ज़िंदा कौन है ?
पूरी ज़मीर कब्र है
भूतों का बसेरा है
सबको सबका ख़ौफ़ है ... !!!
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ज़िक्र किस इतिहास का करें ?
वर्तमान सत्य है
वर्तमान को जीना है
घिनौना ही सही !!!
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कोई ज़िंदा नहीं , सबके सब बुद्धिजीवी हैं
बुद्धिजीवी !!!
बच्चों का यौन उत्पीड़न १९८७ में भी था..... ऐसे ही मार डाला गया था मेरे पड़ोसी के १२ साल के लड़के को ईंट से कूचकर, वह भी स्कूल के लिए घर से निकला था, बस पर बैठकर अपने पापा को बाय किया था और छुट्टी के बाद घर नहीं पहुँचा था... रात में पता चला कि फलां स्थान पर से एक बॉडी मॉर्च्युरी ले जायी गयी है... कई रात कॉलोनी में कोई नहीं सो पाया था .......... यौनकुंठित हत्यारा कोई तीस साल का था ........वह पकड़ा गया था......पता चला था कि वह बच्चा उनके गैंग का शिकार हो गया था और बाद में घर में बताने की धमकी पर वह डर गया था कि मम्मी पापा क्या कहेंगे? जाने कितने दिनों तक वह मासूम उनकी दरिंदगी झेलता रहा था लेकिन हत्या के दिन उसने जाने किस बात पर हिम्मत करके उन लोगों की शिकायत करने की धमकी दे दी और वहाँ से भागा और बस उन नाराज़ दरिंदों में से एक ने उसे दिन दहाड़े सड़क पर दौड़ाया और पीछे से ईंटें मारता रहा.... जब तक कि वह मासूम मर नहीं गया.........उस समय बड़ी दबी छुपी सी ये खबर अखबारों में आयी थी.......... तब मैंने पहली बार इस बाबत कुछ जाना था...... आश्चर्यचकित रह गयी थी.... तब सोच भी नहीं पायी थी कि यौनजनित कुंठा किसी आदमी में इस कदर भी हो सकती है कि लड़के, लड़कियाँ, जानवर, हिंजड़ा इन्हें कुछ भी मिल जाये....... हद है बच्चे, बूढ़े कुछ भी | मर जाओं सालों ..........अगर ये मानसिक विकृति है तो ये उस व्यक्ति के परिवार वालों के लिए भी खतरनाक है.......
तस्वीरें बोलती हैं ------
वर्ष 1965 में भारत – पाक युद्ध चल रहा था | मेरे पति उस समय अपनी यूनिट के साथ अमृतसर –लाहौर सीमा पर तैनात थे | 20 दिन के घमासान युद्ध के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान का बहुत सा क्षेत्र जीत लिया था | इच्छोगिल नहर पर बसा हुआ बरकी गाँव लाहौर से लगभग 13/14 किलोमीटर दूर था और युद्ध के समय भारतीय सेना वहाँ तक पहुँच गई थी | अब यह क्षेत्र और इसके आस पास के क्षेत्र भारतीय सेना के अधीन थे | युद्ध अपने पूरे वेग पर था | इस गाँव के निवासी अपनी सुरक्षा के लिए गाँव छोड़ कर किन्हीं सुरक्षित स्थानों की ओर चले गए थे | किन्तु कुछ बूढ़े और असहाय निवासी अपना गाँव छोड़ कर नहीं जाना चाहते थे | २३ सितम्बर को युद्ध विराम की घोषणा भी हो गई थी | अब बरकी गाँव के बचे-खुचे निवासी भारतीय सेना के मेहमान थे | भारतीय सैनिक उनकी सेवा करते, दवा दारू देते और हर परिस्थिति में उनकी सहायता कर रहे थे | इस तस्वीर में बंद वृद्ध दम्पति किसी भी हालत में अपना गाँव छोड़ कर नहीं जाना चाहते थे | वृद्ध पुरुष का नाम था चिरागदीन | उनकी पत्नी काफी अस्वस्थ थीं और वो कहीं जाने में असमर्थ थीं | उन्हें शायद शान्ति की उम्मीद भी थी |
एक दिन मेरे पति इस दम्पति से बातचीत कर रहे थे कि उस वृद्ध पुरुष ने इन्हें बताया कि उसका जन्म पंजाब के जालन्धर जिले के किसी गाँव में हुआ था | उसे अपने जन्मस्थान की, अपने बचपन के घर की बहुत याद सताती रहती है | यह बात कहते हुए मेरे पति ने देखा कि उस वृद्ध की ऑंखें अश्रुपूर्ण थी | आते -आते इन्होने जब उससे पूछा कि क्या उन्हें किसी चीज़ की ज़रुरत है तो उसने हाथ जोड़ कर कहा,” साहब , आप मुझे एक बार मेरे गाँव में ले जाइए | मैं मरने से पहले अपना जन्म स्थान देखना चाहता हूँ |” उसकी इच्छा पूरी करने में कुछ कठिनाइयाँ तो थी किन्तु मेरे सहृदय पति ने एक दिन उसे एक फौजी जेकेट पहनाई, गाड़ी में बिठाया और ले गए उसे उसके गाँव | उस पाकिस्तानी वृद्ध की खुशियों का विवरण तो मैं शब्दों में नहीं दे सकती | आप केवल उसे महसूस कर सकते हैं | वापिस आकर जब मेरे पति ने उनसे विदा ली तो उसने दोनों हाथ आसमान की ओर उठा कर इन्हें दीर्घ आयु का आशीर्वाद दिया |
लगभग छह महीनों के बाद ताशकंद समझौते के बाद भारतीय सेना को यह क्षेत्र पाकिस्तान को वापिस लौटाना था | मेरे पति इस वृद्ध दम्पति से मिलने गए | उन्होंने इन्हें बड़े स्नेह से गले लगाया, तस्वीर लेने को कहा और साथ में भेंट किया एक मिटटी का कटोरा और कुरान शरीफ की एक प्रति | विदा के समय दोनों की आँखें नाम थीं |
अब आप ही बताएँ कि इस युद्ध मे किसकी हार –किसकी जीत ?????
लगभग छह महीनों के बाद ताशकंद समझौते के बाद भारतीय सेना को यह क्षेत्र पाकिस्तान को वापिस लौटाना था | मेरे पति इस वृद्ध दम्पति से मिलने गए | उन्होंने इन्हें बड़े स्नेह से गले लगाया, तस्वीर लेने को कहा और साथ में भेंट किया एक मिटटी का कटोरा और कुरान शरीफ की एक प्रति | विदा के समय दोनों की आँखें नाम थीं |
अब आप ही बताएँ कि इस युद्ध मे किसकी हार –किसकी जीत ?????
2 टिप्पणियाँ:
ज़िक्र किस इतिहास का करें ?
वर्तमान सत्य है
वर्तमान को जीना है
घिनौना ही सही !!!
सब कुछ समेट दिया इन पंक्तियों में ।
आज की सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति में 'उलूक' उवाच को भी जगह देने के लिये आभार।
बढ़िया बुलेटिन दीदी |
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