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मंगलवार, 17 जनवरी 2017

समझ लेते हो तुम सब




समझ लेते हो तुम वह सब 
जिसकी आलोचना करते तुम रुकते नहीं 
जब तक दूसरों के जूते काटते हैं 
तुम टेढ़ी मुस्कान के साथ कहते हो 
नंगे पाँव ही चलो न  .... 
सारे हास्यास्पद हल होते हैं तुम्हारे पास 
पर वही जूते 
जब तुम्हें काटते हैं 
तुम्हारी भाषा बदल जाती है 
तुम अनोखे हो जाते हो !

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आहुति"लिखती है...!!!

ਜਿਵੇਂ ਨਿੱਕੇ -ਨਿੱਕੇ ਆਲ੍ਹਣੇ ( जैसे छोटे -छोटे कोटर )


4 टिप्पणियाँ:

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

क्या बात!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

जीवन की यही रीत!!

कविता रावत ने कहा…

सच जब अपने पर गुजरती है तब पता चलता है

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

आदरणीया रश्मि दी , लिंक्स देखते हुए अन्त में पाया कि मेरी कहानी भी यहाँ शामिल है .आभार आपका क्योंकि यहाँ शमिल होकर रचना का कद बढ़ जाता है .

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