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गुरुवार, 17 मई 2012

आज के बुलेटिन की गाडी खामोश दिल के स्टेशन से...

        चूंकि आज पहली बार मैं आप सबके सामने उपस्थित हुआ हूँ तो सबसे पहले अपना परिचय करवा देता हूँ... नाम तो आप पढ़ ही लेंगे लेकिन नाम पर मत जाईयेगा मैं वो शेखर सुमन नहीं जो टीवी पर दिखता है... पिछले ढाई सालों से अपने निजी ब्लॉग पर सक्रिय हूँ शायद आपमें से कईयों ने पढ़ा भी हो " खामोश दिल की सुगबुगाहट" ...  लेकिन पहली बार अपने निजी ब्लॉग के आलावा कहीं और पोस्ट लगा रहा हूँ, और वो भी ब्लॉग बुलेटिन... पहले पोस्ट की चर्चाओं वाले ब्लॉग को देख कर सोचता था, न जाने कितनी मेहनत से चर्चाकार पोस्ट लगाते होंगे... न जाने कितने ब्लॉग छान कर दिन भर का सार लाते होंगे...  बहुत दिन पहले शिवम भैया ने बुलेटिन लगाने कहा था तो आज जब खुद चर्चा लगाने बैठा तो बहुत अच्छा लग रहा है...
तो देर न करते हुए बुलेटिन की इस गाडी को ग्रीन सिग्नल दिखाते हैं... 
            आज दिन की पहली ही पोस्ट पढ़ी, और मन अजीब सा हुआ क्यूंकि ये एक ऐसा विषय है जिसमे मैं भी बहुत दिलचस्पी रखता हूँ, आत्महत्या करने पीछे अलग अलग परिस्थितियां हो सकती हैं... कुछ में इंसान लाचार होता है और कुछ में भाव में बह जाता है... लेकिन इस पर आज केवल पल्लवी जी की राय पढ़ते हैं... अपने विचार भी ज़रूर बताईयेगा उन्हें.... बच्चों समेत सामूहिक आत्महत्या सही या गलत ??
           इतनी भारी-भरकम पोस्ट पढने के बाद आईये थोड़ी चाय पी लेते हैं, लेकिन अरे रुकिए देखिये आपके चाय पीने के अंदाज़ को अमित जी गौर से देख रहे होंगे...  भाई हमें ऐसे चाय पीने की तलब तो नहीं है लेकिन अमित जी का ऐसा लेख पढ़ लिया कि मन कर रहा है कि हम भी पी कर देख लें अपना चाय पीने का अंदाज़... अरे आप भी पढ़िए ये पोस्ट और अपने चाय पीने के अंदाज़ को देखिये... " अंदाज़ चाय पीने के ......"
          स्वप्न मञ्जूषा जी अपनी एक खूबसूरत ग़ज़ल लायी हैं और साथ में उनकी आवाज़ का जादू भी, हर बार की तरह बेहतरीन... चेहरे को देखिये उनकी नज़र से....           ज़िन्दगी में अच्छे रिश्तों और रिश्तों की बारीकियों को समझना बहुत ज़रूरी होता है, इसी विषय पर विजय कुमार जी अपनी कविता में कहते हैं... ज़िन्दगी, रिश्ते और बर्फ .....!
            हर बार कि तरह वंदना जी आज भी कविता के माध्यम से आपको सोचने पर मजबूर करेंगी.... पढ़िए और जाकर टिपिया आईये.... "रूहों को जिस्म रोज कहाँ मिलते हैं........."
            अक्षरों का महत्व भला कौन नहीं जानता, अक्षरों के बिना क्या आज कि ये पीढ़ी कुछ कर पाती, अक्षरों के इन्हीं जीवन को यशवंत माथुर जी अपनी कविता से बखूबी दर्शाते हैं.... आप खुद ही पढ़ लीजिये...
अक्षरों का जीवन .....
           आखिर इंसान उदास क्यूँ होता है... शायद ये भी ज़िन्दगी का ही हिस्सा है, अब हमेशा कोई खुश तो नहीं ही रह सकता न... खैर हरीश जी अपने ब्लॉग पर एक शानदार ग़ज़ल लिखते हैं और ग़मगीन कर जाते हैं.... जिंदा हूँ आज भी मगर गम कि लिबास में...
           अब अगर गजलों की बात हो और स्वप्निल जी की गजलों का जिक्र न हो तो बात कुछ बनेगी नहीं, वो हर बार की तरह एक शानदार ग़ज़ल लिखते हैं....  हँस के बीमार कर दिया देखो
नींद भी अजीब चीज है, नींद में आप जो मर्ज़ी चाहे सोच सकते हैं, अब देखिये न बाबुषा जी  न जाने क्या क्या दिखा रही हैं नींद में.... मेरे केंचुले तुम्हारी मछलियाँ...
            और आखिर में सदा जी के ब्लॉग पर एक बहुत ही प्यारी सी कविता.... संस्‍कारों की हथेली पर ....!!!
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           मन तो कर रहा है कि इस रेलगाड़ी में और डब्बे जोड़ने का लेकिन इस सप्ताह के लिए इतना ही अगले गुरुवार को ये खामोश दिल फिर सुगबुगायेगा और लाएगा नयी बुलेट ट्रेन...  तब तक के लिए हँसते रहें मुस्कुराते रहें...

24 टिप्पणियाँ:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बढ़िया शेखर जी.................
बहुत प्यारा प्रस्तुतीकरण है......
कुछ जुदा सा.....कुछ अपनापन सा लिए...

अगले गुरुवार के इन्तेज़ार में....

अनु

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ये तो बड़ी अच्छी साहित्यिक रेलगाड़ी है ... बहुत बढ़िया

समयचक्र ने कहा…

badhiya charcha ... badhai ..

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

sundar prastuti ! aur behtareen links !

Dev K Jha ने कहा…

जियो सेखर भाई.... गज्जब रेलगडी चलाए हो भाई.....

Anupama Tripathi ने कहा…

badhia buletin ....!!
shubhkamnayen ...!!

vijay kumar sappatti ने कहा…

शेखर जी , नमस्कार , मेरी कविता को शामिल करने के लिये धन्यवाद. आपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है . आपका आभार

विजय

अजय कुमार झा ने कहा…

नहीं बच्चे , अब ये पोस्ट खामोश नहीं रही शेखर । बहुत ही खूबसूरती से सजाया है तुमने । शब्दों का चयन और शैली कमाल रही है । अब संभालो इसे धीरे धीरे बच्चा लाल रे ।

रचना ने कहा…

great work

अल्फाजों की जागीर ने कहा…

gud job..!

हरीश जयपाल माली ने कहा…

शेखर जी इस बज्मी रेलगाड़ी का संचालन बड़े ही लाजवाब तरीके से किया है आपने...साहित्यिक शुभकामनाएं!
बगैर टिकट के मेरी पोस्ट को यात्रा में शामिल करने के लिए आपको तह-ऐ-दिल से शुक्रिया...!
अब रेलगाड़ी के बाकी डिब्बों की टी.टी. बनके छानबीन कर ही लूं...

amit kumar srivastava ने कहा…

बेहद उम्दा | विभिन्नताओं से लबालब भरा हुआ दिलचस्प संकलन | बधाई और आभार भी ,मेरी चाय कबूल करने के लिए |

Shah Nawaz ने कहा…

शेखर सुमन भाई, ब्लॉग बुलेटिन टीम में मेरी ओर से आपका बहुत-बहुत स्वागत है.... ज़बरदस्त रहा यह बुलेटिन!!!!!!!!!!!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

शेखर बाबू बहुत बहुत स्वागत है ब्लॉग बुलेटिन की टीम मे आपका ! आज आपकी यह पोस्ट देख कर कोई नहीं कहेगा कि इस से पहले आपने कभी ब्लॉग पोस्टो की चर्चा नहीं की है ... बेहद उम्दा लिंक्स से सजाया है आपने अपनी पहली बुलेटिन को ... अगले गुरुवार का इंतज़ार रहेगा !

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

शेखर जी, आपका स्वागत है,..अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई,...

MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....

मनोज कुमार ने कहा…

बुलेटिन की टीम में स्वागत है। और साथ ही है शुभकामनाएं।

Madhuresh ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति है भाई... बधाई इतने अच्छे लिंक्स चुनने के लिए..

वाणी गीत ने कहा…

सभी बेहतरीन लिंक्स !

Maheshwari kaneri ने कहा…

इस साहित्यिक रेलगाड़ी का तो जवाब नहीं ... अच्छे लिंक्स.. बहुत प्यारा प्रस्तुतीकरण है.....

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति... बधाई सहित शुभकामनाएं ।

vijay ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति,पर बुलेटिन की नई साज सज्जा से लोकप्रिय पोस्ट क्यों हटा दिया? शायद धीरेन्द्र जी की पोस्ट हटने का..........सच स्वीकारने की प्रवित्त हम ब्लागरो.में भी नही?

vandana gupta ने कहा…

क्या खूब गाडी चलायी है शेखर जी ………सभी डिब्बे बढिया हैं।

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

nice post ..abhar

shikha varshney ने कहा…

आपको परिचय की जरुरत नहीं थी. खामोश दिल की सुगबुगाहट देखते रहे हैं. और अब पता चला रेलगाड़ी भी अच्छी चला लेते हैं आप :)
शुभकामनाएँ.

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