मिटटी के कण में भी मिल जाता है ब्रह्माण्ड
कृष्ण मोर पंख में दिखाई दे जाती है जीवन यात्रा
उधो की हार पर श्रेष्ठता का आभास होता है
हार के आगे की जीत पर अटूट विश्वास होता है !
माल्योधरा विलाप - तिरछी नज़र - blogger
"भावनायें बनकर"
हम पहचान खो रहे हैं साथी
हम उतना ही सुनते हैं
जितने हमारे अपनों की आवाजें हैं
हम वही देखते हैं
जो हम चाहते हैं हमारे लिए अच्छा है
जितने हमारे अपनों की आवाजें हैं
हम वही देखते हैं
जो हम चाहते हैं हमारे लिए अच्छा है
हम अपनी ही थाली पर चील सा झपटते हैं
हम अपने आस पास उठाते रहते है दीवारें
हम सुरक्षित होने की हद तक
असुरक्षित रहते हैं
हम अपने आस पास उठाते रहते है दीवारें
हम सुरक्षित होने की हद तक
असुरक्षित रहते हैं
हम रोते हैं तो दबा लेते हैं अपना मुंह
हम मुस्कराहट को चिपका कर रखते हैं
जाते हुए बाहर
हम मुस्कराहट को चिपका कर रखते हैं
जाते हुए बाहर
हम बच्चो के किताबो के बीच
गुलाब नही ..सूखे दरख्तों की जली राख रखते हैं
हम जिंदगी का कमाल का हिसाब रखते हैं
गुलाब नही ..सूखे दरख्तों की जली राख रखते हैं
हम जिंदगी का कमाल का हिसाब रखते हैं
हम आँगन में रोप आये है कटीले पौधों की बाड़ें
जानवर की शकले बदली हुई है
मिजाज ज़माने का बदल गया है
जानवर की शकले बदली हुई है
मिजाज ज़माने का बदल गया है
हम देश की सीमा पर खड़े हो कर
गाते हैं चैन से सोने के गीत
गाते हैं चैन से सोने के गीत
हम धरती पर आखिरी बार
आदमी के रूप में पहचाने जायेंगे
हम असली रंग के नही रहे अब
हमारी फसलें बर्बाद हो चुकी है
आदमी के रूप में पहचाने जायेंगे
हम असली रंग के नही रहे अब
हमारी फसलें बर्बाद हो चुकी है
मुरदों के कब्र पर सरकार की व्यवस्था चल रही है
ये देश को बचाने के लिए
उसे एक बार और झोंक देंगे आग में
इनके पास आग से बचने के कपडें हैं
ये देश को बचाने के लिए
उसे एक बार और झोंक देंगे आग में
इनके पास आग से बचने के कपडें हैं
हमारी आँख से धरती आखिरी बार देखी जायेगी
जानवरों की स्लेट पर धरती का चित्र है
वो सब मुंह में इतिहास को चबा रहे हैं ...
वो सब मुंह में इतिहास को चबा रहे हैं ...
3 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर.....
हम देश की सीमा पर खड़े हो कर
गाते हैं चैन से सोने के गीत
वाह!
सुन्दर सूत्र ।
बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति
सबको गुड़ी पड़वा- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की हार्दिक शुभकामनाएं
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