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शनिवार, 21 मई 2016

विराम शरीर का होता है




विराम शरीर का होता है 
मन चलता जाता है ...
लाख घूरो,
हिदायतें दो,
सीख दो 
मन विराम नहीं लेता ..... मृत्यु भी उसकी गति नहीं हर पाती 
फिर कैसा विराम ?
विराम - लोगों से ?
ले सको तो लो 
उनकी बातें मन में अनवरत चलती हैं ......
बेहतर है उन बातों की आहटों को मुस्कुराकर सुनो
शायद तब
आहटें कुछ विराम ले लें !!!



बुद्ध .........कौन ? ........एक दृष्टिकोण
बुद्ध .........कौन ?
सिर्फ एक व्यक्तित्व या उससे भी इतर कुछ और ? एक प्रश्न जिसके ना जाने कितने उत्तर सबने दिए. यूँ तो सिद्धार्थ नाम जग ने भी दिया और जिसे उन्होंने सार्थक भी किया ..........सिद्ध कर दे जो अपने होने के अर्थ को बस वो ही तो है सिद्धार्थ ..........और स्वयं को सिद्ध करना और वो भी अपने ही आईने में सबसे मुश्किल कार्य होता है मगर मुश्किल डगर पर चलने वाले ही मंजिलों को पाते हैं और उन्होंने वो ही किया मगर इन दोनों रूपों में एकरूपता होते हुए भी भिन्नता समा ही गयी जब सिद्धार्थ खुद को सिद्ध करने को अर्धरात्रि में बिना किसी को कुछ कहे एक खोज पर चल दिए . अपनी खोज को पूर्णविराम भी दिया मगर क्या सिर्फ इतने में ही जीवन उनका सार्थक हुआ ये प्रश्न लाजिमी है . यूँ तो दुनिया को एक मार्ग दिया और स्वयं को भी पा लिया मगर उसके लिए किसी आग को मिटटी के हवाले किया , किसी की बलि देकर खुद को पूर्ण किया जिससे ना उनका अस्तित्व कभी पूर्ण हुआ .......हाँ पूर्ण होकर भी कहीं ना कहीं एक अपूर्णता तो रही जो ना ज़माने को दिखी मगर बुद्ध बने तो जान गए उस अपूर्णता को भी और नतमस्तक हुए उसके आगे क्यूँकि बिना उस बेनामी अस्तित्व के उनका अस्तित्व नाम नहीं पाता , बिना उसके त्याग के वो स्वयं को सिद्ध ना कर पाते ...........इस पूर्णता में , इस बुद्धत्व में कहीं ना कहीं एक ऐसे बीज का अस्तित्व है जो कभी पका ही नहीं , जिसमे अंकुर फूटा ही नहीं मगर फिर भी उसमे फल फूल लग ही गए सिर्फ और सिर्फ अपने कर्त्तव्य पथ पर चलने के कारण , अपने धर्म का पालन करने के कारण ........नाम अमर हो गया उसका भी ...........हाँ .......उसी का जिसे अर्धांगिनी कहा जाता है ..........आधा अंग जब मिला पूर्ण से तब हुआ संपूर्ण ..........वो ही थी वास्तव में उनके पूर्णत्व की पहचान ............एक दृष्टिकोण ये भी है इस पूर्णता का , इस बुद्धत्व का जिसे हमेशा अनदेखा किया गया .
पूर्णत्व की पहचान हो तुम
बुद्ध :
यधोधरा
तुम सोचोगी
क्यो नहीं तुम्हें
बता कर गया
क्यो नहीं तुम्हें
अपने निर्णय से
अवगत कराया
शायद तुम न
मुझे रोकतीं तब
अश्रुओं की दुहाई भी
न देतीं तब
जानता हूँ
बहुत सहनशीलता है तुममें
मगर शायद
मुझ्में ही
वो साहस न था
शायद मैं ही
कहीं कमजोर पडा था
शायद मैं ही तुम्हारे
दृढ निश्चय के आगे
टिक नहीं पाता
तुम्हारी आँखो में
देख नहीं पाता
वो सच
कि देखो
स्त्री हूँ
सहधर्मिणी हूँ
मगर पथबाधा नहीं
और उस दम्भ से
आलोकित तुम्हारी मुखाकृति
मेरा पथ प्रशस्त तो करती
मगर कहीं दिल मे वो
शूल सी चुभती रहती
क्योंकि
अगर मैं तुम्हारी जगह होता
तो शायद ऐसा ना कर पाता
यशोधरा
तुम्हे मैं जाने से रोक लेता
मगर तुम्हारा सा साहस न कहीं पाता
धन्य हो तुम देवी
जो तुमने ऐसे अप्रतिम
साहस का परिचय दिया
और मुझमें बुद्धत्व जगा दिया
मेरी जीवत्व से बुद्धत्व तक की राह में
तुम्हारा बलिदान अतुलनीय है
गर तुम मुझे खोजते पीछे आ गयी होतीं
तो यूँ न जन कल्याण होता
न ही धर्म उत्थान होता
हे देवी ! मेरे बुद्धत्व की राह का
तुम वो लौह स्तम्भ हो
जिस पर जीवों का कल्याण हुआ
और मुझसे पहले पूर्णत्व तो तुमने पा लिया
क्योंकि बुद्ध होने से पहले पूर्ण होना जरूरी होता है
और तुम्हारे बुद्धत्व में पूर्णत्व को पाता सच
या पूर्णत्व में समाहित तेजोमय ओजस्वी बुद्धत्व
तुम्हारी मुखाकृति पर झलकता
सौम्य शांत तेजपूर्ण ओज ही तुम्हारी
वो पहचान है जिसे गर मैं
तुम्हारी जगह होता
तो कभी न पा सकता था
क्योंकि
बुद्ध न तब तक बुद्ध हुआ
जब तक न तुम्हारे त्याग समर्पण की हवि में
अपने अहम को आहूत किया
हाँ …… स्वीकार्य है मुझे
तुम्हारे ओज के आगे
तुम्हारे दर्प के आगे
तुम्हारे नारीत्व के आगे
नतमस्तक होना
अपने अवांछित पौरुषत्व से उतरकर
तुम तक पहुँचने का यही है
सबसे सुगम मार्ग
यही तो है वास्तव में बुद्ध होना
यही तो है वास्तव में सिद्ध करना अपने नाम को
स्त्री के धैर्य त्याग और तपस्या पर ही पाया है मैने पूर्णविराम
हाँ ……… यशोधरा तुम तक पहुँचना कहूँ या बुद्ध होना एक ही है
यशोधरा ! नमन है तुम्हें देवी
धैर्य और संयम की बेमिसाल मिसाल हो तुम
स्त्री पुरुष के फर्क की पहचान हो तुम
वास्तव में तो मेरे बुद्धत्व का ओजपूर्ण गौरव हो तुम
नारी शक्ति का प्रतिमान हो तुम
बुद्ध की असली पहचान हो तुम ........सिर्फ तुम !!!


3 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

आसान कहाँ है लोगों से विराम ले लेना? लोगों को पता चल गया अगर ले लिया है उनसे विराम किसी ने तो उसी क्षण चलाने चले आयेंगे कुछ ले दे कर समझाने को कि आराम हराम है :)

सुन्दर प्रस्तुति ।

abhajai ने कहा…

यशोधरा हो या उर्मिला दोनों का त्याग कालजयी पर पर्दे के पीछे ,बहुत सुंदर रचना ,शुभम !

vandana gupta ने कहा…

सही कहा दी विराम शरीर का होता है .......मन तो अनवरत चलता है ...........मेरी रचना को प्रमुखता से स्थान देने के लिए आपकी हार्दिक आभारी हूँ :)

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