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शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

नफरत, मौकापरस्ती, आरक्षण और राजनीति

बजरंगी भाईजान फ़िल्म में एक संवाद है, "नफरत आसानी से बिक जाती है लेकिन मोहब्बत के लिए बहुत मुश्किल है"। आज गुजरात की हालत देखकर कुछ ऐसा ही लग रहा है। दुनियाँ में गुजरात अपने विकास के लिए जाना जाता था आज वह नफरत की आग में जल रहा है। 

आरक्षण केवल बहाना है इसकी आड़ में हो रहा आंदोलन, विपक्ष द्वारा प्रायोजित एवं फंडित है। मुझे हार्दिक पटेल के हाव-भाव भिंडरावाले सरीखे लग रहे हैं। यह आरक्षण के पक्ष में हो रहा आंदोलन कम बल्कि राष्ट्रविरोधी अधिक प्रतीत हो रहा है। मीडिया टीआरपी के लिये गजब रोटी सेंक रहा है और यह किसी दुःस्वप्न से कम नहीं है। मित्रों आइए इस साज़िश को समझने का प्रयास करते हैं। अंग्रेजों ने भारत से जाते जाते नेहरू को एक मन्त्र दिया था और वह मन्त्र था भारत पर राज करने के लिए भारत का टुकड़ों में बंटे रहना ज़रूरी है। यदि कोई राष्ट्रवादी देश को एक करने का प्रयास करे तो उसे तोड़ दो। जाति, धर्म, सम्प्रदाय के नाम पर जोड़ तोड़ करो और राज करो। यही कांग्रेस ने हमेशा से किया और इसीलिए वह साठ साल राज करने में सफल भी हुई। 

जब पंजाब में अकालियों का कद कांग्रेस पर हावी होने लगा तब उन्होंने भिंडरावाले के नाम का भूत पाला और अकालियों को खदेड़ा। जब इसी भूत ने कांग्रेस को खाना शुरू किया तब उन्होंने उसे घेर के मार गिराया। ठीक इसी प्रकार महाराष्ट्र में मुम्बई वामपंथी गढ़ था और उस अभेद्य गढ़ को गिराने के लिए कांग्रेस ने ही बाला साहेब ठाकरे को वह सब कुछ दिया जिससे यह वामपंथी दुर्ग तोड़ा जा सके, बाद में जो कुछ हुआ उसने उन्हें मुम्बई का महानायक और सर्वेसर्वा बना दिया। बाला ठाकरे की शिवसेना के हिंदुत्व के मार्ग पर चले जाने के कारण कांग्रेस को उन्हें छोड़ना पड़ा। तीसरा उदाहरण लीजिये नक्सली समस्या, पूर्वोत्तर के नक्सली कांग्रेस से फंड लेते रहे हैं और कांग्रेस ने इस समस्या के समाधान की जगह इस भूत को पाले रखा। इसी कड़ी में केजरीवाल आए और आज कल हार्दिक पटेल हैं। जब जब कांग्रेस को चुनावों में मुंह की खानी पड़ी है उसने प्रोपैगैंडा करके समाज को बांटा है अब वह पटेल आरक्षण आंदोलन को हिंसक बनाकर सरकार विरोधी माहौल बनाकर अपना राजनैतिक उल्लू सीधा करने का सोच रही है। कांग्रेस जानती है कि विकास के मार्ग और समस्या के समाधान से भारत में चुनाव नहीं जीते जाते, भारत में चुनाव जीतने के लिए जाति समीकरण को समझना, उसी हिसाब से वोट की जोड़ तोड़ करना होता है। जनता मूर्ख है जो किसी को भी सिर्फ इसलिए वोट दे देगी क्योंकि वह उसकी बिरादरी का है। और तो और कुछ मूर्ख तो सिर्फ़ एक फतवे पर वोट दे देते है क्योंकि उन मे अपना विकास का मार्ग स्वयं चुनने की कोई स्वतंत्रता ही नहीं है। ऐसी जनता के बारे में क्या लिखा जाए..... 


आज शर्म आ रही है कि भारत का सबसे पढ़ा लिखा और समृद्ध समूह सड़क पर आग लगा रहा है क्योंकि उसे पिछड़ी जाति में आरक्षण चाहिए? अरे आरक्षण ख़त्म करने के लिए आंदोलन करो मेरे भटके हुए भाइयों। अपने ही गुलशन को जला कर क्या पाओगे?
 
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आरक्षण की आग

आरक्षण: देश को बचने दो भाई

तब इन्होने ने गुजरात को मज़हब के नाम पर जलाया था अब ये उसे जाति के नाम पर जलाने के लिए निकल आएं हैं अपने बिलों से 

हिंसक होती आरक्षण की मांग

एक और अभिमन्यु 

फिर निकला आरक्षण का जिन्न 

क्या आपको पटेल समुदाय के इस आरक्षण आंदोलन पर संदेह नहीं होता? 

आरक्षण समाप्त करने का नया जादू 

मुद्दा:हार्दिक पटेल और आन्दोलन का विरोध क्यों? 

योग्यता को ठेंगा दिखा रहा आरक्षण 

सरदार और गाँधी का गुजरात

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अब आज्ञा दीजिये ...

आपका 

7 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

आग भी है और कुछ धुआँ है
पीछे खाई और आगे कुआँ है
बेचारी राजनिति अब फ़ंस गई
आरक्षण के धागे में ।
निकालेगा जरूर बाहर
कोई ना कोई धुरंधर
या राजनीति का कोई
पुराना बड़ा बंदर :)

सुंदर बुलेटिन ।

कविता रावत ने कहा…

कोई भी आग बिना राजनीति की सुलगती नहीं ...
सटीक विमर्श-सह-सार्थक बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

Madabhushi Rangraj Iyengar ने कहा…

मुझे आपसे असहमति जताने में तकलीफ हो रही है, पर हालातों से मजबूर हूँ. आप निष्पक्ष होकर विचारें. जिसके लिए आरक्षण शुरु किया गया था वह उद्देश्य किस हद तक पूरा हुआ. आज आरक्षण के नाम पर 45 प्रतिशत वालों को 80 प्रतिशत वालों पर बैठाया जा रहा है. कहने के और तरीके भी हैं लेकिन मुझे वे उचित नहीं लगते. अब तो आरक्षण बंद ही कर देना चाहिए और जरूरत मंदों को ( खासकर संसाधन विहीनों को ) संसाधन उपलब्ध करकर योग्यता - कुशलता परीक्षाओं में समकक्ष उभारकर लाने के लिए - चेष्टा करनी चाहिए ताकि देश की योग्यता के साथ खिलवाड़ न हो.. जो अब तक होता रहा है. फिर देखिए कैसे लोग अमेरिका या आस्ट्रेलिया जाते हैं. सब यहीं बसेंगे.

Dr. Vandana Sharma ने कहा…

bilkul sahi kaha hai, aaj har hindustani ko jagney ki avashyakta hai na ki is tarah ke andolan karney ki, yehi bharatwasi jab videshon main jateyin hai waha bina aaarakshan apney jhandey gadte hain to phir yahan kyun nahi.

Madabhushi Rangraj Iyengar ने कहा…

हार्दिक के आँदोलन के बारे में लिखने वाले - लोगों का ध्यान बहका कर उसके कारणों की तरफ मोड़ना चाहते हैं ताकि मुख्य मुद्दा ही गुम हो जाए. कोई मुद्दे पर बात नहीं करता .. सब जानना चाहते हैं कि इसके पीछे कौन है... कोई भी हो क्या फर्क पड़ता है आम जनता को.. राजनीतिज्ञ लड़ते रहें उसके लिए. या ये मानें कहें कि लिखने वाले लोग राजनीतिज्ञों से प्रेरित हैं.. मुद्दे की सचाई पर कोई लेख क्यों नहीं लिखता??? यदि कोई पीछे से पीएम के गुजरात में सबसे धनी पटेल समाज को बरगला सकता है तो वह बहुत ही ताकतवर हुआ या फिर पटेल समाज के नेता ही हों कौन जाने.. पर जानें क्यों.

Parasmani Agrawal ने कहा…

♨♨♨♨♨♨♨♨♨

क्या सामान्य वर्ग का होना गुनाह है ?

👉 वोट बैंक की राजनीति में आखिर कब तक पिस्ता रहेगा युवा

👉क्या जाति देखकर आती गरीवी

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अपने बड़े बुजुर्गो के माध्यम से अक्सर यह सुनने को मिलता रहता है कि " पांचों अँगुली बराबर नहीँ होती" और यह बात सच भी प्रतीत होती है लेकिन दुर्भाग्य से वोट बैंक रूपी खजाने के लिये सियाशी चाले चलने वाले हमारे नेता सम्भवतः इस बात को मानने को तैयार होते नही दिखाई दे रहे है या फिर ये कहा जाये कि वोट बैंक के समीकरणों में बंधा उनका निजी स्वार्थ इस बात को नजर अंदाज करने को मजबूर कर रहा है तभी तो एक ओर जातिवाद के विरुद्ध समाज में जागरूकता का शंखनाद हो रहा है और दूसरी ओर इसी जातिवाद की खाई को ओर गहरा करने का काम किया जा रहा है। आधुनिक परिवेश में आरक्षण के कारण समान्य वर्ग के युवा खुद में ग्लानि महसूस कर स्वयं से इस सवाल का हल पाने की कोशिश कर रहा कि क्या सामान्य वर्ग का होना गुनाह है ? यँहा हमारा अन्य वर्गों को मिले आरक्षण का विरोध करने की मंशा नही है लेकिन हम कुर्सी के नशे में चूर जनता के उन हमदर्दों से ये पूछना चाहते है जो सिर्फ चुनाव के समय एयर कण्डीशन से बाहर निकल सड़कों की धूल फकते हुये दिखाई देते है " क्या गरीबी जाति देखकर आती है ? यदि हाँ तो मै माननीय नेताजी से हाथ जोड़कर निवेदन करता हूँ कि जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुये जनहित में एक आत ऐसे उदाहरण सामने लाने का कष्ट करें जँहा गरीबी जाति देखकर आई हो
और यदि गरीबी जाति देखकर नही आती तो फिर क्यों देश के ठेकेदारों देश को जातिवाद के बन्धन में बाँट रहे हो एक को बाँट रहे हो और दूसरे को डॉट रहे हो यह स्पष्ट है कि जब गरीबी भी जाति देखकर नहीँ आती तो सम्पनता भी जाति देखकर नही आती क्या वर्तमान में सामान्य वर्ग में ऐसे परिवार नही है जो निम्न स्तर का जीवन जी रहे है जिनके लिये इस परिवेश में 2 जून की रोटी भी बड़े मुशिकल से नसीब हो रही है वक्त आ गया युवाओं जागो और अपनी तूफानी शक्ति से अन्धो और बहरो की तरह बैठे नेताओं को ये दिखाओ कि सामान्य वर्ग में भी ऐसे कई परिवार है जो भुखमरी की कगार पर है । आरक्षण को जातिगत रूप से लागू कर आखिर कब तक सामान्य वर्ग के परिवारों के साथ भेदभाव होता रहेगा और इनके घाव पर जातिगत आरक्षण नामक मिर्च का छिड़काव कर इस आवाज को निकालने पर मजबूर किया जायेगा कि क्या सामान्य वर्ग का होना गुनाह है ? मै सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं का आवाहन करता हूँ कि सरकार द्वारा किये जा रहे भेदभाव के खिलाफ घर की देहरी लाँघ सोये हुये जनप्रतिनिधियो को जगाने का काम करें और अपने अधिकार के प्रति आवाज बुलन्द करें वक्त आ गया है कि अब जातिगत आरक्षण को आर्थिक आधार पर परिवर्तित करवाने को आगे आये जिससे फिर किसी के जहन में इस सवाल की संरचना न हो कि क्या सामान्य वर्ग का होना गुनाह है 7524820277 व्हाट्सएप पर आर्थिक आरक्षण लिखकर अपने नाम और पता सहित मैसेज कर हमारे साथ जुड़े जिससे जल्द से जल्द सोशल मीडिया के साथ साथ धरातल पर भी आवाज बुलन्द कर अपने जनप्रतिनिधियो तक यह सन्देश पहुँचा सके कि अब जातिगत नही आर्थिक आरक्षण लेने के लिये जनता जाग चुकी है।

पारसमणि अग्रवाल
7524820277

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बुलेटिन के बहाने बढ़िया विचार विमर्श रहा ... आभार देव बाबू |

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