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सोमवार, 23 दिसंबर 2019

2019 का वार्षिक अवलोकन  (बाईसवां)




साधना वैद का ब्लॉग  -  

Sudhinama





मत करना आह्वान कृष्ण का


जीवन संग्राम में
किसी भी महासमर के लिये
अब किसी भी कृष्ण का
आह्वान मत करना तुम सखी !
किसी भी कृष्ण की प्रतीक्षा
मत करना !
इस युग में उनका आना
अब संभव भी तो नहीं !
और उस युग में भी
विध्वंस, संहार और विनाश की
वीभत्स विभीषिका के अलावा
कौन सा कुछ विराट,
कौन सा कुछ दिव्य,
और कौन सा कुछ
गर्व करने योग्य
दे पाये थे वो ?
जीत कर भी तो
सर्वहारा ही रहे पांडव !
अपनी विजय का कौन सा
जश्न मना पाये थे वो ?
पांडवों जैसी विजय तो
अभीष्ट नहीं है न तुम्हारा !
इसीलिये किसी भी युग में
ऐसी विजय के लिये
तुम कृष्ण का आह्वान
मत करना सखी !
विध्वंस की ऐसी विनाश लीला
अब देख नहीं सकोगी तुम
और ना ही अब
हिमालय की गोद में
शरण लेने के लिये
तुममें शक्ति शेष बची है !

10 टिप्पणियाँ:

कविता रावत ने कहा…

साधना वैद जी को पढ़ना अच्छा लगता है
बहुत अच्छी प्रस्तुति

Sadhana Vaid ने कहा…

अरे वाह ! वार्षिक अवलोकन की इन विशिष्ट प्रस्तुतियों में अपने ब्लॉग को देखना बहुत सुखद लग रहा है ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रश्मिप्रभा जी ! सप्रेम वन्दे !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

@और उस युग में भी विध्वंस, संहार और विनाश की वीभत्स विभीषिका के अलावा कौन सा कुछ विराट, कौन सा कुछ दिव्य, और कौन सा कुछ गर्व करने योग्य दे पाये थे वो ?

:

आजकल असहमति जताते ही दरारें पड़नी शुरू हो जाती हैं ! पर फिर भी लगता है कि रचना किसी पूर्वाग्रह के असर में लिखी गयी है ! उस विराट चरित्र के बारे में या तो पूरी जानकारी नहीं है या उसे समझा ही नहीं गया ! उसके जीवन के एक छोटे से कालखंड को लेकर अपना कोई भी मत बना लेना शायद उचित नहीं है !

क्षमा चाहता हूँ, यदि कुछ अनुचित कह गया हूँ तो !

Sadhana Vaid ने कहा…

बिलकुल भी नहीं शर्मा जी ! दरारें पड़ जाने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता ! आपका चिंतन गहन है और इतने विराट चरित्र के बारे में कोई हल्की बात सह न पाने की व्याकुलता उनके प्रति आपकी अनन्य भक्ति की भी परिचायक है ! मेरी यह रचना अपने भगवान से रूठी हुई एक भक्तिन की गुहार समझ लीजिये जो क्षणिक आवेश में आकर उसे उलाहना दे रही है ! हार्दिक धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया के लिए !

Asha Lata Saxena ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है

Sweta sinha ने कहा…

बहुत सुंदर लेखन है साधना जी का। हर रचना में कल्पना और जीवन के अनुभवों का सुंदर भावपूर्ण मिश्रण होता हैं।
बहुत बधाई साधना जी। शुभकामनाएँ. स्वीकार करें।
सादर।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहद शानदार

रेणु ने कहा…

आदरणीय साधना जी  , आपकी ये रचना एक नारी के विकल मन से साक्षात्कार कराती है . क्योकि एक नारी जो करुना और  वात्सल्य  से भरी है उसे विजय - पराजय से ज्यादा , संसार में खंडित होते  विशवास और  रिश्तों की  चिंता होती  है |सच है  अपनों के विध्वंस की नींव पर खड़े पांडवों के सम्राज्य को  कैसी ख़ुशी  मिली होगी  , ये बहुत मार्मिक प्रश्न है |क्योंकि अपनी के शवों के ढेर  पर खड़ा कोई इंसान  विजयसे कैसे प्रफुल्लित हो सकता है ?   और अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए किसी कृष्ण की  राह  तकना आज के युग में बेमानी है | आज नारी को स्वयं  की रक्षा खुद करने में सक्षम होना होगा | यही समय कीमांग है और उचित भी |आपको हार्दिक बधाई  इस सम्मान के लिए |

रेणु ने कहा…

सादर आभार ब्लॉग बुलेटिन एक विदुषी रचनाकार की अनुपम रचना अवलोकन हेतु मंच पर सजाने के लिए |

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