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सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

इंडियन राम भी हुए 'मेड इन चाइना' के मुरीद - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !


महंगाई के इस जमाने में सस्ता माल मिले तो कौन नहीं लपकना चाहेगा। अब यही काम रामलीला कमेटियां कर रही हैं तो इसमें उनका क्या कसूर। जी हां, चीन आ रहे सस्ते माल ने राम, रावण और सीता का कलेवर बदल दिया है। उनकी पोशाक से लेकर तीर-धनुष और तूणीर तक पर 'मेड इन चाइना' की मुहर आसानी से देखी जा सकती है।
कमेटी के संचालक भी खुश है कि एक तो सस्ता माल, ऊपर से कलाकारों पर चीन में बनी ड्रेस फबती भी खूब है। यही नहीं, हिंदुस्तानी माल के मुकाबले टिकाऊ भी है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे गोंडा में रामलीला कमेटी चलाने वाले पंडित राम कुमार कहते हैं, 'इस बार रामलीला के पात्रों की पोशाक विदेशों खासकर चीन से आयात की गई है।' पहले ये पोशाकें तमिलनाडु के मदुरै और पश्चिम बंगाल के कोलकाता से मंगाई जाती थी। लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। चीन से आयातित पोशाक व अन्य साजो-सामान न सिर्फ देखने में आकर्षक हैं, बल्कि सस्ते और टिकाऊ भी हैं।
लखनऊ के अमीनाबाद में श्री गोपाल चित्रशाला के मालिक प्रेम कुमार ने भी बताया कि चीन से आए साजो-सामान इस बार ज्यादा पसंद किए गए। पिछले तीस साल से पोशाक और अन्य साजो-सामान किराए पर दे रहे प्रेम बताते हैं, 'पहले रामलीला में इस्तेमाल होने वाला सारा सामान पड़ोसी राज्यों से आता था, लेकिन अब तो चीनी माल का बोलबाला है। इससे हमारा बिजनेस भी बढ़ गया है।' संगम चित्रशाला के मालिक मुन्ना लाल भी प्रेम कुमार की बातों पर मुहर लगाते नजर आते हैं। वे कहते हैं, 'पहले तो साजो-सामान आता था वह काफी भारी-भरकम होता था, जबकि चीन से आयातित माल काफी हल्का है। इसके अलावा चीनी सामानों में ज्यादा चमक-दमक भी है।'
रामलीला के बाद उसके पात्रों की पोशाक, मुखौटा, तीर, धनुष, गदा और तलवार का क्या होता है, यह पूछे जाने पर मुन्ना कहते हैं कि उनका इस्तेमाल स्कूलों और थियेटर समूहों द्वारा किया जाता है।
 
अब साहब ऐसे माहौल मे जब हमारे राम  'मेड इन चाइना' के मुरीद हो रहे है तो अगर हम भी कभी कभी 'हिन्दी - चीनी भाई भाई' का नारा लगा लें तो क्या हर्ज़ है ... आप क्या कहते है !?
 
सादर आपका 
 
 
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निर्णायक आन्दोलन - 1942

(भारत छोड़ो आन्दोलन) Quit India Movement देश की आजादी के लिए हुए संघर्षों में से अगर किन्ही दो वर्षों को चिन्हित करने को कहा जाय तो पहला वर्ष 1857 और दूसरा निःसंदेह 1942 होगा। 1857 पहली क्रांति पहल थी जिसने देश को असल में एहसास दिलाया कि हमे आजाद होना चाहिए और अब हम वास्तविकता में ब्रिटिश सरकार के चंगुल में फंस चुके हैं, और यह वर्ष लोगों के जाग्रति वर्ष के रूप में भी देखा जा सकता है। इसके बाद अनेकों क्षेत्रीय और राष्ट्रीय आन्दोलन चलाये गए। हत्याकांडों का सिलसिला चलता रहा, युवा पीढ़ी जगने लगी, गरम दल नरम दल जैसी गुटबाजी भी होने लगी। युवा आंदोलनों का का गहरा प्रभाव भी अंग्रेजी हुक... more »

फ़िल्म चक्रव्यूह से नक्सल समस्या तक

Arunesh c dave at अष्टावक्र
*प्रकाश झा की फिल्म* चक्रव्यूह देखने की इच्छा बहुत दिनों से थी। नक्सल समस्या पर बड़े बैनर की यह पहली फिल्म है और इसे देखने के बाद भारत के नौजवानों के मन में कई सवाल खड़े होंगे। प्रकाश झा का कौशल इस फिल्म में नजर नहीं आया। इसमें बंबईया मसाला भरने की मजबूरी या जिद थी। या हो सकता है कि 'पानसिंग तोमर' देखने के बाद मेरी उम्मीदें इस फिल्म से ज्यादा ही बढ़ गई थी। खैर, इस फिल्म के समाप्त होने के बाद जब मैंने अपने पांच साल के बेटे से पूछा कि वह किसकी तरफ से लड़ेगा? उसने बिना देर के जवाब दिया कि कबीर की तरफ से। कबीर इस फिल्म में नक्सलियों की विचारधारा से प्रभावित हो जाने वाले किरदार का नाम ह... more »

सेहत ठीक रही तभी जीभ भी स्वाद लेने लायक रहेगी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा at कुछ अलग सा
*कोशिश करें कि ऐसे खाद्य पदार्थों से जितना बचा जा सके बचे और खाने के बाद यथासंभव गर्म जल का सेवन कर अपने दिल और पेट को थोडा सहयोग प्रदान करें। क्योंकि यदि ये स्वस्थ रहे तभी जिह्वा का स्वाद भी रह पाएगा।* एक सर्वे से यह बात सामने आई है कि खाने के बाद यदि ठंडे पानी की बजाए गुनगुना या गर्म पानी पिया जाए तो ह्रदयाघात की आशंका बहुत कम हो जाती है। वैसे भी इलाज की हर पैथी में खाने के साथ पानी ना पीने या सिर्फ दो-तीन घूंट लेने की सलाह दी जाती है पर खाने के दौरान या तुरंत बाद ठंडा पानी पीना बहुत सकूनदायक लगता है इसलिए अधिकांश लोग खाने के तुरंत बाद पानी जरुर पीते हैं। पर वह खाए गये पदार्थों के... more »

काश लौट आए वो माधुर्य. (ध्वनि तरंगों पर ..)

shikha varshney at स्पंदन SPANDAN
बोर हो गए लिखते पढ़ते आओ कर लें अब कुछ बातें कुछ देश की, कुछ विदेश की हलकी फुलकी सी मुलाकातें। जो आ जाये पसंद आपको तो बजा देना कुछ ताली पसंद न आये तो भी भैया न देना कृपया तुम गाली। एक इशारा भर ही होगा बस टिप्पणी बक्से में काफी जिससे अगली बार न करें हम ऐसी कोई गुस्ताखी। *तो लीजिये सुनिए -* लन्दन आजकल .

विवाह योग्य आयु के बहाने हो विवाह संस्था पर चर्चा

डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर at रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
**** वर्तमान में समाज में एक ओर जीवन-शैली के नवीन स्वरूप पर लोग चर्चा करने को आतुर दिखते हैं, वहीं हमारे मंत्री लड़कियों की विवाह योग्य उम्र को घटाकर 15 वर्ष करने का सुझाव देते दिखाई पड़ते हैं। मंत्री जी के बयान को सिर्फ बेतुका बयान कह कर पूर्णरूप से खारिज नहीं किया जाना चाहिए वरन् हमें सामाजिक ढाँचे का अध्ययन करके उसके निहितार्थ को समझना चाहिए। वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य इस तरह का बन गया है कि वहाँ किसी भी योग्य समझे जाने वाले राजनीतिज्ञ की बात को भी अपने-अपने चश्मे से देखने की और उसका विश्लेषण करने की आदत हम सभी की बन चुकी है। एक ओर यदि हम समाज में समलैंगिकता पर, लिव-इन-... more »

सभ्यता, संस्कृति और सुरुचि

रश्मि प्रभा... at मेरी नज़र से
[image: [Picture+of+me+26+%283%29.jpg]] अदा http://swapnamanjusha.blogspot.in/ मनुष्य की आधारभूत, भावनाओं पर, चढ़ते-उतरते, नित्य नए, पर्दों का नाम ही, 'संस्कृति' है, समाज के, एक वर्ग के लिए, दूसरा वर्ग, सदैव ही 'असभ्य' और 'असंस्कृत', रहेगा... फिर क्यों भागना इस 'सभ्यता और संस्कृति', के पीछे...?? जहाँ तक 'सुरुचि' का प्रश्न है.. वो अभिजात वर्ग की, 'असभ्यता' का... दूसरा नाम है..!! और उसे अपनाना, हमारी 'सभ्यता'...?? हाँ नहीं तो !!

ज़िन्दगी का फलसफा

शिवम् मिश्रा at मेरे पसंदीदा अश्आर
दोस्तों, आज तक आप सब को मिर्ज़ा गालिब के शे'र पढ़वाता आया हूँ आज उनके हिसाब से ज़िन्दगी का जो फलसफा है वो आप सब की पेश ए नज़र है ... *बक़ौल चचा गालिब, " सुनो साहब, जिस शख़्स को जिस शगल का ज़ौक़ हो और वो उसमे बेतकल्लुफ़ उम्र बसर करे ... उसका नाम ऐश है !! "*

इल्जाम ...

उदय - uday at कडुवा सच ...
उनपे ... उनपे ... उनपे ... लगे आरोप ... उनकी नजर में साजिशें हैं ! पर, हकीकत में लगते हमें ... इल्जाम सच्चे हैं ! पर, अब ... करे तो करे ... कौन - फैसला इसका ? क्योंकि - कहीं सरकार ... उनकी है ! तो कहीं - उनकी ............... सरकार है !!

सबरस

गिरिजा कुलश्रेष्ठ at Yeh Mera Jahaan
( यह पोस्ट पढने से पहले--- 25 अक्टूबर को सलिल जी ( चला बिहारी ब्लागर बनने ) ने अपने ब्लाग पर ध्रुवगाथा को लेकर एक विस्तृत समीक्षा लिखी है । ऐसी समीक्षा जो एक साधारण कृति को विशिष्ट बनाती है । उसे यहाँ देना अनावश्यक ही है क्योंकि सलिल जी का ब्लाग जहाँ सुविशाल मैदान की तरह है वही यह ब्लाग घनी बस्ती के बीच गली का एक हिस्सा है । सलिल जी द्वारा समीक्षा लिखी जाना और अपने ब्लाग पर देना दोनों बातें ही मेरे लिये हितकर हैं क्योंकि पुस्तक बहुत सारे सुधी पाठकों की जानकारी में आगई है । यहाँ ग्वालियर में तो विमोचन में सामिल हुए लोगों के अलावा किसी को अभी तक खास जानकारी नही (रुचि कहाँ से होगी )। ... more »

"तू हर इक पल का शाइर है ........."- श्रद्धांजलि यश चोपड़ा को !

बीते सप्ताह यश चोपड़ा नहीं रहे......... ! यश चोपड़ा नाम है उस शख्सियत का जिसने बीते पचास वर्षों से कहीं ज्यादा बड़े कैरियर में हिंदी सिनेमा को नए नए ट्रेंड दिए..... लोगों के ख्वाबों को परवाज़ दी. अस्सी बरस की उम्र में यश जी विदा हो गए अपनी बहुत सी यादों को हम सबके जेह्न में छोड़ के. हिन्दी व्यवसायिक सिनेमा में नए ट्रेंड स्थापित करने वाले और बाक्स ऑफिस की नब्ज पकड़ने में यश चोपड़ा को महारत हासिल थी. बीते पचास बरसों में यश चोपड़ा के सामने कई पीढि़यां गुज़री हैं. ’धूल के फूल’ के जमाने के युवा या ता उम्र के उस पड़ाव पर आ गये हैं जहां से उन्हें जिन्दगी के साथ तारातम्य स्थापित करना भा... more »

कार्टून:- मंत्रि‍मंडल से नि‍काले जाने पर दुखी हूँ

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

रविवार, 28 अक्टूबर 2012

चमचे महान हैं... चमचे आलिशान हैं

इसकी टोपी उसके सर, कभी इधर तो कभी उधर का क्या अर्थ है? जी मनमोहन साहब को पूछिए आज उन्होंने यही काम किया है। सरकार की क्षवि बदलने के लिए आज जी तोड़ प्रयास हुए । जिन्होंने जितनी अच्छे से हाई कमान की सेवा की होगी उन्हें उतना और मोटे माल वाला मंत्रालय मिलेगा आखिर चमचा गिरी भी तो कोई चीज है न। चलिए लोक तंत्र का मान रखते हैं और आगे बढ़ते हैं।



चमचातंत्र हिंदुस्तान में एक सफल राजनीतिक मन्त्र है,  कोई भी दल हो कोई भी विचारधारा हो चमचे हिट हैं , हर तरफ चमचों का बोल बाला है।

चमचे महान हैं 
चमचे आलिशान हैं 
चमचो की दुनिया में हर काम आसन है 

चमचे मैडम जी के खास हैं 
चमचे न हों तो सर उदास हैं 
चमचे न हो तो मुद्दे, गुमशुदा की तलाश हैं 

वैसे चमचे हमारे यहाँ हमेशा से होते आ रहे हैं, हर राजा के दरबार में कुछ चमचे होते थे, आज भी होते हैं। जिसके जितने चमचे उसका उतना वर्चस्व.... आज भी देखिये किसी भी छुट-भैया टैप नेता हो या चाहे विधायक/ मंत्री/ अफसर बिना चमचे के किसी का गुज़ारा नहीं होता। 

चलिए इस चमचागिरी को नमस्कार करके अपने बुलेटिन को आगे बढाया जाए।

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जिज्ञासा(JIGYASA) : अजंता के अंदर जो मानव और जंतु रूप चित्रित किए गए ह...

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फंडामेंटल्स ऑफ एनर्जी
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एक साधै .. सब सधे
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'200''वीं पोस्ट ..// ''आ गयी दोस्त ''...!!!
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** मेरा वजूद तुम संभाले रखना **
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किन्तु सके सौ लील, समन्दर अचल समूचा-
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जसपाल भट्टी वन मैन आर्मी अगेंस्ट करप्शन
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'चाँद पर पानी' : श्रेष्ठतम लेखन की दिशा में गतिमान हैं कवयित्री आकांक्षा
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एक वैज्ञानिक चेतना संपन्न ब्लागर का निरामिष चिंतन!
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दूसरे देस में आने के बाद विचारों का परिवर्तन
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राजपूत नारियों की साहित्य साधना : प्रेम कुंवरी

चलिए मित्रों आप लोग चमचा गिरी का मजा लीजिये और देव बाबा को कल तक के लिए अनुमति दीजिये

जय हिन्द


लेखागार