नमस्कार
साथियो,
आजकल
समाज में कुछ ऐसा चलन देखने को मिल रहा है कि जिसे देखो वो खुद को ही एकमात्र
बुद्धिमान समझ रहा है. सामने वाले को उसने जन्मजात बेवकूफ समझ रखा है. राजनीति हो,
व्यवसाय हो, नौकरी हो या फिर कोई अन्य क्षेत्र सभी में सब अपनी-अपनी ढपली पीटने में
लगे हैं. अपनी ही बात को सत्य सिद्ध करना चाह रहे हैं. दूसरे की मानना ही नहीं
चाहते. यही कारण है कि सब एक पर एक ग्यारह बने हुए हैं और न केवल अपना वरन समाज का
नुकसान कर रहे हैं.
ऐसी
सोच वालों के साथ कुछ ऐसा ही होता है जैसा कि उस शहरी ठग के साथ हुआ. क्या हुआ, ये
जानने के लिए पढ़ जाइए, पूरे आनंद के साथ. पहले ये कथा फिर आज की बुलेटिन.
++
एक
गाँव में रात के समय एक शहरी ठग पहुँचा. उसने सोचा कि रात के अँधेरे में गाँव के किसी
बूढ़े व्यक्ति को ठगा जाये. ऐसा सोच वह एक छोटी सी दुकान पर पहुँचा, दुकान पर एक बहुत ही बुजुर्ग व्यक्ति बैठा था.
उस
शहरी युवक ने एक नोट देकर उस बूढ़े व्यक्ति से कहा - बाबा, छुट्टे दे दो.
बूढ़े
ने देखा कि नोट तेरह रुपये का है. उसने कहा - बेटा ये नोट तो नकली है. अभी तक तेरह रुपये का नोट आया ही नहीं
है.
युवक
ने कहा - बाबा, नोट तो असली है. सरकार ने ये नया नोट चलाया है. अभी शहर में
ही आ पाया है, गाँव
तक आने में कुछ समय लगेगा.
बूढ़े
व्यक्ति ने सहमति में सिर हिलाया और अंदर से दो नोट लाकर उस शहरी ठग को दिये. युवक
ने नोट देखे और कहा - बाबा, ये क्या? एक नोट छह रुपये का और एक नोट सात रुपये का, ये तो नकली हैं.
बूढ़े
ने कहा - नहीं
बेटा, ये दोनों नोट असली हैं,
अभी सरकार ने नये-नये चलाये हैं.
गाँव में आये हैं, शहर तक आने में समय लगेगा.
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8 टिप्पणियाँ:
शुभ संध्या राजा साहव
एक अच्छी बुलेटिन
13 ह रपए का नोट शहरी को पास
गाँव वाला सवासेर...
छः और सात के ले आया
सादर
सारे बुद्धिमानों को मान देता है
एक अकेला 'उलूक' है
खुद को सबसे बड़ा
बुदधुमान मान कर बैठा है।
बहुत सुन्दर बुलेटिन ।
बढ़िया बनाया गाँव वाले ने..
बहुत सुंदर प्रस्तुति. सब एक से एक रचनायें
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सस्नेहाशीष संग आभारी हूँ
उम्दा प्रस्तुतीकरण
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
आभार आपका.
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