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रविवार, 15 दिसंबर 2019

2019 का वार्षिक अवलोकन  (पन्द्रहवां)




गगन शर्मा का ब्लॉग 

कुछ अलग सा

http://kuchhalagsa.blogspot.com/



अपने इतिहास को जानना भी जरुरी है

बहुत खेद हुआ जब हल्दीघाटी के बारे में एक दसवीं के छात्र ने अनभिज्ञता दर्शाई ! हल्दीघाटी तो एक मिसाल भर है। ऐसी  शौर्य, साहस , निडरता, देशप्रेम की याद दिलाने वाली सैंकड़ों जगहें हैं जो हमारे गौरवशाली इतिहास की प्रतीक है ! पर दुःख इसी बात का है कि हमारी तथाकथित आधुनिक शिक्षा प्रणाली में ऐसे विषयों की कोई अहमियत नहीं रह गयी है। जिसके फलस्वरूप आज के बच्चों को तो छोड़िए उनके अभिभावकों तक को इनके बारे में पूरी और सही जानकारी नहीं है ! इसमें उनका कोई दोष भी नहीं है, जब आप किसी चीज के बारे में बताओगे ही नहीं तो उसके बारे में किसी को क्या जानकारी होगी ......... !

#हिन्दी_ब्लागिंग
हल्दीघाटी, नाम सुनते ही जो पहली तस्वीर दिमाग में बनती है वह एक पर्वतीय घाटी में राणा प्रताप और मुगलों के बीच हुए भीषण युद्ध का खाका खींच देती है। अधिकांश लोगों को यही लगता है कि यह पहाड़ियों के बीच स्थित बड़ी सी जगह होगी जहां प्रताप ने मुगलों के दांत खट्टे कर दिए थे। पर सच्चाई कुछ और है। हल्दी घाटी उदयपुर से तक़रीबन 48 की.मी. की दूरी पर अरावली पर्वत शृंखला में खमनोर और बलीचा गांवों के बीच लगभग एक की.मी. लंबा और लगभग 17-18 फुट चौड़ा, एक दर्रा (pass) मात्र है। जहां 18 जून 1576 में राणा प्रताप ने गोरिल्ला युद्ध लड़ते हुए अपने से चौगुनी अकबर की सेना को तीन की.मी. तक पीछे धकेल भागने को मजबूर कर दिया था। इस जगह की मिट्टी का रंग बिल्कुल हल्दी की तरह होने के कारण इसका नाम हल्दीघाटी पड़ा, पर उस दिन तो महाराणा ने खून का अर्ध्य दे कर इसे लाल कर दिया था ! उस निर्जन सी जगह में खड़े हो यदि आप पांच-छह सौ पहले की कल्पना करने की कोशिश भी करें तो रोमांच हावी हो जाएगा। श्रद्धा से उन राण बांकुरों के प्रति सर झुक जाएगा जिन्होंने विकट और कठिन परिस्थितियों के बावजूद अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। आज जरुरत है ऐसी व्यवस्था की जो आधुनिक पीढ़ी को उनके बारे में जानकारी दे सके !

शौर्य, साहस, निडरता, देशप्रेम की याद दिलाने वाली यह जगह हमारे गौरवशाली इतिहास की प्रतीक है ! पर यह अत्यंत खेद का विषय है कि हमारी तथाकथित आधुनिक शिक्षा प्रणाली में ऐसे विषयों की कोई अहमियत नहीं रह गयी है। जिसके फलस्वरूप आज के बच्चों को तो छोड़िए उनके अभिभावकों तक को पूरी और सही जानकारी नहीं है। आजकी शिक्षा-पद्दति सिर्फ और सिर्फ एक कागज का प्रमाण पत्र हासिल कर उसकी सहायता से किसी नौकरी को लपकने का जरिया मात्र रह गयी है। क्या कुछ ऐसा नहीं हो सकता कि स्कूलों में प्रथमिक शिक्षा के दौरान ज्यादा ना सही कम से कम हफ्ते या पंद्रह दिनों में एक बार अपने इतिहास, उसके महानायकों, उनकी उपलब्धियों, उनके योगदान की सच्चाई के बारे में, बिना किसी कुंठा और पूर्वाग्रह के, बताया जाए ! ठीक उसी तरह जैसे पिछले जमाने में दादी-नानी की किस्से-कहानियां बच्चों में नैतिकता, त्याग, प्रेम, संस्कार इत्यादि के साथ-साथ पौराणिक तथा ऐतिहासिक जानकारीयां भी रोपित कर देती थीं।  

अभी पिछले दिनों उदयपुर जाने का अवसर मिला तो हल्दीघाटी तो जाना ही था ! वहां पहुंचने के दौरान जब साथ के बच्चे से, जो दिल्ली के एक नामी ''क्रिश्चियन स्कूल'' की दसवीं कक्षा का छात्र है, वहां के बारे में पूछ तो उसने पूरी तरह अनभिज्ञता दर्शाई ! यहां तक की उसकी ''मम्मी'' को भी सिर्फ आधी-अधूरी जानकारी थी, जबकि वह खुद एक स्कुल में अध्यापक हैं। विडंबना यही है कि अपने बच्चों के भविष्य, उनके कैरियर की चिंता में आकंठ डूबे अभिभावकों को आजके समय की गला काट पर्टियोगिताओं के चलते इतना समय ही नहीं मिलता कि वे इस तरह की बातों पर ध्यान दें। इसकी जिम्मेवारी तो पाठ्यक्रम बनाने वालों पर होनी चाहिए ! शिक्षा पद्यति कुछ ऐसी हो जो सिर्फ जानकारियां ही न दे बच्चों के ज्ञान में भी बढ़ोत्तरी करे।

इसी यात्रा के दौरान होटल में केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर जी से मुलाकात का संयोग बना था पर यह समय ऐसी गंभीर बातों के लिए उचित नहीं था। चुनावी समय के अलावा और कोई वक्त होता तो यह बात उनके कानों में जरूर डाल दी जा सकती थी। वैसे सूना जा रहा ही कि केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति पर काम कर रही है। अब शिक्षा नीति पर गठित सलाहकार समिति क्या सलाह देती है यह देखने की बात होगी। 

10 टिप्पणियाँ:

Kamini Sinha ने कहा…

बहुत सुंदर और शिक्षाप्रद लेख ,ढेरों शुभकामनाएं आपको ,सादर नमन

Meena Bhardwaj ने कहा…

ज्ञानवर्धक लेख । हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर नमस्कार !

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर ज्ञानवर्धक लेख

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
पूर्वाग्रह ग्रसित नेताओं से अपेक्षा न रखते हुए व्यक्तिगत रूप से ही शुरूआत की जाए तो भी कुछ तो बदलाव आएगा ही

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी
ब्लॉग पर आने का हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनुराधा जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन का तो सदा आभारी रहूंगा

Sweta sinha ने कहा…

समाजोपयोगी, हर प्रकार की समसामयिक, ऐतिहासिक चर्चा के साथ बेहद ज्ञानवर्धक सामग्रियों से भरपूर सर का ब्लॉग
अपने आप में सुंदर पिटारा है।
बहुत बधाई सर और शुभकामनाएँ आपको।
गगन सर क्षमा चाहेंगे हम देर से आये।
सादर।

रेणु ने कहा…

शुक्रिया आभार ब्लॉग बुलेटिंन गगन जी के उपयोगी लेख के लिए। गगन जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें 🙏🙏

रेणु ने कहा…

आदरणीय गगन जी, सबसे पहले आपको ब्लॉग बुलेटिन मंच का विशेष रचनाकार बनने के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनायें। क्षमा चाहती हूँ समय पर उपस्थित ना हो सकी। आपके ब्लॉग की बहुत प्रशंसक हूँ। हर तरह की सामग्री यहाँ मौजूद है। आपका जो लेख यहाँ है मुझे ब्लॉग पर मिल ना पाया, पर बहुत उपयोगी है आपका लेख। बच्चों को नितांत भौतिकवादी संस्कृति की तरफ जाने को प्रेरित करती हमारी शिक्षा व्यवस्था तो अपराधी है है , हमारी पीढी भी कम दोषी नहीं। अपने इतिहास से ज्यादा रुचि सास बहु के सीरियल में हो गयी है या फिर अनाप शनाप मोबाइल दर्शन इंटरनेट से अधकचरा ज्ञान लेने में नहीं हिचकते परं अपने इतिहास की तरफ नज़र उठाने की फुर्सत नहीं। आपके ब्लॉग से दो तीन उपयोगी लेख मैंने अपने पारिवारिक ग्रुप में भी share किये है हार्दिक आभार और शुक्रिया उपयोगी और भावपूर्ण लेखन के लिए। 🙏🙏🙏

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