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शनिवार, 9 अगस्त 2014

काकोरी कांड के क्रांतिकारियों को याद करते हुए - ब्लॉग बुलेटिन



नमस्कार मित्रो,
आज नौ अगस्त है, काकोरी काण्ड को आज के दिन ही भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा अंजाम दिया गया था. काकोरी काण्ड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारियों द्वारा ब्रिटिश राज के विरुद्ध भयंकर युद्ध छेड़ने की मंशा से हथियार खरीदने के लिये किया गया था, इसके अन्तर्गत ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लुटे जाने की योजना बनाई गई थी. यह ऐतिहासिक घटना थी आज ९ अगस्त १९२५ को घटी थी. इस ट्रेन डकैती को हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के केवल दस सदस्यों ने इस पूरी घटना को अंजाम दिया था.
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आजादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के लिए हुई बैठक के दौरान रामप्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी थी. योजना के अनुसार दल के ही एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने ९ अगस्त १९२५ को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी ‘आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन’ को चेन खींच कर रोका. तत्पश्चात रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, चन्द्रशेखर आज़ाद तथा ६ अन्य क्रांतिकारियों ने समूची ट्रेन पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया. हालाँकि बाद में अंग्रेजी सरकार ने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल ४० क्रान्तिकारियों पर अंग्रेजी सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने तथा मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया. इस मुक़दमे में राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को फाँसी की सजा सुनायी गयी. मुकदमे में अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम ४ वर्ष की सजा से लेकर अधिकतम काला पानी तक की सजा सुनाई गई.
काकोरी काण्ड के सभी वीर क्रांतिकारियों को नमन, जिन्होंने गुलामी के दौर में भी अपनी जान की परवाह न करते हुए अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ रखा था. आज के उथल-पुथल भरे दौर में हम सभी को इन क्रांतिकारियों से सीख लेते हुए भ्रष्टाचार, अराजकता, हिंसा आदि से लड़ने की आवश्यकता है. क्या हम अपने शहीदों से कुछ सीख लेंगे?
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कल १० अगस्त को भाई-बहिन के पावन-प्रेम का पर्व ‘रक्षाबंधन’ है. सभी भाई-बहिनों को शुभकामनाएँ. आप लीजिये आनन्द आज की बुलेटिन का और हमें आज्ञा दीजिये कल तक के लिए. कल की बुलेटिन ‘रक्षाबंधन विशेष’ होगी, कृपया उसका आनन्द उठाना न भूलियेगा.
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स्त्री ही दोषी क्यों...

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जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में संशोधन

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चित्र गूगल छवियों से साभार 

मंगलवार, 5 अगस्त 2014

भारतीयता से विलग होकर विकास नहीं - ब्लॉग बुलेटिन



नमस्कार मित्रो,
कतिपय कारणोंवश विगत चार दिनों से बुलेटिन का प्रकाशन नहीं हो सका, इसके लिए क्षमाप्रार्थी हैं. पुनः आपके समक्ष सभी के स्वास्थ्य, कुशलता, सम्पन्नता की कामना के साथ आज मंगलवार की बुलेटिन लेकर आपका मित्र उपस्थित है. इस अन्तराल के मध्य हर्ष-उल्लास से भरे पर्व भी निकले; भारतीय भूमि पर विदेश से आयातित दिवस भी गुजरे. हम भारतीयों ने सभी पर्व-उत्सवों-दिवसों को सहजता से स्वीकार किया है किन्तु वर्तमान में देखने को मिल रहा है कि हम जिस उत्साह से विदेशी-आयातित दिवसों, त्योहारों का स्वागत करते हैं, उसी उत्साह से भारतीय पर्वों-त्योहारों को नहीं मना रहे हैं. फ्रेंडशिप डे आया सर्वत्र चर्चा रही, उसी के ठीक पहले नागपंचमी गुजरी दो-चार लोगों ने परम्परा का पालन किया. प्रेम का पर्व माने जाने वाले वेलेंटाइन डे पर बहार छाई रहती है पर भारतीय प्रेम-पर्व ‘बसंत पंचमी’ हम विस्मृत कर जाते हैं, जैसे अभी-अभी हमने हरियाली तीज को विस्मृत किया, तुलसी जयंती को विस्मृत किया.
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भारतीयता से, भारतीय संस्कृति से, सभ्यता से, भाषा से, बोली से अलग होकर हम किस तरह का विकास चाहते हैं, अब ये निर्धारण करने का समय आ गया है. ज्ञान-विज्ञान के नाम पर हिन्दी को हाशिये पर लगाया जा रहा है; धार्मिक तुष्टिकरण की नीति के चलते धार्मिक ग्रंथों को, वैदिक ग्रंथों को दूर किया जा रहा है; भारतीय संस्कृति का वाहक मानी जाने वाली रामचरित मानस को भी रेशमी कपड़े में लपेट आम भारतीय की पहुँच से दूर कर दिया गया. हम सभी को विचारना होगा कि ऐसा कब तब तक चलेगा? ऐसा कैसे चलेगा? अपनी जड़ों से कट कर हम कहाँ विकास कर पाएंगे? अपनी संस्कृति से अलग रहकर हम क्या सीख पायेंगे? अपनी भाषा को विस्मृत कर हम कौन सा ज्ञान ले पाएंगे? काश हम जागने-समझने की स्थिति में आयें.... तो संभव है कि हम वास्तविक विकास कर पायें. आशा, आकांक्षा, विश्वास को मन में लिए आगे बढ़ना है, खुद को गढ़ना है... समाज को गढ़ना है... देश को गढ़ना है. इसी विश्वास के साथ कि भविष्य सुदृढ़ होगा, संपन्न होगा.... आज्ञा दीजिये... फिर मिलेंगे अगली बुलेटिन के साथ.
नमस्कार....!!!

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नागपंचमी की कहानी .....

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सामाजिक दशा और दिशा: निर्भर है योग्य नेतृत्व पर

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समाज में विषमता व कृषक उत्पीड़न को उजागर करती है 'दुश्मन'

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चित्र गूगल छवियों से साभार 

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