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मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

2019 का वार्षिक अवलोकन  (सत्रहवां)





श्वेता सिन्हा का ब्लॉग 

मन के पाखी



सृष्टि

प्रसूति-विभाग के
भीतर-बाहर
साधारण-सा दृष्टिगोचर
असाधारण संसार
पीड़ा में कराहते
अनगिनत भावों से
बनते-बिगड़ते,
चेहरों की भीड़
ऊहापोह में बीतता
प्रत्येक क्षण
तरस-तरह की मशीनों के
गंभीर स्वर से बोझिल
वातावरण में फैली
स्पिरिट,फिनाइल की गंध
से सुस्त,शिथिल मन,
हरे,नीले परदों को
के उसपार कल्पना करती
उत्सुकता से ताकती
प्रतीक्षारत आँखें
आते-जाते
नर्स,वार्ड-बॉय,चिकित्सक
अजनबी लोगों के
खुशी-दुख और तटस्थता
में लिपटे चेहरों के
परतों में टोहती
जीवन के रहस्यों और
जटिलताओं को,
बर्फ जैसी उजली चादरों
पर लेटी अनमयस्क प्रसूता
अपनी भाव-भंगिमाओं को
सगे-संबंधियों की औपचारिक
भीड़ में बिसराने की कोशिश करती
अपनों की चिंता में स्वयं को
संयत करने का प्रयत्न करती,
प्रसुताओं की
नब्ज टटोलती
आधुनिक उपकरणों से
सुसज्जित
अस्पताल का कक्ष
मानो प्रकृति की प्रयोगशाला हो
जहाँ बोये गये
बीजों के प्रस्फुटन के समय
पीड़ा से कराहती
सृजनदात्रियों को
चुना जाता है
सृष्टि के सृजन के लिए,
कुछ पूर्ण,कुछ अपूर्ण
बीजों के अनदेखे भविष्य
के स्वप्न पोषित करती
जीवन के अनोखे
रंगों से परिचित करवाती
प्रसूताएँ.....,
प्रसूति-कक्ष
उलझी पहेलियों
अनुत्तरित प्रश्नों के
चक्रव्यूह में घूमती
जीवन और मृत्यु के
विविध स्वरूप से
सृष्टि के विराट रुप का
 साक्षात्कार है।

26 टिप्पणियाँ:

Digvijay Agrawal ने कहा…

चक्रव्यूह..
और..
चक्रव्यूह..
इसके अलावा भी बहुत कुछ
लिक्खा है..
बेहतरीन रचना..
सादर..

Anuradha chauhan ने कहा…

प्रसूति-कक्ष
उलझी पहेलियों
अनुत्तरित प्रश्नों के
चक्रव्यूह में घूमती
जीवन और मृत्यु के
विविध स्वरूप से
सृष्टि के विराट रुप का
साक्षात्कार है। बहुत सुंदर और सार्थक रचना श्वेता जी

Sweta sinha ने कहा…

आभारी हूँ सर..सादर।

Sweta sinha ने कहा…

आभारी हूँ अनुराधा जी...सादर।

Sweta sinha ने कहा…

बहुत बहुत आभारी हूँ रश्मि जी मेरे ब्लॉग के अवलोकन के लिए और मेरी रचना शामिल करने के लिए सादर शुक्रिया।

रेणु ने कहा…

हार्दिक आभार और शुक्रिया  ब्लॉग बुलेटिन मंच इस सुंदर  प्रस्तुति  के लिए | सुदक्ष   गृहिणी   और  सशक्त कवियत्री और रचनाकार  श्वेता सिन्हा के लिए मैं  जो कहूं  वह कम ही होगा | हर तरह के रचनाकर्म में महिर श्वेता  ने    चर्चाकर  के रूप में भी अपनी पहचान  बनाई है |  ब्लॉग के अलावा कई  अन्य मंचों पर  श्वेता ने  लेखन   कर  लोकप्रियता पाई है | प्रिय श्वेता  को हार्दिक  बधाई और शुभकामनायें | 

रेणु ने कहा…

बहुत सुंदर प्रिय श्वेता |  आज  ब्लॉग बुलेटिन के प्रतिष्ठित  मंच  पर  तुम्हारी महत्वपूर्ण  रचना को अवलोकन के रूप में पाकर अत्यंत हर्ष हुआ |सृष्टि की जननी के सृजन के महत्वपूर्ण और  बहुत ही मार्मिक पलों को शब्दों में सहेजती इस  रचना में    ,  उस पल का सजीव  वर्णन   है जिसके  दौरान प्रसूता स्त्री जीवन और मौत के बीच झूल रही होती है | सृष्टि में जब नवजीवन की  आहट होती है , उस पल जननी के सर पर कफन बंधा होता है | इस पल से पार होकर ही एक नारी वात्सल्य और  ममत्व  को पाकर नारीत्व की  सम्पूर्णता पाती है |  अपनी सशक्त लेखनी के साथ , तुम यूँ  ही यश के पथ पर अग्रसर रहो मेरी  यही कामना और दुआ है | 

विश्वमोहन ने कहा…

सुमित्रानंदन पंत की कविताओं के बारे में किसी आलोचक ने लिखा, "यदि चंदन की तुनुक लचकिली लकड़ी पर दूध की छाली का लेप चढ़ा दिया जाय तो जो प्रतिमा बनेगी वह पंतजी होंगे।" ब्लॉग जगत की सरस्वती-सुता 'श्वेता की सुकोमल कविताएं पंतजी की उस प्रतिमा का स्पर्श करती प्रतीत होती हैं। बधाई और आभार!!!

SUJATA PRIYE ने कहा…

पीड़ा से कराहती
सृजनदातृयों को
चुना जाता है।
सृष्टि के सृजन के लिए।
बेहद खूबसूरत एवं सार्थक सृजन स्वेता
-बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ।

SUJATA PRIYE ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Preeti 'Agyaat' ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा, श्वेता

Sudha Devrani ने कहा…

अस्पताल का कक्ष
मानो प्रकृति की प्रयोगशाला हो
जहाँ बोये गये
बीजों के प्रस्फुटन के समय
पीड़ा से कराहती
सृजनदात्रियों को
चुना जाता है
सृष्टि के सृजन के लिए,
"जहाँँ न जा रवि वहाँ जाये कवि "पंक्ति को चरितार्थ करता आप का लेखन अपने आप में अद्वितीय अविस्मरणीय एवं बेमिसाल है....
माँ सरस्वती की कृपा सदा यूँ ही बनी रहे आप पर।आज आपकी सुन्दर कृति ब्लॉग बुलेटिन की शोभा बढ़ा रही है जो अत्यंत हर्ष की बात है....
हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई श्वेता जी !

Kamini Sinha ने कहा…

बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ,श्वेता जी ,आपकी सभी रचनाएँ लाज़बाब होती हैं जो अन्तःमन को स्वतः ही छू जाती हैं ,लेकिन ये रचना मेरे दिल के सबसे करीब हैं आपने बड़ी ही खूबसूरती से प्रसव पीड़ा के दर्द और मर्म दोनों को कलमबद्ध किया हैं। आपकी लेखनी यूँ ही चलती रहे यही कामना हैं।

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

प्रसव के लिए जाती हुई बहू को सासू माँ का आशीर्वाद भरा सन्देश -
'बेटा ही जनियो, करमजली ! पिछली दो बार की तरह मौड़ी ही जाई तो तुझे अस्पताल से सीधे तेरे मायके पटक आएँगे.'

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ,श्वेता जी

Sweta sinha ने कहा…

आभारी हूँ दी आपका स्नेह सदैव बना रहे यही कामना करते हैं।
बहुत सारा शुक्रिया आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए दी।
सादर। सस्नेह।

Sweta sinha ने कहा…

आभारी हूँ दी। रचना अनुगृहीत हुई आपका आशीष पाकर।.स्नेह बना रहे।
सादर शुक्रिया दी।

Sweta sinha ने कहा…

आदरणीय विश्वमोहन जी आपका अतिशयोक्ति
शब्दों से भरा अनुपम आशीष मिला।
शब्द नहीं कैसे आभार लिखें।
मेरा सादर प्रणाम स्वीकार करें और आशीष बनाये रखें सदैव।
बहुत धन्यवाद। शुक्रिया।
सादर।

Sweta sinha ने कहा…

आभारी हूँ दीदी बहुत बहुत शुक्रिया।
सादर।

Sweta sinha ने कहा…

आभारी हूँ प्रीति जी। शुक्रिया।
सादर।

Sweta sinha ने कहा…

सुधा जी आपका सहयोग और.स्नेह अनमोल है।
बहुत आभारी हूँ शुक्रिया सादर।

Sweta sinha ने कहा…

कामिनी जी आपके स्नेहसिक्त शब्दों ने बहुत उत्साह बढ़ाया। आपकी सुंदर समीक्षा और सराहना के लिए बहुत बहुत शुक्रिया सस्नेह।
सादर।

Sweta sinha ने कहा…

आपका आशीष बना रहे रहे सर।
आपकी सारयुक्त व्यंग्यात्मक प्रतिक्रिया रचना की शोभा बढ़ा जाती है।
बहुत आभारी हूँ सर।
सादर।

Sweta sinha ने कहा…

बहुत-बहुत आभारी हूँ संजय जी। शुक्रिया।
सादर।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लाजवाब ... बहुत कमाल की रचना श्वेता जी की कलम से ... एक जागरूक, सामवेदनशील और हर परिवर्तन को महसूस करती... बहुत बधाई और शुभकामनाएँ ...

सदा ने कहा…

प्रसूति-कक्ष
उलझी पहेलियों
अनुत्तरित प्रश्नों के
चक्रव्यूह में घूमती
जीवन और मृत्यु के
विविध स्वरूप से
सृष्टि के विराट रुप का
साक्षात्कार है।
बेजोड़ लिखा है आपने श्वेता ... माँ सरस्वती की कृपा सदैव आप पर बनी रहे ... स्नेहिल शुभकामनाएं

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