Subscribe:

Ads 468x60px

कुल पेज दृश्य

शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

रिवाइंड करके सुनना





ईश्वर की पीठ पर लिखो
या लिखो मेरी हथेली पर
या ... बोलो किसी बन्द कमरे में
जब्त कर दो दीवारों पे अपनी आवाज़
रिवाइंड करके सुनना
... 

टेडी बियर

अपराधियों का विचारधाराकरण -------mangopeople

जीवन में दुःख क्यों है?" - ओशो | OshoDhara


स्त्री द्वारा किया गया प्रेम और पुरूष द्वारा किया गया प्रेम,
दोनों में एक बुनियादी अंतर है.
पुरूष अक्सर अपने आत्म-सम्मान के मामले में डटे रहते हैं,
उससे समझौता किसी हाल में नहीं करते.
स्त्री अपनी जो चीज़ सबसे पहले सौंप देती है, वो है आत्मसम्मान.
फिर स्त्री चाहे कितनी ही काबिल हो, गुणी हो !
हालांकि इस बात का जनरलाइजेशन नहीं किया जा सकता कि सभी केसेस ऐसे ही हों, क्‍योंकि सभी पुरूष भी कभी एक जैसे नहीं होते.
कुछ तो अपने पार्टनर को उठाने के लिए स्वयं को भी हार जाते हैं.
लेकिन अधिकांश झुकना, टूटना, अपना वजूद ख़त्म कर देना आदि सजाएं स्त्री का ही मुकद्दर हैं.
सभी अमृताओं की किस्मत में इमरोज़ नहीं होते...
मेरी किस्मत में है 💜
आकार में मत ढूंढना मुझे
------------------------------
फकीर प्रेम में था
गुथी हुई मिट्टी को देखता रहा
आकार नहीं, मिट्टी पर भरोसा था उसे
मिट्टी कुछ भी नहीं है इसलिए कुछ भी हो जाती है
अंधेरे में दीया बन जाएगी और प्‍यास में घड़ा
बच्‍चे को देखकर खिलौना हो जाती है मिट्टी...
फकीर प्रेम में है
बहते हुए पानी को देखता है
किस आकार में ढल जाएगा, कौन जाने
आकार में होकर भी आकार नहीं लेगा, बस ढलेगा
जब भी आकार टूटेगा, बहेगा, पानी है यह
पानी होना आकार में हो सकना है, आकार हो जाना नहीं...
फकीर प्रेम में होगा तब भी
ढलते सूरज को देखेगा देर तक
जब जाते हुए सब आकार समेट लेती है रोशनी
रोशनी का आकार तय नहीं करते दृश्‍य
दृश्‍यों को आकार देती है पर
रोशनी के आकार पर कोई दावा नहीं है किसी का
जान गया है, रोशनी ही तो है,
जो हर आकार में है बिना आकार के...
फकीर होना ही प्रेम में होना है
ना फ़कीरी को कोई आकार, ना प्रेम का
प्रेम आकार तोड़कर नहीं आता, आकारों से मुक्‍त होकर आता है
उम्र के हवा होते जाने के साथ शुरु होता जाता है जीवन
हवा का आकार तुमने सोच भर लिया, हुआ नहीं...
फ़कीर प्रेम में रह जाएगा शेष
जबकि तय है कि अशेष नहीं है कुछ भी
रहते रहने का दावा आकार तक है,
शेष होना, आकार से मुक्‍त हो जाना है, शेष रहेंगे
जरा सी मिट्टी, जरा सा जल, जरा सी रोशनी और जरा सी हवा
यही तो प्रेम है... जोर से ठहाका लगाता है फ़कीर
तुम आवाज सुनना...आवाज़ का आकार मत ढूंढना बस

4 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। सुन्दर सूत्र चयन।

Meena sharma ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति

anshumala ने कहा…

मेरी पोस्ट ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिए धन्यवाद |

Sadhana Vaid ने कहा…

वाह ! अनुपम रचना ! बहुत सुन्दर, सत्य एवं सार्थक !

एक टिप्पणी भेजें

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!

लेखागार