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मंगलवार, 3 मई 2016

सपनों के कितने रुपहले परदे जादुई मछली की बाट जोहते हैं :)




वर्तमान की दिनचर्या में 
अतीत की वो लड़की 
आज भी जादुई मछली की प्रतीक्षा में 
नन्हीं सी डोर नदी में डाले बैठी है  ... !!!
सपनों के काँटे में मछली फँसे 
तो  ... 
सपनों के कितने रुपहले परदे जादुई मछली की बाट जोहते हैं :)

3 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर बुलेटिन । आभार रश्मि जी 'उलूक' के अखबार की पाँच साल बासी एक खबर को बात बात में आज के बुलेटिन में स्थान देने के लिये ।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

सपनों के दम पर ही तो जीवन चलता है ... :)

कविता रावत ने कहा…

सपने जरुरी हैं जिन्दा रहने के लिए।
. बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

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