बेटी" घर की रौनक होती है
लक्ष्मी
सरस्वती
अन्नपूर्णा
शक्तिदायिनी
कठिन से कठिन वक़्त में
वह माँ,बहन,पत्नी,बेटी,के रूप में
हौसले का आधार बनती है
आज राष्ट्रीय बालिका दिवस है
बहुत सारे परिवर्तन हुए हैं
सामाजिक
पारिवारिक
फिर भी,
कहीं कुछ कमी है
निःसंदेह लोगों की मानसिकता में !!!
आज के दिन इंदिरा गांधी को नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है। इस दिन इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठी थी इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया ।
कन्या शक्ति को लोगों के सामने लाने तथा उसके प्रति समाज में जागरूकता और चेतना पैदा करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने वर्ष 2008 में 24 जनवरी को प्रति वर्ष ‘राष्ट्रीय बालिका दिवस’ मनाने का निर्णय लिया था।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय बालिका दिवस पर बालिकाओं की अद्वितीय उपलब्धियों का अभिनंदन किया है।
प्रधानमंत्री ने कहा “राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर मैं बालिकाओं की अद्वितीय उपलब्धियों का अभिनंदन करता हूं। राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका सर्वोंपरि है। आइए, हम बालिकाओं के प्रति भेदभाव समाप्त करने और अपनी बेटियों को आगे बढ़ने का समान अवसर सुनिश्चित करने के प्रति संकल्प करें।”
आइये हम संकल्प करें, अपनी मानसिकता बदलें और इस कथन को आधार दें -
बेटी कुदरत का उपहार
नहीं करो उसका तिरस्कार
जो बेटी को दे पहचान
माता-पिता वही महान
गाय सी लड़की के पास समन्दर की प्यास है सपनों का ऊँचा पहाड़ भी ...
मेरे रसोई में कोई खिड़की नही
चावल दाल आटे से घिरी दिवार है
नमक तेल मसाले की छोटी अलमारी
आग के सामने रहती हूँ
तो निपट अकेली महसूसती हूँ
चावल दाल आटे से घिरी दिवार है
नमक तेल मसाले की छोटी अलमारी
आग के सामने रहती हूँ
तो निपट अकेली महसूसती हूँ
एक खिड़की होती तो आसमान होता
परिंदे होते कुछ चहल पहल होती
मेरा मन चूल्हा चौका में लगा रहता
बन्द रसोई का एक ही निकास है
जहाँ से बने हुए स्वाद बाहर पहुचाएं जाते हैं
फिर खाली हाथ लौटती हूँ मैं
परिंदे होते कुछ चहल पहल होती
मेरा मन चूल्हा चौका में लगा रहता
बन्द रसोई का एक ही निकास है
जहाँ से बने हुए स्वाद बाहर पहुचाएं जाते हैं
फिर खाली हाथ लौटती हूँ मैं
लड़कियों को चिड़िया कहा और आसमान ले लिया
करेजा कहा और दूर किया
गिलहरी की पेट कहा और उनके मुँह की एक मूँगफली भी छीन ली
करेजा कहा और दूर किया
गिलहरी की पेट कहा और उनके मुँह की एक मूँगफली भी छीन ली
हाँ परी भी कहाँ था
पर वो सुफेद पन्नों की सुनहरी कहानियाँ थी
रसोई में डिब्बे हैं डिब्बे में सामान है
मकान के इसी कोने में मेरा मान सम्मान है
इसके बाहर की कथा में व्याप्त अंधेरा है
अँधेरे में उलाहनों का डेरा है
मन कितना अकेला है
इसी रसोई में जिंदगी की भीड़ है मेला है
तमाम है काम रोज का खाना
पर वो सुफेद पन्नों की सुनहरी कहानियाँ थी
रसोई में डिब्बे हैं डिब्बे में सामान है
मकान के इसी कोने में मेरा मान सम्मान है
इसके बाहर की कथा में व्याप्त अंधेरा है
अँधेरे में उलाहनों का डेरा है
मन कितना अकेला है
इसी रसोई में जिंदगी की भीड़ है मेला है
तमाम है काम रोज का खाना
रविवार का आयोजन
कोई कार प्रयोजन
दीवाली की मिठाई
होली का पुआ
चढ़े नशे की काली चाय
वाह रे लड़की सी गाय
कोई कार प्रयोजन
दीवाली की मिठाई
होली का पुआ
चढ़े नशे की काली चाय
वाह रे लड़की सी गाय
यही धुन है गुनगुन है माता का गीत है
यही रसोई प्यार है प्रीत है
नमक के स्वाद में डूबी उँगलियों की कब्र गाह है
यही गले है सपनें यही याद आये अपने यही मंगल गारी है
यही घर यही अटारी है
यही जंग यहीं धार है
रसोई की दीवारों में कैद
कितनों की मौन कतार है
यही रसोई प्यार है प्रीत है
नमक के स्वाद में डूबी उँगलियों की कब्र गाह है
यही गले है सपनें यही याद आये अपने यही मंगल गारी है
यही घर यही अटारी है
यही जंग यहीं धार है
रसोई की दीवारों में कैद
कितनों की मौन कतार है
हाथ में पानी लो
अंजलि भरो
पूरब का मुँह करो
मन ही मन कहो रसोई में ही पैदा हुई थी मानों वही मर गई
जाओ माई तुम तर गई
पितरौ को न्योता है
लो खाओ पीओ मत भटको
अंजलि भरो
पूरब का मुँह करो
मन ही मन कहो रसोई में ही पैदा हुई थी मानों वही मर गई
जाओ माई तुम तर गई
पितरौ को न्योता है
लो खाओ पीओ मत भटको
मैंने रसोई की दिवार से आवाज लगाई
मेरे घर परिवार की औरतें
जो तुम खप गई इसी नमक में पानी में
एक खिड़की को तरसी हो भरी जवानी में
मत आना इनके बुलावे पर
बनी रहो आसमान के ऊपर
कौआ तो कतई मत बनना
मेरे घर परिवार की औरतें
जो तुम खप गई इसी नमक में पानी में
एक खिड़की को तरसी हो भरी जवानी में
मत आना इनके बुलावे पर
बनी रहो आसमान के ऊपर
कौआ तो कतई मत बनना
तुम मैना बन के आना
गौरय्या बन जाना
बन जाना लालमन चिड़िया
तुम मोरनी बन जाना
जो मन हो बन जाना
पर झांसे में मत आना
आज भी है बन्द दरवाजे
नही रखी खिड़की
न आसमान इनका
तिनके भर पेट की तुम्हारी गौरय्या
कैद है
ये खिड़कियों का इंतजाम नही करते
गौरय्या बन जाना
बन जाना लालमन चिड़िया
तुम मोरनी बन जाना
जो मन हो बन जाना
पर झांसे में मत आना
आज भी है बन्द दरवाजे
नही रखी खिड़की
न आसमान इनका
तिनके भर पेट की तुम्हारी गौरय्या
कैद है
ये खिड़कियों का इंतजाम नही करते
हम नन्हे चोंच से भिड़े है दीवारों से
हमनें खिड़कियों पर उठाये है सवाल
हमनें खिड़कियों पर उठाये है सवाल
हम रसोई में जन्म लेकर रसोई में नही मरेंगे
कुछ तो कभी तो हम भी अपने मन की करें ....
कुछ तो कभी तो हम भी अपने मन की करें ....
एक रचना , प्रथम काव्य संग्रह ' पहली किरन'
से --------------------
से --------------------
जी चाहता है
जी चाहता है, आज कुछ नया करूं |
सिन्धु की तरंग सी
चाँद को चूम लूँ
वसंत के उल्लास में
पवन संग झूम लूँ
बीच जल धार में
भंवर बन घूम लूँ !
चाँद को चूम लूँ
वसंत के उल्लास में
पवन संग झूम लूँ
बीच जल धार में
भंवर बन घूम लूँ !
जी चाहता है ----
साज की तार में
गीत बन कर सजूँ
कोकिला के गान में
प्रेम के स्वर भरूँ
धरा के खंड-खंड को
राग रंग से रंगूँ !
साज की तार में
गीत बन कर सजूँ
कोकिला के गान में
प्रेम के स्वर भरूँ
धरा के खंड-खंड को
राग रंग से रंगूँ !
जी चाहता है ---
पंछियों की पाँत में
गगन तक जा उडूँ
पुष्प के पराग में
सुगंध बनकर बसूँ
तितलियों के पंख में
रंग बन कर घुलूँ !
पंछियों की पाँत में
गगन तक जा उडूँ
पुष्प के पराग में
सुगंध बनकर बसूँ
तितलियों के पंख में
रंग बन कर घुलूँ !
जी चाहता है -----
तारों के इंद्रजाल में
दीप बन कर जलूँ
दूधिया नभगंग में
धार सी जा मिलूँ
ओढ़ नीली ओढ़नी
बादलों में जा घिरूँ !
तारों के इंद्रजाल में
दीप बन कर जलूँ
दूधिया नभगंग में
धार सी जा मिलूँ
ओढ़ नीली ओढ़नी
बादलों में जा घिरूँ !
जी चाहता है ---
प्राण में उमंग हो
गान में तरंग हो
जिस राह मैं चलूँ
हास मेरे संग हो
धरा से आकाश तक
प्रेम का ही रंग हो !
प्राण में उमंग हो
गान में तरंग हो
जिस राह मैं चलूँ
हास मेरे संग हो
धरा से आकाश तक
प्रेम का ही रंग हो !
जी चाहता है – जी भरकर जियूँ-----------
जी चाहता है -----------------------------
जी चाहता है -----------------------------
3 टिप्पणियाँ:
बालिका दिवस पर शुभकामनाएं। सुन्दर प्रस्तुति ।
अरे वाह!! आपने मुझे मेरी बिटिया की याद दिला दी और साथ ही दुनिया भर की बेटियों से जोड़ दिया!
राष्ट्रीय बालिका दिवस के बारे में सार्थक प्रस्तुतिकरण-सह सामयिक बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
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