अनीता लागुरी"अनु" के ब्लॉग से मिलिए,
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क स्त्री समेटती हैं,
अपने आँचल की गाँठ में,
परिवार की सुख शांति,
और समझौतों से भरी हुई
अंतहीन तालिका.
ख़ुद के उसके दुखों का हिसाब,
उसकी मुस्कुराहटों की पर्चियां,
वो अक्सर ही गायब रहती है।
उसके तैयार किए गए
विवरण पुस्तिका से,
कहने को तो
सिलती है उधड़े हुए कपड़ों को
मगर खुद की उसके बदन में,
चूभोई गईं अनगिनत सुइयों का
दर्द रहस्यमई परतों में दर्ज हो जाता है,
जिसके दरवाजे सिर्फ़ उसकी चाह पर खुलते हैं
एक तमगे की तरह,
दीवाल पर टांग दी जाती है,
पीछे से उसका अतीत,
ठहाके मारते हुए निकल जाता है।
और वर्तमान कहता है उससे
सूख जाएगी तू भी एक दिन
आंगन में मुरझाते इस तुलसी के पौधे की तरह,
अपनी ही किस्मत की लकीरों से
उलझती रहती है तमाम उम्र,
जैसे मोमबत्ती के पिघलने से
बनती है आकृतियां कई
वह भी कई बार अनचाहे बही खातों में,
ख़ुद की दोहरी जिंदगी को,
बदसूरत बना देती है,
अपने आँचल की गाँठ में,
परिवार की सुख शांति,
और समझौतों से भरी हुई
अंतहीन तालिका.
ख़ुद के उसके दुखों का हिसाब,
उसकी मुस्कुराहटों की पर्चियां,
वो अक्सर ही गायब रहती है।
उसके तैयार किए गए
विवरण पुस्तिका से,
कहने को तो
सिलती है उधड़े हुए कपड़ों को
मगर खुद की उसके बदन में,
चूभोई गईं अनगिनत सुइयों का
दर्द रहस्यमई परतों में दर्ज हो जाता है,
जिसके दरवाजे सिर्फ़ उसकी चाह पर खुलते हैं
एक तमगे की तरह,
दीवाल पर टांग दी जाती है,
पीछे से उसका अतीत,
ठहाके मारते हुए निकल जाता है।
और वर्तमान कहता है उससे
सूख जाएगी तू भी एक दिन
आंगन में मुरझाते इस तुलसी के पौधे की तरह,
अपनी ही किस्मत की लकीरों से
उलझती रहती है तमाम उम्र,
जैसे मोमबत्ती के पिघलने से
बनती है आकृतियां कई
वह भी कई बार अनचाहे बही खातों में,
ख़ुद की दोहरी जिंदगी को,
बदसूरत बना देती है,
7 टिप्पणियाँ:
वाह ! प्रिय अनु , इस प्रतिष्ठित मंच पर तुम्हारी रचना शोभायमान है, जिसे लिए हार्दिक बधाई तुम्हें। ब्लॉग जगत की सनसनी ने आज यहाँ अपना जलवा बिखेरा है, ये अत्यंत खुशी की बात है। चाहूँगी , पाठक तुम्हारे ब्लॉग पर जाकर तुम्हारी, मा, अदना सी एक तस्वीर, वो गुलाबी स्वेटर,मोनालिसा से,जैसी शानदार रचनाएँ जरूर पढ़ें, क्योंकि आज की प्रस्तुत रचना तो केवल बानगी भर है, अनीता की प्रतिभा की। तुम्हारी मौलिक शैली तुम्हें यश के शिखर तक पहुंचाए, मेरी यही दुआ है। ढेरों शुभकामनायें। 🌹🌹🌹🥞🌹🌹🌹🥞🌹🌹
शुक्रिया ब्लॉग बुलेटिंन, इस समर्थ उदीयमान रचनाकार के लेखन को सम्मान देने के लिए 🙏🙏🙏
वाह क्या बात है युवा कवयित्री की सुंदर रचना।
अनु की लेखनी से निकली अभिव्यक्ति मन को सदैव झकझोर जाती है। समाज को नवीन दिशा प्रदान करने में सक्षम अनु जैसी रचनाकारा आज साहित्य का उज्जवल भविष्य है।
सचमुच बेहद सराहनीय अवलोकन रश्मि जी।
सादर ।
जी बहुत-बहुत धन्यवाद आपका रेणु जी ,आपकी स्नेहिल टिप्पणी ने मेरे मनोबल में कई गुना वृद्धि कर दी ,मुझे भी बेहद खुशी हुई खुद को इस मंच पर देखकर...
एवं आप सभी का स्वागत है मेरे ब्लॉग पर ..!!
जी बहुत-बहुत आभार श्वेता दी आपका ,आपने मुझ तक यह जानकारी पहुंचाई, और साथ ही आपकी स्नेहिल प्रतिक्रियाएं हमेशा ही मुझे और अच्छा लिखने को प्रेरित करती रही है
एक बार और आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
एक समर्थ लेखनी की सार्थक अभव्यक्ति! बधाई और आभार!!!
एक तमगे की तरह,
दीवाल पर टांग दी जाती है,
पीछे से उसका अतीत,
ठहाके मारते हुए निकल जाता है।
और वर्तमान कहता है उससे
सूख जाएगी तू भी एक दिन
आंगन में मुरझाते इस तुलसी के पौधे की तरह,
बहुत सुंदर और सार्थक रचना अनीता जी
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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!