काश - प्रतिध्वनि
"माँ, नदी देखने चलोगी ?"
मेरे बीस वर्ष के बेटे ने ये सवाल किया तो लगा सचमुच वह बड़ा हो गया है । वह अच्छी तरह जानता है मुझे नदी देखना कितना अच्छा लगता है।
बारिश के मौसम में उफनती नदी को देखना ऐसा लगता है मानो किसी ईश्वरीय शक्ति का साक्षात्कार हो रहा हो । रेनकोट पहनकर मैं तुरंत तैयार हो गई । तेज बारिश हो रही थी। दस मिनट में हम पुल पर थे जिसके नीचे से उल्हास नदी अपने पूरे सौंदर्य और ऊर्जा के साथ प्रवाहमान हो रही थी ।
"बाबू , चल ना दो मिनट किनारे तक चलें, कोई रास्ता है क्या
नीचे उतरने का ?" मैंने पूछा।
"हाँ , है तो । लेकिन सिर्फ दो मिनट क्योंकि इस समय काफी सुनसान रहता है वहाँ नीचे। पुल के ऊपर से आप चाहे जितनी देर देख लो ।"
पुल से नीचे उतरने वाली ढलान पर गाड़ी रोक कर लॉक की और हम नीचे उतर कर नदी के किनारे खड़े हो गए ।
उस वक्त नदी में कल-कल का संगीत नहीं था, घहराती हुई गर्जना थी .. तभी कुछ दूरी पर किनारे बैठे युवक की ओर ध्यान खिंच गया । वह घुटनों में सिर छुपाए बैठा था । दीन - दुनिया से बेखबर !
मैंने बेटे की ओर देखा लेकिन मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरा समझदार सुपुत्र बोल उठा, "बस, अब आप कुछ कहना मत । वह लड़का वहाँ क्यों बैठा है, कौन है , ये सब मत पूछना प्लीज.. अब जल्दी चलें यहाँ से।"
"लेकिन वह अकेला क्यों बैठा है ? डिप्रेशन का शिकार लग रहा है बेचारा।"
"कुछ नहीं डिप्रेशन - विप्रेशन । ये अंग्रेज चले गए डिप्रेशन छोड़ गए । जिम्मेदारियों से भागने का सस्ता और सरल उपाय! बस डिप्रेशन में चले जाओ । आप नहीं जानतीं। ये चरसी या नशेड़ी होगा कोई । आप चलो अब ।"
"अरे , मैं नहीं बात करूँगी, तू तो एक बार पूछ कर देख। शायद उसे किसी मदद की जरूरत हो ।"
"नहीं ममा, आप चलो अब । बारिश बढ़ गई है और यह जगह
कितनी सुनसान है ।" अब बेटे के स्वर में चिढ़ और नाराजगी साफ जाहिर हो रही थी ।
मजबूर होकर मैं घर चली आई । घुटनों में सिर छुपाए बैठा वह लड़का दिमाग से निकल ही नहीं रहा था ।
अगले दिन.....सुबह सैर के लिए निकली । पड़ोस के जोगलेकर जी हर सुबह नदी किनारे तक सैर करके आते हैं । मैं नीचे सड़क पर आई तो वे मिल गए । हर रोज की तरह प्रफुल्लित नहीं लग रहे थे । मैंने पूछा -- "क्या बात है भाई साहब, तबीयत ठीक नहीं है क्या ?"
थके से स्वर में बोले, "क्या बताऊँ, सुबह-सुबह इतना दुःखद दृश्य देखा । नदी से दो लाशें निकाली हैं पुलिस ने । एक लड़के और लड़की की । आत्महत्या का मामला लग रहा है ।"
मेरा सिर चकरा गया । घुटनों में सिर छुपाए वह लड़का आँखों के सामने घूम गया । कहीं वही तो नहीं.....
जिंदगी में अनेक बार ऐसे प्रसंग आए हैं जब घटना घटित हो जाने के बाद सोचती रह गई हूँ --
काश.......
15 टिप्पणियाँ:
एक संवेदनशील इंसान के लिए किसी देखे हुए को अनदेखा करना कितना कष्टप्रद होता है, यह हर वह संवेदनशील इंसान समझ सकता है जो ऐसी कई दुविधाओं से गुजरता है। मर्मस्पर्शी कहानी
सच में कई बार ऐसा होता है...क्या करें जमाना खराब है हमारी संवेदनशीलता के चक्कर में कई बार मुसीबत में भी फंसे हैं न...इसीलिए अब बड़े छोटे सब ऐसे ही नसीहत देने लगते हैं...और ऐसा कुछ होने पर हम चैन खो बैठते है ...
बहुत ही हृदयस्पर्शी ...
ब्लॉग बुलेटिन पर आपकी रचना देखकर अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है .....
अनन्त शुभकामनाएं एवं बधाई मीना जी !
ब्लॉग बुलेटिन मंच की अवलोकन श्रृंखला में आज के विशेष रचनकार के रूप में, बहन मीना शर्मा जी को देखकर बहुत अच्छा लग रहा है | मीना बहन हर तरह के गद्य और पद्य में विशेष दक्षता रखती हैं | लेख , कथा या फिर कविता सब में उनका लेखन बेजोड़ है | काव्य में मुक्त छंद और लयबद्ध काव्य या फिर ग़ज़ल सब उनकी लेखनी से निखर जाते हैं |नारी विषयक काव्य में उन्हें मैं ब्लॉग जगत की मीरा कहती हूँ | पाठक के रूप मेंउनकी अत्यंत स्नेहिल समीक्षाएं अन्य सहयोगियों के लिए अनमोल हैं |उनकी भावपूर्ण रचना पर आज की सार्थक प्रस्तुति के लिए मीना बहन को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें |
मीना बहन की इस रचना पर मेरी टिप्पणी ---------
पिय मीना बहन - संस्मरण बहुत ही मार्मिकता से भरपूर है | कई बार हम चाहकर भी किसी अनहोनी को रोकने में अक्षम रहते हैं और ग्लानिभाव से कभी मुक्ति नहीं पा सकते | पर हो सकता है वह लडका ना हो , जिसे आपने उस दिन देखा था | सस्नेह
मार्मिक ,आपने सही कहा जीवन में कई बार ये "काश "रह जाता हैं और दृश्य बदल जाते हैं ,बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं मीना जी
मन पछितैहै अवसर बीते...
मीना दी तुलसी बाबा ने यह चेतावनी हमें दी है, फिर भी नियति का खेल ऐसा है कि न चाह कर भी कभी-कभी हम कर्मपथ से पीछे हट जाते है।
और यदि हम संवेदनशील हैं, तो ऐसी घटनाएँ निश्चित ही कष्टकारी होती हैं, जो यहाँँ आपके संस्मरण में दिख रही हैं।
मर्मस्पर्शी कहानी
प्रिय रश्मि दी, अभी रेणु बहन का फोन आया और उन्होंने बताया कि मेरे ब्लॉग को ब्लॉग बुलेटिन के वार्षिक अवलोकन में स्थान मिला है। आपका आभार कैसे व्यक्त करूँ ?
पिछले कई महीनों से एक के बाद एक पारिवारिक समस्याओं के चलते मेरा मन उचट सा गया है। कुछ समय बहन के पास जयपुर जाने का सोच रही हूँ। लौटने के बाद प्रतिध्वनि की अधूरी रचना को पूरा करना और अन्य कई कहानियाँ वहाँ प्रकाशित करने की चाह है। आगे ईश्वर की मर्जी। सारे ब्लॉगर्स साथियों का अत्यधिक स्नेह व आशीष सदा ही मिला है। मैं सभी की हृदयतल से आभारी हूँ।
हृदयस्पर्शी कहानी...मीना जी के सशक्त लेखन को ब्लॉग बुलेटिन के पटल पर देखना सुखद अहसास है ।
मीना दी मेरी प्रिय कवयित्री हैं उनकी लिखी हर रचना मुझे अपने मन के भाव.सी महसूस होती है।
बहुत बधाई दी...शुभकामनाएँ।
प्रार्थना है आप जल्द ही विषम परिस्थितियों से बाहर आकर नियमित लेखन कर सकें।
बहुत प्रभावशाली कहानी लिखी हैंं।
आभारी हूँ रश्मि जी।
सादर।
इस विशिष्ट उपलब्धि के लिए बधाई.
मर्मस्पर्शी कहानी.. हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐
एक संवेदनशील कवि मन है मीना जी का ... दिल को छूती हुई रचनाएँ और प्रसंग सहज निकलते हैं उनकी लेखनी से ..।
अपनी विशेष शैली के चलते उनका लेखन भी लाजवाब है ... मर्म को छूती है ही कहानी ... बहुत शुभकामनाएँ ...
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