ज़िन्दगी जब कलम पकड़ाती है
तो उसके गहरे मायने होते हैं
दर्द में सराबोर आदमी
साँसों के लिए
कलम को पतवार बना लेता है ...
और मैं पुरवा बन पालवाली नाव को छू लेती हूँ !
अनुपमा पाठक
बाक़ी है सफ़र...
निरुद्धेश्य
पटरियों के आस पास चलते हुए
ट्रेन पर सवार हो गयी...
पन्ने पलटती हुई चेतना
कुछ दूर तक गयी...
फिर वापसी की राह ली
कि लौटना ज़रूरी था... !
दिन के ख़ाके में कितने ही ऐसे चाहे अनचाहे मोड़ थे
जिनसे गुज़रना नियति थी...
सो पन्नों के बीच बुकमार्क लगाया
बेचैनी को ज़रा फुसलाया
और लौट आये घर...
कि अभी लम्बी है डगर...
बिना लक्ष्य के
निकले थे भटकने...
कि जुटा सकें कुछ धैर्य
और ज़रा सी हिम्मत...
निर्धारित गंतव्य की यात्रा हेतु!
कि अभी बाक़ी है सफ़र...
अनदेखे हैं कितने ही आनेवाले पहर... !!
4 टिप्पणियाँ:
वाह एक बहुत सुंदर रचना अनुपमा जी की लेखनी से निकली हुई ।
अनुपमा जी की बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु आभार
आपका आभार दीदी |
सुंदर रचना अनुपमा जी की
एक टिप्पणी भेजें
बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!