सोचनेवाला,मंथन करनेवाला, भावनाओं के समंदर की लहरों को गिननेवाला विचारों की पुख्ता दीवारों का निर्माण करता है।
दीवारें, जो बोलती हैं - बहुत कुछ
दीवारें, जो सोचने को मजबूर करती हैं - बहुत कुछ
क्रोध, आक्रोश
प्रेम, आवेश
भय, चिंता
पौरुष के सारे प्रवाहों का
‘डस्टबिन’ होती है औरत,
स्त्री विमर्शकों का
मंथन जारी था..,
असहाय होता है डस्टबिन
एकत्रित करता है कूड़ा
और दुर्गंध से सना रह जाता है,
सुनो-
विमर्शक नहीं हूँ मैं
किंतु
चिंतन में उठती हैं लहरें
माटी सोखती है
सारा चुका हुआ
सारा हारा हुआ,
माटी देती है
हर बीज को
अपनी उर्मि
अपना पोषण,
बीज उल्टा पड़ा हो या सीधा
टेढ़ा या मेढ़ा
आम का हो
या बबूल का,
सारे विमर्शों से परे
माटी अँकुआती है जीवन
धरती को करती है हरा
धरती को रखती है हरा
हरापन-
प्राणवान होने का प्रमाण है,
माटी फूँकती है प्राण
मित्रो!
स्त्री माटी होती है
और दुनिया के
किसी भी शब्दकोश में
माटी का अर्थ
‘डस्टबिन’ नहीं होता।
प्रेम, आवेश
भय, चिंता
पौरुष के सारे प्रवाहों का
‘डस्टबिन’ होती है औरत,
स्त्री विमर्शकों का
मंथन जारी था..,
असहाय होता है डस्टबिन
एकत्रित करता है कूड़ा
और दुर्गंध से सना रह जाता है,
सुनो-
विमर्शक नहीं हूँ मैं
किंतु
चिंतन में उठती हैं लहरें
माटी सोखती है
सारा चुका हुआ
सारा हारा हुआ,
माटी देती है
हर बीज को
अपनी उर्मि
अपना पोषण,
बीज उल्टा पड़ा हो या सीधा
टेढ़ा या मेढ़ा
आम का हो
या बबूल का,
सारे विमर्शों से परे
माटी अँकुआती है जीवन
धरती को करती है हरा
धरती को रखती है हरा
हरापन-
प्राणवान होने का प्रमाण है,
माटी फूँकती है प्राण
मित्रो!
स्त्री माटी होती है
और दुनिया के
किसी भी शब्दकोश में
माटी का अर्थ
‘डस्टबिन’ नहीं होता।
जगह बदलकर पढ़ना इसे
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जब हर बार देखना हो एक ही दृश्य को
जगह बदल बदलकर देखना
ना, इससे नहीं बदलता दृश्य
पर बदल जाती है दर्शक की आंख--बदल जाता है दिखना---।
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जब हर बार देखना हो एक ही दृश्य को
जगह बदल बदलकर देखना
ना, इससे नहीं बदलता दृश्य
पर बदल जाती है दर्शक की आंख--बदल जाता है दिखना---।
तारीखों के सामने जगह बदल देने से
नहीं बदलते इतिहास के पोथे और इतिहासकारों के दावे
हां, बदल सकता है पढ़ा हुआ इतिहास
पानीपत, प्लासी या कुरुक्षेत्र में भी हो सकती है फ़कीर की मजार
या कि काशी की सीमाएं लांघता कोई जुलाहा
लोई लिए घूमता दिख सकता है जयपुर की गलियों में--।
नहीं बदलते इतिहास के पोथे और इतिहासकारों के दावे
हां, बदल सकता है पढ़ा हुआ इतिहास
पानीपत, प्लासी या कुरुक्षेत्र में भी हो सकती है फ़कीर की मजार
या कि काशी की सीमाएं लांघता कोई जुलाहा
लोई लिए घूमता दिख सकता है जयपुर की गलियों में--।
सदाएं घूमती हैं हवाओं के साथ
हवाएं जहां जाती हैं उनकी जगह वहां हो जाती है
पानी का घर एक जगह नहीं होता
पनियायी आंखें अपनी जगह से कहीं दूर चली जाती हैं
देखते ही देखते---।
हवाएं जहां जाती हैं उनकी जगह वहां हो जाती है
पानी का घर एक जगह नहीं होता
पनियायी आंखें अपनी जगह से कहीं दूर चली जाती हैं
देखते ही देखते---।
जगह बदलकर देखना कभी
हीर का रुदन घुल जाता मरवण के विरह में
ढोला निकल जाता है बर्फ लदे पहाड़ों की गूंजती घाटियों में
दूध की नदी गंगा में घुलती है कभी जमुना में
महारास सजता हैै तब जैसलमेर के धोरों पर---।
हीर का रुदन घुल जाता मरवण के विरह में
ढोला निकल जाता है बर्फ लदे पहाड़ों की गूंजती घाटियों में
दूध की नदी गंगा में घुलती है कभी जमुना में
महारास सजता हैै तब जैसलमेर के धोरों पर---।
जो है उसकी जगह बदल देना प्रेम है, फ़कीरी है
जो है, जगह बदलकर उसे देखना- कविता है
कविता में आते हुए
भीतर की आवाजें बदल लेती हैं जगह---।
जो है, जगह बदलकर उसे देखना- कविता है
कविता में आते हुए
भीतर की आवाजें बदल लेती हैं जगह---।
जहां बैठकर पढ़ते हो हिसाब की बहियां
वहां कर्जदार की तरह चुप रहती है कविता
तुमसे देर तक बतियाने का ढोंग करते हुए--।
वहां कर्जदार की तरह चुप रहती है कविता
तुमसे देर तक बतियाने का ढोंग करते हुए--।
जिस जगह से देखते हो दुनिया को
उस जगह से कविता को मत पढ़ना
इस बार जब भी पढ़ना, जगह बदलकर पढ़ना---।
उस जगह से कविता को मत पढ़ना
इस बार जब भी पढ़ना, जगह बदलकर पढ़ना---।
3 टिप्पणियाँ:
उम्दा चयन ।
शुभ संध्या
सफल यायावरी
सादर
बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति ..
सभी को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएं
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