाग्रह का एक कारण मेरी अपनी विचार प्रक्रिया है. मैं दो भाषाओं में सोचती हूँ...अंग्रेजी और हिंदी...ऐसा लगभग कभी नहीं होता कि एक भाषा में सोचे हुए को मेंटली दूसरे भाषा में कन्वर्ट कर रही हूँ. अभी तक का अनुभव है कि कहानियां, कविताएं और मन की उथल पुथल होती है तो शब्द हमेशा हिंदी के होते हैं और टेक्नीकल चीज़ें, विज्ञापन और सिनेमा से जुड़ी चीज़ों के बारे में सोचना अक्सर अंग्रेजी में होता है. इसके पीछे कारण ये है कि पूरी पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम में हुयी है और फिर ऑफिस भी वैसे ही रहे जिनमें अधिकतर काम और कलीग्स के बीच बातें अंग्रेजी में होती रहीं. वैसे तो सभ्य भाषा का इस्तेमाल करती हूँ लेकिन अगर गुस्सा आया तो गालियाँ हमेशा हिंदी में देना पसंद करती हूँ.
2.
जर गया तेरा बंगला ! (पटना १२)
पिछले दिनों भारत आया तो बैरीकूल का फोन आया। हाल खबर की लेनदेन के बाद बोला - "भईया, गाँव आइये त पक्का से मिलते हैं।"मैंने कहा - "बीरेंदर, देख लो गर्मी का दिन है इतनी दूर आना पड़ेगा तुम्हें। वैसे अगर समय मिला तो एक दिन के लिए पटना मैं ही आ जाऊंगा।"
"अरे नहीं भईया, आप आए हैं त हम मिलेंगे कईसे नहीं? मोटरसाइकिल हइए है... एक ठो दोस्त को पकरेंगे आ आजाएँगे। अब आप एतना दूर से आए हैं। कुछ ना कुछ पलान होगा आपका... त अब उसीमें हमसे मिलने कहाँ आईएगा"
"अरे नहीं बीरेंदर, हमें भी तुमसे मिलकर अच्छा लगता है। उसे भी प्लान में ही डाल लेंगे। वैसे प्लान तो कुछ खास है नहीं, बस घर पर ही पड़े रहना है।"
3.
कार्टून :- तेल की कीमत PSU के लौंडे अपने आप बढ़ा लेते हैं
4.
मीना कुमारी ।
महज-बीन = महजबीन बानो उर्फ़ मीना कुमारी ।(courtesy-Google images)
नाम - महज-बीन = महजबीन बानो उर्फ़ मीना कुमारी ।
जन्म - १ -अगस्त -१९३२.
दुखद निधन -३१ -मार्च -१९७२.
पिता का नाम - अली बक्षजी ।
(संगीत टीचर -हार्मोनियम प्लेयर-पारसी थियेटर-उर्दू शायर -संगीतकार फिल्म-`शाही लूटेरे`। )
माता का नाम - प्रभादेवी उर्फ़ इक़बाल बेग़म ।
( प्रभावतीदेवी, शादी से पहले `कामिनी` के नाम से स्टेज एक्ट्रेस -नर्तकी थीं । शादी के बाद मुस्लिम धर्म अंगिकार करके `इक़बाल बेग़म`` नाम रख लिया । कहते हैं की, उनकी माता `हेमसुंदरी` का विवाह `टैगोर परिवार ` में हुआ था । )
दो छोटी बहनें - नाम - ख़ूरशिद और मधु ।
5.
ब्लॉग पहेली -२७ का परिणाम
ब्लॉग पहेली २७ में पूछे गए सवाल के जवाब में दो उत्तर प्राप्त हुए हैं .सर्वप्रथम रविकर जी का उत्तर प्राप्त हुआ ...जो बिलकुल सही था .आशा जी ने भी ''विख्यात '' को छोड़कर अन्य ब्लोग्स के नाम सही पहचाने .सही उत्तर इस प्रकार है-
ब्लॉग मौहल्ला
नुक्कड़
चर्चा मंच
नयी पुरानी हलचल
दुनिया रंग रंगीली
विख्यात मेरी बातें
आधा सच
रचनाकार
काव्य का संसार
एक ब्लॉग सबका
सरोकार .
रविकर जी को विजेता बनने पर हार्दिक शुभकामनायें
winner
blog paheli 27
shri dinesh gupta
''ravikar ''
6.
सद्भावना के वटवृक्ष रोशन कोटवी -शकूर अनवर
धन दौलत गर पास नहीं, किरदार सुदामा जैसा रखतेरा चाहने वाला कोई मोहन भी हो सकता है - रोशन
अभी पिछली 1 जुलाई 2011 को हमारे नगर के वरिष्ठ एवं उस्ताद शायद रोशन कोटवी ने अपने निवास पर जीवन के 83 वर्ष पूरे करने के उपलक्ष में प्रो. एहतेशाम अख्तर की अध्यक्षता में एक वृहद् काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया। रोशन कोटवी साहब ऐसी काव्य-गोष्ठियों का आयोजन पिछले 3-4 वर्षों से निरन्तर कर रहे थे। काव्य-गोष्ठी में कोटा नगर के कवि-शायरों के अलावा कैथून, बूंदी, इटावा, भवानीमंडी एवं अजमेर से भी साहित्यिकि मित्रों ने शिरकत करके इस कार्यक्रम को सफल बनाया। इस कामयाब काव्य-गोष्ठी की साहित्यिक क्षेत्रों में काफी चर्चा रही।
7.
हाय राम, कैसे होगा ब्लॉगिंग का उत्थान...खुशदीप
आजकल ब्लॉगिंग में दूसरों को उपदेश देने वालों की बाढ़ सी आ गई है...कोई मर्यादा का पाठ पढ़ा रहा है...कोई टिप्पणी विनिमय का शिष्टाचार सिखा रहा है...कोई भाषा पर सवाल कर रहा है...कोई इसी फिक्र में ही कांटा होता जा रहा है कि हिंदी ब्लॉगिंग का उत्थान कैसे होगा...कई तो ब्लॉगिंग ही इसीलिए कर रहे हैं कि किसी पोस्ट पर कुछ ऐसा मिले कि पलक झपकते ही उसे लताड़ते हुए पोस्ट तान दी जाए...हिंदी ब्लॉगिंग की यही सबसे बड़ी खामी है कि यहां अपने लिखने पर ध्यान देने की जगह इस बात में ज्यादातर घुले जा रहे हैं कि दूसरे क्या लिख रहे हैं...
8.
बी.जे.पी. की श्वासनली अवरूद्ध है
भारत में राजनैतिक पार्टियां लीडरों के व्यक्तिगत charisma के कारण ही चलती आई हैं. जनता पार्टी, कॉंग्रेस के विरूद्ध जन्मी पार्टी थी जो कालांतर में भारतीय जनता पार्टी में रूपांतरित होकर अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में स्थायित्व ले पाई. लेकिन बाजपेयी की पारी के बाद अडवाणी वहीं से शुरू नहीं कर पाए.
बहुतायत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोगों के इस पार्टी में आने से, इसमें अपेक्षाकृत अनुशासन बना रहता था. किन्तु पिछले कुछ समय से पार्टी के भीतर नेतृत्व के संघर्ष की ख़बरें आती ही रहती हैं. इन ख़बरों का खंडन भी नियम से किया ही जाता रहता है, पर मुश्किल लगता है इस बात पर भरोसा कर पाना कि इस धुएं की बार बार उठने वाली ख़बर सही न हो.
9.
खुलासाःटूथ पेस्ट और टूथ पाउडर में मिलाया जा रहा है निकोटीन
सिगरेट, तंबाकू और गुटखा से परहेज कर अगर आप सोच रहे हैं कि निकोटीन के दुष्प्रभाव से आप मुक्त हैं तो आप गलत हैं। दरअसल, बाजार में ऐसे पदार्थ धड़ल्ले से बिक रहे हैं, जिनमें छोरी-छुपे निकोटीन मिलाया जा रहा है। हैरत कि बात यह है कि टूथ पेस्ट और टूथ पाउडर जैसी रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली वस्तुएं भी इस गोरखधंधा की चपेट में हैं।यह खुलासा दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल साइंस एण्ड रिसर्च (डिप्सार) के एक अध्ययन में हुआ है। चिंताजनक बात यह है कि डिप्सार ने इसी तरह का एक सर्वे पहले भी किया था और विस्तृत रिपोर्ट दिल्ली ड्रग्स कंट्रोल विभाग और अन्य स्वास्थ्य एजेंसियों को सौंपी थी, पर दोषी कंपनियों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
बीते एक वर्ष से डिप्सार दिल्ली-एनसीआर के अलग-अलग इलाकों में बिक रहे उत्पादों की जांच कर रही थी। इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल प्रो. एसएस अग्रवाल ने भास्कर को बताया कि दिल्ली-एनसीआर में बिक रहे टूथ पाउडर में निकोटीन की मात्रा पाई गई। जिन उत्पादों में निकोटीन मिले होने की बात सामने आई है, वे सभी राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रोडक्ट हैं। उन्होंने चिता व्यक्त करते हुए कहा कि बीते वर्ष भी संस्थान ने इसी तरह का अध्ययन किया था।
10.
भारतीय काव्यशास्त्र – 114
भारतीय काव्यशास्त्र – 114आचार्य परशुराम राय
पिछले अंक में यह चर्चा की गई थी कि वक्ता के वैशिष्ट्य के कारण अप्रतीत्व या कष्टार्थत्व आदि काव्यदोष दोष नहीं होते। इस अंक में चर्चा की जाएगी कि बोद्धा (श्रोता), व्यंग्य, वाच्य और प्रकरण आदि के वैशिष्ट्य के कारण भी तथाकथित काव्यदोष दोष न होकर या तो काव्य के गुण हो जाते हैं या न तो गुण होते हैं और न ही दोष।
यदि श्रोता (बोद्धा) वैयाकरण हो, तो भी श्रुतिकटु दोष काव्यदोष न होकर गुण हो जाता है। जैसे-
यदा त्वामहमद्राक्षं पदविद्याविशारदम्।
उपाध्यायं तदाSस्मार्षं समस्प्राक्षं च सम्मदम्।।
11.
simple mechanism of a complex system
ड्राइविंग लाईसेंस बनवाना था और समस्या ये सामने आ रही थी कि मेरे पास छुट्टी की कमी थी| अथोरिटी का हाल तो मालूम ही था, बिना किसी एजेंट के जाने का मतलब था पूरा दिन खराब करना| मेरा भारत महान की एक खास बात ये है कि यहाँ हर काम के लिए मध्यस्थ उपलब्ध रहते हैं, यत्र तत्र सर्वत्र| एक ऐसे ही बंदे का पता चला तो उससे इस बारे में बात की| पैसों की बात तय हो गई, साथ ही यह बात कि एक घंटे में फ्री कर दिया जाऊँगा, जिसमें लिखित परीक्षा, फोटो, फिंगर प्रिंट्स वगैरह सब काम निबट जायेंगे| सरकारी फीस से जितने ज्यादा रूपये देने पड़ रहे थे, एक छुट्टी बचाने और बिना किसी सिफारिश के अथोरिटी में जाने पर पेश आने वाली जिल्लतों के बदले ये अतिरिक्त खर्चा ठीक ही लगा|12.
नानी के नाम चिट्ठी
मेरी प्यारी नानी,कई दिनों से सोच रही हूं कि आपको लिखूं चिट्ठी। कुछ वैसी ही निर्दोष, जैसी बचपन में लिखा करती थी। जब लिखा करती थी कि सब कुशलमंगल है, वाकई वैसी होती थी ज़िन्दगी, या शायद उतना ही समझ आता था। हालांकि आपके कुशल हो जाने की कामना की तीव्रता अब भी कम नहीं हुई।
नानी, आपको वैसे ही याद करती हूं इन दिनों जैसे पैरों के तलवे में बेसबब निकल आया कोई ज़ख़्म याद आया करता है, एक अविराम टीस की तरह, जिसके होने से याद आता रहते हों वो तलवे जिनपर शरीर का बोझ होता है और जिनपर वक़्त-वक़्त पर मरहम लगाना ज़रूरी होता है। वरना तो अपनी हर प्रिय और सबसे आवश्यक चीज़ को ग्रान्टेड ले लेने की बुरी बीमारी होती है हम सबको।
13.
यह संकट कोई दो-चार दिनों, महीनों या वर्षों का नहीं है.
यह एक अजीब विडम्बना है कि ठीक जिस वक़्त मैं यह लेख लिख रहा हूँ एक कारपोरेट निजी चैनल का समाचारवाचक चीख-चीख कर पेट्रोल की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि की है और उस पर प्रतिक्रिया देते हुए सत्तापक्ष के नेता कह रहे हैं कि जनता की क्रयशक्ति बढ़ गयी है और वह इसे आराम से झेल सकती है, असल में यह वृद्धि जनता के हित में की गयी है तो मुख्य विरोधी दल के नेता सरकार से अपने खर्च कम करने के कुछ हास्यास्पद सुझाव दे रहे थे – जो बात कोई नहीं कह रहा है वह यह कि सरकार कारपोरेटों को दी जाने वाली सब्सीडीयाँ कम करे. २०१०-२०११ के बजट में कार्पोरेट्स को दी गयी 4,18,095 करोड़ रुपयों की सब्सीडी उस विशाल धनराशि का बस एक छोटा सा हिस्सा है जो हर साल कार्पोरेट्स के हित में खर्च करती है. आज सत्ताधारी वर्ग की सभी पार्टियाँ अपनी दूसरी नीतियों में भले कितनी भी अलग दिखाई दें, आर्थिक नीतियों के मामले में सबके बीच एक आम सहमति का माहौल है. नब्बे के दशक के आरम्भ में देश-दुनिया की सारी मुसीबतों के इकलौते रामबाण की तरह जोर-शोर से शुरू की गयीं उदारीकरण की नीतियाँ उसके बाद की सभी सरकारों ने थोड़े-बहुत ऊपरी फेरबदल के साथ लगातार जारी रखीं, विकास दरों के शोर में समय-समय पर यह तर्क सभी सरकारों ने दिया कि कार्पोरेट्स की आय में हुई वृद्धि धीरे-धीरे रिस कर नीचे तक पहुंचेगी और लगातार उनके कारोबार को आगे बढ़ाने वाली नीतियों को इस देश के आमजन की कीमत पर आगे बढ़ाया गया. एक दशक होते-होते इन नीतियों के परिणाम भी सामने आने लगे और 2008-2009 में पूरी दुनिया के साथ भारत भी आर्थिक मंदी की चपेट में आ गया. उस समय भी सच को स्वीकार कर नीतियों पर पुनर्विचार करने की जगह सारा जोर पहले तो मंदी को मिथक साबित करने पर और फिर यह साबित करने पर दिया गया कि भारत पर इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा. नतीजा यह कि देश की आर्थिक हालत सुधारने की जगह और बिगड़ती गयी. भारत की हालिया आर्थिक स्थिति का अंदाजा अर्थशास्त्री टेलर कोवेन के उस ट्वीट से लगाया जा सकता है जिसमें वह कहती हैं कि ‘इन दिनों की सबसे ज़रूरत से कम कही गयी ज़रूरी कहानी है भारत की मौजूदा आर्थिक गिरावट की कहानी’, और इसके पुख्ता आधार हैं.14.
Glass house - Casa di vetro - काँच घर
15.
वो मेरी चुप्पियां भी सुनता था...
मैंने सब जुर्म याद रखे हैं...मैंने सब कटघरे सजाए हैं...
कोई तो आए, सज़ा दे मुझको...
लोग कहते हैं अजब पूनम है...
चांद सूजा हुआ-सा लगता है...
तुमने फिर नींद की गोली ली क्या?
मैंने दुनिया से कुछ कहा भी नहीं
जाने क्या उसने सुना, रुठ गया...
वो मेरी चुप्पियां भी सुनता था...
देखो ना रिस रहा है आंखो से
एक रिश्ता कोई हौले-हौले
कोई 'चश्मा' भी नहीं आखों में !!
16.
हम जहां पहुंचे कामयाब आये - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की आपबीती – ४
(पिछली कड़ी से आगे)
मैं मास्को के बाद लंदन चला गया और लंदन में दो वर्ष तक रहा. मैं लंदन से लाहौर आने के बजाय कराची लौट आया. कराची में मैं मिस्टर महमूद हारून के निवास स्थान पर ठहरा. उनकी बहन जो डाक्टर थीं और मेरी मित्रा थीं, उन्होंने मुझे लिखा कि श्रीमाती हारून बीमार हैं और आपको देखना और मिलना चाहती हैं. मेरे आने पर श्रीमती हारून ने मुझे बताया कि उनका जो फ़लाही फ़ाउंडेशन है उसके अधीन स्कूल, अस्पताल और अनाथालय चल रहा है. उनके लड़के के पास फ़ाउंडेशन चलाने के लिए समय नहीं है क्योंकि वह व्यापार तथा राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त रहे हैं. अच्छा होगा कि फ़ाउंडेशन की व्यवस्था मैं संभाल लूं. मैंने फ़ाउंडेशन के स्थान पर उसकी गतिविधियों का निरीक्षण किया तो देखा कि वह गंदी बस्ती का इलाक़ा था, जहां मछुआरे, ऊंट वाले, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाले और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त व्यक्ति रहा करते थे.
17.
टेनिसन, तुम सचमुच महान हो!
कनक तिवारी
विश्व विख्यात अंग्रेज़ कवि अल्फ्रेड लॉर्ड टेनिसन ने ये अमर पंक्तियां लिखी हैं-The old order changeth yielding place to new and god fulfills himself in many ways lest one good custom may corrupt the world यानी नई परंपराओं के लिए पुरानी परंपराएं जगह खाली करती हैं कि कहीं अच्छी प्रथाएं भी नए संसार को भ्रष्ट नहीं कर दें.
कवि जब दर्शनशास्त्र को सूत्रों में व्यक्त करता है तो उससे ज़्यादा संक्षिप्त और तीखा कथन और कहीं नहीं होता. भारत में तो बकौल लोहिया, दर्शन शास्त्र प्राचीन भाषा संस्कृत में गीतों बल्कि संगीत में ही अभिव्यक्त किया गया है. इस लिहाज़ से शायद भारत संसार का अकेला या पहला देश है. बहरहाल विक्टोरियाई युग के कवि टेनिसन की उक्त कालजयी पंक्तियां इक्कीसवीं सदी के राजनीति विज्ञान को भी बेहतर चरितार्थ करती हैं.
18.
उन दिनों ...!
अमूमन हम ऐसी किसी भी बात पर असहज हो उठते हैं जो , हमारी अपनी परवरिश के अनुकूल नहीं होती ! इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि चिंतन और समझ के स्तर पर हम स्वयं को , स्वनिर्धारित खांचे से बाहर जाकर दूसरी परवरिशों के सत्य को स्वीकार करने की अनुमति तक नहीं देते ! बौद्धिक परिमार्जन के द्वार बंद रखने की इस कवायद में , हद दर्जे की सनक , असहिष्णुता और पूर्वाग्रहों से गहन मैत्री के भाव लिए हुए हम , अपने कूप से बाहर के संसार और उसके आलोक सह अन्धकार के प्रति केवल नकार के सुर उचारते हुए जीवन गुज़ार देते हैं ! इसे हमारी परसोना का भयंकरतम पक्ष माना जाये कि सारी की सारी वसुंधरा के कुटुंब होने का आदर्श वाक्य कह चुकने के फ़ौरन बाद हमारी अपनी वसुंधरा हमारी अपनी परवरिश के दायरे में सिमट कर रह जाती है , फिर उसमें किसी दूसरे विचार / किसी दूसरी परवरिश के समाने की कोई गुंजायश नहीं होती19.
आज भी गुज़रता हूँ कभी कभी...
Author: दिलीप /
आज भी गुज़रता हूँ कभी कभी, तुम्हारी यादों से...
आगे जाकर बड़ी संकरी और भूल भुलैय्या सी हो जाती हैं...
जाओ तो बाहर आना मुश्किल हो जाता है...
इसलिए समझदारी का धागा बाँध कर आता हूँ....
देखता हूँ वो गेट अभी भी वैसे ही बाहें पसारे खड़ा है...
मुझे देखता है तो इक धीमी सी आवाज़ करता है...
इंतेज़ार की ठंड मे हड्डियाँ जकड गयी हैं उसकी.
20.
जाने कैसी बात हुई
जाने कैसी बात हुईउनसे मुलाकात हुई
आँख खुली तो चादनी भरी
पूनम वाली रात हुई ।
सोचा था न कभी जीवन में
ऐसा भी क्षण आयेगा,
नियमबध्द मेरे जीवन में
जैसे वारदात हुई .।
21.
भगवत रावत
क़रीब डेढ़ साल पहले-
शाम फ़ोन बजता है. उस तरफ़ एक कांपती हुई, लेकिन ओजस्वी बुज़ुर्ग आवाज़ है. उलाहने का आरोह है.
'तुम्हें आने की फ़ुरसत नहीं मिलती?'
'दादा, क़सम से. बहुत उलझा हुआ हूं. नहीं निकल पाया.'
'अभी कहां हो?'
'दफ़्तर में.'
'तुम नहीं आ रहे, तो हम ही दस मिनट में पहुंच रहे हैं. सीढ़ी नहीं चढ़ पाएंगे, इसलिए तुम नीचे ही आ जाना.'
क़रीब पंद्रह मिनट बाद दफ़्तर के बाहर सड़क पर हम मिलते हैं. यह भगवत रावत थे. हिंदी के वरिष्ठ कवि. बलवान कवि. हम दो घंटे से ज़्यादा बाहर चाय की भीड़-भरी गुमटी पर बैठे रहे. दुनिया-जहान की बातें करते रहे. वह सन् 80 का भोपाल और सत्तर का हैदराबाद बताते रहे. उनकी बातें, एक से जुड़ती एक. किसी ने स्वेटर में ऊन की एक गांठ खोल दी हो.
उनके ठहाके. बीच-बीच में दर्द की शिकन. बुज़ुर्गियत लाड़ और शिकायतों का युग्म है. पुराने से शिकायत होती है. नये से लाड़ होता है. जो नहीं हो सका, उसकी शिकायत होती है. जो होना संभव दिख रहा है, उसके लिए लाड़ होता है.
22.
ननिर्मल बाबा ही नहीं ...हम और हमारा समाज भी पाखंडी ही है !!!
- आशीष देवराड़ी
ग्लोबलाइजेशन और आधुनिकीकरण के इस दौर में अभी हमारे अंधविश्वासों के लिए काफी स्पेस मौजूद है | क्या पढ़े लिखे और क्या गंवार, दोनों ही अंधविश्वास के जाल में जकड़े हुए है | एक के लिए पण्डित मंदिर में उपलब्धय है तो दूसरे के लिए उसके मोबाइल पर ,एक के लिए तीर्थ -दर्शन है तो दूसरे के लिए वर्चुअल-दर्शन ,एक के भगवान खुली छत के नीचे है जो दूसरे के केमरों की सुरक्षा के बीच वातानुकूलित कमरों में बंद | बिन पढ़े लिखो कि बात तो समझ आती है जो अज्ञानता और मजबूरीवश इन अंधविश्वासों में उलझे हुए है परन्तु यदि तथाकथित आधुनिक पढ़े-लिखे लोग भी इन अंधविश्वासों से पार ना पा सके तो ये उनकी शिक्षा (या कहे हमारी शिक्षा व्यवस्था ) और आधुनिकता पर बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह लगाता है |ये बात रेखांकित कि जानी चाहिए कि वर्तमान सन्दर्भ में पढ़ने-लिख लेने का मतलब अंधविश्वासों से मुक्ति कतई नहीं है |पढ़े लिखो में अपने अन्धविश्वास पलते है और ये अन्धविश्वास आये दिन हमें अपने आस-पास दिखलाई पड़ते है|
23.
हँसी बहुत अनमोल
कर प्रयत्न राखें सभी, मन को सदा प्रसन्न,जो उदास रहते वही, सबसे अधिक विपन्न।
गहन निराशा मौत से, अधिक है ख़तरनाक,
धीरे-धीरे जि़ंदगी, कर देती है ख़ाक।
वाद-विवाद न कीजिए, कबहूँ मूरख संग,
सुनने वाला ये कहे, दोनों के इक ढंग।
जो जलते हैं अन्य से, अपना करते घात,
अपने मन को भूनकर, खुद ही खाए जात।
24.
लघु कथा :- महंगाई
पापा कितनी महंगाई है , और देखो , सरकारी अफसरों का महंगाई भत्ता बढ़ गया है , पापा कल मुझे अपने दोस्तों की पिक्चर दिखाने ले जाना है तो मेरी पॉकेट मनी भी जरा बढ़ा दो अब , और सुनिए जी मेरी किटी पार्टी वालों ने , घुमने जाने का प्लान बनाया है , तो मुझे भी इस बार दो हजार रुपये ज्यादा चाहिए | और हाँ एक नयी साडी तो बनती है, सेलरी बढ़ने की ख़ुशी में...क्यूँ बेटी ?
हाँ माँ , और मुझे भी नया मोबाइल चाहिये |
25.
रूपये की व्यथा
रूपये की व्यथागिर कर भी मैं हारा नहीं
उठता रहा, चलता रहा,
घटता हुआ रुपया हूँ मैं,
डॉलर से बस दबता रहा.
अपनों ने ही काला किया,
मैं था खरा, खोटा किया,
उसने किया है बेवतन,
जिनको सदा पाला किया.
26.
बचल रहय परिवार
बात कहय मे नीक छल, बेटा गेल विदेश।मुदा सत्य ई बात छी, असगर बहुत कलेश।।
विश्व-ग्राम केर व्यूह मे, टूटि रहल परिवार।
बिसरि गेल धीया-पुता, दादी केर दुलार।।
हेरा गेल अछि भावना, आपस के विश्वास।
भाव बसूला के बनल, भोगि रहल संत्रास।।
27.
बेटियां
sandeep Bhatt
बेटियां
एक खबर के मुताबिक महाराष्ट्र के बीड़ में कन्या भू्रणों को डाक्टर दंपत्ति द्वारा कुत्तों को खिलाए जा रहे हैं। इस मामले में जिस डाक्टर दंपत्ति को पकड़ा गया है उन्हें पहले भी इसी मामले में पुलिस ने गिरफ्तार किया था। पैसे और पहुंच से वे छूट गए थे या जो भी रहा हो लेकिन फिर से वे अपने पुराने काम पर लौट आए।
ऐसे न जाने कितनी ही लड़कियां गर्भ में ही मार दी जा रही हैं। मां-बाप की सहमति से ही क्रूर डाक्टर इस तरह की घिनौनी हरकत को अंजाम देते हैं। लेकिन भ्रूण का कुत्ते को खिलाया जाना गहरी शर्म पैदा करता है। पता नहीं क्या कहा जाए लेकिन ऐसे किसी भी डाक्टर का पंजीयन तुरंत रद्द कर दिया जाना चाहिए और उसे इतनी कड़ी सजा देनी चाहिए कि ऐसा सोचने से भी पहले हर कोई हजार बार सोचे। हम वाकई अब भी दुनिया के उन पिछड़े समाजों में से हैं जहां आधी दुनिया को अब भी पैदा होने से पहले ही खत्म कर दिया जाता है और अब तो हद है कि उन्हें जानवरों को खिला दिया जा रहा है।
28.
जर्जर हुआ 350 साल पुराना राधा-कृष्ण ऐतिहासिक मंदिर
Dr Mandhata singh
शाहजहांपुर से करीब 42 किमी दूर पुवायां तहसील के मुड़िया कुमिर्यात गांव में करीब 350 साल पुराना राधा-कृष्ण का मंदिर है। बावन दरवाजों वाले इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली है। जर्जर होते इस मंदिर को मरम्मत की जरूरत है, लेकिन मरम्मत के लिए धन की मांग वाली फाइल पुरातत्व विभाग में धूल फांक रही है।
यह ऐतिहासिक मंदिर जिला मुख्यालय से करीब 42 किमी दूर है। जिले की सबसे समृद्ध तहसील पुवायां नगर से बंडा रोड पर करीब दस किमी चलने पर जुझारपुर मोड़ पड़ता है। यहीं से पश्चिम के लिए पतली सी पक्की सड़क जाती है। इसी सड़क पर चार किमी दूरी पर है मुड़िया कुमिर्यात गांव। मुड़िया कुमिर्यात से पहले एक गांव और पड़ता है वनगवां। वनगवां से आगे बढ़ते ही मंदिर के विशाल बुर्ज दिखाई देने लगते हैं।
29.
सत्यमेव जयते!..ये आमिर खान नहीं है!
आज पहली बार टी.वी.चेनल स्टार प्लस पर ‘सत्यमेव जयते'प्रोग्राम देखा !...यह प्रोग्राम शुरू से ही सराहा गया है...कभी कन्याभ्रूण ह्त्या के विषय को लेकर तो कभी समाज में व्याप्त ‘दहेज’ नाम के राक्षस को ले कर...हर बार इस प्रोग्राम में एक नया विषय चुन कर, उसपर विशेष चर्चा की गई है!...सभी विषय सामाजिक होने की वजह से खूब पसंद किए गए है....इस प्रोग्राम के सूत्रधार आमिर खान है!
...आज इस प्रोग्राम के अंतर्गत ‘ स्वास्थ्य और डॉक्टर्स’ विषय पर प्रकाश डाला गया!...कुछ डॉक्टर्स मरीजों के स्वास्थ्य के साथ कैसा खिलवाड करते है ...यह दिखाया गया!...कभी कभी आवश्यकता न होने पर भी मरीजों को कई मेडिकल टेस्ट करवाने के लिए मजबूर किया जाता है...और कई बार ऑपरेशन की जरुरत न होने पर भी ....मृत्यु का डर दिखा कर...ऑपरेशन करवाने के लिए मजबूर किया जाता है....सिर्फ पैसे कमाने के लिए ऐसा किया जाता है...यह बताया गया...
...बहुत से जाने-माने डॉक्टर्स इस शो में उपस्थित थे और मेडिकल स्टूडंट्स भी उपस्थित थे!...मेडिकल स्टूडंट्स ने माना कि मेडिकल में एडमिशन के लिए 50 से 60 लाख रुपयों तक का डोनेशन भी लिया जाता है...वह भी चेक से नहीं बल्कि कैश में लिया जाता है...अब इस प्रकार ब्लैक मनी का लेना-देना भी सामने आ ही गया....प्रोग्राम बहुत ही अच्छा रहा!
30.
कॉपीराइट कानून में बदलाव: बेबसी के दिन बीते रे भैया..
किसी भी रचना का सृजन होते ही उसका कॉपीराइट उसके रचयिता के पास हो जाता है। इसके लिए अलग से किसी तरह के पंजीकरण की जरूरत नहीं है। बस कानूनी विवाद उठने पर रचयिता को ये साबित करने की जरूरत होती है कि फलां रचना उसने अमुक समय पर तैयार कर ली थी। अपनी ही रचना अपने पास रजिस्टर्ड लिफाफे से भेज उसे यूं ही सीलबंद रहने देने या फिर उसे अपनी ही ई मेल आईडी पर मेल करके उसे बिना खोले पड़े रहने देने के तरीके इसके लिए कामयाब तरीके माने जाते रहे हैं। पर, क्या हो जब आपके लिखे या गढ़े की चोरी हो जाए? या कोई और ही इसका कारोबारी इस्तेमाल करने लगे? संसद के दोनों सदनों से पारित हुए कॉपीराइट कानून संशोधन अधिनियम 2011 का मसौदा पढ़ने के बाद ऐसी ही कुछ और नुक्ता-चीनियों के बारे में विस्तार से ख़ास आपके लिए ये ख़ास जानकारी।
31.
राष्ट्रीयविज़न के बिना ममता बनर्जी की बौनी राजनीति
पश्चिम बंगाल में संकीर्ण राजनीतिक पांसे तेजी से फेंके जा रहे हैं। इससे सामाजिक जीवन में अनुदार भावबोध पुख्ता होगा। इसे चालू भाषा में बौनी राजनीति कहते हैं। बौनी राजनीति वे करते हैं जिनके पास राष्ट्रीय विज़न नहीं होता। ममता बनर्जी के सत्ता में आने के साथ यह उम्मीद जगी थी कि राज्य सरकार नीतिगत बौनेपन से बाहर निकलेगी।लेकिन विगत एक साल में पश्चिम बंगाल में नीतिगत संकीर्णतावाद से निकलने की बजाय और भी ज्यादा अनुदार भावों-विचारों के हमले तेज हुए हैं।
32.
एक वसीयत : अंतिम यात्रा में चुगलखोरों को मत आने देना
एक बार दिन भर लोंगों की चुगलियों से त्रस्त होकर एक आदमी बहुत परेशान था. करता भी क्या किससे लड़ता झगड़ता उसने सोचा कि चलो इस तनाव से मुक्ति के लिये एक वसीयत लिखे देता हूं सोचते सोचते कागज़ कलम उठा भी ली कि बच्चों की फ़रमाइश के आगे नि:शब्द यंत्रवत मुस्कुराता हुआ निकल पड़ा बाज़ार से आइसक्रीम लेने . खा पी कर बिस्तर पर निढाल हुआ तो जाने कब आंख की पलकें एक दूसरे से कब लिपट-चिपट गईं उस मालूम न हो सका. गहरी नींद दिन भर की भली-बुरी स्मृतियों का चलचित्र दिखाती है जिसे आप स्वप्न कहते हैं .. है न..?
आज वह आदमी स्वप्न में खुद को अपनी वसीयत लिखता महसूस करता है. अपने स्वजनों को संबोधित करते हुये उसने अपनी वसीयत में लिखा
मेरे प्रिय आत्मिन
सादर-हरि स्मरण एवम असीम स्नेह ,
33.
तकिये की ताक़त
ह मारे लिए भाषा संवाद का जरिया होती है, अर्थ जानने का नहीं । संवादों के जरिए समूचे मनोगत को अभिव्यक्ति मिलती है न कि शब्दार्थ को । शब्द विशिष्ट अर्थ को प्रकट करते हैं । वाक्यांश में उनके संदर्भ बहुधा भिन्न होते हैं । अक्सर ऐसा भी होता है कि अपनी मूल भाषा में व्यापक अर्थवत्ता वाले शब्द किसी दूसरी भाषा में पहुँचकर किसी एक ही अर्थ को ध्वनित करने लगते हैं अर्थात रूढ़ हो जाते हैं । इसीलिए हम किन्हीं शब्दों का सही-सही अर्थ न जानने के बावजूद उन्हें वाक्यों में प्रयोग करते हैं । ऐसा ही एक शब्द है तकिया । सिरहाने के लिए उपयोग में आने वाला छोटे गद्दी के लिए बेहद आम शब्द है तकिया । संस्कृत में इसके लिए उपधान या उच्छीर्षक शब्द हैं । उद् यानी उठान, ऊपर आदि । शीर्ष(क) यानी सिर, उच्च । मोनियर विलियम्स उच्छीर्षक प्रविष्टि में इसका अर्थ " that which raises the head " , a pillow अर्थात “वह जो सिर को ऊपर उठाए यानी तकिया” बताते हैं । गौरतलब है कि मराठी में तकिया के लिए उशी शब्द है और इसका जन्म उच्छीर्षक से हुआ है । वैसे बोलचाल में तकिया के लिए सिरहाना शब्द भी चलता है ।
34.
क्रिकेट का दीवानापन - खेलों को पनपने नहीं दे रहा है
इस चिट्ठी में नैनीताल में हॉकी मैच और क्रकेट की दीवनगी के कारण अन्य खेलों के दुर्भाग्य की चर्चा है।यह चित्र आनन्दमय चैटर्जी का है और उनके फ्लिकर चित्र संकलन से लिया गया है।
नैनीताल में, हमने मचान रेस्त्रां में दोपहर का खाना खाया। वहां से बाहर निकल कर, शुभा, मित्रों को नैनीताल से भेंट देने कि लिये, कुछ शॉल खरीदने चाहे। वह शॉल देखने चली गयी। मुझे खरीदारी करने पर मजा नहीं आता है। मैं उसके साथ नहीं गया।
35.
जीवन एक लकीर सा
जीवन ने बहुत कुछ सिखाया
पर आत्मसात करने में
बहुत देर हो गयी
हुए अनुभव कई
कुछ सुखद तो कुछ दुखद
पर समझने में
बहुत देर हो गयी
साथ निभाया किसी ने
कोई मझधार में ही छोड़ चला
सच्चा हमदम न मिला
36.
सामान्य ज्ञान
आज एक वाकया हो गया. वैसे घर में तो तीन स्नानगृह/शौचालय है, मुझे ऊपर की मंजिल में एकदम बड़े वाले में जाना अच्छा लगता है. एक तसल्ली होती है क्योंकि मुंबई वाले जब यहाँ आते हैं तो उनका कहना होता था कि यह तो हमारे कमरे से बड़ा है. ऊपर से बाथ टब भी है जिसका प्रयोग हमने कभी नहीं किया. पानी कहाँ से लायें. कभी कभार जब परिवार के बच्चे आ जाते थे तो उनके मन बहलाव के लिए बचा बचा कर पहले से टब को भर लिया करते. लगता है हम भटक गए. मामला यह था कि अन्दर घुसने के बाद जब दरवाजे की सिटकिनी बंद करनी चाही तब उसका ढुचू (नोब) नीचे गिर गयी. उसे उठाकर उसके लिए बने हुए छेद में लगा तो दिया लेकिन मामला नहीं जमा. वह फिर निकल जाता. मुझे लगा कि अब इसे बदलना ही होगा. वैसे कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि घर में उस समय मैं अकेला ही था. निवृत्त होने के बाद याद आया कि मेरे पास अरलडाईट है. मैं पुनः उस नोब को अपनी जगह स्थापित कर सकता हूँ. मैंने मिश्रण बनाया और लेप लगाकर नोब को अपनी जगह फिक्स कर दी. शाम को देखता हूँ कि वह इस कदर फिक्स हो गया कि उसे हिलाया ही नहीं जा सकता. पेंचकस का इस्तेमाल कर हमने उसे अनुशाषित किया. देखते हैं कब तक चलता है.
37.
क्यों डरते हो तुम प्यार से.....?
क्यों डरते हो तुम प्यार से
ये भी भला कोई डरने की चीज़ है
प्यार तो वो कोमल एहसास है
जो किसी को भी मिलता है नसीब से
38.
प्रतिदान
न देखी गयीजवान बेटे की वेदना ,
हाथ जोड़े ,अश्रु भरे नेत्र ,
दारुण पुकार !
हे ! कलयुग के भगवान !
मेरा गुर्दा ,
मेरे बेटे को लगा दो ...../
आलम्ब है ,
अपने मासूम शावकों का ,
भार्या ,माँ बाप का
आधार स्तम्भ है ,
गिरने से बचा लो ...../
39.
बालिग़ सिर्फ उम्र से ही नहीं हो रहे थे
क्या करूं उम्म... उससे पैसे मांगू या नहीं ?
कपिल से तो ले नहीं सकता। उसकी खुद की हज़ार समस्याएं हैं। गौतम दे सकता है लेकिन देगा नहीं। सुनीती आज देगी तो कल मांगने लगेगी। अविनाश एक सौ देता है तो दो घंटे बाद खुद उसे डेढ़ सौ की जरूरत पड़ जाती है। सौमित्र के पास पान गुटके खाने के लिए तो पैसे जुट जाएंगे लेकिन मेरे मामले में वो लाचार है, जुगाड़ नहीं कर सकेगा। रोहित से कहूंगा कि पैसे चाहिए तो तुरंत नया बैट दिखा देगा कि अभी अभी छाबड़ा स्पोर्टस् से खरीद कर लाया हूं, मेरा बजट तो सोलह सौ का ही था लेकिन इसमें स्ट्रोक है और साथ ही हल्का भी सो पसंद भी यही आया इसके लिए चैबीस सौ का इंतजाम करना पड़ा। सो तुम्हें क्या तो दूंगा उल्टे आठ सौ रूपिया उधार ही लगवा के आया हूं।
40.
क्या सच में गर्मी बहुत ज्यादा है या सुविधाओं ने हमें कुछ ज्यादा ही नाज़ुक बना दिया है?
क्या सच में गर्मी बहुत ज्यादा है? क्या इससे पहले कभी इतनी गर्मी नहीं पड़ी? क्या थर्मामिटर का पारा सूरज के कहर से पहले कभी नही थर्राया? क्या सच में गर्मी से जीना मुहाल हो गया है? इतना ही नहीं और भी कर्इ सवाल मेरे दिमाग में उमड़ घुमड़ रहे थे। जितनी गर्मी सच में पड़ रही है उससे ज्यादा समाचार देख कर लगने लगी है। क्या सच में वातावरण बहुत ज्यादा गर्म हो गया है या फिर हम जरूरत से ज्यादा नर्म हो गये हैं?मुुझे याद है नर्इ नर्इ नौकरी लगी थी। जवानी का जोश था और नर्इ नौकरी का भी कुछ असर था। तब भी सूरज इतना ही गर्म हुआ करता था और तब मेरे पास मोटर साइकिल हुआ करती थी। भरी दोपहरी में समाचारों के लिए भटकते समय ना ऊपर आसमान से बरसती आग जलाती थी और ना ही तेज गर्म हवाओं के थपेड़े ही झुलसा पाते थे। ना कपड़े से मुंह को लपेटने का फैशन था और ना ही एसी फेसी का जमाना था। अप्रैल,मर्इ,जून, में भी एैसे घूमते थे जैसे नवंबर दिसंबर का सुहावना मौसम हो।
और पहले के बाद कहूँ तो कालेज से लेकर बेरोजगारी के शानदार सुनहरा दौर में गर्मी सर्दी का फर्क ही नहीं पता चला। फेसबूकिया बल्लू उर्फ बलबीर भारज, चुन्नू उर्फ धनंजय सिंह और मै हम तीनों तीन सवारी स्कूटर पर सवार होकर निकलते थे तो सीधे रात को ही घर जाते समय अलग होते थे। बरसात सर्दी और गर्मी में बिना नागा तीनों अपनी अपनी प्रोबेबिलिटी के घरों के आस पास मंडराते थे। भरी दोपहरी एक्सट्रा क्लास और कम्बाइण्ड स्टडी के बहाने उस समय शहर से बाहर समझे जाने वाले सार्इस कालेज और उसके हास्टल में मटरगश्ती करने जाते थे तब भी आसमान पर सूरज एैसे ही आग उगलता था। पर तब उसकी तपन जलन का एहसास तक नहीं होता था।
41.
ईमानदारी अब डराती है !
ईमानदारीअब कीमत चुकाती है ,
बीच सड़क पर
क़त्ल होती है वह
व्यवस्था आँख मूँद कर चली जाती है !
ईमानदारी
अब सबको डराती है,
दिन के उजाले में भी
स्याह*अँधेरा लाती
सूरज की रोशनी शर्माकर चली जाती है !
42.
मैं एक आम इन्सान हूँ
मैं एक आम इन्सान हूँहर कदम जिन्दगी से परेशान हूँ
मैं जन्म लेता हूँ , गंदे सरकारी अस्पतालों में
या फिर अँधेरे कमरों, सूखे खेतो या नालो में
पलता-बढ़ता हूँ, संकरी-छोटी गलियों में
खेलता फिरता हूँ, मिटटी-कीचड़ और नालियों में
ऊँची इमारतों को देखकर , मैं हैरान हूँ
मैं एक आम इन्सान हूँ
खंडहर से सरकारी स्कूलों से की पढाई
क्लास बनी मैदान ,साथियों से होती लडाई
होश सँभालते ही, शुरू होती काम की तलाश
आँखों में सपने , होती कर गुजरने की आस
पर लगता मैं बेरोजगारी की शान हूँ
मैं एक आम इन्सान हूँ
43.
शादी-विवाह में समान गुण-धर्म की आवश्यकता
शादी-विवाह एक ऐसा बंधन है जिसमें बंधने के लिए बहुत सूझ-बूझ की आवश्यकता होती है । चाहे जिससे विवाह नहीं किया जा सकता । जो लोग जल्दीबाजी में कोई ऐसा-वैसा कदम उठा लेते हैं । आगे चलकर उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है । उनके बच्चों को भी इससे समस्याओं का सामना करना पड़ता है । विवाह रुपी बंधन में बंधने के लिए समान गुण-धर्म पर जोर देना बहुत आवश्यक है । इसके बिना सुसंगत जीवन जीना सरल नहीं होता ।संत और सदग्रन्थ कहते हैं कि विवाह में कम से कम तीन चीजें जरूर अच्छी और अनुकूल होनी चाहिए: १. घर, २. वर, और ३. कुल । लड़की के अनुरूप लड़का और लड़के के अनुरूप लड़की का होना आवश्यक है- ‘जौ घरु वरु कुलु होय अनूपा । करिअ विवाहु सुता अनुरूपा’ । यदि लड़की पढ़ी-लिखी है तो लड़का भी ऐसा ही होना चाहिए । लड़की सुंदर हो तो लड़का भी सुंदर होना ही चाहिए । इत्यादि । कहने का तात्पर्य यह है कि शादी-विवाह में विपरीत गुण-धर्म को जहाँ तक हो सके त्यागना चाहिए ।
44.
Real Beauty – वास्तविक सौंदर्य
हर सुबह घर से निकलने के पहले सुकरात आईने के सामने खड़े होकर खुद को कुछ देर तक तल्लीनता से निहारते थे.एक दिन उनके एक शिष्य ने उन्हें ऐसा करते देखा. आईने में खुद की छवि को निहारते सुकरात को देख उसके चेहरे पर बरबस ही मुस्कान तैर गयी.
सुकरात उसकी ओर मुड़े, और बोले, “बेशक, तुम यही सोचकर मुस्कुरा रहे हो न कि यह कुरूप बूढ़ा आईने में खुद को इतनी बारीकी से क्यों देखता है!? और मैं ऐसा हर दिन ही करता हूँ.”
शिष्य यह सुनकर लज्जित हो गया और सर झुकाकर खड़ा रहा. इससे पहले कि वह माफी मांगता, सुकरात ने कहा, “आईने में हर दिन अपनी छवि देखने पर मैं अपनी कुरूपता के प्रति सजग हो जाता हूँ. इससे मुझे ऐसा जीवन जीने के लिए प्रेरणा मिलती है जिसमें मेरे सद्गुण इतने निखरें और दमकें कि उनके आगे मेरे मुखमंडल की कुरूपता फीकी पड़ जाए”.
45.
माओवादी सिनी सय की कहानी.
सिनी साय
सारदा लहांगीर
सात मई को मेरे एक पत्रकार मित्र ने सूचना दी कि जाजपुर पुलिस ने एक बुजुर्ग महिला माओवादी को अस्पताल से गिरफ्तार किया है. नाम है उसका सिनी सय. नाम सुनकर मैं चौंकी. मैंने झटपट अपना कैमरा निकाला ओर जाजपुर की ओर निकल पड़ी. पिछले कई सालों से सिनी सय को मैं ढूढ रही थी पर उसका कोई अता-पता नहीं था.
रास्ते भर मैं सिनी सय के बारे में सोचती रही. पचपन साल की सिनी सय 1997 में जाजपुर जिले के गोबरघाटी गांव की सरपंच के तौर पर जानी जाती थी. इस तेज-तर्रार आदिवासी महिला सरपंच को लोग उसके व्यवहार कुशलता के कारण जानते थे. लेकिन यह सिनी सय का अधूरा परिचय है.
46.
'कलकतिया भउजी' में गायिका की भूमिका में प्रतिभा सिंह
भोजपुरी गायिका प्रतिभा सिंह फिल्म कलकतिया भउजी में गायिका की भूमिका अदा कर रही हैं। फिल्म की शूटिंग शुरू हो चुकी है। फिलहाल उन्होंने छपरा के समीप तरइयां रामबाग गांव में अपनी दो दिन की शूटिंग आज रविवार 27 मई 2012 को पूरी की। शेष शूटिंग जल्द ही कोलकाता में होगी। इस फिल्म के निर्देशक हैं अशोक जायसवाल, जिन्होंने प्रतिभा सिंह के म्यूज़िक एलबम 'मेहरारू ना पइब' का निर्देशन किया है। प्रतिभा सिंह ने इसके पहले भी कई फिल्मों में अभिनय किया है जिनमें प्रमुख हैं भाई हो त भरत नियन, बहिना तोहरे खातिर। इस फिल्म में अनुराग नायक एवं मीरा नायिका की भूमिका में हैं। इंद्राणी सिंह एवं डाली आदि ने भी इसमें अभिनय किया है।
47.
और कुछ मौत के बाद...
बेवजह की बातें लिखना, मुहब्बत करने जैसा काम है कि हो गई है, अब क्या किया जा सकता है. पोस्ट का एंट्रो लिखना घर बसाने सरीखा मुश्किल काम...
"एक 'चुप' की आत्म कथा"
मेरी हज़ार सखियाँ थी
मैं जब भी रही अपने आपे में
मेरे हज़ार सुख थे.
मुझे अक्सर नहीं पसंद आता था
अपना यूं होना
कि वीराना और बढ़ता ही जाता था.
48.
फिल्म समीक्षा : अर्जुन
योद्धा अर्जुन की झलक
-अजय ब्रह्मात्मज
देश में बन रहे एनीमेशन फिल्मों की एक मूलभूत समस्या है कि उनके टार्गेट दर्शकों के रूप में बच्चों का खयाल रखा जाता है। बाल दर्शकों की वजह से उसे प्रेरक, मर्मस्पर्शी और बाल सुलभ संवेदनाओं तक सीमित रखा जाता है। अभी तक अपने देश में एनीमेशन फिल्में पौराणिक और मिथकीय कथाओं की सीमा से बाहर नहीं निकल पा रही हैं। इन्हीं सीमाओं और उद्देश्य के दबाव में अर्जुन तकनीकी रूप से उत्तम होने के बावजूद प्रभाव में सामान्य फिल्म रह जाती है। अर्नव चौधरी और उनकी टीम अवश्य ही संकेत देती है कि वे तकनीकी रूप से दक्ष हैं। एनीमेशन फिल्म को एक लेवल ऊपर ले आए हैं।49.
सच्चा दोस्त
सच्चा दोस्त मिले मुश्किल से,
कभी व्यर्थ न झगड़ा करना.
मिलजुल कर के साथ खेलना,
कभी न अपना तेरा करना.
धनी, गरीब, धर्म का अंतर,
कभी न तुम दीवार बनाना.
हो गरीब गर मित्र तुम्हारा,
उसे न यह अहसास दिलाना
50.
.... जो आपको न जाने ताके बाप को न जानिए ... :)
इन दिनों मन काफी उद्विग्न है .और उद्विग्नता का कारण भी 'मानवीय' है . कुछ तो ब्लॉग जगत से जुडा है बाकी दीगर दुनिया के मानवी कमियों से ...वैसे तो मैं मूढ़ता की हद तक आशावादी हूँ मगर कभी कभी लगता है यह दुनिया सचमुच एक जालिम दुनिया ही है -यहाँ परले दर्जे की स्वार्थपरता है,आत्मकेंद्रिकता है ,अपने पराये की सोच है ,कृतघ्नता है ,धोखाधड़ी और छल है,अहमन्यता है ,हिंसा है ,दुःख दर्द के सिवा और कुछ नहीं है -गरज यह कि यह दुनिया रहने लायक नहीं है ..हमीं लोगों ने इसे रहने लायक नहीं छोड़ा है ..भले ही हमारा चिर उद्घोष सत्यमेव जयते का है मगर अभी इसी बैनर से चल रहे दूरदर्शन कार्यक्रम ने हमारे अपने समाज के घिनौने चेहरे की परतें उघाड़नी शुरू कर दी हैं -अब तक के केवल तीन इपीसोड़ ने ही बता दिया है कि हमरा समाज दरअसल लुच्चों कमीनों से भरा हुआ है ....गैर पढ़े लिखे नहीं, पढ़े लिखे ज्यादा खूंखार हैं ,संवेदनाओं से रहित हैं ...जयशंकर प्रसाद की ये पंक्तियाँ इन दिनों काफी शिद्दत से याद आ रही हैं -प्रकृति है सुन्दर परम उदार
नर ह्रदय परमिति पूरित स्वार्थ
जहां सुख मिला न उसको तृप्ति
स्वप्न सी आशा मिली सुषुप्ति
51.
राबर्ट ब्लॉय की कविता :पढते पढते , पढ जाइए
52.डायलाग तो डायलाग ही था …कमाल तो होना ही था : कमाल , अजी बेमिसाल कहिए मोहतरमा
53.और तब ईश्वर का क्या हुआ : जाकर खुदे देखा जाए हुजूर
54.चलते चलते आखिरी सलाम हो जाए : पहले जरा इस पोस्ट को पढने का काम हो जाए
55. क्या भारत में निर्वाचन क्षेत्रों का आरक्षण न्यायसंगत है : अजी इसीलिए तो लोकतंत्र का यहां पर दुर्गत है
56.एक नदी थी : हां कभी थी
57. वकील साहब काश होते आज : खोल देते फ़िर सारे राज़
58.तुम मुझे जितने मयस्सर हो पूरे तो नहीं हो : लज़ीज़ हो मगर , छोले भटूरे तो नहीं हो
59.तुम्हारी आवाजों के कुछ टुकडे : कित्ते पैने हैं जी
60.रामचरण निर्मलकार को जानते हैं आप : नहीं , तो यहां जाकर जानिए
61.चित्रकूट के रामघाट : देखन वाले ठाटबाट
62.स्टीकर वाला नूडल्स : बच्चों की तो पसंद यही बस
63. गर्मियों की छुट्टियां : हाय सबके मन को भाएं
64. यम तुम ऐसे तो नहीं थे : अबे मानव तुमही कौन ऐसे थे
65.सार्वजनिक स्नानागार : नहा धो के फ़ौरन हो जाओ तैयार
66.लोकपाल नहीं ये कुछ और बना रहे हैं.
67.
दूबे जी का कार्टून
68.
तख्ते का क्या भरोसा
69.
आखिर आज का युवा कैरियर के तौर पर राजनीति को क्यूँ नहीं देखता...
आज कल बेरोजगारी अपने चरम पर है, हर किसी के हाथों में डिग्री है, इंजीनियरिंग से कम में तो कोई बात ही नहीं करता... लेकिन नौकरी ... उसके लिए तो गज़ब की मारामारी चल रही है... ऐसी कोई डिग्री, ऐसा कोई कोर्स नहीं जहाँ नौकरी की गारंटी मिलती हो.... ऐसे में सब अपने कैरियर के चुनाव में पेशोपेश में रहते हैं... स्कूल के समय से ही विद्यार्थियों पर दवाब बन जाता है ताकि वो अपना कैरियर चुनकर उसपर अपना 100 परसेंट दे सकें... तरह तरह के इन अवसरों को तलाश करते युवा गलती से भी कभी राजनीति में आने का नहीं सोचते... आखिर ऐसा क्या है जो उन्हें इस तरफ आने से रोक देता है, जबकि राजनीति के बारे में बातें सभी करते हैं... हर दूसरा आदमी कभी किसी नेता को, अफसर को, सिस्टम को गाली देता हुआ मिल जाएगा... राजनीति को सभी गन्दा कहते हैं लेकिन कोई भी उसमे उतर कर उसको साफ़ नहीं करना चाहता... सभी कहते हैं कि फलाना नेता क्रिमिनल है उसकी छवि साफ़ सुथरी नहीं है... अब जब देश के पढ़े लिखे और जागरूक लोग उधर का रुख ही नहीं करेंगे तो ऐसे लोग आपके प्रतिनिधि बनकर देश चलाएंगे न
70.
ब्राह्मण कौन?
ज्ञानी जन तौ नर कुंजर में, सम भाव धरत सब प्रानिन में।जब से बोलना सीखा, दिल की बात कहता आया हूँ। मेरे दिल की बात क्या है, कुछ मौलिक नहीं, वही सब जो अपने आसपास सुना, पढा, समझा और सीखा है। सब कुछ सही होने का दावा नहीं कर सकता हाँ इतना प्रयास अवश्य रहता है कि सत्य अपनाया जा सके और उसे प्रिय और श्रेयस्कर मान सकूँ।
सम दृष्टि सों देखत सबहिं, गौ श्वानन में चंडालन में ॥ [डॉ. मृदुल कीर्ति - गीता पद्यानुवाद]
उपनिषदों में जाबालि ऋषि सत्यकाम की कथा है जो जाबाला के पुत्र हैं। जब सत्यकाम के गुरु गौतम ने नये शिष्य बनाने से पहले साक्षात्कार में उनके पिता का गोत्र पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि उनकी माँ जाबाला कहती हैं कि उन्होंने बहुत से ऋषियों की सेवा की है, उन्हें ठीक से पता नहीं कि सत्यकाम किसके पुत्र हैं। ज्ञानवृत्ति के पालक ऋषि सत्य को सर्वोपरि रखते आये हैं। सत्यकाम की बात सुनते ही गौतम ऋषि उन्हें सत्यव्रती ब्राह्मण स्वीकार करके जाबालि गोत्र का नाम देकर पुकारते हैं।
खून से ही वंश की परम्परा नहीं चलती, जो विश्वास वहन करता है, वही होता है असली वंशधर ~ सत्यकाम फ़िल्म से एक सम्वादबात की शुरुआत हुई एक मित्र के फ़ेसबुक स्टेटस से जिसका शीर्षक था "बन्दउँ प्रथम महीसुर चरना :)" संलग्न लिंक था टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक खबर से जिसमें चर्चा थी उस ट्रेंड की जहाँ निसंतान भारतीय दम्पत्तियों की पहली पसन्द ब्राह्मण संतति प्राप्त करना पाई गयी थी। ब्राह्मण शब्द पर ज़ोर था। काफ़ी दिन बाद फिर से ध्यान गया उस शब्द पर जिसकी चर्चा अक्सर होती है पर उसका अर्थ शायद अलग-अलग लोगों के लिये अलग ही रहा है। एक बुज़ुर्ग भारतीय मित्र हैं जो जाति पूछे जाने पर अपने को "जन्मना ब्राह्मण" कहते थे क्योंकि तथाकथित ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने अपने को कभी ब्राह्मण नहीं माना। एक अन्य जन्मना ब्राह्मण मित्र हैं जो अक्सर जन्मना ब्राह्मणों को कोसते दिखाई देते हैं। विद्वान हैं, कई बातें सही भी हैं लेकिन कई बार यह कोसना सनक की हद तक विघ्नकारी हो जाता है।
71.
खुद को पाना आसान नहीं !
- रश्मि प्रभा...खुद की तलाश
खुद के लिए होती है
क्योंकि प्रश्न खुद में होते हैं
ये बात और है
कि इस तलाश यात्रा में
कई चेहरे खुद को पा लेते हैं
................
अबोध आकृति
जब माँ की बाहों के घेरे में होती है
तब वही उसका संसार होता है
वही प्राप्य
और वही संतोष .... !
पर जब अक्षरों की शुरुआत होती है
साथ में कोई और होता है
प्रथम द्वितीय ..... का दृश्य होता है
तो ज्ञान में हम कहाँ हैं
इसकी तलाश होती है !
अजीब बात है -
72.
तुमसे आखिरी विनती - डॉ नूतन गैरोला
देखो न …..अभी मुझमे साँसों का आना जाना चल रहा है……जिंदगी के जैसे अभी कुछ लम्हें बचे हुवे है ….. आस का पंछी अभी तक पिंजरे में ठहरा है …. सुबह पर अब सांझ का पहरा है …. और सांझ की इस बेला पर याद आने लगीं है ..वो धुंधली परछाइयाँ ....जब हम संग संग रोये थे…. और इक दूजे के पौंछ आंसू खिलखिला कर हँस दिए थे .. साथ था न तुम्हारा मेरा, तो मलाल किस गम का … लेकिन विधाता को क्या मंजूर था ..छोड़ दी थी डोर उसने मेरी जिंदगी की पतंग की .. तुमसे दूर किसी और आसमां पर जा कर फडफडाती रही जिंदगी .. हवाओं में लहराती रही … बहती रही उधर जिधर बहाती रही …क्षितिज पर चटख रंगों वाली सुनहली अकेली पतंग .. कई हाथों को लुभाती रही … इतर हाथों से फिसलती रही ....डगमगाती रही, पर बढती रही .... तब तक जब तक वह हवाओं की प्रचंडता से टूट कर छिन्न भिन्न न हो जाये या कि बारिश में गल कर टपक ना जाये .. देखो न सिन्दूरी सांझ भी ढलने को है और रौशनी भी गुम होने को है बस तुमसे आखिरी बात …73.
श्रवण कुमार आज भी हैं !
मैं जीवन को इतने करीब अकेले ही तो नहीं जीती हूँ हर इंसान के आस-पास ऐसा गुजरता है। कुछ पढ़ने वालों को लगा कि मैं सिर्फ नकारात्मक छवि ही प्रस्तुत करती हूँ। ऐसा नहीं है मैं खुद जिस परिवार हूँ वहां मैंने जो देखा है तो ऐसी घटनाएँ कहीं हिला देती हैं।मैंने अपने जीवन में ऐसा देखा है तो श्रवण कुमार देखने केलिए कहीं और नहीं जाना पड़ता है। एक ऐसा इंसान भी मैंने देखा है जिसने अपने जीवन के 39 तक सिर्फ अपनी माँ की सेवा में गुजारा हैं। न अपना करियर देखा और न भविष्य . फिर भी कभी कोई कमी नहीं हुई . यह बात और हैं कि अगर उन्होंने अपनी माता पिता को नजरअंदाज किया होता
74.
पिंजरे का पंछी
ये नीला आसमान ,हंसी मौसम सुबह-सुबह का चहकना,
बस पिंजरा ही नज़र आता है ,सपना खुल जाने के बाद|
कितने ही सितम ,दुःख ,कितने कष्ट सहे हैं जिन्दगी में ,
कितना भयानक मंजर होता है,तूफान गुजर जाने के बाद |
मैं भी नीलाम्बर में उड़ता, अपने भाई बहनों से मिलता,
बहुत ही दुःख होता है ,अपनों से बिछुड़ जाने के बाद |
कहाँ हर किसी को मिलती है ,मनचाही जिन्दगी ,
सब कुछ भूल जाते हैं लोग,वक्त गुजर जाने के बाद |
अच्छा होता पिंजरे में ही रखता मुझको सारी जिन्दगी,
जालिम ने पर काटे हैं ,उड़ना सिखाने के बाद |
75.
शिखंडी प्रधानमंत्री बन रहे हैं...!
कल एक सेकुलर ने मुझसे पूछा कि .... भाई आप तो हमेशा धर्म के बारे में लिखते हो...... तो आपके पास क्या सबूत है कि .... अभी ""कलयुग"" चल रहा है.उसकी इस बात पर मुझे हंसी आ गयी ... और मैंने उसे बोला.....
अरे चड़ीये .......
1. आज हिंदुत्व का विरोध .. बुद्धिजीविता की पहली निशानी बन चूका है...!
2. भगवान राम.... जो दुनिया का फैसला करते हैं..... उनका फैसला कोर्ट कर रहा है....!
3. राम भक्तों को जिन्दा जलाया जा रहा है......!
76.
थमा हुआ इंकलाब
विचित्र दृश्य हैं। रुपया गिर रहा है, लगातार गिर रहा है। कब तक गिरेगा? किसी को पता नहीं है। प्रणब दा कहते हैं कि उधर यूरोप में किसी देश में जबर्दस्त आर्थिक संकट चल रहा है, उसे देख कर रुपया गिर रहा है। रुपया रुपया न हुआ कोई लड़की हो गई जो किसी लड़के को आते देख कर गिर जाए और इंतजार करे कि वह आएगा और उसे उठा लेगा।
सोना चढ़ रहा था कि रुपए की गिरावट को देख अचानक गिरा और लगातार तीन दिनों तक गिरा। लोगों ने सोचा डालर बेचो, रुपया खूब मिलेगा। मिले रुपए से सोना खरीद लो। लोग सोना खरीदने बाजार तक पहुँच भी न सके थे कि सोना एकदम चढ़ा और वापस अटारी पर जा पहुँचा।
77.
यमन की सी मिठास गंगा की शान्ति
उसे रंगों से बहुत प्यार था. कुदरत के हर रंग को वो अपने ऊपर पहनती थी. उसका बासंती आंचल लहराता तो बसंत आ जाता. चारों ओर पीले फूलों की बहार छा जाती. वो हरे रंग की ओढनी ओढती तो सब कहते सावन आ गया है. उसका मन भीगता जब भी तो बादल आकर पूरी धरती को बूंदों के आंचल में समेट लेते. सावन लहराने लगता. उसकी उदासियां काली बदलियों में और उसका अवसाद भीषण तूफान में जज्ब हो जाता. वो लाल रंग पहनती कभी-कभी. वो सुर्ख शरद के दिन हुआ करते थे. धूप अच्छी लगने लगती और नजर की आखिरी हद तक सुर्ख फूलों की कतार सज जाती. यहां तक कि उसके गालों पर भी गुलाब उतर आते. उसकी नाराजगी के दिनों को गर्मियों का नाम दिया लोगों ने. हालांकि वो जानती थी कि ये नाराजगी उसकी खुद से है और इससे किसी को नुकसान नहीं होना चाहिए. ऐसे में उसकी आंखें छलक पडतीं और तेज गर्मियों में बारिश की कुछ बरस पडतीं. वो मुस्कुराती और दुनिया को तेज गर्मियों से राहत मिलती. असल में उसे जिंदगी से प्यार था. जिंदगी के हर रंग से, हर खुशबू से.
78.
विन्डो 8 इंस्टाल करे
79.
उजबक वाणी
उजबक वाणी....जन सेवा के नाम पर ,वोट मांगने आय
चुनते हि सरकार में ,लुट लुट सब खाय
मुस्काते मनमोहने, सुरसा डालर आज
मतदाता घायल हुवा,फिर भी करते नाज
त्राहि त्राहि है देश में,कौन यहाँ बदनाम
एक हि थैली में घुसे ,चट्टे बट्टे नाम
80.
अनमोल बनाया जागरण जंक्शन ने -“Feedback”
राम कृष्ण खुराना
ज़ागरण जंक्शन की ओर से मंच पर बिताए पलों के खट्टे-मीठे अनुभव सांझा करने के बारे में मेल मिली ! निःसंदेह यह एक प्रशंसनीय कार्य है ! इसी बहाने पुराने खिलाडी (लिखाडी) भी पुनः मंच से जुड जायेंगे ! क्योंकि वैसे तो आजकल लोगों के पास किसी से बात करने का भी समय नहीं है ! दुनिया मतलब की है ! किसी ने ठीक ही कहा है -
तुम्हें गैरों से कब फुरसत, हम अपने गम से कब खाली !
चलो बस हो चुका मिलना, न हम खाली न तुम खाली !!
यह मंच कई नए-नए प्रयोग करता रहा है और उसके बहुत अच्छे परिणाम भी निकले हैं ! दैनिक जागरण समाचार पत्र में भी नित नए प्रयोग हो रहे हैं जिससे एकरसता टूटती है और लेखकों व पाठकों को नई-नई चीज़ें पढने को मिलती हैं !
बात 2010 की है ! दैनिक जागरण में विज्ञापन पढा जिसमें जागरण जंकशन का सदस्य बनने तथा एक लेखन प्रतियोगिता (ब्लागस्टार) के आयोजन के बारे में लिखा था ! परंतु मैने उस समय इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया ! दो-तीन दिन बाद फिर वही विज्ञापन देखा ! तीसरी बार विज्ञापन देखने पर मेरा लेखक मन अपने आप को रोक नहीं सका और नेट पर जाकर जागरण जंक्शन की सदस्यता ले ली !
चलिए अब आपको मिलवाते हैं , अपने कुछ ब्लॉगर बंधु/मित्रों से , उनकी छवि और उनके रोचक परिचय के साथ …………………………….
81.
वन्दना अवस्थी दुबे
कुछ खास नहीं....वक्त के साथ चलने की कोशिश कर रही हूं.........
82.
ZEAL
An iron lady !
83.
वाणी गीत
एक गृहिणी के दिल और दिमाग की रस्साकशी कलम से कागज पर उतरी
84.
नीरज गोस्वामी
अपनी जिन्दगी से संतुष्ट,संवेदनशील किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति.जीवन के अधिकांश वर्ष जयपुर में गुजारने के बाद फिलहाल भूषण स्टील मुंबई में कार्यरत,कल का पता नहीं।लेखन स्वान्त सुखाय के लिए.
85.
M VERMA
वाराणसी में पला-बढ़ा, दिल्ली में अध्यापन कार्य में संलग्न हूँ। जब कभी मैं दिल के गहराई में कुछ महसूस करता हूँ तो उसे कविता के रूप में पिरो देता हूँ। अभिनय भी मेरा शौक है।
86.
Anupama Tripathi
I enjoy writing and sharing my thoughts .....एम.ए(अर्थशास्त्र )में किया .कालेज में पढाया ,आकाशवाणी में गाया,फिर सब सहर्ष छोड़ गृहस्थ जीवन में लीन हो गयी |अभी भी लीन हूँ |किन्तु फिर भी कुछ था भीतर जो उदगार पाना चाहता था ..!जब से लिखने लगी हूँ ,पुनः गाने लगी हूँ ,मन प्रसन्न रहता है ..!!अपनी सभ्यता और संस्कृती से जुड़े रहना मुझे बेहद पसंद है |इसी प्रयास में सतत बनी रहती हूँ |अथक प्रयास से जो मिले उसे प्रभु प्रसाद समझ ग्रहण करती हूँ |इस छोटे से जीवन में कुछ छाप छोड़ सकूँ यही अभिलाषा है ...!!
87.
Vibha Rani Shrivastava
न तो मैं एक कवियत्री हूँ और न लेखिका , तो फिर आप पूछेगें की , मैं यहाँ क्या कर रही हूँ.... ? जिस तरह , एक वक्ता के लिए श्रोता की जरूरत होती है , उसी तरह आप लिखने वालों के लिए एक पढने वाली मैं रहूगीं.... :) साथ ही , इस नए तकनीक ने पुरे विश्व को एक पन्ने पर एकत्रित कर दिया है, जिसमे मैं एक “ tipical Indian house-wife “ अपना वजूद तलाश रही हूँ |किसी से प्रेरणा पा , सागर में एक बूंद बनने की कोशिश जारी है.... !!
88.
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
ऐसा कुछ भी ख़ास है नहीं बताने को, अपने बारे में ! बस, यों समझ लीजिये कि गुमनामी के अंधेरो में ही आधी से अधिक उम्र गुजार दी !हाँ, अपनी बात कुछ भगत सिंह जी के अंदाज में इस तरह कहूंगा ; इन बिगड़े दिमागों में, ख्वाबों के कुछ लच्छे हैं, हमें पागल ही रहने दो, हम पागल ही अच्छे हैं। साभार, गोदियाल My humble request is to kindly ignore the typographical errors. My fondest wish is to inspire someone else to write something even better than I have done. Look forward to receiving your creative suggestions. regards, Godiyal
89.
डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Dr. Zakir Ali 'Rajnish')
90.
काजल कुमार Kajal Kumar
पिछले कई सालों से कार्टून बना रहा हूँ. 'लोटपोट' हिन्दी बाल साप्ताहिक के लिए ढाई दशक तक 'चिंप्पू' और 'मिन्नी' भी बनाये... एक अनुरोध... कार्टून आख़िर कार्टून है, आप भी किसी कार्टून को, गंभीरता से न लें (संपादकों की ही तरह). kajalkumar@comic.com
91.
सतीश सक्सेना
जब से होश संभाला, दुनिया में अपने आपको अकेला पाया, शायद इसीलिये दुनिया के लिए अधिक संवेदनशील हूँ ! कोई भी व्यक्ति अपने आपको अकेला महसूस न करे इस ध्येय की पूर्ति के लिए कुछ भी ,करने के लिए तैयार रहता हूँ ! नियमित रक्तदाता हूँ, मरने के बाद किसी के काम आ जाऊं अतः बरसों पहले अपोलो हॉस्पिटल में देहदान कर चुका हूँ ! विद्रोही स्वभाव,अन्याय से लड़ने की इच्छा, लोगों की मदद करने में सुख मिलता है ! निरीहता, किसी से कुछ मांगना, झूठ बोलना और डर कर किसी के आगे सिर झुकाना बिलकुल पसंद नहीं ! ईश्वर से प्रार्थना है कि अन्तिम समय तक इतनी शक्ति एवं सामर्थ्य अवश्य बनाये रखे कि जरूरतमंदो के काम आता रहूँ , भूल से भी किसी का दिल न दुखाऊँ और अंतिम समय किसी की आँख में एक आंसू देख, मुस्कराते हुए प्राण त्याग कर सकूं !
92.
संतोष त्रिवेदी
जन्मस्थली भियामऊ, (डुबकी,फ़तेहपुर,ननिहाल)तथा पैतृक स्थान दूलापुर,रायबरेली.शुरूआती पढ़ाई-लिखाई पूरेपान्डेय,रायबरेली में करने के बाद फ़तेहपुर से आई टी आई की ट्रेनिंग तथा बी.एड.(छिवलहा से)किया । कुछ दिन दल्ली-राजहरा(छत्तीसगढ़) में भी रहा.चम्पतपुर(मनाखेड़ा),रायबरेली में अध्यापन कार्य करने के बाद सन् 1994से दिल्ली में हूँ । 'जनसत्ता' का तभी से नियमित पाठक हूँ और काफ़ी दिनों तक 'चौपाल' भी जमाई । हर संवेदनशील मुद्दे पर भड़ास निकालने की आदत है।
93.
प्रवीण पाण्डेय
संग मेरे क्षितिज तक मेरा परिश्रम
94.
डॉ टी एस दराल
मेडिकल डॉक्टर, न्युक्लीअर मेडीसिन फिजिसियन-- ओ आर एस पर शोध में गोल्ड मैडल-- एपीडेमिक ड्रोप्सी पर डायग्नोस्टिक क्राइटेरिया -- सरकार से स्टेट अवार्ड प्राप्त-- दिल्ली आज तक पर --दिल्ली हंसोड़ दंगल चैम्पियन -- नव कवियों की कुश्ती में प्रथम पुरूस्कार --- अब ब्लॉग के जरिये जन चेतना जाग्रत करने की चेष्टा -- अपना तो उसूल है, हंसते रहो, हंसाते रहो. --- जो लोग हंसते हैं, वो अपना तनाव हटाते हैं. --- जो लोग हंसाते हैं, वो दूसरों के तनाव भगाते हैं. --- बस इसी चेष्टा में लीनं
95.
दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
Lawyer since 1978. Interest in writing, litrary-cultural-social activities. 1978 से वकील। साहित्य, कानून, समाज, पठन,सामाजिक संगठन लेखन,साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधियों में रुचि।
96.
shikha varshney
अपने बारे में कुछ कहना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत ही मुश्किल और मेरे जैसों के लिए तो नामुमकिन फिर भी अब यहाँ कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा न [:P].तो सुनिए. by qualification एक journalist हूँ moscow state university से गोल्ड मैडल के साथ T V Journalism में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चैनल में न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया, हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेज़ी,और रूसी भाषा पर भी समान अधिकार है परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.खैर कुछ समय पत्रकारिता की और उसके बाद गृहस्थ जीवन में ऐसे रमे की सारी डिग्री और पत्रकारिता उसमें डुबा डालीं ,वो कहते हैं न की जो करो शिद्दत से करो [:D].पर लेखन के कीड़े इतनी जल्दी शांत थोड़े ही न होते हैं तो गाहे बगाहे काटते रहे .और हम उन्हें एक डायरी में बंद करते रहे.फिर पहचान हुई इन्टरनेट से. यहाँ कुछ गुणी जनों ने उकसाया तो हमारे सुप्त पड़े कीड़े फिर कुलबुलाने लगे और भगवान की दया से सराहे भी जाने लगे. और जी फिर हमने शुरू कर दी स्वतंत्र पत्रकारिता..तो अब फुर्सत की घड़ियों में लिखा हुआ कुछ,हिंदी पत्र- पत्रिकाओं में छप जाता है और इस ब्लॉग के जरिये आप सब के आशीर्वचन मिल जाते हैं.और इस तरह हमारे अंदर की पत्रकार आत्मा तृप्त हो जाती है
97.
संजय @ मो सम कौन ?
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता........
98.
निर्मला कपिला
अपने लिये कहने को कुछ नहीं मेरे पास । पंजाब मे एक छोटे से खूबसूरत शहर नंगल मे होश सम्भाला तब से यहीं हूँ। बी.बी.एम.बी अस्पताल से चीफ फार्मासिस्ट रिटायर हूँ । अब लेखन को समर्पित हूँ। मेरी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है -1-सुबह से पहले [कविता संग्रह] 2 वीरबहुटी [कहानी संग्रह] 3-प्रेम सेतु [कहानी संग्रह] आज कल अपनी रूह के शहर [ इस ब्लाग ] पर अधिक रहती हूँ । आई थी एक छोटी सी मुस्कान की तलाश मे मगर मिल गया खुशियों का समंदर। कविता, कहानी, गज़ल,मेरी मन पसंद विधायें हैं। पुस्तकें पढना और ब्लाग पर लिखना मेरा शौक है।
99.
Khushdeep Sehgal
breaking pens-computers since 1994
बंदा 18 साल से कलम-कंप्यूटर तोड़ रहा है
100.
ब्लॉ.ललित शर्मा
परिचय क्या दूँ मैं तो अपना, नेह भरी जल की बदरी हूँ। किसी पथिक की प्यास बुझाने, कुँए पर बंधी हुई गगरी हूँ। मीत बनाने जग मे आया, मानवता का सजग प्रहरी हूँ। हर द्वार खुला जिसके घर का, सबका स्वागत करती नगरी हूँ।
101.
anju(anu) choudhary
दुनिया की इस भीड़ मे मै अकेली सी खुद को तलाशती सी .. पर नहीं मिला कोई भी ऐसा...... जो कहें मुझ से आ कर कि क्यूँ है तू यूँ तन्हा सी ........ रिश्तो की इस भीड़ मे.. मै...मै को तलाशती सी........... अनु..(अंजु चौधरी)
चलिए तो अब अपने ई रिपोर्टर साहब को दीजीए आज्ञा , हमें आज आपको मजेदार टिप्पणियां भी तो पढवानी हैं , आते हैं शाम /रात तक टिप्पी का टिप्पा: टैण टैणेन पर लेकर
49 टिप्पणियाँ:
वाह पढ़ रहे हैं... सुपर एक्सप्रेस
good work nice links
जय हो ………क्या खूब लिंक्स जोडे हैं बहुत मेहनत कर रहे हैं आजकल्………बधाई
एक से बढ़कर एक , एक बार में १०१ ब्लॉग लिनक्स उपस्थित करने का ' तुस्सी ग्रेट हो ' का अनमोल पुरस्कार जाता है मेरे अनमोल भाई अजय झा को - कोई शक ?
क्यूँ न जाए - ७१ नम्बर मुझे भी मिला है . ट्रेन में ३ महीने से टिकट नहीं मिलता , और यहाँ फ्री की सैर बोनस के साथ :)
लिंक शतक,
कैसा लगा यह नाम?
"लिंक शतक ".....बहुत ही बढिया है सर
सच में सुपर फास्ट हैं जिसमे पूरी १०१ बोगियां !
एक हिस्सा होने की हमको बधाई और आपकी मेहनत के लिए आपको आभार !
वाह !
एक सौएक ... लाजवाब!
इस मेहनत को सलाम!!
आदमी की रेलगाड़ी में
उल्लू का डिब्बा लगाया
57 वीं बोगी देकर
उसका मान बढा़या ।
आभार !
अजय जी, मेरे चिट्ठे की काँच घर की तस्वीरों को वृहद दर्शक गुट तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद :)
धन्यवाद अजय!
जबरदस्त.... सुपरफ़ास्ट रे बाबा...
गज्जब रेलगाडी भगाए अजय भईया...
अभी सारे डब्बों में टहल के आते हैं....
हे भगवान इतना माल कैसे सटा लेते हो एक ही पोस्ट में :)
shukriya ajay bhai :)
सुपर फ़ास्ट महाबुलेटिन एक्सप्रेस . क्या बात है जी......बहुत खूब !
काजल कुमार जी ने मेरे दिल की बात कह दी :)
आपकी मेहनत पे हैरान होने के सिवा कोई चारा नहीं ! लिंक पढ़ते पढ़ते हांफने लगा हूं मगर लिंक खत्म नहीं हुईं अभी तक ! अच्छे लिंक्स दिये हैं , बहुत बहुत आभार !
गज़ब मेहनत अजय जी|
Ajay ji kamal kr diya aapne etne sare links.
bahut hi mehnat ka kam hai..
Bahut-bahut dhanyawad....
सभी डिब्बे एक से एक बढ़कर हैं. बहुत बहुत आभार.
अरे महाराज,एकदम बर्निंग ट्रेन जइसा भगएले जा रहे हैं। तनिक दम लेने दीजिए।
अरे महाराज,एकदम बर्निंग ट्रेन जइसा भगएले जा रहे हैं। तनिक दम लेने दीजिए।
हुजूम है इधर भी-उधर भी तन्हाईयों का...
आदमी न जाने कैसे मुस्कुरा लेता है....!
इस खुबसूरत ट्रेन में ५४ नंबर की बोगी हमारे नाम करने के लिए अजय भाई साहब आपका शुक्रिया...
मान गए अजय भाई आपको ... कहाँ कहाँ से जुटाये है सब लिंक्स ... जय हो ... साथ साथ कुछ खास ब्लॉगर मित्रो का परिचय भी दिखा रहा है लिंक्स के साथ साथ ... बेहद उम्दा पोस्ट ... जय हो ! अगली महाबुलेटिन और लिंक शतक का इंतज़ार रहेगा !
:)
सर्वप्रथम श्री रविकर जी को पहेली में जीत हासिल करने के लिए हार्दिक बधाई। आप अपनी इस बुलेटिन एक्सप्रेस के सफल चालक हैं। संक्षेप में आपने कई हस्तियों परिचय कराया इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं। भारतीय काव्यशास्त्र (मनोज ब्लॉग से) को 10वीं बोगी रिजर्व करने के आपको हार्दिक धन्यवाद।
शुक्रिया।
इस सुपर फास्ट ट्रेन में मेरा भी एक डिब्बा है जान कर अति हर्ष हुवा .. आपका शुक्रिया ... हमें भी इस रेल में शामिल किया ..
thanks ajay bhai
Apun ka Dibba hai
३७=३+७=१०=१+०=१
१ मेरा लकी नंबर...
Astrologer हैं, इसलिए उसी दृष्टी से सोचते हैं...
आपका बहुत-२ धन्यवाद... :))
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