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बुधवार, 6 सितंबर 2017

परमवीर चक्र से सम्मानित वीर सपूत धन सिंह थापा और ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय साथियो,
आज की बुलेटिन में लेकर आये हैं जानकारी देश के वीर सपूत धन सिंह थापा की. जिनको 1962 के भारत-चीन युद्ध में पराक्रम दिखाने के कारण परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. इस युद्ध में जिन चार भारतीय बहादुरों को परमवीर चक्र प्रदान किया गया, उनमें से केवल धन सिंह थापा थे जो जीवित बचे थे. वे परमवीर चक्र से सम्मानित नेपाली मूल के भारतीय थे. उनका जन्म 10 अप्रैल, 1928 को शिमला में हुआ था. वे 28 अक्तूबर 1949 को कमीशंड अधिकारी के रूप में फौज में आए. वह ऐसे सैनिक अधिकारी के रूप में गिने जाते थे जो चुपचाप अपने काम में लगे रहते थे. अनावश्यक बोलना, बढ़-चढ़ कर डींग मारना अथवा खुद को बहादुर जताना उनके स्वभाव में कभी नहीं था.


1962 के भारत-चीन युद्ध के समय धन सिंह थापा लद्दाख के उत्तरी सीमा पर पांगोंग झील के पास सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चुशूल हवाई पट्टे को चीनी सेना से बचाने के लिए सिरिजाप घाटी में 1/8 गोरखा राईफल्स की कमान सँभाले थे. चीनी सेना ने मोर्टार और गोलियों की बौछार से मेजर की टुकड़ी को बहुत नुकसान पहुँचाया. इस बीच दुश्मन हैवी मशीनगन, बाजूका के साथ 4 ऐसे यान ले आया था जो पानी और जमीन पर चलकर मार करते थे. एक समय ये आया कि मेजर के पास सिर्फ तीन सैनिक रह गए. इसके बाद चीनी फौज ने उस चौकी और बंकर पर कब्जा कर लिया. इस बीच नाव लेकर सहायता को निकले नायक रविलाल बटालियन में पहुँचे. उन्होंने सारे मेजर धनसिंह थापा सहित सभी सैनिकों के मारे जाने की खबर वहाँ अधिकारियों को दी. 

बटालियन इस खबर को सच मान रही थी, जब कि सच यह नहीं था. मेजर थापा अपने तीन सैनिकों के साथ बंदी बना लिए गए थे. उधर पकड़े गए मेजर और तीनों सैनिकों में से राइफलमैन तुलसी राम थापा चीनी सैनिकों की पकड़ से भाग निकलने में सफल हो गए. वे चार दिनों तक अपनी सूझ-बूझ से चीनी फौजों को चकमा देते हुए छिपकर अपनी बटालियन तक पहुँचे. तब उन्होंने मेजर धनसिंह थापा तथा दो अन्य सैनिकों के युद्धबन्दी हो जाने की सूचना दी. मेजर थापा लम्बे समय तक चीन के पास युद्धबन्दी के रूप में यातना झेलते रहे. चीनी प्रशासक उनसे भारतीय सेना के भेद उगलवाने की भरपूर कोशिश करते रहे, उन्हें हद दर्जे की यातना देते रहे किन्तु मेजर ने देश के साथ विश्वासघात नहीं किया. मेजर धनसिंह थापा न तो यातना से डरने वाले व्यक्ति थे न प्रलोभन से. वे किसी भी तरह से नहीं झुके. अंततः देश लौटकर आने के बाद मेजर थापा को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. वे सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल के पद तक पहुँचे और पद मुक्त हुए. उसके बाद उन्होंने लखनऊ में सहारा एयर लाइंस के निदेशक का पद संभाला.

देश के इस वीर सपूत का आज ही के दिन, 6 सितम्बर 2005 को निधन हुआ. वीर सपूत को ब्लॉग बुलेटिन परिवार की तरफ से सादर नमन.

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7 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वीर सपूत धन सिंह थापा को नमन। सुन्दर बुलेटिन ।

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

वैचारिक प्रस्तुति।

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

देश को गौरवान्वित करने वाले परमवीर चक्र विजेता सैनिक धन सिंह थापा को नमन।

yashoda Agrawal ने कहा…

अमर शहीद को नमन
शुभ प्रभात राजा साहब
एक बेहतरीन बुलेटिन
आभार
सादर

दिगम्बर नासवा ने कहा…

धन सिंह थापा को नमन ... जय हिंद की सेना ..
आभार मेरी ग़ज़ल आज लगाने के लिए ...

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति ..

Surendra Singh Bhamboo ने कहा…

अच्छा संकलन मेरी पोस्ट को बुलेटिन में शामिल कराने के लिए आपका आभार

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