माँ बताती थीं कि जिस दिन आज़ादी मिली
, पुरजोर आवाज़ में यह गीत बजा था -
वन्दे मातरम .....
सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम शस्य श्यामलाम मातरम!
शु्भ्र ज्योत्सना पुलकित यामिनीम
फुल्ल कुसुमितद्रुमदल शोभणीम.
सुहासिनीम सुमधुर भाषणीम,
सुखदाम, वरदाम मातरम
वन्देमातरम....... आज भी उस सुबह की कल्पना में रोमांच हो आता है . पर आज़ादी के बाद जो सच आज सुरसा की तरह मुंह खोले खड़ा है , उसके आगे साल में एक बार
इन गीतों से झुंझलाहट होती है . हैप्पी इंडीपेंडेंस डे कहो या स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें .... कोई फर्क नहीं पड़ता . खुद के कर्त्तव्य से परे चर्चा होती है - गाँधी को क्या करना था , क्या नहीं . फूलों की सेज छोड़नेवाले जवाहर की नियत पर शक़ ..... कभी इस चर्चा के मध्य याद नहीं आता कि जिस जवाहर लाल के कपड़े लन्दन से धुलकर आते थे , वे बेबस जेल जा रहे थे , जब उनकी माँ पर लाठी चलाये जा रहे थे ! गाँधी जी ने सत्याग्रह किया , सिल्की परिधान में महल में नहीं रहे . उनके बच्चों को उनसे शिकायत रही ,
आजादी का स्वाद उनके बच्चों को ऊँचा स्थान देकर नहीं मिला ...
आज एक सवाल है .... देगा कोई जवाब अपने गुटों से बाहर आकर ???
बापू प्रश्न कर रहे -
........
कहाँ गयी वह आजादी
जिसके लिए हम भूखे रहे , वार सहे
सड़कों पर लहुलुहान गिरते रहे
जेल गए
कटघरे में अड़े रहे , डटे रहे .........
सब गडमड करके
अब ये गडमड करनेवाले
मेरे निजित्व को उछाल रहे !
क्या फर्क पड़ता है कि मैं प्रेमी था या ........
खुफिया लोगों
तुम सब तो दूध के धुले हो न ...
फिर करो विरोध गलत का
अपने ही देश में अपने ही लोगों की गुलामी से
मुक्त करो सबको ...
मुझे तो गोडसे ने गोली मार दी
राजघाट में मैं चिर निद्रा में हूँ
एक नहीं दो नहीं उनहत्तर वर्ष हुए
और देश की बातें आज तलक
गाँधी , नेहरु , सुभाष ,
भगत , सुखदेव, राजगुरु , आज़ाद तक ही है
क्यूँ ?
तुम जो गोलियां चला रहे हो मुझे कोसते हुए
गांधीगिरी का नाम लेकर अहिंसा फैला रहे हो
वो किसके लिए ???
बसंती चोला किस प्राप्य के लिए ?
बम विस्फोट
आतंक
अपहरण ...... इसमें बापू को तुम पहचान भी नहीं सकते
तुम सबों की व्यर्थ आलोचना
जो भरमाने की कोशिशों में चलती है
उसके आगे कौन सत्याग्रह करेगा ?
मैं तो रहा नहीं
और अब वह युग आएगा भी नहीं
भारत हो या पकिस्तान
तुम जी किसके लिए रहे ?
तुम सब देश के अंश रहे ही नहीं
स्वार्थ तुम्हारा उद्देश्य है
और वही तुम्हारा लक्ष्य है
भले ही उस लक्ष्य के आगे
तुम्हारा अपना परिवार हो
तुम टुकड़े कर दोगे उनको
तुम तो गोडसे जैसी इमानदारी भी नहीं रखते
.................
आह !
तुम लोग इन्सान के रूप में गिद्ध हो
और शमशान हुए देश में
जिंदा लाशों को खा रहे हो !
और जो जिंदा होने की कोशिश में हैं
उनके आगे आतंक फैला रहे हो !!!
....
धिक्कार है मुझ पर
और उन शहीदों पर
जो तुम्हें आजादी देना चाहते थे
और परिवार से दूर हो गए
तुम सबने आज उस शहादत को बेच दिया
कोई मुग़ल नहीं , अंग्रेज नहीं , ....
हिन्दुस्तानी शक्ल लिए तुम असुर हो
और आपस में ही संहार कर रहे हो
देश, परिवार, समाज .......
सबको ग्रास बना लिया अपना !!!
क्या दे सकोगे कोई जवाब
या लेकर घूम रहे हो कोई सौगात
ताकि मेरे नाम की धज्जियां उड़ जाएँ
और तुम्हारी आत्मा पर कोई बोझ न रहे ?
एक मिनट का मौन ही रख लो लिंक्स देखते हुए ...
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कलम से..: अभिव्यक्ति की आज़ादी (लघुकथा) - सुधीर मौर्य
काफी समय से ख़ामोश ब्लॉग पर एक नई शुरुआत कुछ तुकबंदियों के साथ...
याद चंचल हो गई
रात बेकल हो गई
इश्क का चर्चा चला
हवा संदल हो गई
ज़िक्र जब तेरा हुआ
आंख बादल हो गई
चाप सुनकर बेसबर
देख सांकल हो गई
ख्वाब की तन्हाई में
आज हलचल हो गई
एक ठिठकी सी ग़ज़ल
अब मुकम्मल हो गई
3 टिप्पणियाँ:
श्रद्धासुमन मौन के साथ।
मौन कर देने वाला जादू है आपकी रचना में।
चंद पंक्तियों में इतिहास बयां कर दिया आपने वाह!!!
बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति ...
मौन श्रधांजलि!
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