किसी के एक शब्द से कैसे बदलती है जिन्दगी। अगर जानना चाहते हैं तो आपको पढ़ना होगा हुंकर "हां जी सर कल्चर" के खिलाफ पर प्रकाशित विनीत कुमार की लिखित दिनेश्वर प्रसाद ने कहा था- पहले कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो पढ़ो, फिर कुछ और विनित ने अपने लेखन की खूबसूरती से अपने संस्मरण को अमर बना दिया एवं यह रचना एक प्रेरणास्रोत है, बाकी तो आपको खुद जाकर पोस्ट का मुआयना करना होगा, क्योंकि मां कहती थी, अपने मरे बिना स्वर्ग कहां, जब मैं कोई काम अधूरा करता था।
नई सड़क स्थित कस्बा वाले रविश कुमार पूछत रहे हैं कि "क्या टीवी ट्वीटर हो गया है?" उन्होंने कुछ समानताएं भी बताई हैं, मगर क्या आप उनकी सामानताओं से सहमत हैं, यह बताने के लिए, तो आपको वहीं जाना होगा, जहां मैं जाकर आया हूं, जी हां, "क्या टीवी ट्वीटर हो गया है?" पोस्ट पर। कुछ साल पहले एक पोस्ट पढ़ी थी कि क्या टीवी अखबार हो गया, शायद अगली पोस्ट होगी, क्या टीवी फेसबुक हो गया, पता नहीं टीवी क्या क्या बनेगा, कभी कभी तो अपनों में दीवार लगता है टीवी, खासकर जब पत्नी टीवी सीरियलों में मस्त हो, बच्चे कार्टून शो देखने में, समझदार खबरें देखने में, बुर्जुग धार्मिक चैनल देखने में। बाकी तो आप ही बताएं, आखिर टीवी क्या हो गया?
गांधी व नहेरू परिवार को लेकर भारत के अंदर विरोधाभास की स्थिति तो हमेशा बनी रही है। इस पर कुछ प्रकाश डालती काव्य मंजूषा की यह गाँधी परिवार कहें या, नेहरु परिवार, क्या फर्क पड़ता है, क्योंकि हक़ीक़त में ये, इनदोनो में से कोई नहीं हैं... पोस्ट है। ऐसे मुद्दों पर भारतवासी एक मत नहीं हो सकते, क्यूंकि सब का अपना अपना जुड़ाव, मोह, स्नेह, संदेह होता है।
लिखते लिखते लव हो जाए, तो सुनना होगा, क्यूंकि रवीना टंडन ने जो कहा है, लेकिन इस पोस्ट को पढ़ने के बाद मैं कहता हूं कि पढ़ते पढ़ते कहीं मन खो जाए, यकीनन कुछ ऐसा ही अनुभव होता है, अगर आप सच में कुछ बेहतरीन पढ़ना चाहते हैं, शायर वो ही होते हैं, जिनको पढ़ने में भी थोड़ी सी जहमत उठानी पड़े, खासकर मेरे जैसे अनुभवहीन व्यक्ित को जो खुद को शायर कहता है, लेकिन शायरों की जुबां समझने में अनाड़ी है। डरिए मत, आपके लिए मुश्किल नहीं, वो मेरे लिए कह रहा हूं, एक बार तो मिल आइए अफजाल अहमद सैयद से, उनकी लिखी रचना जवाहरात की नुमाइश में शायर द्वारा, यह अनुवादित है, जो मनोज पटेल ने किया है।
चलते चलते सर, आपकी कार कहां है, जो कुछ दिन पहले लेकर आए थे, गैरिज में, क्यूं, क्या हुआ, तुम को वो खम्बा दिखाई पड़ रहा है, जी हां, बिल्कुल, बस मुझे वो ही दिखाई नहीं पड़ा।
फिर मिलेंगे, अगले बुधवार कुछ नई पोस्टों व नए ब्लॉगरों के साथ, तब तक के लिए इजाजत दें, मुझे यानि कुलवंत हैप्पी, युवा सोच युवा खयालात
6 टिप्पणियाँ:
savi bahut gambheer post....aabhar
बहुत सुन्दर बुलेटिन...आभार
आपका ब्बहुत बहुत आभार कुलवंत भाई इन उम्दा लिंक्स को हमारे साथ सांझा करने के लिए ! बढ़िया बुलेटिन !
सुंदर लिंक्स सांझा करने का शुक्रिया...
बहुत बढ़िया बुलेटिन!!!
अनु
ब्लॉग-बुलेटिन की खासियत ....
एक से बढ़ कर एक लिंक्स प्रस्तुत होता है.... !!
अच्छी गुणवत्ता वाले पोस्ट के लिंक्स मिले!
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