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गुरुवार, 24 मई 2012

क्या बुराई है राजनीति को कैरियर बनाने में ...

          आज कल बेरोजगारी अपने चरम पर है, हर किसी के हाथों में डिग्री है, इंजीनियरिंग से कम में तो कोई बात ही नहीं करता... लेकिन नौकरी ... उसके लिए तो गज़ब की मारामारी चल रही है... ऐसी कोई डिग्री, ऐसा कोई कोर्स नहीं जहाँ नौकरी की गारंटी मिलती हो.... ऐसे में सब अपने कैरियर के चुनाव में पेशोपेश में रहते हैं... स्कूल के समय से ही विद्यार्थियों पर दवाब बन जाता है ताकि वो अपना कैरियर चुनकर उसपर अपना 100 परसेंट दे सकें... तरह तरह के इन अवसरों को तलाश करते युवा गलती से भी कभी राजनीति में आने का नहीं सोचते.. आखिर ऐसा क्या है जो उन्हें इस तरफ आने से रोक देता है..बस एक सोच एक विचार मेरे ब्लॉग पर...
          ये मोबाईल और इंटरनेट की दुनिया में चिट्ठियों का सिलसिला तो कहीं खो सा गया... मुझे याद है जब डाकिये को देखकर मेरा बाल मन खुश हो जाता था... खैर एक बहुत ही ग़मगीन कर देने वाली कविता लिखती है संध्या शर्मा जी.... खत...
ज़िंदगी क्या है? कबाड़ के खिलौना बनने से...
खिलौनों के कबाड़ बन जाने की दास्तान...
उम्र बढ़ने के साथ साथ कीमत घटती जाती है...
उफ़ क्या गज़ब का लिखा है... पढ़िए कुछ और ऐसी ही जबरदस्त क्षणिकाएं दिलीप जी के ब्लॉग से....कुछ यूँ ही...स्वप्न मञ्जूषा जी एक मजेदार वाक्या सुनाते हुए कह रही हैं...  कुछ तो बात है.... बिहार के पानी में...! जी हाँ हम भी इत्तिफाक रखते हैं, आप कह रही हैं तो सच ही होगा... अभिषेक कुमार जी अपने ब्लॉग पर एक बता रहे हैं कि, जाको राखे साईयां मार सके ना कोई  ... जी हाँ बिल्कुल सही है... इनकी वीरता के बारे में तो आप सबको भी पढना चाहिए....बब्बन पण्डे जी बाल कविता लिखते हुए बयान कर रहे हैं बढती हुयी गर्मी का दर्द... आग उगल रही आकाश...हम हर वो काम कर रहे हैं जो हमारे इंसान होने पर संदेह पैदा करता है... फिर भी हम ये कहते हुए नहीं चूकते, फिर भी हम इंसान हैं... वहां जाकर अपने विचार भी बताएं उन्हें....विवाह के बाद औरत की ज़िन्दगी तरह तरह के नयी जिम्मेदारियों से घिर जाती है... दिगंबर जी किस तरह बता रहे हैं अपनी ख़ुशी... पढ़िए.. मेरी जाना ... सुमन जी अपने ब्लॉग पर एक छोटी सी कवितानुमा पंक्तियाँ लिखती हैं..  तुम कहते थे न...   संगीता जी अपने ब्लॉग पर दिखा रही हैं, मन समंदर.. ज़रूर देखें... यशवंत जी की तो बात बन गयी और आपकी... विक्की डोनर की एक और समीक्षा पढ़िए मनोज जी के ब्लॉग पर... अपना एक रोचक संस्मरण बाँट रहे हैं महेंद्र श्रीवास्तव... ऊंचे लोग ऊंची पसंद ....  अरुण चन्द्र राय जी के ब्लॉग पर कविता के रूप में रुपया गिर रहा है...

अब आज्ञा दीजिये ... फिर मिलेंगे अगले गुरुवार !

14 टिप्पणियाँ:

Kulwant Happy ने कहा…

बहुत उम्‍दा रही पोस्‍ट

shikha varshney ने कहा…

युवा राजनीती को एक करियर की तरह नहीं देखते इसकी एक वजह हो सकती है कि हमारे यहाँ राजनीती में आने के लिए किसी भी किस्म की शैक्षिक योग्यता की बद्ध्यता नहीं रखी गई है. जिस दिन यह नियम बनेगा कि राजनीती में आने के लिए समाज शास्त्र या राजनीती शास्त्र में कम से कम ग्रेजुएशन या पी एच डी करना जरुरी है और उसी के हिसाब से मंत्री पद मिलेगा. उसी दिन राजनीती को एक करियर के तौर पर लिया जाने लगेगा.
बढ़िया बुलेटिन ..

संध्या शर्मा ने कहा…

युवा इस भ्रष्ट राजनीती से तंग आ चुका है, फिर भला इसमें करियर बनाने का कैसे सोच सकता है. बढ़िया ब्लॉग बुलेटिन... अच्छे लिंक...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चलिये, पढ़ आये सारे सूत्र..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Sundar charcha ... Ache links ... Shukriya mujhe shamil Karne ka ...

शिवम् मिश्रा ने कहा…

शेखर बाबू बहुत बढ़िया लिंक्स के साथ साथ एक सार्थक विचार दिया आपने सबको ... आभार !

babanpandey ने कहा…

आभार शेखर जी ... आशा है मेरी बाल-कविता सबका मोहेगी

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बढिया लिंक्स
मैं भी हूं यहां तो

अजय कुमार झा ने कहा…

खतों की याद खूब दिलाई , वैसे हम तो पुरानी दुनिया के दस्तूर बनाने में लगे हैं , देखें कितने खतों का जवाब आता है पलट के । बहुत बढियां बांचे हो बच्चा बुलेटिन । छाए रहो , लगाए रहो

वाणी गीत ने कहा…

राजनीति या लोकसेवा में सिस्टम में ढलना पड़ जाता है , इसलिए लोंग कतराने लगे हैं !
ईमेल , एस एम एस के इस दौर में खतों की कमी बहुत अखरती है , अब कहाँ होता है डाकिये का इंतज़ार !
अच्छे लिंक्स !

vandana gupta ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन .

Maheshwari kaneri ने कहा…

बढिया लिंक्स,बढ़िया बुलेटिन .,

Pankaj singh ने कहा…

shikha varshney आप बिल्किुल सही बोल रही हो

Pankaj singh ने कहा…

संध्या शर्मा जी और इसे युवा ही बदल सकते है। आशावादी होना बहुत जरूरी है

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