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शनिवार, 14 जनवरी 2017

कुल्हड़ की चाय सा




कुछ समय कुल्हड़ की चाय सा होता है 
स्पेशल, इलायचीवाली 
 - थकान उतर जाती है 

साथ में हो कुछ पढ़ने को, तो बात ही अलग है 


पतंग
आवा राजा चला उड़ाई पतंग ।
एक कन्ना हम साधी
एक कन्ना तू साधा
पेंचा-पेंची लड़ी अकाश में
अब तs ठंडी गयल
धूप चौचक भयल
फुलवा खिलबे करी पलाश में
काहे के हौवा तू अपने से तंग । [आवा राजा चला...]
ढीला धीरे-धीरे
खींचा धीरे-धीरे
हम तs जानीला मंझा पुरान बा
पेंचा लड़बे करी
केहू कबले डरी
काल बिछुड़ी जे अबले जुड़ान बा
भक्काटा हो जाई जिनगी कs जंग । [आवा राजा चला...]
केहू सांझी कs डोर
केहू लागेला अजोर
कलुआ चँदा से मांगे छुड़ैया
सबके मनवाँ मा चोर
कुछो चले नाहीं जोर
गुरू बूझा तनि प्रेम कs अढ़ैया
संझा के बौराई काशी कs भंग। [आवा राजा चला...]


हज़ारों मन्नतो के बाद मेरी आत्मा का खोया टुकड़ा
मेरी कोख में आया...
उसे पहली बार जब नर्स मेरे सामने लाई तो
सब कुछ धुँधला धुँधला सा दिखाई दिया..
दिखता कैसे ?
ये आँखें खुशी से जो भरी थी..
छलकती थी फिर भरती थी..
जाती हुई नर्स से एक मिनट रूक फिर से उसे
जी भर देखने कि गुज़ारिश कि..
ओर आँख भर कर उसे देखती रही...
वो पल वहीं रूक गए..वो वक़्त वहीं थम गया...
मेरे जीवन का सबसे खुशी का पल वही था..
जिस वक़्त मेरा काव्यांश मेरे सामने था..
वो जैसे मेरी कविताओं का सार..मेरे दिल कि गहराई..
मेरी टीस भाँपता हुआ सा..नापता हुआ सा..
मेरी आँखों में आँखें डाल..
मेरे हिस्से का सारा प्यार उँडेलता हुआ सा..
मेरी पलकों कि डालियों पे आ बैठा..!!
मेरी सारी टीसों पे एक साथ मलहम
जैसा आया मेरा काव्यांश...।।।।
वो छह महीने का हुआ तो फिर से नौकरी पे
जाने का समय आया..
पर उसे रोता छोड एक पल को भी कहीं जाने
कि हिममत ना हुई..
ऐसी लाखों नौकरियाँ क़ुर्बांन मेरी जान पर...
बस फिर क्या..तरक़्क़ी..नौकरी..
हर चीज को ताक पे रख दो साल कि लीव
विदाऊट पे के लिए अपलाई कर दिया...
ओर छुट्टी ले ली उसके ओर मेरे बीच आने
वाली हर चीज से..
बस एक ही चाह थी..पल पल उसे बड़ा होते देखना..
उसकी हर अदा को दिल में क़ैद करना..
उसकी हर मुस्कुराहट में हज़ारों बार जी जाना..
ओर उसकी एक आह पे हज़ारों बार मर जाना..
अंधेरी रातों में उसकी अंगुलीयां मेरी आँखों को
नींदों का रास्ता दिखाती रही..
उसका प्यार मेरी ताकत बनता रहा..
आफिस कि सब ज़रूरी ट्रेनिंग छोड दी..
ओर जहाँ मेरा जाना ज़रूरी था..
हर उस जगह उसे साथ ले गई..
कभी ना ले जा पाएगी तो दौड़ते भागते
रात तक उसके पास पहुँच ही गई....
जब कभी काव्यांश कभी मेरे पीछे से रोया..
तो लौट कर हर बार उसे समझाया..
कि
माँ जहाँ कहीं भी होगी जब भी
तुम बुलाओगे आ जाएगी..
ओर काव्यांश ने भी यही समझा
कि देर से ही सही पर
माँ आ ही जाएगी...
जब भी बच्चे के गोद में लिए कोई माँ
मेरे सामने..बच्चो कि देखभाल के कारण
नौकरी ना कर पाने का अफ़सोस जताती है..
तब मैं उनसे कहती हूँ..
कि सबसे ख़ुशनसीब होती हैं वो औरतें
जो सुबह से शाम अपने बच्चो के बीच बिताती हैं..
कामयाबी केवल खुद के पैरों पर खड़ा होना ही नहीं..
अपितु परिवार कि नींव बनना भी है..
बच्चों को अच्छे संस्कार देना व प्रेम सिखाना भी है..
कामयाबी वो है जब आपके बच्चे आपके आदर में
सर झुकाए ओर जब आप के दर्द में
उनकी पलके भीग जाए...
कामयाबी वो है जब वक़्त ओर हालात कि ज़रूरत
देखते हुए आप अपने बच्चों के लिए अपने
सपने क़ुर्बान कर देते हो...
मेरे काव्यांश..
तुम्हारे जन्म के बाद ही मैंने जाना
कि असली
कामयाबी चुप रह जाने में है...
प्रेम में हैं...हार मान लेने में है...
किसी को जिताने में है...
मैं कोशिश करूँगी कि कुछ ओर समय तुम्हारे
साथ बिताऊँ
क्यूँ कि तुम्हारी ये
छोटे छोटे खिलौने..
तोतली बातें..
बेमतलब कि ज़िदे..
बाज़ार घूमने कि बेताबी...
डंडों के खेल...
समय के साथ कम होते जाएँगें..
तुम बडे होते जाओगे...
सोच समझ के बातें करने लगोगे...
दोस्तों के संग घूमोगे...
ओर मैं नहीं चाहती
कि तब मैं अफ़सोस करूँ...
के काश कुछ ओर समय तुम्हारी
तोतली ज़बान सुनी होती..
कि कुछ ओर समय
तुम्हारे बेतुके खेल समझे होते...
कुछ ओर समय...
तुम्हें समझा होता..
तुम्हारा बचपन जीया होता...
इसलिए मैं सुनिश्चित करूँगी..
कि कुछ ओर समय तुम्हारे साथ बिताऊँ...
तुम्हें समझू...तुम्हें जीयूं....
तुम्हारी मासूम बातो में
जीवन के कुछ ओर सार्थक
अर्थ खोजूँ....
तुम्हारे प्रेम में विवश...
#तुम्हारीमां

2 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह बहुत बढ़िया बुलेटिन। सुन्दर अभिव्यक्ति एक माँ की ।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

सच मे कुल्हड़ वाली चाय की बात ही कुछ और होती है ... पहले ही घूंट मे तरावट आ जाती है |

वैसे, आप की बुलेटिन मे भी वही तासीर होती है !!

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