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सोमवार, 20 अगस्त 2018

101वीं जयंती - त्रिलोचन शास्त्री और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिन्दी ब्लॉगर्स को नमस्कार। 
त्रिलोचन शास्त्री
त्रिलोचन शास्त्री (अंग्रेज़ी: Trilochan Shastri; जन्म- 20 अगस्त, 1917, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 9 दिसम्बर, 2007, गाज़ियाबाद) को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्य धारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। वे आधुनिक हिन्दी कविता की प्रगतिशील 'त्रयी' के तीन स्तंभों में से एक थे। इस 'त्रयी' के अन्य दो स्तम्भ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे। त्रिलोचन शास्त्री काशी (आधुनिक वाराणसी) की साहित्यिक परम्परा के मुरीद कवि थे।

शास्त्री जी को 'हिन्दी सॉनेट' का साधक माना जाता है। उन्होंने इस छंद को भारतीय परिवेश में ढाला और लगभग 550 सॉनेट की रचना की। इसके अतिरिक्त कहानी, गीत, ग़ज़ल और आलोचना से भी उन्होंने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। उनका पहला कविता संग्रह 'धरती' 1945 में प्रकाशित हुआ था। 'गुलाब और बुलबुल', 'उस जनपद का कवि हूं' और 'ताप के ताये हुए दिन' उनके चर्चित कविता संग्रह थे। 'दिगंत' और 'धरती' जैसी रचनाओं को कलमबद्ध करने वाले त्रिलोचन शास्त्री के 17 कविता संग्रह प्रकाशित हुए।

जीवन के अंतिम वर्ष उन्होंने अपने सुपुत्र अमित प्रकाश सिंह के परिवार के साथ हरिद्वार के पास ज्वालापुर में बिताए थे। अंतिम वर्षों में भी वे काफ़ी जीवंत रहे। वार्धक्य ने शरीर पर भले ही असर डाला था, पर उनकी स्मृति या रचनात्मकता मंद नहीं पड़ी थी। त्रिलोचन शास्त्री का निधन 9 दिसम्बर, 2007 को गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ।


आज कविवर त्रिलोचन शास्त्री जी के 101वें जन्म दिवस पर हम सब उन्हें याद करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।  

रविवार, 19 अगस्त 2018

परमात्मा को धोखा कैसे दोगे ? - ओशो

 
सम्राट सोलोमन के जीवन में कथा है। एक रानी उसके प्रेम में थी और वह उसकी परीक्षा करना चाहती थी कि सच में वह इतना बुद्धिमानं है जितना लोग कहते हैं? अगर है, तो ही उससे विवाह करना है। तो वह आई। उसने कई परीक्षाएं लीं। वे परीक्षाएं बड़ी महत्वपूर्ण हैं।

उसमें एक परीक्षा यह भी थी-वह आई एक दिन, राज दरबार में दूर खड़ी हो गई। हाथ में वह दो गुलदस्ते, फूलों के गुलदस्ते लाई थी। और उसने सोलोमन से कहा दूर से कि इनमें कौन से असली फूल हैं, बता दो। बड़ा मुश्किल था। फासला काफी था। वह उस छोर पर खड़ी थी राज दरबार के। फूल बिलकुल एक जैसे लग रहे थे।

सोलोमन ने अपने दरबारियों को कहा कि सारी खिड़कियां और द्वार खोल दो। खिड़कियां और द्वार खोल दिए गए। न तो दरबारी समझे और न वह रानी समझी कि द्वार-दरवाजे खोलने से क्या संबंध है। रानी ने सोचा कि शायद रोशनी कम है, इसलिए रोशनी की फिकर कर रहा है, कोई हर्जा नहीं। लेकिन सोलोमन कुछ और फिकर कर रहा था। जल्दी ही उसने बता दिया कि कौन से असली फूल हैं, कौन से नकली। क्योंकि एक मधुमक्खी भीतर आ गई बगीचे से और वह जो असली फूल थे उन पर जाकर बैठ गई। न दरबारियों को पता चला, न उस रानी को पता चला।

वह कहने लगी, कैसे आपने पहचाना? सोलोमन ने कहा, तुम मुझे धोखा दे सकती हो, लेकिन एक मधुमक्खी को नहीं।

एक छोटी सी मधुमक्खी को धोखा देना मुश्किल है, तुम तो परमात्मा को भी धोखा देना चाहते हो। परमात्मा को कैसे धोखा दोगे?
🌹ओशो 🌹

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हिन्दी की लोकप्रिय पत्रिका 'उदंती' में प्रकाशित अशोक चक्र विजेता मेजर अरुण जसरोटिया को दी गई श्रद्धांजलि स्वरूप मेरा लिखा एक संस्मरण -----

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