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बुधवार, 31 जुलाई 2013

होरी को हीरो बनाने वाले रचनाकार को ब्लॉग बुलेटिन का नमन

प्रिय ब्लॉगर मित्रो,
प्रणाम !

वाराणसी शहर से लगभग पंद्रह किलोमीटर दूर लमही गांव में अंग्रेजों के राज में 31 जुलाई 1880 में पैदा हुए मुंशी प्रेमचंद न सिर्फ हिंदी साहित्य के सबसे महान कहानीकार माने जाते हैं, बल्कि देश की आजादी की लड़ाई में भी उन्होंने अपने लेखन से नई जान फूंक दी थी। प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था।
वाराणसी शहर से दूर 129 वर्ष पहले कायस्थ, दलित, मुस्लिम और ब्राह्माणों की मिली जुली आबादी वाले इस गांव में पैदा हुए मुंशी प्रेमचंद ने सबसे पहले जब अपने ही एक बुजुर्ग रिश्तेदार के बारे में कुछ लिखा और उस लेखन का उन्होंने गहरा प्रभाव देखा तो तभी उन्होंने निश्चय कर लिया कि वह लेखक बनेंगे। 
मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य को निश्चय ही एक नया मोड़ दिया और हिंदी में कथा साहित्य को उत्कर्ष पर पहुंचा दिया। प्रेमचंद ने यह सिद्ध कर दिया कि वर्तमान युग में कथा के माध्यम की सबसे अधिक उपयोगिता है। उन्होंने हिंदी की ओजस्विनी वाणी को आगे बढ़ाना अपना प्रथम कर्तव्य समझा, इसलिए उन्होंने नई बौद्धिक जन परंपरा को जन्म दिया।  
प्रेमचंद ने जब उर्दू साहित्य छोड़कर हिंदी साहित्य में पदार्पण किया तो उस समय हिंदी भाषा और साहित्य पर बांग्ला साहित्य का प्रभाव छा रहा था। हिंदी को विस्तृत चिंतन भूमि तो मिल गई थी, पर उसका स्वत्व खो रहा था। देश विदेश में उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ रही है तथा आलोचकों के अनुसार उनके साहित्य का सबसे बड़ा आकर्षण यह है कि वह अपने साहित्य में ग्रामीण जीवन की तमाम दारुण परिस्थितियों को चित्रित करने के बावजूद मानवीयता की अलख को जगाए रखते हैं। साहित्य समीक्षकों के अनुसार प्रेमचंद के उपन्यासों और कहानियों में कृषि प्रधान समाज, जाति प्रथा, महाजनी व्यवस्था, रूढि़वाद की जो गहरी समझ देखने को मिलती है, उसका कारण ऐसी बहुत सी परिस्थितियों से प्रेमचंद का स्वयं गुजरना था।
प्रेमचंद के जीवन का एक बड़ा हिस्सा घोर निर्धनता में गुजरा था।  प्रेमचंद की कलम में कितनी ताकत है, इसका पता इसी बात से चलता है कि उन्होंने होरी को हीरो बना दिया। होरी ग्रामीण परिवेश का एक हारा हुआ चरित्र है, लेकिन प्रेमचंद की नजरों ने उसके भीतर विलक्षण मानवीय गुणों को खोज लिया।  प्रेमचंद का मानवीय दृष्टिकोण अद्भुत था। वह समाज से विभिन्न चरित्र उठाते थे। मनुष्य ही नहीं पशु तक उनके पात्र होते थे। उन्होंने हीरा मोती में दो बैलों की जोड़ी, आत्माराम में तोते को पात्र बनाया। गोदान की कथाभूमि में गाय तो है ही।  प्रेमचंद ने अपने साहित्य में खोखले यथार्थवाद को प्रश्रय नहीं दिया। प्रेमचंद के खुद के शब्दों में वह आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद के प्रबल समर्थक हैं। उनके साहित्य में मानवीय समाज की तमाम समस्याएं हैं तो उनके समाधान भी हैं। 
प्रेमचंद का लेखन ग्रामीण जीवन के प्रामाणिक दस्तावेज के रूप में इसलिए सामने आता है क्योंकि इन परिस्थितियों से वह स्वयं गुजरे थे। अन्याय, अत्याचार, दमन, शोषण आदि का प्रबल विरोध करते हुए भी वह समन्वय के पक्षपाती थे।  प्रेमचंद अपने साहित्य में संघर्ष की बजाय विचारों के जरिए परिवर्तन की पैरवी करते हैं। उनके दृष्टिकोण में आदमी को विचारों के जरिए संतुष्ट करके उसका हृदय परिवर्तित किया जा सकता है। इस मामले में वह गांधी दर्शन के ज्यादा करीब दिखाई देते हैं। लेखन के अलावा उन्होंने मर्यादा, माधुरी, जागरण और हंस पत्रिकाओं का संपादन भी किया। 
प्रेमचंद के शुरूआती उपन्यासों में रूठी रानी, कृष्णा, वरदान, प्रतिज्ञा और सेवासदन शामिल है। कहा जाता है कि सरस्वती के संपादक महावीर प्रसाद द्विवेदी से मिली प्रेरणा के कारण उन्होने हिन्दी उपन्यास सेवासदन लिखा था। बाद में उनके उपन्यास प्रेमाश्रम, निर्मला, रंगभूमि, कर्मभूमि और गोदान छपा। गोदान प्रेमचंद का सबसे परिपक्व उपन्यास माना जाता है। उनका अंतिम उपन्यास मंगलसूत्र अपूर्ण रहा। समीक्षकों के अनुसार प्रेमचंद की सर्जनात्मक प्रतिभा उनकी कहानियों में कहीं बेहतर ढंग से उभरकर सामने आई है।
उन्होंने 300 से अधिक कहानियां लिखी। प्रेमचंद की नमक का दरोगा, ईदगाह, पंच परमेश्वर, बड़े भाई साहब, पूस की रात, शतरंज के खिलाड़ी और कफन जैसी कहानियां आज विश्व साहित्य का हिस्सा बन चुकी हैं। प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य में आते ही हिंदी की सहज गंभीरता और विशालता को भाव-बाहुल्य और व्यक्ति विलक्षणता से उबारने का दृढ़ संकल्प लिया। जहां तक रीति-काल की मांसल श्रृंगारिता के प्रति विद्रोह करने की बात थी प्रेमचंद अपने युग के साथ थे पर इसके साथ ही साहित्य में शिष्ट और ग्राम्य के नाम पर जो नई दीवार बन रही थी, उस दीवार को ढहाने में ही उन्होंने हिंदी का कल्याण समझा। हिंदी भाषा रंगीन होने के साथ-साथ दुरूह, कृत्रिम और पराई होने लगी थी। चिंतन भी कोमल होने के नाम पर जन अकांक्षाओं से विलग हो चुका था। हिंदी वाणी को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने एक नई बौद्धिक जन परम्परा को जन्म दिया। 
प्रेमचंद ने कुल लगभग दो सौ कहानियां लिखी हैं। उनकी कहानियों का वातावरण बुन्देलखंडी वीरतापूर्ण कहानियों तथा ऐतिहासिक कहानियों को छोड़कर वर्तमान देहात और नगर के निम्न मध्यवर्ग का है। उनकी कहानियों में वातावरण का बहुत ही सजीव और यथार्थ अंकन मिलता है। जितना आत्मविभोर होकर प्रेमचंद ने देहात के पा‌र्श्वचित्र लिए हैं उतना शायद ही दूसरा कोई भी कहानीकार ले सका हो। इस चित्रण में उनके गांव लमही और पूर्वाचल की मिट्टी की महक साफ परिलक्षित होती है। तलवार कहते हैं कि प्रेमचंद की कहानियां सद्गति, दूध का दाम, ठाकुर का कुआं, पूस की रात, गुल्ली डंडा, बड़े भाई साहब आदि सहज ही लोगों के मन मस्तिष्क पर छा जाती हैं और इनका हिंदी साहित्य में जोड़ नहीं है। 

सादर आपका 
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पीड़ा जब हिस्से आती है

निवाला नींद का

भारत की आधारभूत समस्याएँ और उसके समाधान.. सैनिटरी नैपकीन और पानी

,नेताजी कहीन है।

थोपा हुआ या सच

हादसे के बाद भीड़ नहीं चिकित्सा जरूरी है

ब्लोगिंग के पाँच साल और इक ज़िद्दी-सा ठिठका लम्हा...

सौ टका टंच खबर .............

कविता के बारे में...!

गृहणी

औरत की आकांक्षा

अधिकारी का हौंसला, तोड़े बारम्बार-

ताऊ और रामप्यारी की हरकीरत ’हीर’ से दो और दो पांच.....

टंच स्त्रियाँ और चंट राजनेता

७३ वें बलिदान दिवस पर अमर शहीद ऊधम सिंह जी को नमन

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

मंगलवार, 30 जुलाई 2013

एक बाज़ार लगा देखा मैंने

इस कविता के पीछे एक छोटी सी कहानी है | एक दिन जब मैं व्यायाम शाला से घर वापस लौट रहा था | अचानक मेरी नज़र एक ठेले वाले पर पड़ी | वो आम बेच रहा था | ऊँचे दाम और डंडी मार तोल | दोनों तरीकों से पैसे बटोर रहा था | फिर भी लोग मक्खी की तरह उसके ठेले पर भिनभिना रहे थे | वहीँ करीब में एक छोटा सा बच्चा फटे चिथड़ों में खड़ा बेबस और ललचाई आँखों से आमों को देख रहा था | सोच रहा था के शायद कोई उसे भी कुछ दे दे | पर कोई भी इंसान उसकी तरफ़ नज़र घुमाने तक को तयार नहीं था | उसकी उस हालत को देख और उसकी आँखों में उमड़ती भावनाओं को पढ़ मेरा मन विचलित हो उठा | मैंने आगे बढ़ कर दो आम खरीद कर उसे खाने को दे दिए | आमों को देख उसके चेहरे पर आई मुस्कान ने मेरा ह्रदय गद गद कर दिया | घर आकर मैंने इस कविता की कुछ पंक्तियाँ लिखने का प्रयत्न किया और जो प्रत्यक्ष देखा और महसूस किया वो शब्दों में पिरो दिया | आशा करता हूँ आपको मेरी यह कोशिश पसंद आएगी |















एक बाज़ार लगा देखा मैंने
जम कर हो रहा था व्यापार
बेच रहे थे बेबाक, बेधड़क
झूठ, सच, भूख, आइयाशी
साथ में थे
दिल, जान, जिस्म और इमान
ढेर लगा था चापलूसी का
भ्रष्टाचार पड़ा था सीना तान
भीड़ ऐसी लदी पड़ी थी
जैसे फ्री मिल रहा हो जजमान
जिसको देखो चीख चीख कर
कर रहा था गुणगान
इन चीजों के सौदे लेकर
हर एक बन फिर रहा था धनवान
एक बाज़ार लगा देखा मैंने
जम के हो रहा था व्यापार

बाजु वाले ठेले पर भी
कुछ बेच रहा था एक इंसान
सीधा साधा भोला भला
शायद, थे उसके भी कुछ अरमान
प्यार, वफ़ादारी, सपने थे
या कुछ उमीदें थी अनजान
कुछ बेजुबान अफसाने भी थे
और भी न जाने क्या क्या था सामान
शराफत से आवाज़ लगा के
कहता ले लो जी श्रीमान
पर कोई ग्राहक ना आया
और न बिकता उसका सामान
लगता था इमानदार है, बेचारा
जितना बोलता उतना तोलता
पर कोई चवन्नी भी न देता
अगर मिल भी जाती तो
यह ज़हर खा लेता
गला फाडेगा बस दिन भर खाली
और खायेगा लोगों की गाली
न बिकेगा कभी इसका सामान
एक बाज़ार लगा देखा मैंने
जम के हो रहा था व्यापार

मैं दूर से ताड़ रहा था
ज़िन्दगी का यह अजब तमाशा
बेईमानी, चोरी, चालाकी, भ्रष्टाचार
घूसखोरी, झूठ, सच, भूख, आइयाशी
और इन जैसे कई और आइटम भी
बिक रहे थे जिंदाबाद
भाव रहे थे छु आसमान
वहीँ पास में
हो रही थी किसी की ज़िन्दगी वीरान
दम तोड़ते पड़े थे ठेले पर
शराफत, सपने और अरमान
प्यार, मोहब्बत, ईमानदारी भी
आखरी सासें ले रहे थे
थे दाने दाने को मोहताज
एक बाज़ार लगा देखा मैंने
जम के हो रहा था व्यापार

आज की कड़ियाँ 

परम्पराओं का संसार - राजेंद्र टेला

माँ तेरे जाने के बाद - ऋषभ शुक्ला

आपकी सुवास - राम किशोर उपाध्याय

कीचड़ तो तैयार, कमल पर कहाँ खिलेंगे ?? - रविकर

कांग्रेस का हाथ - आम आदमी की जेब में - अजीत सिंह तैमुर

तन्हाई - नीरा जैन

राजस्थान के कैसे कैसे अनूठे मंदिर - रतन सिंह शेखावत

परछाइयां कभी हुईं अपनी - उपासना सियाग

क्या मिला चाची को ? - विभा रानी श्रीवास्तव

मनी प्लांट - पंखुरी गोएल

भूल गया रोने के लिए अलग एक कमरा रखना...निधि मल्होत्रा - यशोदा अग्रवाल

अब इजाज़त | आज के लिए बस यहीं तक | फिर मुलाक़ात होगी | आभार

जय श्री राम | हर हर महादेव शंभू | जय बजरंगबली महाराज 

सोमवार, 29 जुलाई 2013

भारत मे भी होना चाहिए एक यूनिवर्सल इमरजेंसी हेल्पलाइन नंबर - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम !

ब्रिटेन और अमेरिका में कोई भी समस्या हो, एक ही यूनिवर्सल इमरजेंसी हेल्पलाइन नंबर पर मदद ली जा सकती है। दिल्ली में दामिनी प्रकरण के बाद हमारे देश में भी एकल हेल्पलाइन की जरूरत महसूस की जाने लगी फिर बात आई गई हो गई पर उत्तराखंड आपदा के समय भी इस तरह के नंबर की एक बार फिर जरूरत महसूस की गई ।  

आइए जानें देश और दुनिया में मौजूद हेल्पलाइन के बारे में.... 

भारत में

-हमारे देश में इस समय सरकारी आपातकालीन हेल्पलाइन के कई नंबर चल रहे हैं। जैसे यदि आपको पुलिस से तात्कालिक सहायता लेनी हो, तो इसके लिए 100 नंबर डायल करना होता है, आग लग जाए तो फायरब्रिगेड को बुलाने के लिए 101 नंबर है, वहीं दुर्घटना हो जाने पर एंबुलेंस बुलाने के लिए 102 और 108 नंबर उपलब्ध हैं। इसी प्रकार हर समस्या के लिए अलग-अलग नंबर मौजूद हैं।

-दामिनी प्रकरण के बाद दिल्ली सरकार ने महिलाओं को सुरक्षा देने के लिहाज से हेल्पलाइन के रूप में 181 नंबर आरंभ किया है।

- इस प्रकरण के बाद से भारत में भी चर्चा चल निकली है कि अमेरिका और ब्रिटेन की तर्ज पर यहा भी एकल आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर होना चाहिए। देश में इसकी जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है।

- अधिक नंबर होने से अचानक किसी मुसीबत में फंसने पर संबंधित हेल्पलाइन नंबर याद रह पाने की समस्या बनी रहती है। इसलिए भारत में ऐसी हेल्पलाइन के बारे में विचार किया जा रहा है, जिस पर किसी भी समस्या के लिए कभी भी फोन किया जा सके।

विदेशों में

- पहला आपातकालीन नंबर ब्रिटेन में शुरू हुआ। 1 जुलाई, 1937 को लंदन में 999 नंबर की सेवा शुरू की गई, जिस पर पूरे देश में कहीं से भी कॉल किया जा सकता है।

- पहले अमेरिका में भी हमारे देश की तरह ही हर आपातकालीन समस्या के लिए अलग नंबर हुआ करता था।

-1957 में यूएस नेशनल एसोसिएशन ऑफ फायर के प्रमुख के मन में यह खयाल आया कि एक ऐसा नंबर होना चाहिए, जिस पर किसी भी आपात स्थिति में और किसी भी समस्या पर देश भर के लोग मदद के लिए कॉॅल कर सकें।

-एक दशक तक विचार-विमर्श के बाद 911 नंबर पर सहमति बनी।

-16 फरवरी, 1968 को पहली बार अलबामा के सीनेटर रैनकिन फाइट ने इस नंबर पर पहली कॉल की थी।

- पहली कॉल के बाद ही पूरे अमेरिका में इसका इस्तेमाल आम हो गया। इसे यूनिवर्सल इमरजेंसी नंबर कहा गया।

-अमेरिका के अलावा कनाडा, कोस्टारिका, जॉर्डन, लाइबेरिया, पराग्वे आदि में भी 911 ही यूनिवर्सल इमरजेंसी नंबर है।

-यूरोप, रूस, यूक्त्रेन, स्विट्जरलैंड आदि में 112 को यूनिवर्सल इमरजेंसी नंबर के रूप में 1990 में आरंभ किया गया। 

मेरी राय मे भारत मे भी जल्द से जल्द एक ही यूनिवर्सल इमरजेंसी हेल्पलाइन नंबर शुरू हो जाना चाहिए ... आप क्या कहते है ???

सादर आपका 
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एक चिट्ठी अपने प्रिय के नाम

मेरा पता..?

ग्राहम बेल की आवाज़ और कुदरत के कानून से इंसाफ।

नए सपने

भारत की २ महान विभूतियों को नमन

सायरन के घायल पाँव

युवा शिखर सम्मान (परिकल्पना ब्लॉग गौरव युवा सम्मान) 2013

द्वैध में द्वन्द्व, एकत्व में मुक्ति

सूर्यमुखी कन्या

"मैं" का सफर भी !!!

तिथियाँ

खोलिए आँख तो सवेरा है

मनोरंजन की "प्लानिंग" करता योजना आयोग

मायने बदल रही जिंदगी

-ज़मीर से हारे हुए लोग

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

रविवार, 28 जुलाई 2013

५ रुपये मे भरने का तो पता नहीं खाली हो जाता है - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम !

जो कहते है कि पाँच रुपये में पेट भर जाता है,
 वो कान खोलकर सुन लें...
 इस देश में पेट खाली करनें का ही पाँच रुपया लग जाता है...

सादर आपका 
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जिन्दगी पैर नहीं तो पहियों पर भी चल ही लेती है

RAJIV CHATURVEDI at Shabd Setu
" जिन्दगी पैर नहीं तो पहियों पर भी चल ही लेती है , खुदा खुदगर्ज था हम जिन्दगी को तनहा तलाशने निकले ." --- राजीव चतुर्वेदी

एक गरीब माँ के सपने..............!!!

इस भयानक रात में मुसलाधार बरसात में अपने छोटे बच्चे को कलेजे से लगाये वो इस भयानक बरसात में कहाँ छुपाये वो रंग -बिरंगे प्लास्टिको से बनी झोपड़ी पानी -पानी हो रहा घर बरसात के होने से घर में एकमात्र खाट के नीचे वह अपने बच्चे को लेके लेटे वह सोचती ये बारिस कब रुकेगी कब वह दिन आयेगा जब अपना भी आशियाना होगा जीवन का तब नया सूरज निकलेगा खाने को अच्छा खाना होगा चारों ओर झोपड़े के अंदर पानी ही पानी बना है समुंदर सिर्फ खाट के नीचे बची थोड़ी सी जमीन जहाँ सीने से लगाये बच्चे को कोसती नसीब भूख से बेहाल बच्चा क्रन्दन कर रहा है बाहर मेघ भी आज गर्जन कर रहा है बालक के क्रन्दन से माँ की छाती फट रही है सू... more »

सम्मान : क्या भूलूं क्या याद करुं ?

महेन्द्र श्रीवास्तव at आधा सच...
मित्रों क्या भूलूं और क्या याद करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है। दरअसल इस पोस्ट को लेकर मैं काफी उलझन में था। मैं समझ ही नहीं पा रहा हूं कि अपनी 200 वीं पोस्ट किस विषय पर लिखूं। वैसे तो आजकल सियासी गतिविधियां काफी तेज हैं, एक बार मन में आया कि क्यों न राजनीति पर ही बात करूं और देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस से पूछूं कि 2014 में आपका प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन है ? फिर मुझे लगा कि इन बेचारों के पास आखिर इसका क्या जवाब होगा ? क्यों मैं इन पर समय बर्बाद करूं। बाद में मेरी नजर तथाकथित तीसरे मोर्चे पर गई, ममता, मायावती, मुलायम और नीतीश कुमार, इनमें से क्या कोई गुल खिला स... more »

मन का रिश्ता

Archana at अपना घर
*यहाँ आपको मिलेंगी सिर्फ़ अपनों की तस्वीरें जिन्हें आप सँजोना चाहते हैं यादों में.... ऐसी पारिवारिक तस्वीरें जो आपको अपनों के और करीब लाएगी हमेशा... * *आप भी भेज सकते हैं आपके अपनेबेटे/बेटी/नाती/पोते या परिवार के किसी सदस्य के साथ आपकी तस्वीर उनका नाम और आपसे रिश्ता बताते हुए ........* *मेरे मेल आई डी- archanachaoji@gmail.com पर, साथ ही आपके ब्लॉग की लिंक ......बस शर्त ये है कि स्नेह झलकता हो तस्वीर में.....* * आज की तस्वीर में मिलीए दिलीप से उसके चंगू-मंगू के साथ (ये हमारे भी चंगू-मंगू हैं) ---- * जहाँ तक मुझे याद है ,मैंने पहला पॉडकास्ट दिलीप की कविता का ही किया था .... अफ़सोस कि द... more »

अभिषेक गोस्वामी की कहानी : मॉर्निंग वॉक

मनोज पटेल at पढ़ते-पढ़ते
*जयपुर में जन्मे अभिषेक गोस्वामी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की थिएटर इन एजुकेशन कं में अध्यापन और आज़ाद थिएटर निर्देशक एवं सलाहकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं. उनका अपना थिएटर समूह ब्रीदिंग स्पेस चर्चा में रहा है और वे भारत के अलावा ओमान तथा चीन में भी रंगमंचीय प्रदर्शन कर चुके हैं. फोटोग्राफी और कविता का भी शौक. सम्प्रति अजीम प्रेमजी फाउंडेशन में रंगमंच विशेषज्ञ के तौर पर कार्यरत. कहीं भी प्रकाशित होने वाली यह पहली कहानी... * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * *मॉर्निंग वाक : अभिषेक गोस्वामी * *श*र्मा जी को टी वी देखने की बहुत बुरी लत लग चुकी थी। घर में, अधिकतर समय रिमोट... more »

मूर्ख!

देवेन्द्र पाण्डेय at बेचैन आत्मा
भेड़ो कें झुँड से अलग कर दी गई बकरी बकरियों के साथ नहीं रह पाया भेड़ सियार बनने के प्रयास में मारे गये कुत्ते खरगोशों ने दूर तक खदेड़ा सफेद चूहों को बिल्ली मारी गई कुत्तों के चक्कर में। शेर ने खाया बस पेट भर मौके का लाभ उठा स्वाद के लिए निरीह का खून पीते रहे दूसरे जानवर। जी नहीं पाया सुकून से जिसने स्वीकार नहीं किया जंगल का कानून। नहीं दिखते बिच्छुओं से डंक खाते जाने और... माफ करते रहने वाले साधू। क्या आप फँसे हैं कभी ऐसे जंगल में? नहीं...! ओह! निःसंदेह आप भाग्यशाली और बुद्धिमान हैं। .....................

प्रेमपत्र नंबर : 1409

प्रेमपत्र नंबर : 1409 जानां ; तुम्हारा मिलना एक ऐसे ख्वाब की तरह है , जिसके लिए मन कहता है कि , कभी भी ख़त्म नहीं होना चाहिए ... तुम जब भी मिलो , तो मैं तुम्हे कुछ देना चाहूँगा , जो कि तुम्हारे लिए बचा कर रखा है ...................................... एक दिन जब तुम ; मुझसे मिलने आओंगी प्रिये, मेरे मन का श्रंगार किये हुये, तुम मुझसे मिलने आना !! तब मैं वो सब कुछ तुम्हे अर्पण कर दूँगा .. जो मैंने तुम्हारे लिए बचा कर रखा है ..... कुछ बारिश की बूँदें ... जिसमे हम दोनों ने अक्सर भीगना चाहा था कुछ ओस की नमी .. जिनके नर्म अहसास हमने अपने बदन पर ओड़ना चाहा था और इस सब के साथ रखा है ... क... more »

मेरी नज़र से कुछ मील के पत्थर - 6 )

रश्मि प्रभा... at मेरी नज़र से
शब्दों को ओस में भिगोकर ईश्वर ने सबकी हथेलियों में रखे .... कुछ बर्फ हो गए,कुछ नदी बन जीवन के प्रश्नों की प्यास बुझाने लगे .................. शब्दों की कुछ नदियाँ, कुछ सागर मेरी नज़र से = ज्ञानवाणी: सपूत......एक लघु कथा पुराने ज़माने की बात है ....तब आज की तरह पानी के लिए नल और बोरिंग जैसी सुविधा नही थी ....सिर पर कई घड़ों का भार लिए स्त्रियाँ कई किलोमीटर दूर तक जा कर कुओं या बावडियों से पानी भार कर लाती थी एक बार इसी तरह तीन महिलाएं घर की जरुरत के लिए पानी भार कर ला रही थी ... तीनों ने आपस में बातचीत प्रारम्भ की ... पहली महिला ने कहा ..." मेरा पुत्र बहुत बड़ा विद्वान् है ....शास... more »

हाय ये कुर्सी ! उफ़ ये कुर्सी

Anju (Anu) Chaudhary at अपनों का साथ
ओ! कुर्सी के निर्माता एक कुर्सी हमें भी भिजवा दो गर्दन और कंधे का दर्द मिटा दो || देखो ना... इसी कुर्सी के लिए नेताओं ने देश के हिस्से कर डाले अपनों ने, अपनों को ही मरवा डाला उफ़! इस कुर्सी की महिमा है निराली जो है आम जनता की उम्मीदों पर भारी || ओ-कुर्सी के निर्माता ये कुर्सी-लोक है घूम-फिर कर सबको यहीं है आना इस कुर्सी के लिए हर गठबंधन तोड़ा जाता झूठे बयानों का छींका किसी पर भी फोड़ा जाता बस !सबका सपना है ये कुर्सी अब ओर क्या कहूँ क्या क्या महिमा कुर्सी की मैं बताऊँ | हर नेता की आस है ये कुर्सी राजनीति की चाल है ये कुर्सी हत्याधारी, अत्... more »

हमारा ख़ूं-बहा

Suresh Swapnil at साझा आसमान
हमारा ज़र्फ़ गर मानिंदे-ए-दरिया हो गया होता तो पानी दो-जहां के सर से ऊपर बह रहा होता मरासिम टूटने के बाद ये: अफ़सोस मत करियो के: तुमने ये: कहा होता के: शायद वो: कहा होता ख़बर क्या थी हमें तुम ही हमारे हो ख़ुदा वरना तुम्हारी दीद से पहले वज़ीफ़ा पढ़ लिया होता बड़ा मासूम क़ातिल था के: 'हां' पे जां लुटा बैठा हमीं कुछ सब्र कर लेते तो शायद जी गया होता मेरे एहबाब मुंसिफ़ से अगर फ़रियाद कर आते तो तख़्तो-ताज से ज़्याद: हमारा ख़ूं-बहा होता तेरे इक फ़ैसले ने कर दिया बदनाम दोनों को न जलता दिल ... more »

जीवन

वो वृक्ष सघन,  कितना अपना  जो कड़ी धूप में  छाँह बना .  कितना अपना  वो पथ निर्जन, युग से दिन, बीते  जैसे क्षण .  रह-रह चुभता  जो शूल कहीं, चलने को  उसने भी गति दी .  जो छूट गया  कण-कण सुन्दर, आने वाला  हर क्षण सुन्दर .  - मीता .
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

शनिवार, 27 जुलाई 2013

हंस लो भाई थोडा.... ब्लॉग बुलेटिन

मित्रों, आज के बुलेटिन में राजनीतिक जोक्स का आनन्द लीजिए.... वैसे सब के सब कापी पेस्ट हैं.... जै हो उसकी जिसनें कापी और पेस्ट जैसी चीज़ बनाई....


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नेताओं के बयान....


ओबामा: ओसामा मिले तो उसे फोड़ दो!
गांधी : हिंसा अच्छी बात नहीं, उसे छोड़ दो।
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और अब लो....
मनमोहन: ठीक है।
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एक भिखारी एक बोर्ड पकड़ कर बैठा था, जिस पर लिखा था- 'मुझे पैसे दान करें, नहीं तो मैं कांग्रेस को वोट कर फिर जिता दूंगा और फिर आपको भी मेरे साथ यहां बैठकर भीख मांगनी पड़ेगी। सोच लें, फैसला आपके हाथ में है!' 

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हिट हुई 'भाग मिल्खा भाग' के बाद नई पेशकश
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'बोल मनमोहन बोल!'

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लो भाई एक और लो...

मनीष तिवारी ने कहा कि राहुल गांधी इस देश के सबसे प्रखर और युवा नेता हैं, देश को नई दिशा देंगे...
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अरे यार, एक के बाद एक कामेडी कर रहे हो.... लेकिन इस बात के बाद तो हंसा-हंसा कर मारोगे क्या??? 
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लीजिए मित्रों अब आपको आज के बुलेटिन की ओर ले चलें...

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तो मित्रों आशा है आपको आज का बुलेटिन पसन्द आया होगा... कल फ़िर से मुलाकात होगी एक नये रूप के साथ..... 

जय हिन्द

शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

१४ वें कारगिल विजय दिवस पर अमर शहीदों को नमन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम !


कारगिल युद्ध को ख़त्म हुये आज  पूरे चौदह वर्ष हो गए। कारगिल के विजय अभियान को चलाए गए ऑपरेशन विजय में भारत ने अपने 527 वीर सपूतों को खो दिया था। वहीं इस युद्ध में पंद्रह सौ जवानों के करीब घायल भी हो गए थे। लेकिन इन जवानों के हौंसलों के आगे दुश्मन के नापाक इरादे पस्त हो गए।


इस युद्ध में करीब 250,000 गोले, बम और रॉकेट दागे गए। हर रोज लगभग 50000 तोप के गोले, मोर्टर बम और रॉकेट 300 बंदूक, मोर्टर और एमबीआरएस द्वारा दागे गए थे। इतनी भारी मात्रा में बम, गोलों का इस्तेमाल दूसरे विश्व युद्ध के बाद का पहली बार इसी युद्ध में किया गया था।


मई 1999 में पाकिस्तानी सेना ने कारगिल समेत कुछ अन्य हिस्सों में भारतीय सेना की गैर मौजूदगी का फायदा उठाकर अपनी चौकियां स्थापित कर ली थीं। इसकी खबर सबसे पहले केप्टन सौरभ कालिया की गश्ती टीम ने भारतीय चौकी को दी थी। हालांकि इस दौरान उन्हें और उनके साथी जवानों को पाक सेना ने अगवा कर लिया और बड़ी ही बेरहमी से कत्ल कर दिया था। 13 मई, 1999 को ही द्रास क्षेत्र के टोलोलिंग पहाड़ी को पाक फौज से मुक्त कराने के बाद भारतीय सेना को पाक सेना के मंसूबे और उनकी मजबूती का अंदाजा हो गया था। इसके बाद ही इस युद्ध में ऊंचाई को देखते हुए बोफोर्स तोप के इस्तेमाल करने का निर्णय लिया गया।

5 जुलाई, 1999 को भारतीय सेना टाइगर हिल फतह करने में कामयाब हुई। 7 जुलाई को भारतीय सेना ने मशकोह हिल पर कब्जा कर तिरंगा फहराने में सफलता हासिल की। पाक सैनिकों की ऊंची पहाडिय़ों पर मौजूदगी की बदौलत सियाचिन-ग्लेशियर पर भारत की स्थिति कमजारे हो रही थी। वहीं लेह-लद्दाख को भारत से जोडने वाली सड़क पर भी पाक सैनिकों की निगाह थी। बावजूद इसके 26 जुलाई, 1999 को भारतीय फौज ने इस पूरे इलाके से पाक सैनिकों को खदेड़ने में सफलता हासिल की और ऑपरेशन विजय की सफलता का बिगुल बजाया।
 
इस युद्ध में भारतीय सेना के साथ भारतीय वायुसेना के मिराज 2000 और जगुआर ने भी अहम भूमिका निभाई थी। वहीं भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान के जहाजों को अपने खेमे में ही समेट कर रख दिया था। इन जांबांजों की वीरता को सलाम करने के मकसद से 26 जुलाई को हर वर्ष कारगिल दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया।

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एक दिन न्यूटन का नियम सच होगा..

पैट डॉग का साथ दूर करे तनाव

सूचना का आरक्षण

कुमार अनुपम की ताज़ा कवितायें

धरतीपकड़ फ़िर मैदान में !

हमें अपने भारतीय होने पर गर्व है !

कार्टून :- 5 रूपये में बल्‍ले बल्‍ले

दक्षता-संवर्धन

एक मुलाकात कल परसों में प्रसिद्ध हुए नेता और बरसों से प्रसिद्ध अभिनेता खाज साहब से

'' यात्रा अमरनाथ धाम की''

चमत्कार पर चमत्कार
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक के 35 वर्ष …. ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को हार्दिक नमस्कार।।


आज 25 जुलाई, 2013 को टेस्ट ट्युब बेबी तकनीक (परखनली शिशु तकनीक) के 35 वर्ष पूर्ण हो गए हैं। 25 जुलाई, 1978 ई . में ये तकनीक उस समय पूरी दुनिया में अख़बार की सुर्खियाँ बनी थी जब ग्रेट ब्रिटेन, मैनचेस्टर में श्रीमती लेस्ली ब्राउन ने विश्व के प्रथम टेस्ट ट्यूब बेबी लुइस ब्राउन को जन्म दिया था। 12 वर्ष के वैज्ञानिक शोध के बाद ब्रिटिश टीम के प्रमुख डॉ . राबर्ट एडवर्ड और डॉ . पैट्रिक स्टेप्टो ने  टेस्ट ट्यूब बेबी के रूप में लुइस ब्राउन को जन्म दिलाने में प्रथम सफलता प्राप्त की थी।  उसके बाद दुनियाभर के नि:संतान विवाहित जोड़ों के लिए आई. वी . एफ . (टेस्ट ट्यूब) तकनीक का रास्ता खुल गया था। अपनी इस ऐतिहासिक खोज के लिए डॉ . राबर्ट एडवर्ड को वर्ष 2010 का चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरूस्कार भी प्राप्त हुआ था। 


अब चलते हैं आज की बुलेटिन  की ओर …. 














कल फिर मिलेंगे। शुभ रात्रि।।

बुधवार, 24 जुलाई 2013

जन्म दिवस : मनोज कुमार …. ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को नमस्कार।।

आज भारतीय सिनेमा के मशहूर अभिनेता - निर्देशक मनोज कुमार जी का 76वां जन्मदिन है। हिंदी सिनेमा को एक से बढ़कर एक देशभक्ति भरी फ़िल्में देने के लिए मनोज जी को याद किया जाता है, अपनी इसी देशभक्ति प्रेम के कारण उन्हें भारत कुमार का उपनाम भी हासिल हुआ है। पिछले दिनों तबियत ख़राब होने की वजह से सिनेमा का ये सितारा कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती है। आज उनके जन्मदिन के अवसर पर ब्लॉग बुलेटिन टीम और पूरा हिंदी ब्लॉगजगत उन्हें जन्मदिन की ढेर सारी बधाईयाँ देता है और साथ ही साथ ये भी दुआ करता है कि मनोज कुमार जल्द से जल्द स्वस्थ हो जाए।  











अब चलते हैं आज की बुलेटिन  की ओर …. 















कल फिर मिलेंगे। शुभ रात्रि।।

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

३ महान विभूतियों के नाम है २३ जुलाई - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

आज २३ जुलाई है ... एक बेहद खास दिन ... भारत के ३ बेहद खास लोगो से जुड़ा हुआ ... जिन मे से २ की आज जयंती है और एक की बरसी !

'स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, और हम इसे लेकर रहेंगे' का नारा देकर देश में स्वराज की अलख जगाने वाले बाल गंगाधर तिलक उदारवादी हिन्दुत्व के पैरोकार होने के बावजूद कट्टरपंथी माने जाने वाले लोगों के भी आदर्श थे। धार्मिक परम्पराओं को एक स्थान विशेष से उठाकर राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने की अनोखी कोशिश करने वाले तिलक सही मायने में 'लोकमान्य' थे। एक स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, शिक्षक और विचारक के रूप में देश को आजादी की दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले तिलक ने कांग्रेस को सभाओं और सम्मेलनों के कमरों से निकाल कर जनता तक पहुंचाया था।
सही मायने में लोकमान्य थे बाल गंगाधर तिलक (२३/०७/१८५६ - ०१/०८/१९२०)

पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' (२३ जुलाई, १९०६ - २७ फरवरी, १९३१) ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अत्यन्त सम्मानित और लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे महान क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। सन् १९२२ में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले ९ अगस्त १९२५ को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके पश्चात् सन् १९२७ में 'बिस्मिल' के साथ ४ प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स का वध करके लिया एवम् दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया।

पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' की जयंती पर विशेष

लक्ष्मी सहगल (जन्म: 24 अक्टूबर, 1914 - निधन : 23 जुलाई , 2012 ) भारत की स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी थी। वे आजाद हिन्द फौज की अधिकारी तथा 'आजाद हिन्द सरकार' में महिला मामलों की मंत्री थीं। वे व्यवसाय से डॉक्टर थी जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय प्रकाश में आयीं। वे आजाद हिन्द फौज की 'रानी लक्ष्मी रेजिमेन्ट' की कमाण्डर थीं।
 
कर्नल डा॰ लक्ष्मी सहगल की पहली बरसी पर विशेष

ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम और पूरे हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब इन तीनों महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानीयों को शत शत नमन करते है ! 

सादर आपका 
शिवम मिश्रा  

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जय हिन्द !!

सोमवार, 22 जुलाई 2013

जानिए क्या कहती है आप की प्रोफ़ाइल फोटो - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

पिछले दिनों फेसबुक पर पाबला सर ने एक चर्चा चलाई कि किस ने अपनी प्रोफ़ाइल फोटो सब से कम बार बदली है या बदली ही नहीं है ... खुद पाबला सर ने अपनी प्रोफ़ाइल फोटो सालों से वही रखी हुई है ... उनका साथ देने काजल कुमार जी भी आ गए ... ऐसे मे मैंने वहाँ से निकल लेने मे ही भलाई समझी क्यों कि मैं तो आए दिन अपनी प्रोफ़ाइल फोटो बदलता रहता हूँ ! पर इस चर्चा से दिमाग मे एक सवाल बैठ गया कि प्रोफ़ाइल फोटो बदलने या न बदलने से क्या फर्क पड़ता है और हमारी प्रोफ़ाइल फोटो कैसी होनी चाहिए !?

रात गई सो बात गई की तर्ज़ पर यह सवाल भी दिमाग से उतर गया पर आज नेट पर खबरें पढ़ते हुये एक खबर पर निगाह गई और एक बार फिर यह सवाल ताज़ा हो गया !

लीजिये आप भी पढ़िये !

क्या आप फेसबुक पर नए दोस्तों की तलाश उनके प्रोफाइल की फोटो को देखकर करते हैं? या फिर आप अक्सर अपने फेसबुक प्रोफाइल पर नई-नई फोटो बदलते रहते हैं। सोशल नेटवर्किंग के जमाने में हम सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स पर जो गतिविधियां करते हैं वे हमारी मानसिकता और व्यक्तित्व से काफी हद तक जुड़ी हुई हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ मिसौरी के एक शोध की मानें तो फेसबुक पर हमारी गतिविधियां हमारी मान‌स‌िक स्थिति का संकेत देती हैं। अगर आप फेसबुक पर किसी नए शख्स से जुड़े हैं तो उसकी प्रोफाइल फोटो के आधार पर आप उसके व्यक्तित्व का अंदाजा ऐसे लगा सकते हैं।

पोट्रेट
पोट्रेट प्रोफाइल फोटो से मतलब है आपका ऐसा फोटो जिसमें कमर से ऊपर तक का हिस्सा दिखे और चेहरा साफ लगे। ऐसे लोग सामान्य व्यवहार वाले और आत्मविश्वासी होते हैं। जिस फोटो में कंधे से ऊपर तक का क्लोज अप होता है वे आत्मकेंद्रित किस्म के हो सकते हैं।

लौंग शॉट 
कई बार आपने ऐसे प्रोफाइल फोटो देखे होंगे जिसमें व्यक्ति किसी फ्रेम में इस तरह सेट होता है कि ऊपर से नीचे तक वह पूरा नजर आता है लेकिन उसे स्पष्ट तरीके से देखा नहीं जा सकता। आप अपने व्यक्तिगत जीवन को सार्वजनिक नहीं करना चाहते हैं और थोड़े शर्मीले हैं।

बहुत अधिक क्लोज़अप
इस तरह की प्रोफाइल फोटो में चेहरा इतना करीब होता है कि साफ-साफ समझ नहीं आता कि फोटो का सब्जेक्ट क्या है। ऐसी प्रोफाइल फोटो वाले लोगों असुरक्षा की भावना हो सकती है या फिर आत्मविश्वास कम हो सकता है। 

पुरानी फोटो
कुछ लोगों का प्रोफाइल देखा होगा जिसमें वे अपने बचपन या कई साल पहले की फोटो को प्रोफाइल फोटो बनाकर लगाते होंगे। अक्सर ऐसे लोग वर्तमान से बेहतर अपने गुजरे कल को मानते हैं और जरूरत से ज्यादा भूत को लेकर संवेदनशील होते हैं। हां, यह भी हो सकता है कि वे ज्यादा फोटोजेनिक न हों।

पर‌िवार व बच्चों की फोटो
अक्सर कुछ लोग अपनी प्रोफाइल फोटो में बच्चों और अपने परिवार का फोटो लगाते हैं। ऐसे लोग सामाजिक जीवन में यकीन रखते हैं और अपने व्यक्तिगत जीवन को सबके सामने लाने से गुरेज नहीं करते हैं। हां, बार-बार बच्चों की फोटो बदल-बदल कर लगाने वाले लोग शायद ऐसे हो सकते हैं जो हर समय सिर्फ अपनी ही गाते हों।

पार्टी करते हुए फोटो
किसी खास अवसर की बात कुछ और है पर कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो दोस्तों के साथ मौज-मस्ती और पार्टी की फोटो को अपने प्रोफाइल की पहचान ही बना लेते हैं। ऐसे लोग थोड़े गैरजिम्मेदार होते हैं और इनकी खुद की कोई पहचान नहीं होती है।

आर्ट पोर्टफोलियो
प्रोफाइल पोर्टफोलियो में आर्ट पीस, बिना सब्जेक्ट की पेंटिंग, सीनरी आदि लगाने वाले लोग अमूमन इस कोशिश में अधिक रहते हैं कि लोग उन्हें बुद्धिजीवी समझें पर असलियत में उनकी पसंद क्या है, इस बारे में वे खुद तय नहीं कर पाते हैं। हालांकि इसके अपवाद भी हो सकते हैं।

अब आप क्या करते है यह तो आप ही बताएं ... फिलहाल मैं आप को लिए चलता हूँ आज की बुलेटिन की ओर !

सादर आपका 
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कभी खाना खाकर मरेंगे, कभी भूखे

धूल गुरु-चरणों की मुझको आज मिल जाए

संतोष त्रिवेदी और मुकेश सिन्हा को परिकल्पना ब्लॉग गौरव युवा सम्मान

बिंदास मुम्बई भाग ३

अखंड जोत प्यासी है

लघु व्यंग्य- अरहर महादेव !

कुछ साधारण सा अनुभव... :-)

जन्म दिवस : मुकेश

दिल के टुकड़े

........ हादसों के शहर में :))

दामिनी गैंगरेप का त्वरित न्याय कहाँ ?

हो सके तो दिल को ही अपने शिवाला कीजिए...

पापा टेक केयर

टांगा हुआ चाँद ...

राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी और भाजपा की स्‍थिति

चंदा -मामा

कैसे गुजरी तमाम रात, बताऊं कैसे ?

रोज़ेदारी का जज़्बा

आय से अधिक संपत्ति मामलों में न्यायालय हस्तक्षेप करे

अब जी-मेल में मेल को ट्रांसलेट कर मनचाही लेंग्वेज में पढ़ें

आधा पागल ?

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

रविवार, 21 जुलाई 2013

अमर क्रांतिकारी स्व॰ श्री बटुकेश्वर दत्त जी की 48 वीं पुण्य तिथि पर विशेष - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम !


बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर, 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में ग्राम-औरी, जिला-नानी बेदवान (बंगाल) में हुआ था। इनका बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रांत के वर्धमान जिला अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता। इनकी स्नातक स्तरीय शिक्षा पी.पी.एन. कॉलेज कानपुर में सम्पन्न हुई। 1924 में कानपुर में इनकी भगत सिंह से भेंट हुई। इसके बाद इन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया। इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा।

8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान का संसद भवन) में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध किया। बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सिर्फ पचांर्े के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।

इस घटना के बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 जून, 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया। यहां पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षड़यंत्र केस चलाया गया। उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी। बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया। जेल में ही उन्होंने 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। सेल्यूलर जेल से 1937 में बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना में लाए गए और 1938 में रिहा कर दिए गए। काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे दत्त फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार वर्षों के बाद 1945 में रिहा किए गए।

आजादी के बाद नवम्बर, 1947 में अंजली दत्त से शादी करने के बाद वे पटना में रहने लगे। बटुकेश्वर दत्त को अपना सदस्य बनाने का गौरव बिहार विधान परिषद ने 1963 में प्राप्त किया। श्री दत्त की मृत्यु 20 जुलाई, 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई। मृत्यु के बाद इनका दाह संस्कार इनके अन्य क्रांतिकारी साथियों-भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में किया गया। इनकी एक पुत्री भारती बागची पटना में रहती हैं। बटुकेश्वर दत्त के विधान परिषद में सहयोगी रहे इन्द्र कुमार कहते हैं कि 'स्व. दत्त राजनैतिक महत्वाकांक्षा से दूर शांतचित एवं देश की खुशहाली के लिए हमेशा चिन्तित रहने वाले क्रांतिकारी थे।' मातृभूमि के लिए इस तरह का जज्बा रखने वाले नौजवानों का इतिहास भारतवर्ष के अलावा किसी अन्य देश के इतिहास में उपलब्ध नहीं है।
 
 
सादर आपका 
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माँ तो हूँ ही - अब सासु माँ भी

रश्मि प्रभा... at मेरी भावनायें...
माँ तो हूँ ही - अब सासु माँ भी . इन्हीं सुखद क्षणों के सुख के लिए मैं आप सबसे दूर थी . आइये इन क्षणों को देखकर अपना आशीर्वाद दीजिये . ये है मेरी बेटी सौ.खुशबू और मेरा दामाद चिरंजीवी सौरभ प्रसून ……

59. दो दीयों के तले का अन्धेरा

जयदीप शेखर at कभी-कभार
* *"दीया तले अन्धेरा"- यह कहावत तो सबने सुनी है। मैं आज उदाहरण देने जा रहा हूँ एक ऐसे क्षेत्र का, जिसके दो तरफ दो बड़े-बड़े दीये जलते हैं, फलस्वरुप उस क्षेत्र का अन्धेरा और भी गहरा, और भी विस्तृत हो जाता है। वह क्षेत्र है- देश के सबसे बदनसीन राज्य झारखण्ड का सबसे बदनसीब जिला- साहेबगंज! जब बिहार था, तब साहेबगंज वालों को झारखण्डी माना जाता था और अब झारखण्ड के जमाने इस जिले वालों को बिहारी माना जाता है। बेशक, इसके पड़ोसी जिलों- पाकुड़ और गोड्डा भी बराबर के बदनसीब हैं। चित्र देखिये- इस जिले के दो तरफ दो NTPC हैं- एक फरक्का में, जो पश्चिम बंगाल राज्य में आता है, ... more »

पिता

durga prasad Mathur at Chitransh soul
- सघन वृक्ष सा विशाल अडिग, तपन में शीतलता देता ! तुफानों से हर पल लड़ता , फिर भी सदा सहज वो दिखता ! अपनी इन्हीं बातो के कारण , वो एक पिता कहलाता ! - कठोर सा यह दिखने वाला , दिल से कोमलता दिखलाता ! बेटी के दर्द से विचलित , डान्ट वरी माई डॉटर कहता ! पर उसकी विदाई पर वो , खुद को असहाय है पाता ! लाख चाहकर भी वो अपने, अनवरत आँसू रोक ना पाता ! अपनी इन्हीं बातो के कारण , वो एक पिता कहलाता ! - बात बात पर डाँट लगाता , ... more »

हिन्दी के मीडिया महारथी

pramod joshi at जिज्ञासा
शनिवार की रात कनॉट प्लेस के होटल पार्क में समाचार फॉर मीडिया के मीडिया महारथी समारोह में जाने का मौका मिला। एक्सचेंज फॉर मीडिया मूलतः कारोबारी संस्था है और वह मीडिया के बिजनेस पक्ष से जुड़े मसलों पर सामग्री प्रकाशित करती है। हिन्दी के पत्रकारों के बारे में उन्हें सोचने की जरूरत इसलिए हुई होगी, क्योंकि हिन्दी अखबारों का अभी कारोबारी विस्तार हो रहा है। बात को रखने के लिए आदर्शों के रेशमी रूमाल की जरूरत भी होती है, इसलिए इस संस्था के प्रमुख ने वह सब कहा, जो ऐसे मौके पर कहा जाता है। हिन्दी पत्रकारिता को 'समृद्ध' करने में जिन समकालीन पत्रकारों की भूमिका है, इसे लेकर एक राय बनाना आसान नह... more »

उदासी

आशा जोगळेकर at स्व प्न रं जि ता
अवि-वर्षा की शादी को इस साल १० जुलै को २५ वर्ष पूरे हुए । अवि (अवनींद्र) मेरा भांजा है । मैं उनके फेस बुक पर उनके लिये बधाई मेसेज छोडना चाहती थी । वहां अवि के अकेलेपन को लेकर लिखे हुए कुछ शब्द देख कर मन तो कैसा कैसा हो गया । अवि अपना बिझिनेस चलाता है और वर्षा दूसरे शहर में गायनेकोलॉजिस्ट है । घर-संसार चलाना है, दोनो अपनी अपनी जगह रह कर चला रहे हैं । अवि की मनस्थिति कुछ इन शब्दों में बयां हो सकती है । अकेलापन मेरा मुझसे, सवाल अक्सर ये करता है, कि अब घर जाना होगा कब, उदासी घेर लेती है । मै अपनी तनहाई में अक्सर खोया रहता हूँ तुम्हें जब याद करता हूं, उदासी घेर लेती है . इस मेरी मजबू... more »

संता -बंता का व्यक्तित्व प्रशिक्षण ...

वाणी गीत at ज्ञानवाणी
भयंकर प्रतिस्पर्धी इस युग में अधिकांश मानव चाहे अनचाहे तनाव , कुंठा ,मनोविकार , अवसाद से गुजरते ही हैं . संतुष्ट ख़ुशी जीवन बिताने वाले भी कभी न कभी ऐसे कठिन पलों का सामना करते हैं . इसलिए आजकल तमाम प्रकार के शिक्षण शिविर जैसे जीवन जीने की कला , योग , तनावमुक्त कैसे रहें , चलने वाले केन्द्रों और गुरुओं की चल निकली है . कौन नहीं चाहता लब्‍धप्रतिष्‍ठ, स्वस्थ , सर्वोच्च बने रहना . संता -बंता इससे अछूते कैसे रहते . सोचने लगे कि आजकल धंधा भी मंदा चल रहा है तो क्यूँ ना ऐसा ही कोई शिक्षण शिविर लगा लिया करें , बड़े लोग आयेंगे , संपर्क होंगे , नाम -दाम सब मिलेगा . मगर एक मुश्किल थी कि उ... more »

ताज महल/तेजो महालय

AGRA-MATHURA-VRINDAVAN-01 SANDEEP PANWAR भारत को दुनिया में लोग सिर्फ़ दो ही कारणों से जानते है पहला कारण ताजमहल उर्फ़ तेजो महालय (शिवालय) दूसरा कारण बाँस की तेजी से दिन रात बढ़ती हुई भारत की आबादी है जो आगामी कुछ वर्षों में दुनिया में किसी भी देश से ज्यादा होने जा रही है। इन्दौर के पास रहने वाले अपने भ्रमणकारी दोस्त मुकेश भालसे सपरिवार आगरा-मथुरा की यात्रा पर आ रहे थे। आगरा में ही रहने वाले एक अन्य भ्रमणकारी दोस्त रितेश गुप्ता भी कई बार कह चुके थे कि संदीप भाई कभी आगरा आओ ना! तो अपुन का सपरिवार आगरा मथुरा घूमने का कार्यक्रम बन ही गया।  more »

इंजीनियर साहेब 'भुट्टावाले' (पटना १७)

Abhishek Ojha at ओझा-उवाच
बीरेंदर एक दिन अपने बागान के अमरूद लेकर आया था। मैंने खाते हुए कहा - 'बीरेंदर, अमरूद तो मुझे बहुत पसंद है। इतना कि मैं रेजिस्ट नहीं कर पाता। पर ऐसे नहीं थोड़े कच्चे वाले'। बीरेंदर को ये बात याद रही और अगले दिन हमारे ऑफिस में उसने वैसे अमरूद भिजवाया भी। फिर एक दिन शाम को बोला 'चलिये भईया, आज आपको बर्हीया वाला अमडूद खिला के लाते हैं। टाइम है १०-१५ मिनट?' मैं कब मना करता! वैसे भी मूड थोड़ा डाउन था। एक स्कीम पर काम करते हुए मैंने उसी दिन लिखा था - "आज मैंने एक रिक्शे वाले से बात की। उसने बताया कि उनका बिजनेस पहले की तरह नहीं रहा। शाम तक उसने सात ट्रिप कर लगभग सौ रुपये कमाए थे। उसमें... more »

यूँ ही, ऐसे ही !!!

देवांशु निगम at अगड़म बगड़म स्वाहा....
“हाँ, तो क्या नाम बताया तुमने अपना” “सर, समीर” “लेखक हो ?” “नहीं सर, बैंकर” “तो कहानी लिखने की क्यूँ सूझी तुम्हें ?” “बस सर लगा कि ये कहानी दुनिया को पता चलनी चाहिए" “भाई , पहले तो इस कुर्सी पर बैठने वाला हर दूसरा-तीसरा आदमी बोलता है कि वो लेखक नहीं है, दूसरे सबकी कहानी वही घिसी-पिटी एक ही ढर्रे पर चलती होती है, कुछ तड़क-भड़क होनी चाहिए , है तुम्हारी कहानी में ?” “सर तड़क-भड़क, मतलब ?” “कुछ वैसे सीन हैं” “नहीं सर, प्रेम कहानी है” “तो प्रेम कहानी में वैसे सीन नहीं होते ?” “ऐसा कुछ हुआ ही नहीं" “ओह्ह, खैर कोई नहीं, लड़का भी वैसी फ़िल्में नहीं देखता क्या ? उसी का कोई सीन लिख डालो” ... more »

होटल की एक रात

*चंडीगढ़...द सिटी ब्यूटीफल* *अपने प्रिय मित्र की सगाई के मौके पर मैं चंडीगढ़ आया हूँ.पहली बार में ही ये शहर भा गया मुझे.चंडीगढ़ में बस ने जैसे ही प्रवेश किया एक साईन बोर्ड ने मेरा स्वागत किया.."वेलकम तो द सिटी ब्यूटीफल.बस स्टैंड तक आते हुए बस ने शहर का अच्छा खासा चक्कर लगाया जिससे मुझे शहर को थोड़ा देखने का मौका मिला.मैं बहुत खुश था, जाने कब से तमन्ना थी ये शहर देखने की.बस स्टैंड पर दोस्त मुझसे मिलने आया, और फिर जहाँ उसने मुझे ठहराने का प्रबंध किया था हम उस होटल की तरफ बढे.* *शाम छः बजे.. *मुझे मेरे दोस्त ने एक होटल में ठहराया है.जिस कमरे में मैं ठहरा हूँ वो एक छोटा सा लेकिन खूबसू... more »

एक दिन

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया at काव्यान्जलि
एक दिन बन गई उल्फत की इक उम्दा कहानी एक दिन जब समंदर से मिला दरिया का पानी एक दिन रात भर उड़ता रहा कैसे सुहाने लोक में आह! क्या महकी थी खिलकर रातरानी एक दिन आँख तो कहती रही इकरार है ,हाँ प्यार है कान भी सुनते मगर ये सचबयानी एक दिन देर तक कमरे में परचित गंध का अहसास था मिलगई बक्से में जब उनकी निशानी एक दिन आ गया हूँ आज मै उनकी गली में नागहाँ हो गई ताजा सभी यादें पुरानी एक दिन अशोक "अंजुम"
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अब आगे दीजिये ...

इंकलाब ज़िंदाबाद ...

वंदे मातरम ||

लेखागार