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शुक्रवार, 25 मई 2012

“न सोच, न खोज...., से ''सुनहरे कल'' तक

 आपां दोवें रुस बैठे तां मनाउं कौण वे, ओह ओह मैं इस पंजाबी गीत में इतना खो गया था कि मुझे याद ही नहीं रहा कि मैं ब्‍लॉग बुलेटिन लेकर हाजिर हो रहा हूं। ऐसे मौसम में ऐसे गीत अच्‍छे लगते हैं। आपको नहीं पता, आज कल रूठने मनाने का मौसम चल रहा है। जोशी के अस्‍तीफे से मोदी को मनाया गया, तो हाल के दिनों में पार्टी के लिए फैसले और कार्यप्रणाली से शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी नाराज हो गए हैं। ऐसे में भाजपा को हंस राज हंस का गाया हुआ पंजाबी गीत सुनना चाहिए। भाजपा का तो पता नहीं लेकिन इस गीत का फिलहाल मैं आनंद उठाता हूं, आप तब तक पढ़िए। ब्‍लॉग बुलेटिन।
 
“न सोच, न खोज, उड़ जइहें जग है तोप…” ब्‍लॉग-अनुभव से
जीवनगीत है बस ताल से ताल मिलाते रहिए। गीत खोजना मानो जीवन में चांद और सूरज के बीच प्रकाश का कारोबार करना। सिनेमा इसी कारोबार के बीच-बीच में गीत की मिठी-नमकीन दुनिया बसाती है और हमारा मन उसी दुनिया में सो जाने की जिद करने लगती है। दरअसल इन दिनों बहुप्रतिक्षित फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के गीतों को सुनते वक्त ऐसा ही कुछ उल्टा-पुलटा, सीधा-टेढ़ा अनुभव हो रहा है। अनुराग कश्यप की इस फिल्म में गीतों का जो स्वर है वह दरसअसल हिंदुस्तान का स्वर है। फिल्म और गीतों की समीक्षा लिखने की कला से सौ-फीसदी गंवार होते हुए भी अनुराग की इस अंचलमय कृति पर लिखने के लिए जी मचल उठा है। ताकि हम भी पीयूष मिश्र... more »

ज़रा सोचिये .. ब्‍लॉग- स्‍पंदन से
मैं मानती हूँ कि लिखा दिमाग से कम और दिल से अधिक जाता है, क्योंकि हर लिखने वाला खास होता है, क्योंकि लिखना हर किसी के बस की बात नहीं होती और क्योंकि हर एक लिखने वाले के लिए पढने वाला जरुरी होता है और जिसे ये मिल जाये तो "अंधे को क्या चाहिए दो आँखें" उसे जैसे सबकुछ मिल जाता है.और इसीलिए उसके यह कहने के वावजूद "कि कोई बड़ी बात नहीं है पर आपको बता रहा हूँ" मेरा ये पोस्ट लिखना जरुरी हो जाता है .आखिर हर एक ब्लॉगर भी जरुरी होता है और जो ब्लॉगर दूसरे ब्लॉगर के मना करने के वावजूद ना लिखे वो भला कैसा ब्लॉगर:):). इसीलिए सुनिए - अभी कल... नहीं शायद परसों... अजी छोड़िये क्या फर्क पड़ता है .... more »


क्यों बौखलाए हुए हैं शाहरुख खान?  ब्‍लॉग - चवन्नी चैप से

-अजय ब्रह्मात्मज बाल मनोविज्ञान के विशेषज्ञ ठीक-ठीक बता सकते हैं कि हाल ही में सुहाना के सामने हुई उनके पिता शाहरुख खान और मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के अधिकारियों के बीच हुई बाताबाती और झड़प का उन पर क्या असर हुआ होगा? जो भी हुआ, उसे दुखद ही कहा जा सकता है। शाहरुख खान की बौखलाहट की वजह है। वे स्वयं बार-बार कह रहे हैं कि उनके बच्चों के साथ कोई दुव्र्यवहार करेगा तो उनकी नाराजगी लाजिमी है। उन्हें अपनी नाराजगी और गुस्से में कही बातों का कोई अफसोस नहीं है। वे उसे उचित ठहराते हैं। उनके समर्थक भी ट्विटर पर ‘आई स्टैंड बाई एसआरके’ की मुहिम चलाने लगे थे। पूरा मामला तिल से ताड़ बना और अगले द... more »


अपने तो स्वाभिमान की यात्रा निकलती है   ब्‍लॉग चौथा बांदर से
(आज 25-05-2012 को ‘हिन्दुस्तान’ में प्रकाशित) थोड़ा कन्फ्यूज़ हूं कि ये स्वाभिमान के लिए यात्राओं का युग है या मन का वहम है। क्योंकि यात्रा निकालने लायक स्वाभिमान किसी में बचा ही कहां है। यहां तो मंहगाई और भ्रष्टाचार ने पहले ही सबके स्वाभिमान की यात्रा निकाली हुई है। वैसे भी आजकल समाज इतना सुरक्षित नहीं बचा कि स्वाभिमान साथ लेकर सड़क पर निकलने का रिस्क उठाया जाए। चेन और मोबाइल स्नेचिंग के बाद अब स्वाभिमान स्नेचिंग की बारी है। स्वाभिमान को लेकर आने वाले समय में लूटपाट मचा करेगी मैं बता रहा हूं। जिसका अपना स्वाभिमान परचुन की दुकान के उधार खाते में ज़ब्त हो चुका होगा वो जरूर... more »


क्रिकेट का दीवानापन - खेलों को पनपने नहीं दे रहा है    ब्‍लॉग- उन्‍मुक्‍त से
इस चिट्ठी में नैनीताल में हॉकी मैच और क्रकेट की दीवनगी के कारण अन्य खेलों के दुर्भाग्य की चर्चा है। यह चित्र आनन्दमय चैटर्जी का है और उनके फ्लिकर चित्र संकलन से लिया गया है। नैनीताल में, हमने मचान रेस्त्रां में दोपहर का खाना खाया। वहां से बाहर निकल कर, शुभा, मित्रों को नैनीताल से भेंट देने कि लिये, कुछ शॉल खरीदने चाहे। वह शॉल देखने चली गयी। मुझे खरीदारी करने पर मजा नहीं आता है। मैं उसके साथ नहीं गया। नैनीताल के फ्लैट में मैदान है। यह झील के बगल में है। वहां पर हमेशा की खेलों की प्रतियोगितायें होती रहती हैं। मैं कई बार यहां प्रतियोगिताओं में... more »

बोली बनाम भाषा ऐंड माथापच्ची इन बिहारी             ब्‍लॉग - लहरें से
इन्सोम्निया...कितना रसिक सा शब्द है न? सुन कर ही लगता है कि इससे आशिकों का रिश्ता होगा...जन्मों पुराना. ट्रांसलेशन की अपनी हज़ार खूबियां हैं मगर मुझे हमेशा ट्रांसलेशन एक बेईमानी सा लगता है...अच्छा ट्रांसलेशन ऐसे होना चाहिए जैसे आत्मा एक शरीर के मर जाने के बाद दूसरे शरीर में चली जाती है. मैं अधिकतर अनुवादित चीज़ें नहीं पढ़ती हूँ...जानती हूँ कि ऐसे पागलपन का हासिल कुछ नहीं है...और कैसी विडंबना है कि मेरी सबसे पसंदीदा फिल्म कैन्तोनीज (Cantonese)में बनी है...इन द मूड फॉर लव. ऐसा एक भी बार नहीं होता है कि इस फिल्म को देखते हुए मेरे मन में ये ख्याल न आये कि ट्रांसलेशन में कितना कुछ छूट गया... more »

मजबूर हूं, वरना मैं देश बदल देता।     ब्‍लॉग-युवा सोच युवा खयालात से
माता पिता के ख्‍वाबों का जिम्‍मा है मेरे महबूब के गुलाबों का जिम्‍मा है मजबूर हूं, वरना मैं देश बदल देता। जॉब से छुट्टी नहीं मिलती विद पे ऐसे उलझे भैया क्‍या नाइट क्‍या डे मजबूर हूं, वरना मैं देश बदल देता। भगत सिंह की है जरूरत बेहोशी को मगर यह सपूत देना मेरे पड़ोसी को मजबूर हूं, वरना मैं देश बदल देता। क्रांति आएगी, लिखता हूं यह सोचकर वो भी भूल जाते हैं एक दफा पढ़कर मजबूर हूं, वरना मैं देश बदल देता। अन्‍ना हो रामदेव हो लताड़े जाएंगे मैडलों के लिए बेगुनाह मारे जाएंगे मजबूर हूं, वरना मैं देश बदल देता।more »


टैकल पेट्रोल हाइक मक्खन स्टाइल...खुशदीप   ब्‍लॉग-देशनामा से
सरकार बड़ी समझदार है...उसने पेट्रोल के दामों में साढ़े सात रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी सब सोच-समझ कर की है...सरकार को पता है कि तीन-चार दिन देश भर में हो-हल्ला होगा...कुछ ज़्यादा ही हुआ तो सरकार दो-ढाई रुपए का रोल-बैक कर लेगी...फिर जनता भी खुश...चलो कुछ तो सरकार को झुकाया...लेकिन मक्खन सरकार से भी ज़्यादा स्याना है...देखिए उसने पेट्रोल बढ़ोतरी से निपटने के लिए क्या-क्या रास्ते निकाले हैं... मक्खन पेट्रोल पंप पहुंचा... पंप अटैंडेंट ने पूछा...कितने का पेट्रोल डालूं... मक्खन....दस-बीस रुपए का दे दे... अटैंडेंट....क्यों मज़ाक कर रहे हो साहब... मक्खन...ओए, मैं टंकी में नहीं कार के ऊप... more »

सुभीता और सहूलियत     ब्‍लॉग- शब्दों का सफर से
बो लचाल की हिन्दी का एक आम शब्द है* सहूलियत* जिसका प्रयोग सुभीता, सुविधा, आसानी के अर्थ में होता है । सहूलियत का मूल तो अरबी भाषा है मगर हिन्दी में यह फ़ारसी से आया है । दरअसल इसका शुद्ध अरबी रूप *सहूलत* है । मराठी में सुविधा या आसानी के लिए *सवलत* शब्द प्रचलित है । इस *सवलत* में अरबी *सहूलत*के अवशेष देखे जा सकते हैं । * सहूलत* जब फ़ारसी में पहुँचा तो इसका रूप* सोहुलत* हुआ । इस रूप के अवशेष भी मराठी के *सोहलत* में नज़र आते हैं ।* सहूलत* का एक और रूप भी मराठी में है व्यंजन का रूपान्तर सहजता से स्वर में हो जाता है । अरबी *सहूलत* से जिस तरह मराठी में *सवलत *बन रहा है उसी ... more »


सुनहरा कल   ब्‍लॉग-काव्यान्जलि  से
सुनहरा कल, सड़क तट पर लिखे हुए अनगिनत नारे हम एक अरसे से पढ़ रहे है, उनमे से एक 'हम सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे है'! हमने नारी की पीड़ा को बहुत नजदीक से मौन रह कर देखा है, तंदूर में रोटी की जगह मानव ने एक अबला को किस प्रकार सेंका है! नारी के यौन शोषण से पापों का घडा ये नर पिशाच भर रहें है, फिर भी हम अविरल सुनहरे कल की बात कर रहे है! औषधालय में रोज नूतन अग्निदग्धा लाई जाती है, दहेज न मिलने पर, बेचारी जबरन जलाई जाती है! जलती हुई अबला की चीखें हमे सुनाई नही देती, लुटती हुई नारी की अस्मत हमे दिखाई नही देती! सब कुछ देखते हुए भी, हम पूरी तरह मौन है, हम अनभिज्ञ है कि इस सुनहरे कल का निर्माता कौन है-?,,,... more » 

अच्‍छा तो हम चलते हैं...................समय इजाजत नहीं देता।

6 टिप्पणियाँ:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन................

सिमटे हुए ,अच्छे लिंक्स...
शुक्रिया.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बहुत बढ़िया अंदाज़ मे लगाई है आपने आज की बुलेटिन ... देखता हूँ एक एक कर के सब लिंक्स ... आभार कुलवंत भाई !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रोचक सूत्र..

अजय कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर लिंकों का चयन कुलवंत भाई । बढिया बांचा बुलेटिन आपने

मनोज कुमार ने कहा…

सारे लिंक्स न पढ़े हुए थे। अच्छा लगा इन पोस्टो से मिलकर।

मनोज कुमार ने कहा…

इस बुलेटिन से गुजरना अच्छा लगा।

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