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गुरुवार, 14 जुलाई 2016

जाने-अनजाने आतंकवाद का समर्थन - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार मित्रो,
आतंकवादियों के समर्थन में नारे लगना, उनके समर्थन में रैलियाँ करना, उनको शहीद घोषित करना, सेना के विरोध में खड़े होना, आतंकवादी के अंतिम संस्कार में अप्रत्याशित भीड़ का जुटना आदि वे बातें हैं जो सामान्य नहीं कही जा सकती हैं. हाल ही में एक आतंकी की मौत के बाद सेना का विरोध, राज्य में हिंसात्मक घटनाओं का होना, किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए. केंद्र सरकार का विरोध करने के लिए, मुस्लिमों के समर्थन में खड़े होने के लिए जिस तरह से आतंकवादियों का समर्थन किया जा रहा है वो निंदनीय है. जो लोग इन घटनाओं के सन्दर्भ में जम्मू-कश्मीर को आज़ाद किये जाने के पक्ष में, वहाँ जनमत-संग्रह कराये जाने के समर्थन में, जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान का अंग मान लेने के पक्ष में वकालत करते दिख रहे हैं वे वास्तविक रूप में जम्मू-कश्मीर के समर्थन वाली नहीं वरन केंद्र सरकार के विरोध वाली मानसिकता से काम कर रहे हैं. सोचना होगा कि जम्मू-कश्मीर को आज़ाद कर देने से क्या देश भर में आतंकी घटनाओं की समाप्ति हो जाएगी? न सही देश भर में, क्या जम्मू-कश्मीर में ही शांति हो जाएगी? जनमत-संग्रह समर्थकों को समझना होगा कि विगत कई दशकों से जिस तरह से वहाँ के मूल निवासियों को हिंसात्मक गतिविधियों के द्वारा प्रताड़ित करके भगाया गया, उनकी संपत्ति पर कब्ज़ा किया गया उसके बाद से वहाँ मूल निवासियों की संख्या नाममात्र को रह गई है. पाकिस्तान समर्थित आतंकी सोच वाले, स्वतंत्र जम्मू-कश्मीर की माँग करने वाले अलगाववादी मानसिकता वाले लोगों ने वहाँ कब्ज़ा कर रखा है. ऐसे में जनमत-संग्रह का कोई अर्थ नहीं रह जाता है. उस राज्य की आज़ादी से देश में अन्य दूसरे राज्य अपनी स्वतंत्रता के लिए हिंसात्मक गतिविधियों का सहारा लेना शुरू कर देंगे.


यहाँ केंद्र सरकार को कठोर कदम उठाये जाने की जरूरत है. उसके कठोर कदमों के साथ-साथ नागरिकों को भी संयम बरतने की आवश्यकता है. उन्हें महज राजनैतिक कठपुतली न बनते हुए देश-हित में अपनी आवाज़ उठानी चाहिए. उन्हें समझना होगा कि सेना अपने लिए नहीं वरन देश के लिए, देशवासियों के लिए अपनी जान जोखिम में डाल कर आतंकियों का मुकाबला करती है. ऐसे में महज विरोध के लिए नागरिकों का आतंकियों के समर्थन में खड़े हो जाना, आतंकी को शहीद बताने लगना दुर्भाग्यपूर्ण है. आज़ाद देश में आज़ादी की माँग करने वाले आतंकियों की मानसिकता स्पष्ट है, उसी मानसिकता का परिचय देते आम नागरिक भी किसी रूप में आतंकवादी से कम नहीं. आतंकी जहाँ बम-बन्दूक का इस्तेमाल करते हुए मौत बाँट रहे हैं वहीं तथाकथित बुद्धिजीवी केंद्र सरकार के विरोध के लिए आतंकियों का समर्थन कर मौत बाँटने में सहयोगी बन रहे हैं. वे किसी न किसी रूप में अपने को जम्मू-कश्मीर का, आतंकवादी का, मानवाधिकार का सच्चा समर्थक नहीं वरन आतंकवादी ही सिद्ध कर रहे हैं.

देश में सबकुछ सामान्य हो जाये, सामान्य रहे इसी कामना के साथ आज की बुलेटिन आपके सामने प्रस्तुत है.

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(चित्र गूगल छवियों से साभार)

6 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

ऊपर वाला आपकी कामना को सुने और पूरा करे यही अभिलाषा है और नीचे वालों से उम्मीद करें भी और वो बनी रहे भी । सुन्दर प्रस्तुति सुन्दर बुलेटिन ।

Sushil Bakliwal ने कहा…

चुनिन्दा ब्लॉग पोस्ट में मेरे सिलेक्शन को भी सिलेक्ट करने हेतु आभार...

Sushil Bakliwal ने कहा…

चुनिन्दा ब्लॉग पोस्ट में मेरे सिलेक्शन को भी सिलेक्ट करने हेतु आभार...

बेनामी ने कहा…

धन्यवाद

Manoj Kumar ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Manoj Kumar ने कहा…

चुनिन्दा ब्लॉग पोस्ट में मेरे सिलेक्शन को भी सिलेक्ट करने हेतु आभार..

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