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गुरुवार, 5 मई 2016

विलुप्त होते दौर में - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार मित्रो,
आज की बुलेटिन के साथ हम फिर उपस्थित हैं. कई-कई शब्द किस तरह से अपना मूल अर्थ खोते हुए व्यापकता प्राप्त कर लेते हैं. ऐसे शब्दों को उससे सम्बंधित वस्तु, घटनाक्रम में प्रयुक्त किया जाने लगता है. डालडा, टुल्लू, ऑटो, तेल आदि ऐसे ही शब्द हैं जिनका अपना विशेष सन्दर्भ है किन्तु आज ये व्यापकता के साथ प्रयुक्त किये जा रहे हैं. वनस्पति घी के एक ब्रांड के रूप में सामने आये डालडा को आज ब्रांड नहीं वरन उत्पाद के रूप में देखा जाने लगा है. ऐसा ही अन्य दूसरे शब्दों के साथ हो रहा है. शब्दों की इसी व्यापकता के सन्दर्भ में आज एक शब्द ‘निर्भया’ चर्चा में है. दिल्ली में दिल दहलाने वाली घटना के बाद निर्भया शब्द चलन में आया और आज इसे अन्य दूसरी घटनाओं के साथ भी जुड़ा हुआ पाते हैं. देखा जाये तो ये भी एक तरह की भावहीनता है, भावना का विलुप्तिकरण है. 



शब्दों का विलुप्त होना उनके चलन में न रहने के कारण, उनसे गँवईपन का बोध होने के चलते उनको किनारे किये जाने के कारण से होता है. किसी ज़माने में ग्रामीण अंचलों में धड़ल्ले से बोले जाने वाला ‘फटफटिया’ शब्द मोटरसाईकिल से होता हुआ बाइक पर आकर रुक गया. इसी तरह से रोजमर्रा के प्रयोग में आने वाली तश्तरी अब प्लेट में बदल चुकी है, प्याले भी बहुतायत में कप में बदल गए हैं. अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र में भी यही हालत बनी हुई है. अनेकानेक शब्द अंग्रेजी के इस्तेमाल के चलते विलुप्त होने की स्थिति में आ गए हैं.

भाषाई स्तर पर ये स्थिति चिंताजनक है, होनी भी चाहिए किन्तु कई बार लगता है कि जब इन्सान ने अपने रिश्तों, संबंधों, परिवार तक को विलुप्त होने की स्थिति में पहुँचा दिया है तो फिर शब्दों की बिसात ही क्या है. तकनीकी के बढ़ते जा रहे प्रभाव के चलते एक अबोल स्थिति इंसानों के मध्य पनपती जा रही है. पत्र से टेलीफोन पर आने और फिर मोबाइल क्रांति के चलते उनका अतीत में बदल जाने को सबने देखा. इधर सूचना तकनीकी क्रांति ने तो उस मोबाइल से होती बातचीत को भी लगभग समाप्त कर दिया है. संदेशों का आदान-प्रदान करके अब कर्तव्यों की इतिश्री कर ली जाने लगी है. सामने वाले ने तो विभिन्न मंचों का प्रयोग करके आप तक सन्देश भेज दिया. अब यदि आपको फुर्सत है तो उसको पढ़ लें अन्यथा की स्थिति में एक अबोल स्थिति तो बनी ही है.

ऐसी अबोल स्थिति में जबकि संवाद विलुप्त हैं, बातचीत में ही शब्द विलुप्त हैं तो फिर भाषाई विलुप्तता से घबराहट किसलिए. हमारे, आपके, सबके बीच से लगातार विलुप्त होती जाती कई-कई चीजों के बीच यदि हम सभी लोग इंसानियत को, मानवता को, भाईचारे को जिन्दा बनाये रखें तो यही बहुत बड़ी उपलब्धि होगी. इक्कीसवीं सदी में उपलब्धि की इसी प्रत्याशा के बीच आइये आनंद लें आज की बुलेटिन का.

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(चित्र गूगल छवियों से साभार)

9 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

घबराहट और घर्घराहट खुद की खुद ही सुनी जाये महसूस की जाये और मजे लिये जायें आज की बढ़िया बुलेटिन की । बाकी वही तीन ब्लागर रोज के पाँच ब्लाग सात टिप्पणी । कुछ ऐलेक्सा रेंक ऊपर नीचे ब्लाग सैंसेक्स के गिरने लिढ़कने से बेफिकर होकर आईये आनंद लें ।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

सुशील जी,
सही कहा आपने. कुछ उपाय भी सुझाइए, इस घबराहट, घरघराहट से बाहर आने का. तीन ब्लॉगर, रोज के पाँच ब्लॉग सात टिप्पणी को और बेहतर बनाने का.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

हमारी तो कोशिश यही रहती है कि जो ब्लॉगर मित्र ब्लॉग से हल फिलहाल दूरी बनाए है उनकी घर वापसी कारवाई जाये ... आखिर हमारे आपसी परिचय के असली माध्यम हमारे ब्लॉग ही तो थे |

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

इतना तो बनता है ना कि एक ब्लाग एग्रीगेटटर आपकी पोस्ट को प्रमोट कर रहा है उसका आभार कहने के लिये आ जायें । धन्यवाद दे जायें । बाकी छोड़ दीजिये । एक टिप्पणी तो बनती ही है ना । बाकी सब समझे समझाये हैं । दस सूत्र के लिये दस टिप्पणी तो होनी ही चाहिये है ना । बच्चों की सोच मत कहियेगा अब ।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

उपाय ही तो पता नहीं है । बस प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों होता है ? लोग लिखते हैं अच्छी बात है लोग पढ़ना नहीं चाहते हैं अपने लिखे के अलावा पढ़ते हैं तो पता नहीं चलता है क्योंकि पढ़े पर कुछ कहना नहीं चाहते हैं क्यों पता नहीं ? टिप्पणी देने में कंजूसी क्यों है समझ नहीं आता है ? ब्लागिंग कैसे प्रमोट होगी ? 'उलूक' के उलूकपने पर मत जाइयेगा :)

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

टिप्पणी करने के बाद क्या होगा के डर से भी शायद लोग टिप्पणी करने में डरते होंगे :)

Sushil Bakliwal ने कहा…

धन्यवाद आपको. नजरिया ब्लॉग की मेरी पोस्ट को यहाँ शामिल कर उसे कुछ और नये पाठकों तक पहुँचाने के सु-प्रयास हेतु. शुभकामनाओं सहित...

बेनामी ने कहा…

आपको हार्दिक धन्यवाद! लेखकों को नए पाठकों तक पहुंचाने का कार्य बेहद महत्त्वपूर्ण है| विशेष रूप से मेरे जैसे लोग जो यह तो जानते हैं कि किस प्रकार लिखा जाए लेकिन इस बार से पूरी तरह अनभिज्ञ है कि अपनी रचनाओं को पाठक-वृन्द तक कैसे पहुंचाया जाये,आपके इस उद्योग के लिए आपके आभारी हैं| इसी बहाने अन्य लेखक क्या और किस तरह का लिख रहे हैं, यह देखने का मौक़ा लगा| अच्छा लेखन खोजने में लगने वाला समय अच्छा लेखन पढ़ने में लग सका|आपके ब्लॉग पर निरंतर आना होता रहेगा| आपका ही, अरविन्दनाभ शुक्ल

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी सार्थक प्रस्तुति के साथ सम -सामयिक बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

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