Subscribe:

Ads 468x60px

कुल पेज दृश्य

शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

बुलेटिन में लिंक्स हों - ज़रूरी तो नहीं (3)



"त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम, देवौ ना जानाति कुतो मनुष्यः"

बचपन से सुना, कईयों ने कैकेयी को उदाहरण में रखा !!! पर कैकेयी ने त्रिया चरित्र नहीं निभाया।  उन्होंने तो कोप भवन का रुख किया,श्रृंगार विहीन रूप धरा और रख दिए अपने तीन वचन ! त्रिया चरित्र स्त्री का वह चेहरा है,जो स्वर्ण मृग सा भ्रमित करता है, होती है उसी की विकल पुकार और तदनन्तर आसुरी अट्टहास ! 
मोह प्रेम का हो या धन का - वह अंधा होता है सबकुछ देखते-जानते और समझते हुए भी  . पर यह मोह किस काम का,जहाँ अपनों का ही अपहरण हो और अपनों की ही शहादत - क्या सीख मिलती है भला !!! 
गीता का ज्ञान होना,उसे व्यवहार में लाना - दो अलग बात है ! सारी ज़िन्दगी तो उसकी डफली उसके राग के आगे ही खत्म हो जाती है  . समझाने का बीड़ा कौन उठाये और किसे समझाना है  . हम सब किसी न किसी विषय की पट्टी बांधे गांधारी हैं - मोह,विवशता,सामाजिकता,परिवारिकता - जो भी नाम दे दें, हैं तो गांधारी !!!

शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2013

महाल्या

महाल्या के शुभ अवसर पर 

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता...
नमस्तस्यै, 
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः!!















सारे चित्र गूगल से साभार

लेखागार