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बुधवार, 4 दिसंबर 2019

2019 का वार्षिक अवलोकन  (चौथा)




आज है लवली गोस्वामी का ब्लॉग 




जहाँ मैं पली – बढ़ी उन मनुष्यों में अहंकार का आदिवास था
इतनी उथली थी उनकी गागर कि बात - बात में छलक जाती थी
कमज़ोर फिनाइल पी लेते
बहादुर तलवार - लाठी लेकर दूसरों को मारने निकल पड़ते.

मैं कभी इतनी बहादुर न हुई
कि मर जाने का सोचूं
मैंने मृत्यु को तवज्जोह देने लायक क्षणों में भी जीवन को चुना
मौत के करीब आदमी के मन में
जीवन के दृश्य होते हैं
मृत्यु के पार क्या है? कौन जानता है.

अपमान के जवाब में मन में हमेशा दुःख रहा प्रतिशोध नहीं
यह भी सोचने की बात है कि
इस दुनिया में आत्मरक्षा के नाम पर
रिवाल्वर का लाइसेंस ख़रीदा जाता हैं
बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं
भय ने बिना शोर किये शब्द की परिभाषा बदल दी
हम कुछ न कर पाए.

कोई गलती इस दुनिया की बुनावट में ही है.
औज़ार गला कर हथियार बनाने के नारे यहाँ आम हैं
लेकिन कोई नारा यह नहीं कहता कि हथियारों को गलाकर औज़ार बना लो
भाषा के मुहावरों में शौर्य और क्रोध हर जगह ओवररेटेड है
कला बिचारी प्रेम की भांति हर जगह अपमानित
आप गला ठीक से काटना जानने को कला न कह देना
कुछ लोग प्रतिहिंसा को न्याय कह देते हैं.
और प्रेम में डूबे मनुष्य को नकारा
युद्ध के रसिकों को न सन्यासी पसंद आते हैं न प्रेमी.

डिक्शनरी से याद आया, अक्सर मैं यह सोचती हूँ
डिक्शनरी सी होनी चाहिए दुनिया
जहाँ हर लफ़्ज के लिए जगह हो
और हरेक लफ़्ज काम आ सके
दूसरे लफ़्ज के अर्थ को साफ़ करने के लिए.

5 टिप्पणियाँ:

yashoda Agrawal ने कहा…

अक्सर मैं यह सोचती हूँ
डिक्शनरी सी होनी चाहिए दुनिया
जहाँ हर लफ़्ज के लिए जगह हो
बेहतरीन प्रस्तुतिकरण
शुभकामनाएँ
सादर

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी वार्षिक अवलोकन प्रस्तुति

रेणु ने कहा…

कुछ लोग प्रतिहिंसा को न्याय कह देते हैं.
और प्रेम में डूबे मनुष्य को नकारा
युद्ध के रसिकों को न सन्यासी पसंद आते हैं न प्रेमी.
वाह!! सार्थक चिंतन 👌👌के साथ सुंदर प्रतुति 🙏🙏

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बहुत सुंदर !
पर मर जाने का सोचने को बहादुरी तो नहीं कहते !

विश्वमोहन ने कहा…

जहाँ हर लफ़्ज के लिए जगह हो
और हरेक लफ़्ज काम आ सके
दूसरे लफ़्ज के अर्थ को साफ़ करने के लिए...अद्भुत दर्शन। बधाई और आभार।

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