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रविवार, 21 जनवरी 2018

बंजर होना भी एक विशेषता है




आज़ादी एक छलावा है
बहाना है 
सबकी आंखों के आगे पराधीन बनाने का
फिर आलोचना का 
तुम सोचती राह जाओगी
घर के अंदर सुरक्षित थी !
या बाहर !!
...
बेहतर है 
हादसों को आज़ाद सोच के साथ लो
जो तुम्हें खा जाने को आतुर हैं
उन्हें या तो निगल जाओ
या फिर कचरे में फेंक दो 
....
आलोचना की घण्टी तो हर हाल में बजेगी 
बस दिल को मज़बूत बनाओ
जो तुम्हारे सामने आए
उसे सर से पांव तक घूरो
उसके जन्म पर प्रश्नों की झड़ी लगा दो
लव कुश को पालो ज़रूर
लेकिन
किसी भी हाल में धरती में मत समाओ 
कभी सोचा है
सबकुछ देनेवाली धरती 
कितने दर्द झेलती है
लेकिन अपना सौंदर्य नहीं खोती
बंजर होकर भी नहीं 
यकीनन
बंजर होना भी एक विशेषता है

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मुन्नार की पुकार और जीने की तलब - प्रतिभा की दुनिया


अख़बार बता रहा कि आज गले लग जाने का दिन है। 😊
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लड़का 22 बरस का था और लड़की 23 बरस की । दोनों उस रोज़ एक बगीचे में गुलमोहर के तले एक बेंच पर बैठे थे। दोनों एकदम खामोश थे ,एक ऐसी बेचैन उमस सरीखी चुप्पी पसरी हुई थी जैसे पानी बरसने के ठीक पहले होती है।कुछ होने का इंतज़ार... बड़ी तकलीफ से मर मर के बीतता वक्त ।
लड़की बार बार लड़के को कातरता से देखती ,फिर वह कातरता एक अनचाही कठोरता में बदल जाती और लड़की दूसरी ओर देखने लगती ।लड़का शांत दिखाई पड़ता था मगर उसके चेहरे में प्रेम की पीली उदासी छाई हुई थी।
दोनों में दो दिन पहले झगड़ा हुआ था। दो दिन पहले ठीक इसी बेंच से लड़की गुस्सा होकर चली गयी थी। लड़का बैठा रहा था देर तक ।लड़का कल भी आकर बैठा था। लड़की नहीं आयी थी।
तीसरे दिन लड़की आयी थी और दोनों के बीच असहनीय खामोशी की बर्फ जमती जा रही थी । लड़की की गलती थी और वह पछता रही थी। माफ़ी माँगना चाहती थी मगर शब्द जैसे बाहर न फूटते थे।
अचानक उसने लड़के को देखा और कुछ कहने को होंठ खोले ...
लड़के ने अपनी पसीजी हथेली उसके होंठों पर रख दी और कहा " ना.. कभी माफ़ी मत माँगना,बस गले लग जाना "
लड़की लपककर लड़के के गले लग गयी। लड़के की गुलाबी कमीज भीगती रही । आखिर उमस के बाद सुहानी बरसात हो गयी। गुनगुनी ऊष्मा से सारी बर्फ पिघल गयी।
अब लड़का 70 बरस का है और लड़की 71 बरस की।
दोनों गलतियां करते हैं और कभी माफ़ी नहीं मांगते,बस गले लग जाते हैं ।
लड़का शरारत से कहता है " अगर गलतियों का नतीजा इतना हसीन हो तो कोई भला क्यों खुद को और किसी को गलती करने से रोके। "
लड़की लाड़ से मुस्कुरा देती है और कहती है " जो गलती करना आसान बना दे ,वही है सबसे प्यारा साथी "
दो बूढ़े चेहरों पर झुर्रियों की अनगिन लहरों में जुड़वां गुलाबी मछलियां तैरने लगती हैं।

Nirmla Kapila

हर खुशी उस से मुहब्बत में मिली अच्छी लगी
सात जन्मों की लगी जो हथकड़ी अच्छी लगी
हम निवाला दोस्त भी मतलव के निकले यार सब
तब से अपनी बेखुदी बेशक बड़ी अच्छी लगी।
कष्टों'के झेले सुनामी जलजले हमने बड़े
वक्त ने जैसे तराशी ज़िंदगी अच्छी लगी
मुस्कुराते गम भी पलकों की नदी में डूब कर
दर्द में लिपटी वो आँखों की नमी अच्छी लगी
देख शीशे के घरों की भूख खुदगर्जी तो फिर
मुफलिसी में हो भले पर ज़िंदगी अच्छी लगी
दोस्ती में पीठ पीछे वार करना क्यों भला
सामने रह कर निभी जो दुश्मनी अच्छी लगी
मयकशी में कहकहे पीना पिलाना दोस्ती
महफिलें अच्छी लगीं तो शायरी अच्छी लगी
हाथ की मेरी लकीरें जो कहें कहती रहें
जो कहानी हौसलों से खुद लिखी अच्छी लगी
एक दूजे को गिराने में लगाते वक्त लोग
निर्मला खुद में यही तो इक कमी अच्छी लगी

2 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर सूत्र चयन। सुन्दर बुलेटिन।

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
सबको बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं!

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