रोज़ रोज़ नई पोस्टों से सज़ी धजी बुलेटिन तो हम आपके लिए लेकर आते ही हैं , लेकिन तय ये हुआ कि अबसे हर हफ़्ते आपको ले चलेंगे शताब्दी बुलेट एक्सप्रेस पर बिठा कर एक सौ एक पोस्टों की तरह । कभी पोस्ट झलकियों के माध्यम से , बोले तो ट्रेलर दिखाएंगे , कभी दो लाइनों की पटरिया बिठाएंगे और कभी एक लाइना हाज़िर कर देंगे । यानि कुल मिला कर एक ही पोस्ट से आपको हम पूरी ब्लॉग नगरिया घुमा कर लाएंगे । मेरे पास उपलब्ध लगभग १६ संकलकों से चुन कर मैं इन पोस्टों को आप तक पहुंचाऊंगा , बकिया आप खुदे टहल टहल कर बताइएगा कि कैसी लगीं पोस्टें , तो बस टिकट कटा के सवार हो जाइए इस बुलेट एक्सप्रेस पे
पहले झलकिया दिखाते हैं आपको
1.कैरम से मिलती जीवन की सीख
अभी पिछले कुछ दिनों से अवकाश पर हूँ और पूर्णतया: अपने परिवार के साथ समय बिता रहा हूँ। आते समय कुछ किताबें भी लाया था, परंतु लगता है कि किताबें बिना पढ़े ही चली जायेंगी और हमारा पढ़ने का यह टार्गेट अधूरा ही रह जायेगा।इसी बीच बेटे को कैरम खेलना बहुत पसंद आने लगा है, और हमने भी बचपन के बाद अब कैरम को हाथ लगाया है। थोड़े से ही दिनों में हमरे बेटेलाल तो कैरम में अपने से आगे निकल गये और अपन अभी भी हाथ जमाने में लगे हैं।
2.
ये सम्मानों की दुनिया...खुशदीप
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है,
ये ब्लागों, ये आयोजनों, ये सम्मानों की दुनिया...
ये भाईचारे की दुश्मन गुटबाज़ी की दुनिया,
ये नाम के भूखे रिवाज़ों की दुनिया,
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है...
3.
ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे
इस शहर-ए-खराबी में गम-ए-इश्क के मारे
ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे
ये हंसता हुआ लिखना ये पुरनूर सितारे
ताबिंदा-ओ-पाइन्दा हैं ज़र्रों के सहारे
4.
दूर से अपना घर देखना चाहिए..
पिता के हाथ में फिर कोई कविता है (मुझसे पूछते हैं सुनोगे? बाद में कहकर मैं भागा जाता हूं), मां की कनपटी पर कोई नस है बजता रहता है, और दिल में उदासी का वही पुराना गाना, पेद्रिनो, बुच्चन, तुम कहां हो, ठीक तो हो न बच्चे? मां को क्या मालूम कि पेद्रिनो मज़े में है, पलंग के नीचे के अंधेरे में पुराने, चिथड़े तौलिये की गेंद पर सर दिये लेटे, एक घुटना उठाये, उसपे दूसरे पैर को दुरुस्त सजाये, मुझसे दूर देश के सताये बच्चे की यादों को सुनकर चंचल-चकित-उत्फुल्लित हो रहा है. मैं दबी आवाज़ में पिता की कागजों से चुराया तुलसी राम के मुर्दहिया के हिस्से पढ़ता हूं-
5.
Music - Musica - संगीत
6.
नज़रे इनायत नही...
पार्श्वभूमी बनी है , घरमे पड़े चंद रेशम के टुकड़ों से..किसी का लहंगा,तो किसी का कुर्ता..यहाँ बने है जीवन साथी..हाथ से काता गया सूत..चंद, धागे, कुछ डोरियाँ और कढ़ाई..इसे देख एक रचना मनमे लहराई..
एक ही मौसम है,बरसों यहाँ पे,
आखरी बार झडे,पत्ते इस पेड़ के,
बसंत आया नही उस पे,पलट के,
हिल हिल के करतीं हैं, डालें इशारे...
एक ही मौसम है,बरसों यहाँ पे..
7.
''मेरे पास स्पर्म है....''
हिंदी सिनेमा की वीर्य-गाथा...'विकी डोनर'
1959 में जेमिनी पिक्चर्स के बैनर तले बनी फिल्म 'पैग़ाम' याद आ रही है। दिलीप कुमार कॉलेज की पढ़ाई में अव्वल होकर घर लौटते हैं और बड़े भाई को सहजता से बताते हैं कि वो पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए रिक्शा चलाते हैं। एक पढा-लिखा नौजवान रिक्शा चलाता है, ये सुनकर बड़े भाई (राजकुमार) को जितना ताज्जुब होता है, ठीक वैसा ही ताज्जुब फिल्म विकी डोनर में विकी की बीवी आशिमा रॉय के चेहरे पर देखने को मिला। ये चेहरा उस मॉडर्न कहलाने वाली पीढ़ी का चेहरा कहा जा सकता है, जो आधुनिकता को अश्लीलता की हद तक पचाने को तैयार है, मगर ये नहीं कि इंसान का वीर्य यानी स्पर्म भी बाज़ार का हिस्सा बन सकता है।
8.
सुनो शाहरुख खान
एम जे अकबर
पैसा अनोखी कामोत्तेजना पैदा करता है. यह जिद को मजबूत और दिमाग को कोमल बना देता है. जबकि, हकीकत यह है कि इसका उलटा अधिक फायदेमंद है. इस पैसे में प्रसिद्धि को जोड़ देने से जो कॉकटेल बनता है, वह इतना मादक हो जाता है कि यह क्षणभर में चेहरे पर दिखने लगता है.पहचान हर सेलिब्रिटी की चाहत होती है और यह व्यक्तिपूजक प्रशंसकों द्वारा आसानी से मुहैया करा दी जाती है. ऐसे में चिड़चिड़ापन बस कदम भर की दूरी पर होता है, क्योंकि सेलिब्रिटी किसी किस्म के अपराध को स्वीकार करना अपने स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह समझते हैं. हालांकि, सभी सुपरस्टार इस सिंड्रोम से ग्रस्त नहीं होते, लेकिन बहुत कम ही ऐसे होते हैं जो कभी-कभार पड़ने वाले सनक के इस दौरे से बच निकलें.
मैं शाहरुख खान से दो बार मिल चुका हूं. एक मुलाकात हाल ही में हुई और संभवत: तीसरी बार चलते-चलते. यह नजदीकी का कोई सबूत नहीं है. परिचित होने की बात तो दूर है. लेकिन उनके बारे में जो थोड़ा मैं जानता हूं, उसे पहली मुलाकात ने पुख्ता कर दिया था. वे बेहद हंसमुख और प्रतिभावान व्यक्ति हैं. उनका सबसे बड़ा गुण एक बेहतरीन सेंस ऑफ ह्यूमर है जिसे वे अपनी मारक टिप्पणियों से और धारदार बना देते हैं.
9.
ताला लगाने के पहले खड़े होकर सोचना...कुछ देर. फिर जाना.
यूँ तो ख्वाहिशें अक्सर अमूर्त होती हैं...उनका ठीक ठीक आकार नहीं नहीं होता...अक्सर धुंध में ही कुछ तलाशती रहती हूँ कि मुझे चाहिए क्या...मगर एक ख्वाहिश है जिसकी सीमाएं निर्धारित हैं...जिसका होना अपनेआप में सम्पूर्ण है...तुम्हें किसी दिन वाकई 'तुम' कह कर बुलाना. ये ख्वाहिश कुछ वैसी ही है जैसे डूबते सूरज की रौशनी को कुछ देर मुट्ठी में भर लेने की ख्वाहिश.शाम के इस गहराते अन्धकार में चाहती हूँ कभी इतना सा हक हो बस कि आपको 'तुम' कह सकूं...कि ये जो मीलों की दूरी है, शायद इस छोटे से शब्द में कम हो जाए. आज आपकी एक नयी तस्वीर देखी...आपकी आँखें इतनी करीब लगीं जैसे कई सारे सवाल पूछ गयी हों...शायद आपको इतना सोचती रहती हूँ कि लगता है आपका कोई थ्री डी प्रोजेक्शन मेरे साथ ही रहता है हमेशा. इसी घर में चलता, फिरता, कॉफी की चुस्कियां लेता...कई बार तो लगता भी है कि मेरे कप में से किसी ने थोड़ी सी कॉफी पी ली हो...अचानक देखती हूँ कि कप में लेवल थोड़ा नीचे उतर गया है...सच बताओ, आप यहीं कहीं रहने लगे हो क्या?
10.
मनोविज्ञान-श्रृंखला समाप्ति और डाउनलोडेबल पीडीएफ़ सामग्री
हे मानवश्रेष्ठों,मनोविज्ञान पर यहां चल रही श्रृंखला अब समाप्त की जा रही हैं। व्यक्ति और व्यक्तित्व पर कुछ सामग्री और दी जानी थी, परंतु उसे यहां बाद में एक नई श्रृंखला के रूप में अधिक विस्तार से प्रस्तुत करने की योजना है।
यहां पेश की जा रही सामग्री के बारे में कुछ मानवश्रेष्ठों द्वारा यह आकांक्षा व्यक्त की गई है कि मनोविज्ञान पर प्रस्तुत हो चुकी सामग्री को पीडीएफ़ फ़ाइल-रूप में डाउनलोड किये जाने की व्यवस्था कर दी जाए।
पूर्व में इसी हेतु यहां की तब तक की सामग्री को पांच भागों में समेकित कर उनके डाउनलोड करने के लिंक प्रस्तुत किए जा चुके हैं, इस बार बाकी सामग्री को तीन और भागों में समेकित कर, उनके पीडीएफ़ डाउनलोड करने के लिए लिंक इस बार यहां दिये जा रहे हैं।
11.
हम बुलबुल मस्त बहारों की , हम मस्त कलंदर धरती के --मेरे गीत ( सतीश सक्सेना )
श्री सतीश सक्सेना जी की प्रथम पुस्तक -- मेरे गीत -- प्रकाशित होकर हमारे बीच आ चुकी है । ज्योतिपर्व प्रकाशन द्वारा प्रकाशित १२२ प्रष्ठों की इस पुस्तक में सतीश जी के ५८ गीत शामिल किये गए हैं । हालाँकि अधिकतर गीत उनके ब्लॉग पर पढ़े जा चुके हैं , कुछ गीत ऐसे भी हैं जो या तो पहली बार सामने आए हैं या पिछले कुछ सालों में नहीं पढ़े गए ।
12.
मित्रानंदन पंत जी के जन्म दिन पर
: 20 मई 1900 को अल्मोड़ा जनपद के कौसानी नामक गांव में हुआ था। इन्हें जन्म देने के तुरंत बाद इनकी माता सरस्वती देवी परलोक सिधार गईं। लालन-पालन दादी और बुआ ने किया। उनके बचपन का नाम था गुसाई दत्त। उनके पिता गंगा दत्त चाय बागान के मैनेजर थे। दस साल की उम्र में उन्होंने अपना नाम बदल कर सुमित्रा नंदन पंत रख लिया।
: प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा अल्मोड़ा में हुई। 1911 से आठ वर्षों तक अल्मोड़ा के राजकीय हाई स्कूल में नवीं कक्षा तक की पढ़ाई की। 1918 में काशी आ गए। वहां क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे। हाई स्कूल की परीक्षा 1920 में पास की। मैट्रिक उत्तीर्ण करने के बाद वे इलाहाबाद चले गए और म्योर कॉलेज में दाखिला लिया। 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन के आह्वान पर उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया और घर पर ही हिन्दी, संस्कृत, बँगला और अंग्रेजी का अध्ययन करने लगे।
13.
" ब्लॉगर दम्पति एवार्ड........."
'दशक का ब्लॉग' , 'ब्लॉगर का दशक अथवा शतक ' या ' सदी का ब्लॉगर ' , 'नया ब्लॉगर' , 'सबसे वृद्ध ब्लॉगर', 'नवजात शिशु ब्लॉगर', 'अभिमन्यु ब्लॉगर' ( जो गर्भ से ही ब्लागिंग सीख ले ) या 'सबसे खूबसूरत चेहरे वाला ब्लॉगर' या 'सबसे सुन्दर ब्लॉग' ,'सबसे सरल ब्लॉग' या 'सबसे कठिन ब्लॉग' और न जाने क्या क्या ,ये वो शीर्षक हैं, जिनके लिए आजकल पुरस्कार दिए जाने की होड़ सी लगी है |कैसे पंजीकरण कराना है और किसको और कहाँ वोट मांगने के लिए अपना पक्ष रखना है ,इसका प्रचार प्रसार बहुत तेजी से हो रहा है |
कुछ का मानना है ,'मैच फिक्स्ड' है अर्थात 'ब्लॉगर' का नाम तय है | कुछ का मानना है 'स्पॉट फिक्स्ड' है अर्थात 'ब्लाग पोस्ट' का नाम तय है | अच्छा खासा सभी लोग 'मैच फिक्सिंग' से वाकिफ हो चुके थे ,खामख्वाह 'स्पॉट फिक्सिंग' जैसी नई चीज़ आ गई |
ब्लागिंग की दुनिया में जो भी कटेगरी तय की जा रही है ,एवार्ड की खातिर ,बस उन्ही कटेगरियों में एक कटेगरी और बढ़ा देनी चाहिए ,जिसका नाम हो "ब्लॉगर-दम्पति एवार्ड " |
14.
प्यार का ककहरा !
थोड़ी सी बात हुई
चंद मुलाकात हुई
वे अपना मान बैठे
जाने क्या बात हुई
देखते आये थे जिसे
करने लगे ‘प्यार’ उसे
वे इसे ही समझ बैठे
जग समझे चाहे जिसे
प्यार में सिमटने लगे
दूर सबसे छिटकने लगे
आंखों में सपने लिए
रात भर जगने लगे
15.
आप का प्रिय ब्लॉग कौन? मतदान प्रारम्भ!
आप हिन्दी ब्लॉग पढ़ते हैं तो जाहिर है कि कुछ को पसन्द करते होंगे, नापसन्द भी करते होंगे। अब आप पूछेंगे कि जो पसन्द नहीं उसे क्यों पढ़ेंगे? इसका उत्तर यह है कि यह बहुत ही गूढ़ मनोविज्ञान है जिसकी यहाँ चर्चा विषयान्तर होगी।
तो मैंने आज सोचा कि क्यों न एक 'सबसे प्रिय ब्लॉग' पुरस्कार का आयोजन किया जाय?
क्यों सोचा का कोई उत्तर नहीं है। बस सोच लिया!
मौसम गर्म है, छुट्टियाँ चल रही हैं लिहाजा लोग आत्ममंथन और आत्मनिरीक्षण करने के साथ साथ अपनी बात कहने के लिये समय भी निकाल सकते हैं।
16.
कोई आज बता ही देवे हमको ....कहाँ है हमरा घर ??????
लड़की !यही तो नाम है हमरा....
पूरे २० बरस तक माँ-पिता जी के साथ रहे...सबसे ज्यादा काम, सहायता, दुःख-सुख में भागी हमहीं रहे, कोई भी झंझट पहिले हमसे टकराता था, फिर हमरे माँ-बाउजी से...भाई लोग तो सब आराम फरमाते होते थे.....बाबू जी सुबह से चीत्कार करते रहते थे, उठ जाओ, उठ जाओ...कहाँ उठता था कोई....लेकिन हम बाबूजी के उठने से पहिले उठ जाते थे...आंगन बुहारना ..पानी भरना....माँ का पूजा का बर्तन मलना...मंदिर साफ़ करना....माँ-बाबूजी के नहाने का इन्तेजाम करना...नाश्ता बनाना ...सबको खिलाना.....पहलवान भाइयों के लिए सोयाबीन का दूध निकालना...कपडा धोना..पसारना..खाना बनाना ..खिलाना ...फिर कॉलेज जाना....
और कोई कुछ तो बोल जावे हमरे माँ-बाबूजी या भाई लोग को.आइसे भिड जाते कि लोग त्राहि-त्राहि करे लगते.....
हरदम बस एक ही ख्याल रहे मन में कि माँ-बाबूजी खुश रहें...उनकी एक हांक पर हम हाज़िर हो जाते ....हमरे भगवान् हैं दुनो ...
फिर हमरी शादी हुई....शादी में सब कुछ सबसे कम दाम का ही लिए ...हमरे बाबूजी टीचर थे न.....यही सोचते रहे इनका खर्चा कम से कम हो.....खैर ...शादी के बाद हम ससुराल गए ...सबकुछ बदल गया रातों रात, टेबुलकुर्सी, जूता-छाता, लोटा, ब्रश-पेस्ट, लोग-बाग, हम बहुत घबराए.....एकदम नया जगह...नया लोग....हम कुछ नहीं जानते थे ...भूख लगे तो खाना कैसे खाएं, बाथरूम कहाँ जाएँ.....किसी से कुछ भी बोलते नहीं बने.....
जब 'इ' आये तो इनसे भी कैसे कहें कि बाथरूम जाना है, इ अपना प्यार-मनुहार जताने लगे और हम रोने लगे, इ समझे हमको माँ-बाबूजी की याद आरही है...लगे समझाने.....बड़ी मुश्किल से हम बोले बाथरूम जाना है....उ रास्ता बता दिए हम गए तो लौटती बेर रास्ता गडबडा गए थे ...याद है हमको....
हाँ तो....हम बता रहे थे कि शादी हुई थी, बड़ी असमंजस में रहे हम .....ऐसे लगे जैसे हॉस्टल में आ गए हैं....सब प्यार दुलार कर रहा था लेकिन कुछ भी अपना नहीं लग रहा था.....
17.
तंत्र-सूत्र—विधि—04
या जब श्वास पूरी तरह बाहर गई है और स्वय: ठहरी है, या पूरी तरह भीतर आई है और ठहरी है—ऐसे जागतिक विराम के क्षण में व्यक्ति का क्षुद्र अहंकार विसर्जित हो जाता है। केवल अशुद्ध के लिए यह कठिन है।
shiva-parvati-तंत्र-सूत्र—विधि—04 ओशो
लेकिन तब तो यह विधि सब के लिए कठिन है, क्योंकि शिव कहते है कि ‘’केवल अशुद्ध के लिए कठिन है।‘’
लेकिन कौन शुद्ध है? तुम्हारे लिए यह कठिन है; तुम इसका अभ्यास नहीं कर सकते। लेकिन कभी अचानक इसका अनुभव तुम्हें हो सकता है। तुम कार चला रहे हो और अचानक तुम्हें लगता है कि दुर्धटना होने जा रही है। श्वास बंद हो जाएगी। अगर वह बाहर है तो बाहर ही रह जाएगी। और भी अगर वह भीतर है तो वह भीतर ही रह जायेगी। ऐसे संकट काल में तुम श्वास नहीं ले सकते: तुम्हारे बस में नहीं है। सब कुछ ठहर जाता है। विदा हो जाता है।
18.
ये भूमि !
जब पूरी दुनिया में पानी भर गया था तो ईश्वर ने उसे नये सिरे से सृजित करने का फैसला किया ! उसने दुनिया को बनाने के लिए ओबटाला को अपना प्रतिनिधि बना कर भेजा और ओबटाला के साथ ओदुदुआ नाम के एक सहायक को भी ! इन दोनों के साथ एक तुमड़ी भर मिट्टी और एक चूजा भी भेजा गया ! ओबटाला और ओदुदुआ ने ईश्वर द्वारा निर्धारित अपने काम को पूरा करने के लिए एक रस्सी की सहायता से नीचे उतरना प्रारम्भ कर दिया ! रास्ते में उन्हें एक जगह रुकना पड़ा , वहां एक उत्सव चल रहा था ! दावत के इस मौके पर ओबटाला ने अत्यधिक मात्रा में ताड़ी पी ली , जिसके कारण वह नशे में धुत हो गया ! अपने मालिक को नशे में धुत देखकर ओदुदुआ ने तुमड़ी और चूजे को लेकर आगे का सफ़र अकेले ही ज़ारी रखा !जब ओदुदुआ जल प्लावित धरती के पास पहुंचा तो उसने , तुमड़ी से मिट्टी निकाल कर बिखेर दी और चूजे को नीचे छोड़ दिया ! इसके बाद चूजा तेजी से इधर उधर ,चारों ओर भागने लगा जिसके कारण से मिट्टी और भी बिखर गई ! चूजा जिस दिशा में भी भागा , वहां मिट्टी फैलती गई और भूमि बन गई ! इस तरह से ओदुदुआ ने जहां पानी था , वहां भूमि बना दी ! उधर नशा उतरने के बाद ओबटाला ने आगे चलकर ओदुदुआ को ढूंढ लिया किन्तु जैसे ही उसने देखा कि उसका सहायक ओदुदुआ भूमि के निर्माण का काम पहले ही पूरा कर चुका है , जबकि ईश्वर ने यह काम उसे सौंपा था , तो उसे बहुत दुःख हुआ ! हालांकि ईश्वर ने उसे दुखी देखकर धरती पर बसाने के लिए मनुष्य बनाने का एक अन्य काम उसे सौंप दिया और इस तरह से धरती पर जीवन शुरू हुआ !
19.
प्रमोद भार्गव का आलेख : कार्टून क्या छात्रों का दिमाग बदलने की साजिश है ?
एनसीइइारटी की पाठ्यपुस्तकों में छपे कार्टूनों को लेकर संसद में एक बार विवाद फिर गहरा गया है। जबकि डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर से जुड़े विवाद की आग अभी ठण्डी भी नहीं पड़ी है। दरअसल कक्षा नौ, दस और ग्यारहवीं में पढ़ाई जाने वाली डेमोक्रेटिक, पॉलिटिक्स नामक पुस्तक में देश के राजनीतिकों को आपत्तिजनक ढंग से पेश करने वाले कार्टूनों और उन पर छात्रों से निबंध लिखाने की शिक्षा पद्धति पर सांसदों ने सख्त ऐतराज जताया है। इसे न केवल राजनीतिज्ञों का अपमान माना बल्कि संसदीय लोकतंत्र के प्रति निराशावाद फैलाकर देश को अराजकता और तानाशाही की ओर धकेलने की साजिश बताया। यहां गौरतलब यह है कि जब पाठ्यक्रमों पर निर्धारण जाने माने शिक्षाविद् और नौकरशाह करते है तब उन्होंने यह गलती कैसे होने दी कि किताबों से संस्कार और सामाजिक सरोकार ग्रहण कर रहें विद्यार्थीयों को राजनीतिज्ञों का मजाक बनाए जाने वाले कार्टून पढ़ने को दिये जाएं। जबकि इन राजनीतिज्ञों में वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शामिल हैं जिन्होंने जान हथेली पर रखकर देश को फिरंगी हुकूमत से आजाद कराया।
20.
फिल्म समीक्षा : डिपार्टमेंट
-अजय ब्रह्मात्मजराम गोपाल वर्मा को अपनी फिल्म डिपार्टमेंट के संवाद चमत्कार को नमस्कार पर अमल करना चाहिए। इस फिल्म को देखते हुए उनके पुराने प्रशंसक एक बार फिर इस चमत्कारी निर्देशक की वर्तमान सोच पर अफसोस कर सकते हैं। रामू ने जब से यह मानना और कहना शुरू किया है कि सिनेमा कंटेंट से ज्यादा तकनीक का मीडियम है, तब से उनकी फिल्म में कहानियां नहीं मिलतीं। डिपार्टमेंट में विचित्र कैमरावर्क है। नए डिजीटल कैमरों से यह सुविधा बढ़ गई है कि आप एक्सट्रीम क्लोजअप में जाकर चलती-फिरती तस्वीरें उतार सकते हैं। यही कारण है कि मुंबई की गलियों में भीड़ में चेहरे ही दिखाई देते हैं। कभी अंगूठे से शॉट आरंभ होता है तो कभी चाय के सॉसपैन से ़ ़ ़ रामू किसी बच्चे की तरह कैमरे का बेतरतीब इस्तेमाल करते हैं।
21.
कोई किसी से प्यार नहीं करता, सब नाटक करते हैं
स्त्री और पुरुष के बीच का साहचर्य, रिश्ता अब भी उतना ही अनसुलझा है, जितना पहली बार मनुष्य की ये दो प्रजातियां एक दूसरे से परिचित हुई होंगी। हां, उस पहली मुलाकात में यह भाव अंतिम बार रहा होगा कि मेरा मुझमें कुछ नहीं जो कुछ है सो तोर। क्योंकि न तो तब परिवार की परिकल्पना थी, न ही संपत्ति की अवधारणा। सभ्यताओं के विकास के साथ ही रिश्तों का नामकरण होता गया और उनमें जिम्मेदारी, नैतिकता के अर्थ डाले गये। एकनिष्ठता भी आधुनिक सामंती समाज के मूल्य हैं, मन के नहीं। मन हमेशा ही आदिम होता है, लेकिन उसकी अभिव्यक्ति क्योंकि सामाजिक होती है, इसलिए वह अक्सर संयमित तरीके से हमारे बर्तावों को नियंत्रित करता है।
22.
उच्च रक्तचाप कम करता है विटामिन-डी
लंदन : उच्च रक्तचाप कम करने में दवा जितनी असरकारक विटामिन डी की गोलियां हो सकती हैं। डेनमार्क के होल्सटेब्रो अस्पताल के शोधकर्ताओं ने उच्च रक्तचाप के 112 मरीजों को 20 हफ्तों तक विटामिन-डी की गोलियां खिलाईं और पाया कि ये रक्तचाप को कम करने वाली दवाओं जितनी ही असरकारक हैं।अध्ययन दल के अगवा डॉ. थॉमस लार्सन ने कहा, ‘संभवत: ज्यादातर यूरोपीय लोगों में विटामिन-डी की कमी है और इनमें से कई उच्च रक्तचाप से भी पीड़ित हैं।’ डेली टेलीग्राफ ने उनके हवाले से कहा, ‘हमारे परिणाम सुझाते हैं कि इन मरीजों को विटामिन-डी की गोलियों से फायदा मिल सकता है, अगर उनमें विटामिन-डी की कमी है।’
23.
अब लोग रोने भी नहीं देते
अब
लोग रोने भी नहीं देते
आंसूओं को खून का
घूँट सा पीने को कहते
डरते हैं
कहीं ज़माने ने बहते
आंसूओं को देख लिया
तो देखने वाले सवाल
पूछेंगे
25.
पत्थर का साथ
इंसान की फितरत से
पत्थर का साथ अच्छा है .....
सिर्फ देखता है एक टक ,
सुनता है -समझता है....
न छल है उसमे कोई
न कोई तमन्ना है ...
लहरों से टकराना है..
टूटना है बिखरना है ....
फिर अंजाम की क्या फिकर...
कि इंसान भी टूटकर
बिखरता है एक दिन .....
एक जज़्बात से टूटता है
दूसरा लहरों मे बिखरता है ।
26.
खुद की तलाश - 11
- रश्मि प्रभा...मैं हूँ चिड़ियाँ
कभी बाबुल के आँगन की
कभी साजन के आँगन की
मैं हूँ चिड़िया....
उड़ उड़ जाऊँ डाली डाली
मैं मतवाली मैं मतवाली
कभी बाबुल दिखाए दुनिया
कभी साजन दिखाए दुनिया
मैं हूँ चिड़िया...
27.
युवा ही देश को सही दिशा में ले जा सकते हैं
भारत गांवों का देश है, क्योंकि यहाँ की अस्सी प्रतिशत जनता गांवों में निवास करती है । अतः देश की अवस्था और व्यवस्था गांव केन्द्रित हो जाती है। हमारा देश तभी खुशहाल हो सकता है जब हमारे गांवों की स्थिति में सुधार आयेगा। एक जमाना था जब गांवों के सभी लोग क्रियाशील थे, जिस कारण अपने देश की आर्थिक स्थिति अच्छी थी और गांवों के लोग सुखी सम्पन्न हुआ करते थे। किसी देश की समृध्दि का बड़ा कारक गांवों का मानव संसाधन होता है। लेकिन आज के प्रगतिशील दौड़ में मानव संसाधन समुचित उपयोग की महती आवश्यकता है। इसमें युवा पीढ़ी को सही दिशा में आगे बढाने की आवश्यकता है।
28.
तू हो गयी है कितनी पराई
अथाह मन की गहराई
और मन में उठी वो बातें
हर तरफ है सन्नाटा
और ख़ामोश लफ़्ज़ों में
कही मेरी कोई बात
किसी ने भी समझ नहीं पायी
कानों में गूँज रही उस
इक अजीब सी आवाज़ से
तू हो गयी है कितनी पराई ।
29.
कार्टून:- ठंडा ठंडा कूल कूल
30.
आधी रात हुई अजय झा से कहा-सुनी, हुए लाल पीले हम
ब्लॉग जगत के लोकप्रिय और चर्चित ब्लॉगर अजय कुमार झा जी से मेरा परिचय अदालत पर आई एक अजीबोगरीब खबर से हुआ था. बाद में यह परिचय बेहद आत्मीयता में बदल गया और आज वे उन गिने चुने (ब्लॉगर) मित्रों में से एक हैं जिनके सभी पारिवारिक सदस्य हमारे पारिवारिक सदस्यों से घुले मिले हैं. हालांकि हम तो दो बार उनके घर जा धमके हैं लेकिन वे छत्तीसगढ़ आने का वादा कर कर के भी अभी तक पूरा नहीं कर पाए हैं. छोटे बच्चों की जिम्मेदारी का ख्याल कर हम भी उन्हें चेतावनी नहीं दे रहेपिछले रविवार, कम्प्यूटर का ढ़ेर सारा काम निपटाते निपटाते आधी रात हो चुकी थी. दिन में भी काफी समय दे चुका था कम्प्यूटर के सामने और शाम से तो महफ़िल जमी ही थी आँखे भारी होने लगी. शरीर को संकेत मिलने लगे कि बहुत हुआ अब! सब बंद करो और धड़ाम से गिर जाओ बिस्तर पर. फिर क्या था एक जोरदार अंगडाई ली, जम्हाई ली, उठने ही लगा था कि स्क्रीन पर अजय जी का चेहरा और अभिवादन करता संदेश उभरा. अपन दन्न से फिर कुर्स्सी पर
चूंकि आधी रात हो चुकी थी, तारीख बदल कर 14 मई हो गई, इसलिए सीधे काम की बात बताई उन्होंने ‘कुछ साइट्स खुल ही नहीं रही हैं’ उनके पास. ‘कौन कौन सी’ पूछे जाने पर पता चला कि फ़ेसबुक, जागरण जंक्शन ,नवभारत टाइम्स ब्लॉग्स और भी कई साईट्स नहीं खुल रहीं. गूगल, याहू, भास्कर, हिन्दुस्तान टाइम्स, लिंक्डइन वगैरह सब मजे से चल रहे तुरंत ही दूसरा संदेश उभरा ‘अभी हिंदी ब्लॉगर्स को ही क्लिक किया तो वो भी नहीं खुली’
मेरी सारी नींद गायब बाक़ी किसी साईट की चिंता नहीं लेकिन अपने ही सर्वर की नहीं खुली तो गड़बड़ है क्योंकि 10 -15 मिनट ही हुए थे मुझे सर्वर की जांच किए हुए. इसके पहले भी द्विवेदी जी के साथ ऎसी ही समस्या थी, जिसे उन्होंने लिखा भी था. हमने झट से अजय जी को टीम व्यूअर शुरू कर उसका पासवर्ड देने को कहा. चंद सेकेंड्स में ही उनका कम्प्यूटर मेरे कब्जे में था की-बोर्ड माऊस मेरा लेकिन कम्प्यूटर उनका.:-)
31.
रुझान : 96 घंटे बाद .....दशक के हिंदी चिट्ठाकार ?
पत्तों से चाहते हो बजे साज की तरह ।
पेंडो से पहले उदासी तो लीजिये ।।
चीजें जो मैंने अपने जीवन मे सीखी, उसमे से एक यह भी है कि आप किसी को बाध्य नहीं कर सकते कि वह आपकी किसी सोच का समर्थन करे । आप केवल अपील कर सकते हैं या फिर उन्हें प्रेरित कर सकते हैं या फिर विश्वास दे सकते हैं कि वह आपके सच्चे कार्यों का समर्थन करे। बाकी सब उनके विवेक पर छोड़ दें ।
चीजें जो मैंने अपने जीवन मे सीखी, उसमे से एक यह भी है कि जो आपके वश मे नहीं है उसको महत्व न दें, परंतु जो आपके वश मे है उसे निरर्थक न जाने दें । क्योंकि आप झटके मे कुछ ऐसा कर बैठते हैं जो हमेशा-हमेशा के लिए आपके दिल का दर्द बन जाता है ।
32.
और किसी को कुछ कहना या लिखना है तो लिख ले भाई..: महफूज़
काफी दिनों (दस दिनों के बाद) के बाद नेट पर आना हुआ है. वजह बहुत सिंपल सी थी कि मैं अपने अकैडमिक कौन्फेरेंस के लिए बाहर था और नेट के एक्सेस में नहीं था और इंटरनेश्नल रोमिंग की सुविधा मेरे मोबाइल में नहीं थी. लौट कर आया तो दिल्ली से सीधे अपने गृह नगर गोरखपुर चला गया वहां भी नेट का एक्सेस नहीं था कि गोरखपुर में फ़ोन आया कि भई मेरे खिलाफ कोई मेल सर्कुलेट कर रहा है. मैंने कहा कि भई करने दो क्या फर्क पड़ता है? तो मुझे बताया गया कि मेरी कविताओं के पब्लिकेशन पर कोई रिसर्च कर रहा है तो कोई मेरे फेसबुक प्रोफाइल पर पी.एच.डी. कर रहा है.आज लौटा हूँ तो शिवम् ने मुझे वो मेल फॉरवर्ड की और किसी ब्लॉग का लिंक भी दिया. हालांकि मुझे कुछ कहना तो नहीं है. लेकिन आज मैं ख़ुद अपने बारे में और भी ब्लॉग जगत को बताना चाहूँगा जो ब्लॉग जगत में खुशदीप भैया, शिवम्, ललित शर्मा, अनूप शुक्ला (फुरसतिया), शिखा (यह मेरे बारे सब कुछ जानतीं हैं), अंजू चौधरी, रश्मि रविजा, रेखा श्रीवास्तव , इंदु पूरी, अजित गुप्ता और पवन कुमार (आई.ऐ.एस) जानते हैं क्यूंकि यह सब मेरे घर आ चुके हैं. लेकिन आज जब वो मेल सर्कुलेट हो रही है तो मैं यह बता दूं भई कि मेरे बारे में जो भी जितना खोदेगा उतना ज़्यादा निकलेगा. वो मेल कहती है कि मैंने अपने फेसबुक प्रोफाइल में MHRL नाम की संस्था का ख़ुद को चेयरमैन और सी.इ.ओ. बताया है.
33.
ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे
इस शहर-ए-खराबी में गम-ए-इश्क के मारेज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे
ये हंसता हुआ लिखना ये पुरनूर सितारे
ताबिंदा-ओ-पाइन्दा हैं ज़र्रों के सहारे
हसरत है कोई गुंचा हमें प्यार से देखे
अरमां है कोई फूल हमें दिल से पुकारे
34.
लो हम डूबते हैं
हाँ हाँ, यादों में है अब भी
सभी तस्वीरें- Elliott Erwitt
क्या सुरीला वो जहाँ था
हमारे हाथों में रंगीन गुब्बारे थे
और दिल में महकता समां था।
वो तो ख़्वाबों की थी दुनिया
वो किताबों की थी दुनिया
साँस में थे मचलते हुए जलजले
आँख में वो सुहाना नशा था।
क्या ज़मीं थी, आसमां था
हमको लेकिन क्या पता था,
हम खड़े थे जहाँ पर
उसी के किनारे पे गहरा सा अन्धा कुँआ था...
- पीयूष मिश्रा, गुलाल (2001-2009-?)
लालकिले के ठीक सामने मैं दरियागंज को ढूंढ़ रहा था। वहाँ से लहराता तिरंगा दिख रहा था, जो न जाने क्यों आज़ादी की बजाय ग़ुलामी का अहसास करवा रहा था। बहुत भीड़ थी। लालकिले के सामने से गुज़रने वाले क़रीब चालीस प्रतिशत लोग मुँह उठाकर उसे देखते हुए चलते जाते थे। इस तरह आसानी से उन लोगों को पहचाना जा सकता था, जो दिल्ली से बाहर के थे। कुछ लोग पन्द्रह या बीस सालों से भी दिल्ली में रह रहे होंगे लेकिन वह हर आदमी सामने से गुज़रते हुए हसरत भरी निग़ाह लालकिले पर ज़रूर डालता है, जिसका बचपन दिल्ली में नहीं बीता। यह ग़ौर करने लायक बात है कि आक्रमणकारियों द्वारा जनता को लूट कर बनवाई गई इमारतें ही उन मुख्य पर्यटन स्थलों में हैं (उनमें से अधिकांश लाल हैं जो कि संयोगवश खून का रंग भी है), जिन्हें देखने मासूम से बच्चे स्कूल की मैडमों के साथ कतार बनाकर आते हैं।
35.
कार्टूनिस्टों को फांसी दो
जब मैं कॉफी हाउस में घुसा, तो कुछ चोंचवादी निठल्ले चिंतन कर रहे थे। एक व्यक्ति कह रहा था,‘कुछ भी हो। कार्टून मुद्दे को संसद में नहीं उठाना चाहिए। भला यह भी कोई तुक हुई कि जिस व्यक्ति को लेकर कार्टून बनाया गया, उसने जीते-जी कभी विरोध नहीं किया। अब उनकी औलादें खामख्वाह कटाजुज्झ मचा रही हैं।’ दूसरे निठलले चिंतक ने कॉफी का घूंट भरते हुए कहा, ‘नहीं, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है। मैं तो कहता हूं कि इस देश के व्यंग्यकारों, कलाकारों, कार्टूनिस्टों, कवियों और लेखकों के साथ वही होना चाहिए, जो मुगलिया सल्तनत के शंहशाह शाहजहां ने किया था। ताजमहल बनाने वाले वास्तुविदों के हाथ काटकर उन्होंने पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल कायम की थी। देखो, व्यवस्था और युग भले ही बदल जाए, लेकिन शासकों का चरित्र कभी नहीं बदलता है। कलाकार, चित्रकार और भी जितने ‘कार’ इस दुनिया में पाए जाते हैं, वे सिर्फ और सिर्फ देश और समाज पर बोझ होते हैं।36.
हँसना मना नही ..हंसते रहो सदा..
हसनेपर कोई पाबंधी नही लगाई गई हैlफिर भी हम लोग शायद हसना भूल गये है...l
निराशा ,टेंशन ओर गुस्सा , कार्य बॉज़ आदि कई कारण है ,जिससे आज इंसान रोता रहता हेl
ओर हसना भूल गया है l
अगर आप रोजाना कसरत के साथ ,
अपने योगा के साथ ,
3 मिनिट भी ज़ोर्से हंस सकते हो तो आपको कई फ़ायदे हो सकते है......
शारीरिक तथा मानसिक रूपसे ये फlयडे आपका जीवन ही बदल सकते है l
अlयुके कुछ साल बढ़ जाते है....
चहरे पर ये मसlजक काम करता है l
आपकी हँसी से चहरेकी कसरत तो होती ही है..
37.
भारतीय काव्यशास्त्र – 113
आचार्य परशुराम राय
प्रसिद्ध अर्थ में निर्हेतुत्व दोष नहीं माना जाता है। काव्य में निर्हेतुत्व एक अर्थदोष है। इसका सोदाहरण उल्लेख दोष-प्रकरण में अर्थदोष के अन्तर्गत किया जा चुका है। यहाँ इस सिद्धान्त की चर्चा आवश्यक है कि कार्य-कारण का नित्य सम्बन्ध होता है - कार्य-कारणयोः नित्यसम्बन्धः। प्रत्येक कार्य का कारण होता है। कारण के अभाव में कार्य नहीं होता। अतएव काव्य में वर्णित कार्य के कारण (हेतु) का उल्लेख न किए जाने पर निर्हेतुत्व दोष माना जाता है। किन्तु जहाँ प्रसिद्ध कारण से युक्त कार्य का वर्णन किया जाय जिसका कारण सर्वविदित हो, तो उसका (हेतु का) वर्णन में अभाव होने पर भी निर्हेतुत्व अर्थदोष नहीं माना जाता। जैसे-
चन्द्रं गता पद्मदुणान्न भुङ्क्ते पद्माश्रिता चान्द्रमसीमभिख्याम्।
उमामुखं तु प्रतिपद्य लोला द्विसंश्रयां प्रीतिमवाप लक्ष्मीः।।
38.
राजनीति में अरुचि
"राजनीति में हिस्सा नहीं लेने का एक दंड अपने से निम्न व्यक्तियों द्वारा शासित होना है।" - प्लैटो ("One of the penalties for refusing to participate in politics is that you end up being governed by your inferiors." - Plato)
इन्टरनेट पर सर्फ करते हुए प्लैटो के इस उक्ति पर नजर पड़ी. भारत की त्रासदी के सबसे बड़े कारण को यह कथन एकबारगी साफ़ कर देता है. भारत में राजनीतिक अव्यवस्था का सबसे बड़ा कारण समाज के अस्तरीय या निम्नस्तरीय लोगों की राजनीति में सक्रियता तथा स्तरीयता की संभावना वाले लोगों की राजनीतिक उदासीनता है. तथाकथित स्तरीय लोगों को ऐसा इसलिए कहा गया है कि बिना सार्वजनिक मामलों में रूचि और सहभागिता के किसी व्यक्ति को स्तरीय कहा जाना उचित नहीं है.39.
"क्षितिजा की समीक्षा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
इन दिनों मेरे पास कई पुस्तकें विद्वान रचनाधर्मियों ने भेजी हुई हैं। लेकिन मेरा कम्प्यूटर खराब हो गया जो अभी 8-10 दिन में ही ठीक हो पायेगा। तब तक बेटे ने मुझे काम चलाने के लिए एक डेस्कटॉप दे दिया और समय का सदुपयोग करते हुए मन हुआ कि “क्षितिजा” के बारे में कुछ लिखूँ।गत वर्ष 30 अप्रैल को हिन्दी साहित्य परिकल्पना सम्मान के दौरान दिल्ली स्थित हिन्दी भवन में मेरी भेंट अंजु (अनु) चौधरी से हुई थी। फिर एक दिन अन्तर्जाल पर मैंने देखा कि इनकी पुस्तक “क्षितिजा” हाल में ही प्रकाशित हुई है। मैंने अपनी मानव सुलभ जिज्ञासा एक टिप्पणी में पुस्तक पढ़ने की इच्छा जाहिर की। इस बात को 3-4 दिन ही बीते थे कि मुझे डाक से “क्षितिजा”की प्रति मिल गई।
40.
Sunday, May 20, 2012
चंदौली आवास से ......!
मैं भी परिवार सहित चंदौली पहुँच गयी हूँ.... कल ही पहुंची हूँ. आवास का जायजा लिया कुछ नए निर्माण कार्यों के लिए मैंने कहा है.... आप सबको आमंत्रित करती हूँ चंदौली के लिए. आप सबको परिवार सहित धमाल मचाने के लिए दावत देती हूँ. वैसे तो पंकज भैया और पिंटू घूम गए हैं....लेकिन फिर से उन्हें आमंत्रित करती हूँ साथ ही जोनी, प्रिय, संदीप, दिलीप, सचिन, मम्मीजी, पापा जी, मामा जी और सभी को भी....!41.
विमल चन्द्र पाण्डेय की लंबी कविता
एक कहानीकार के रूप में विमल चन्द्र पाण्डेय एक सुपरिचित नाम हैं. कहानियों में अपनी विशिष्ट भाषा, प्रखर राजनीतिक स्वर और अपने परिवेश की जटिलताओं को बखूबी व्यक्त करते हुए अपनी पीढ़ी के स्वप्नों और मोहभंगों को चित्रित करने वाले विमल की कविताएँ पढ़ना मेरे लिए सुखद था. उनकी कविताएँ पढ़ते हुए मुझे उनमें न केवल एक ईमानदार अभिव्यक्ति की तड़प दिखी बल्कि शिल्प और भाषा के स्तर पर एक ऐसी सजगता भी दिखी जो अनावश्यक सरलीकरण के सहारे बड़बोलेपन में तब्दील हो जाने की जगह अपने समय की जटिल विडम्बनाओं को कविता के फार्मेट में दर्ज करती है. उनके यहाँ युवा होना सिर्फ उम्र का मामला नहीं है. "मुझे ठीक उनसठ साल पहले पैदा होना था ताकि मैं अपने पिता का दोस्त होता" जैसी पंक्तियाँ यूं ही नहीं आतीं. कुर्सियों, पलंगों से रहित इस कवि के घर में बस एक कालीन है भदोही से मंगाया हुआ...जहाँ वह आपके साथ बैठना चाहता है, जहाँ तीन मुँहों और विशाल उदर वाले ब्रह्मालोचक के लिए कोई ऊँचा स्थान नहीं...असल में यह लंबी कविता अलग से एक आलेख की मांग करती है. यहाँ इस पर बहुत कुछ लिख देना पाठक से अपना अर्थ ग्रहण करने का अधिकार छीन लेना होगा. तो बस विमल का असुविधा पर स्वागत!
42.
सच्चे का मुंह काला ... झूठे का बोलबाला
आज़ाद पुलिस की वर्षों संघर्ष का कोई निष्कर्ष नहीं निकला.... हज़ारों चिट्ठियाँ राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और तमाम प्रशासनिक अधिकारियों को लिखने के बावजूद भी किसी समस्या पर आज तक सुनवाई नहीं की गयी... तिरंगा नाम के गुटखे के पाउच पर "तिरंगा" झंडे का निशान तिरंगे का सरासर अपमान है... आज़ाद पुलिस की ओर से यह मुद्दा कई वर्षों से उठाया जा रहा है परन्तु आज तक इस कंपनी पर किसी तरह की कोई कार्यवाही नहीं की गयी...आज भी तिरंगे के नाम पर गुटखा सरे बाज़ार बिक रहा है और लोग गुटखा खा कर तिरंगे पर थूक रहे हैं... इस सम्बंध मे सैकड़ों पत्र हर बड़े अधिकारी यहाँ तक कि मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति तक लिखे जा चुके हैं लेकिन गुटखे का नाम बदलने की तो बात दूर गुटखा कंपनी के लिए एक चिट्ठी तक नहीं लिखी गयी।43.
बिपिन चंद्र पाल जी की ८० वी पुण्यतिथि पर विशेष
बिपिन चंद्र पाल क्रांतिकारी तिकड़ी 'लाल', 'बाल', 'पाल' के अहम किरदार थे जिन्होंने ब्रितानिया हुकूमत की चूलें हिलाकर रख दी थीं। उन्हें गांधी जी के प्रथम आलोचकों में से एक माना जाता है।
बिपिन चंद्र पाल का जन्म सात नवंबर 1858 को हबीबगंज जिले के पोइल गांव में हुआ था, जो वर्तमान में बांग्लादेश में पड़ता है। वह एक शिक्षक, पत्रकार, लेखक और मशहूर वक्ता होने के साथ ही एक क्रांतिकारी भी थे जिन्होंने लाला लाजपत राय [लाल] और बाल गंगाधर तिलक [बाल] के साथ मिलकर अंग्रेजी शासन से जमकर संघर्ष लिया। इतिहासकार सर्वदानंदन के अनुसार इन तीनों क्रांतिकारियों की जोड़ी आजादी की लड़ाई के दिनों में 'लाल', 'बाल', 'पाल' के नाम से मशहूर थी। इन्हीं तीनों ने सबसे पहले 1905 में अंग्रेजों के बंगाल विभाजन का जमकर विरोध किया और इसे एक बड़े आंदोलन का रूप दे दिया।
44.
रसोई में सेहत
यूं तो पेट खराब होने की समस्या बारहों मास कभी भी हो सकती है लेकिन गर्मियों के दिनों में खासतौर पर सावधान रहने की ज़रूरत होती है। चुभती गरमी में पेट में अफरा-तफरी मचाने वाले छोटे से बैक्टीरिया, वायरस और प्रोटोजोआ भी शेर बन जाते हैं। रसोईघर में खाना बनाते हुए या खानपान में जरा सी चूक होते ही ये निर्दयी सूक्ष्मजीवी भोजन या पानी के साथ पेट में पहुंचकर आँतों में सूजन पैदा कर देते हैं और खलबली मचा देते हैं।कुछ छोटी-छोटी सावधानियाँ बरतकर गैस्ट्रोएंट्राइटिस के इस प्रकोप से साफ बच सकते है। व्यक्तिगत स्वच्छता के प्रति सजग रहें और रसोईघर में इस ओर ध्यान दें। इसका परिवार के स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ता है। आटा गूंथने, सब्जी काटने, थाली में सलाद सजाने से पहले हाथ साबुन और पानी से अवश्य धो लें, वरना हाथों की त्वचा पर चिपके बैक्टीरिया, वायरस और प्रोटोजोआ भोजन को दूषित कर कभी भी पेट में खलबली मचा सकते हैं।
फोड़े-फुंसी होने पर रसोई न बनाएं
यदि हाथों या बदन के किसी हिस्से में फोड़े-फुंसी या संक्रमित घाव हैं, गले में खराश है, या शरीर के किसी दूसरे हिस्से में कोई ऐसा संक्रमण है जिसके सूक्ष्मजीव भोजन को संक्रमित कर सकते हैं तो अच्छा होगा कि आप रसोईघर से दूर ही रहें। ऐसे में कई तरह के बैक्टीरिया का हमला होने का अच्छा-खासा खतरा रहता है।
और अब चलते हैं रोलर कोस्टर राईड पे ………………………………………………………………..
45.दोनों सेम टू सेम ..पढिए बिनाए गंवाए टेम
46. मुहावरे हमें तो खूब भाते हैं
47. जावेद अख्तर का सच जानिए एकदम सच्चे सच्चे है न जी
48.दुख के कांटे अक्सर ज्यादा चुभते हैं
49. विवेकानंद …….एक मजबूत ब्रांड : अबे ई कौन सा है नया कांड
50. तेरी जुसत्जू में : लिखी गई एक कविता
51.अब इंटरनेट से विज्ञापनों को कहें अलविदा ,
आपकी इस पोस्ट पे कौन न हो जाए फ़िदा
52.फ़र्ज़ी एफ़ आई आर दर्ज़ होने पर उसे रद्द कराने के लिए आवेदन कैसे करें ,
काहे टेंशन लेते हैं भाई , फ़ौरन ही तीसरा खंबा पे जा कर ये पोस्ट पढें
53.महानतम बनने का फ़ार्मूला ,मनोज भाई ने बतलाया ,
हाय हाय , ई फ़ार्मूला पहिले काहे नहीं रे पाया
54.बीबीसी पत्रकार वंदना ने पूछा है : धर्म है या धंधा ?
अजी क्या बताएं हम जी , ससुरा पूरा देश हो गया अंधा
55.अभिव्यक्ति की आज़ादी और नाक का सवाल ,
एक केवल राम ही अईसन वार्ता सजा सकते हैं कमाल
56.आईपीएल में छेडखानी पर लिखे हैं भाई आलोक ,
भारी दुविधा हुई उत्पन्न , आईपीएल या छेडखानी किस पर लगाएं रोक
57.राजनीतिक रोटियां , कौन रहा है सेंक ,
फ़ौरन पहुंचे पोस्ट पर , और खदई देख
58.कह रहे हैं प्रवीण , आमिर खानी और शादी पे प्रवचन ,
ये तो उलटी बात हुई , ई तो बिल्कुल भी नहीं हुई हजम
59.चल अब कुछ और खूबसूरत गज़लें पढवाता हूं
कह रहे हैं दिनेश , मैं तुझको खुदा बनाता हूं
60. मंटो को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता : कोशिश तो खूब हो रही है जी
61. लगा दम मिटा गम : पोस्टवा लिखे हो झमाझम
62.भोर का तारा : यहां उगा हुआ है
63. तुम्हारा जाना : कितना भला लगता है :)
64.हंस के बीमार कर दिया देखो : का देखना है हो , हंसी देखना है कि बीमार
65. छेडछाड : हां ई तो साला बहुत जादे बढ गया है
66. शायद जीवन को मिले एक नया विस्तार : बहुते धांसू लिखे हैं यार
67.यो यो एक खिलौना –अथवा जीवन दर्शन : फ़ौरन ही खेल कर पता लगाया जाए
68.पटाक्षेप एक नाटक का : और शुरूआत एक जीवन की
69. पितृत्व के हक की लडाई : हां ये भी लडनी पडती है भाई
70.बुजुर्गों का मनोविज्ञान : आज कहां समझ रहा है इंसान
71.औसत का गणित : भी उत्ता ही कठिन होता है जितना गणित होता है
72.सम्मान से बहुत बडा है आत्म सम्मान : सत्य वचन बोले आप हे श्रीमान
73.सांई राम : ओम साईं राम
74.एक गर्म चाए की प्याली हो : कोई उसको पिलाने वाली हो
75. अवतार :अब तो लेना ही पडेगा किसी को
76. सत्यानाश होती शिक्षा व्यवस्था : बहुते चिंताजनक अवस्था
77. आज इस वट की पूजा होगी : और कल ई वट बरगद हुई जाएगा
78.डॉ सुरेश उजाला के हाइकु : बहुत ही बेहतरीन होते हैं
79. पुष्पा –उपन्यास : आई लव पुष्पा रे
80.रिश्तों की गर्माहट का संग्रह : फ़ौरन पिकासा पर सेव करें
81.खामोश पल : में ही पोस्ट लिखना अच्छा रहता है
82.हे जीवन : तुम साले कभी समझ में नहीं आए
83. राहुल गांधी की आम जीवन् की चाह : छोडो ई सब फ़ौरन करो बियाह
84. खूबसूरत हो तुम : और ये पोस्ट भी
85. टांगीनाथ : हाथोंहाथ
86. सत्य की जय : यानि सत्यमेव जयते
87.एक यात्रा धरती पर बैकुण्ठ यानि बद्रीनाथ धाम की : आईए हो कर आते हैं
89.उडे उकाब , लटके चमगादड , नतीज़ा सिफ़र : आ तीनों उड के जाने गए किधर
90. कूलिंग पीरियड : इत्ती भयंकर गर्मी में , जरूर जी जरूर
91. उपयुक्त भेंट : सबको अच्छी लगती है
92.लाख दर्द मिले सब्र से काम लेना : डिस्र्पिन खाके भरपूर आराम लेना
93.हमारे अनुत्तरित प्रश्न : कौन हल करेगा जी
94.हर नज़र आशना, हर जुबां चासनी : अच्छा जी
95.कुछ याद पुरानी : सुनें नई कहानी
96.सफ़र जिंदगी का : बहुते लंबा है भाई , आ इतन टिरेफ़िक जाम भी लगता है
97. मेरी ज्वाला पूर्ण प्रज्वलित है : उसे धधकाए रखिए हो
98. वृद्धाश्रम : आज का सच
99. महान नाथूराम को नमन : अवश्य करें भगवन
100. 19 मई 2012 के समाचार : लेकिन आज तो बीस मई है यार
101.ब्लॉगिंग में हुआ बवाल : ई तो अपना ही है माल
लगता है आप थक गए ..चलिए आप सुस्ताइए , हम तनिक और दूसरे पोस्ट सब पर टहल के आते हैं फ़िर रेलगडिया आगे चलाएंगे
48 टिप्पणियाँ:
बाप रे ! सुपर फास्ट ट्रेन में हमारा माल गाड़ी का डब्बा भी सट गया ६७ नंबर पर | आभार |
Ufff..kahi bhi jagah nahi ..itni full....
अरे महाराज आज तो आप गज़ब ही कर दिये ... वैसे नाम सही दिये है "साप्ताहिक महाबुलेटिन" ... यह तो सच मे महाबुलेटिन ही है ! वैसे इस "101 …अप शताब्दी बुलेट एक्सप्रेस" मे हमारा भी एक डिब्बा दिख रहा है 43 नंबर पर ! इतना रश मे टिकिट मिल गया यही क्या कम है ... वैसे यह गाड़ी अगर रोज़ चले तो इतना रश न हो ... साप्ताहिक है शायद इसलिए ही भीड़भाड़ ज्यादा है ... क्यूँ अजय भाई ??? जो भी है महाराज आज तो छा गए आप ... जय हो !
मेरी संगीत की पोस्ट को जगह देने के बहुत धन्यवाद :)
seat no. 81...mil hi gai aakhir...shukriya Guard ka...
सुंदर चर्चा जमाई है। बधाई।
अजय जी ,
पूरे १०१ लिंक ! कमाल कर दिया ! साधुवाद !
गजब मसाला दिये हैं पढ़ने के लिये..
बाप रे इतनी मेहनत !
साधु साधु
वाकई में छोटे झोले में बोरा भर दिया ।
आपकी सुपरफास्ट ट्रेन में ६८ न० पर मेरी बोगी आरक्षित करने के लिए शुक्रिया. बाकी डब्बों का हाल पढकर बाद मै
ये एक अद्भुत प्रयोग है। सच कहूं तो इनमे से अधिकांश लिंक पर जा न सका था। एक नज़र डाल ली है। एक एक कर जाऊंगा।
आपने कितना श्रमसाध्य काम किया है कोई इस तरह के मंच से जुड़ा व्यक्ति ही इसे महसूस कर सकेगा।
आपके श्रम, लगन और निष्ठा को नमन!
kyaa baat ... bahut sundar ... bilkul "maasik patrikaa" ...
kamaal-dhamaal ... shaandaar-jaandaar-dhamaakedaar ...
कमेन्ट बॉक्स के पास कहे - रुक रुक रुक रुक , लिंक्स पढ़ने दिया जाए
baap re... :-)
मालगाड़ी के डब्बे में हमारी बुकिंग सुनिश्चित करने हेतु आपका आभार सर जी :)
इस आयोजन के लिए बहुत बहुत आभार। अब तक जितने इस तरह के ब्लाग देखे उनमें आपका यह प्रयास सबसे अधिक भाया। सचमुच यह कुछ कमाल की पोस्टों तक ले जाता है। शुभकामनाएं।
जबरदस्त ......ये तो पूरी दुनिया की सिर करा देगी आपकी ट्रेन ......ऐसी ट्रेन ....!अकल्पनीय ....!!
बहुत मेहनत की आपने ....बढ़िया लिंक्स संयोजन ......
बधाई एवं शुभकामनायें ...
101 …अप शताब्दी बुलेट एक्सप्रेस में मेरी बोगी शामिल करने के लिए आभार !
कमल का महा बुलेटिन है ..बहुत ही श्रमसाध्य कार्य है यह सब ....नतमस्तक है प्रस्तुति के लिए ..धन्यवाद
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आभार...!
बहुत अच्छे झा जी .. आखिर यहाँ भी पण्डिताई दिखा दी पूरे 101 लिंक लगायें है ... शुभ हो जय हो :)
१०१ ब्लॉग्स की सूची !
क्या सम्मान के लिए चुने हैं भाई !
बहुत बढ़िया प्रयास है आपका . आभार .
इस टाइट पोजीशन में हमारे लिए एक बर्थ मिला,इतना ही बहुत है। अब बाक़ियों के साथ सफर अच्छा कट जाएगा।
जबरदस्त प्रयास ......
जय हो जय हो क्या खूब बुलेटिन है ………मगर अफ़सोस 100 मे भी जगह नहीं :(((((((……सार्थक प्रयास फ़ुर्सत से पढेंगे।
बहुत बढ़िया.
तू सी ग्रेट हो भाई ..... आज बरही और ये कमाल .... चलो १०१ का शगुन न लेकर दे ही दिए .... पुत के पांव पालने में कहूँ या दूध के टूटे(हुए)नहीं कहूँ ..... छोडो जो आपको अच्छा लगे ....................... फिल इन द ब्लेन्क्सवाँ
*एक गर्म चाए की प्याली हो*(हो ही जाए)*शायद जीवन को मिले एक नया विस्तार**ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे*(मरें भी कैसे)*हर नज़र आशना, हर जुबां चासनी**लाख दर्द मिले सब्र से काम लेना**रिश्तों की गर्माहट का संग्रह*(है)
*अभिव्यक्ति की आज़ादी और नाक का सवाल ,*(हो तो)*युवा ही देश को सही दिशा में ले जा सकते हैं .....*हँसना मना नही ..हंसते रहो सदा..*
गजब की मेहनत.....
शुक्रिया।
baap re!! ee bulattin hai ki telephone directory... ek dumme se bhar diye guru dev ... par shandaar ek dum dhinchak style ka bulletin maja aa gaya, kal sabke ghar pahuch jayenge right click mar kar...:))
thanx jha jee...:)
१०१ टिप्पणी तो होनी चाहिए हर स्टेशन से
26 नम्बर मेरा है .... चाय लाने क्या गए , कोई आ गया - हटिये जगह मेरी है ... एक नम्बर मिल सकता है क्या थोड़ा ले देके अजय भाई ? :)))
इसे एक शब्द में मैं "असंभव क्रान्ति" कहूँगा!! ई दुब्बर पातर देह में एतना इस्टेमिना कहाँ से ले आते हैं अजय बाबू!! कम्माल है!! ई त रुमाल तीरकर धोती बना दिए हैं!!
शुक्रिया जनाब...
ये समंदर की मौजें ये हवाओं का रुआब...
लगता है किसी कश्ती में खुदा की बरकत हमारे नाम आने वाली है.... !
हमारी पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिए आपका तहे-दिल से शुक्रिया...आपके परिश्रम को सलाम!
इत्ते सारे हँसते मुस्कुराते चेहरों के साथ अपना सफ़र भी जारी है
आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया और आभार इस साप्ताहिक बुलेटिन को सराहने का । ये दुरूह कार्य भाई शिवम मिश्रा जी के सहयोग के बिना संभव भी नहीं था । बहरहाल आप सबको पसंद आया तो यकीन जानिए कि अगले सप्ताह के महाबुलेटिन में हम आपके लिए फ़िर कोई नई कोशिश कोई नया अंदाज़ लेकर सामने आएंगे । अपना स्नेह और विश्वास बनाए रखें । पुन: धन्यवाद आप सबका ।
१०१ पोस्ट्स के लिंक.... इतने विस्तार से.. चित्र के साथ.. लिंक के साथ.... अदभुद प्रयास... सब लिंक तक पहुचने में कम से कम तीन दिन का समय चाहिए... अजय भाई आप धन्यवाद के पात्र हैं.. वाकई शिवम् भाई के सहयोग के बिना संभव नहीं हुआ होगा.... आप दोनों को बहुत बहुत शुभकामना... सार्थक ब्लोग्गिं की दिशा में अच्छी पहल के रूप में जाने जायेंगे आप....
अच्छा प्रयास...मज़ेदार लिंक्स. शुक्रिया.
Nice.
Bahuthee badhiya! Do dinon se padh rahee hun phir bhee poora nahee kar payi!
जै हो.... अजय भईया जबरदस्त बुलेट भगाए...
साप्ताहिक महाबुलेटिन सुपरहिट.....
YOU ARE GREAT
समझ में नहीं आता कि आपके इस अद्भुत प्रयास और अंदाज का किन शब्दों में प्रशंसा करूँ। अबतक के इस प्रकार के ब्लॉगों में सर्वोत्तम। आपकी कल्पना शक्ति को दाद देता हूँ। अनेक ब्लॉगों पर जाकर 101 पोस्टों को पढ़ना और फिर चुनना। काफी श्रमसाध्य कार्य है। मेरा तो कम्प्यूटर इतनी देर में गरम होकर जबाब दे दे।
मेरे लिए एक बोगी एलॉट करने के लिए बहुत-बहुत आभार।
इतने ब्लाग्स मे भी मै कहीं स्टैंद नही करती?????????? सोचना पडेगा। शुभकामनायें।
shukriya mere link ko yaha samil karne ko aabhar bahut aapka
Thanks for such a great content
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