एक नाम, जो बिना किसी स्पर्द्धा के साहित्यिक जुनून में जीते हैं, लगभग हर परिचित ब्लॉग पर वे मिलते हैं। गर्व होता है, क्योंकि हर लिखनेवाले की ख्वाहिश होती है कि कोई उसे पढ़े, और ये उस ख्वाहिश को सम्मान देते हैं अपनी उपस्थिति बताकर - भले ही उस एहसास से वह खुद को न जुड़ा पायें , लेकिन हर किसी का अपना ख्याल होता है, इसे मानते हुए वे अपनी यात्रा जारी रखते हैं ...
उलूक टाइम्स ब्लॉग के सुशील कुमार जोशी
आज बुलेटिन अवलोकन में हम उनको लेकर आये हैं :)
कम नहीं हैं
बहुत हैं
चारों तरफ हैं
फिर भी
मानते नहीं हैं
कि हैं
हो सकता है
नहीं भी होते हों
उनकी सोच में वो
बस सोच की
ही तो बात है
देखने की
बात है ही नहीं
हो भी नहीं
सकती है
जब गर्दन
किसी भी
शुतुरमुर्ग की
रेत के अन्दर
घुसी हुई हो
कितनी अजीब
बात है
है ना
आँख वाले
के पास देखने
का काम
जरा सा भी
ना हो
और सारे
शुतुरमुर्गों
के हाथ में
हो सारे देखने
दिखाने के
काम सारे
सभी कुछ
गर्दन भी हो
चेहरा भी हो
जो भी हो
घुसा हुआ हो
और
चारों तरफ
रेत हो
बस रेत
ही रेत हो
शुतुरमुर्ग
होने मे कोई
बुराई नहीं है
शुतुरमुर्ग होने
के लिये कहीं
मनाही नहीं है
कुछ होते ही हैं
शुतुरमुर्ग
मानते भी हैं
कि हैं
मना भी
नहीं करते हैं
शुतुरमुर्ग की
तरह रहते भी हैं
मौज करते हैं
बेशरम शुतुरमुर्ग
नहीं कह सकते हैं
अपनी मर्जी से
रेत में गर्दन भी
घुसा सकते हैं
ईमानदार होते हैं
देखने दिखाने
और बताने का
कोई भी ठेका
नहीं लेते हैं
‘उलूक’
बकवास करना
बंद कर
गर्दन खींच
और घुसेड़ ले
जमीन के अन्दर
और देख
बहुत कुछ
दिखाई देगा
शुतुरमुर्गो
नाराज मत होना
बात शुतुरमुर्गों
की नहीं हो रही है
बात हो रही है
देखने दिखाने
और
बताने की
गर्दन घुसेड़ कर
रेत के अन्दर ।
5 टिप्पणियाँ:
बहुत बहुत आभारी हूँ आदरणीय रश्मिप्रभा जी सम्मान देने के लिये। साथ में आभार समस्त ब्लागबुलेटिन परिवार, ब्लाग परिवार के चिट्ठाकारों और पाठकोंं का भी ।
आज जब हिन्दी ब्लोगिंग मे पाठकों और सक्रिय ब्लॉगरों की कमी का दौर चल रहा है ऐसे मे जोशी सर जैसे सक्रिय ब्लॉगर को देख खुशी होती है ... आप एक पाठक और लेखक दोनों रूपों मे हिन्दी ब्लोगिंग मे अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं | आप को सादर नमन |
सुशील जी का अविराम सृजन किसी विस्मय से कम नहीं . उसकी भी विशेषता यह कि उसमें व्यंग्य और विसंगतियों पर प्रहार होता है . यह रचनाकार के समय और समाज से जुड़े होने का एक अनुकरणीय गुण है .
एक भागीरथ की तरह ब्लॉग की दुनिया से अन्य ब्लॉगर्स की विरक्ति के बावजूद भी इन्होंने साहित्य की गंगा को उतारने का न सिर्फ प्रयास किया है, बल्कि इस तपस्या में अनवरत लगे रहे हैं, जोशी सर! बुद्धिमत्ता का प्रतीक उलूक, रात्रि के अंधकार में दिन की जूठन का जायज़ा लेने निकलता है और हमारे समाने परोसता है उस जूठन की बदबू, जिसे हम सारे दिन झेलते रहते हैं, मगर उफ़ तक नहीं करते. जोशी सर ने अपने अनोखे अन्दाज़ में वो सब हमें दिखाया है और समझाया है कि बदबू बदबू ही होती है. उनके अनथक प्रयास को हमारा सलाम!!
सुशील जी का धाराप्रवाह लिखना अनुकरणीय है ...
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