Subscribe:

Ads 468x60px

कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

ब्लॉग बुलेटिन और मेरी महबूबा - 900वीं बुलेटिन

पिछले डेढ महीने से दूर हूँ ब्लॉग से. फेसबुक पर तो थोड़ा बहुत घूमने का मौक़ा मिल जाता था, लेकिन ब्लॉग पर आराम से न पढने का समय मिला, न लिखने का. आप सोचते होंगे कि इसकी वज़ह क्या है. क्या बताऊँ. बस डेढ महीने क़बल वो मेरी ज़िन्दगी में आई. और मुझे ज़रा भी यकीन नहीं था कि मैं उसके चक्कर में इस क़दर मुब्तिला हो जाऊँगा कि न दिन को चैन न रातों को करार.
उसके सिवा कोई भी मेरे ख़्यालों में नहीं होता था. जब इंसान इस तरह इश्क़ की गिरफ़्त में होता है तो जितना उसको छिपाने की कोशिश करता है, उतना ही उसे दुनिया को बताने की भी कोशिश करता है. सोचा फेसबुक पर लिखूँ. लिखा भी उसके बारे में. लेकिन इस बिहारी को दुनिया इस क़ाबिल समझती ही नहीं इसकी किसी बात पर कुछ कहा जा सके. बस रिश्ते निभाने के लिये “लाइक” मारकर चलते बने. वैसे भी इन मामलों में हर कोई अपने को बचाकर चलता है.

हालाँकि इसमें मैंने कभी कोई पहल नहीं की. लेकिन शादी-शुदा परिवार वाला आदमी हूँ. इसलिये हमेशा डर लगा रहता था कि कहीं इसकी ख़बर घरवालों को लग गई तो जीना मुश्किल हो जाएगा. एक प्यारी सी बिटिया और बेग़म से नज़रें मिलाते हुये डर लगता था. फ़ोन पर बात करते वक़्त आवाज़ को सम्भालना मुश्किल हो जाता था. कहीं ऐसा न हो कि उसे ख़बर लग जाए.

अपने बहुत क़रीबी दोस्तों को बताया. उन्होंने भी कहा कि जाने दो. जब तक चलता है चलने दो. बात इतनी बढ चुकी है कि बढे हुए क़दमों को लौटाना भी ठीक नहीं. लेकिन वो कहावत है ना कि इश्क़ और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. मेरी गैरहाज़िरी, मेरी शकल पर बारह बजे की छाप, सारा भेद खोल देती है. कुछ लोगों ने मेसेज करके पूछा, कुछ ने फ़ोन करके. लेकिन मैं मुस्कुराकर जवाब देता रहा कि कोई बात नहीं. नेताओं की तरह हर इल्ज़ाम और हर सवाल का खण्डन करता रहा. फिर भी अन्दर ही अन्दर डर लगा रहता था कि किसी को पता न चल जाए!
पिछले हफ़्ते जाकर मुझे एहसास हुआ कि एक इंसान के लिये उसका परिवार ही सबकुछ है. मैंने भी उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा कि प्लीज़, अब मेरी ज़िन्दगी से तख़्लिया हो जाओ. उसने भी लगता है मेरी ईमानदारी पहचानी और उसे भी लगा कि एक परिवार टूटकर बिखर जाए, इससे बेहतर है कि वो मेरी ज़िन्दगी से बाहर चली जाए.

वो चली गई है मेरी ज़िन्दगी से. लगता है मैं भी लौट पाऊँगा अपने परिवार के पास. बस आप लोगों से यही गुज़ारिश है कि जिस तरह मैं आपके लिये आज की यह 900वीं बुलेटिन लेकर हाज़िर हुआ हूँ उसी तरह लगातार आपकी सेवा करता रहूँ, तो इस ग़रीब के दुआ कीजिये कि कभी मेरी मुलाक़ात उस चली गई महबूबा से नहीं हो. चलते-चलते उस महबूबा का नाम तो आपको बता दूँ – उसका नाम है ‘परेशानी’ और हज़ार शक्लों में वो मेरे सामने आ जाती है. डेढ महीने का साथ ख़त्म हुआ लगता है. यारो सब दुआ करो!

- सलिल वर्मा
 
 
पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से सभी पाठकों का बहुत बहुत आभार ...ऐसे ही स्नेह बनाए रखें !
 

16 टिप्पणियाँ:

आशीष अवस्थी ने कहा…

बढ़िया लिंक्स व प्रस्तुति , बुलेटिन को धन्यवाद !
Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

Preeti 'Agyaat' ने कहा…

शानदार लिंक्स ! बधाई !

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

900 वी बुलेटिन और सलिल जी की भी सोने पै सुहागा जैसे । बधाई शुभकामनाऐं ।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

अब पढ़ भी लिया परेशानी की बात की आपने मान भी लिया सलिल भाई झूठ जो क्या बोलेंगे :)

Anupama Tripathi ने कहा…

रोचक अंदाज़ प्रस्तुतीकरण का ...!!ब्लॉग बुलेटिन की टीम को 900 वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई ...!!हृदय से आभार सलिल जी आपने इस अवसर पर मेरी रचना को भी स्थान दिया ...!!पुनः अनेक शुभकामनायें ...!!

Parmeshwari Choudhary ने कहा…

आज के सूत्र बहुत अच्छे लगे। आपका बहुत आभार। इंशा-अल्लाह आपकी महबूबा आपको हमेशा भूली रहे :)

Satish Saxena ने कहा…

भविष्य में परेशानी न आये , इसी कामना के साथ !!

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

लिंक्स चुनने और मनोयोग से पोस्ट सँवारने में समय और श्रम तुमने लगाया ,आनन्द हम सब ने पाया ! वह सूपनखा (परेशानी )रीझ कर आई थी, खीझ कर लौट चुकी है - निश्चिंत हो जाओ !

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

गलतफहमी मत पालो मेरे भाई .... ये इश्क है ..... पीछा नहीं छुटता .... लेकिन मेरे भाई को रब मिला है ...... मुझे कोई चिंता नहीं ......
900 वी बुलेटिन की हार्दिक बधाई ...!!
900000000000000000000000000 के लिए हार्दिक शुभकामनायें

Jyoti Dehliwal ने कहा…

ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ की आपकी यह महबूबा आपको फिर कभी ना मिले ! बहुत सुंदर प्रस्तुति !

संध्या शर्मा ने कहा…

900 वी बुलेटिन की हार्दिक बधाई … प्रस्तुतीकरण का अंदाज़ बहुत ही रोचक है। ईश्वर से प्रार्थना है "परेशानी" जल्दी न वापस आए, कभी ना आए तो नही कह सकते क्योंकि दुःख - सुख की यही धूप छाँव ही तो जीवन है … लफ़्ज़ों की छांव में... को स्थान देने के लिए शुक्रिया .... बढ़िया लिंक संयोजन

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत बहुत बधाई ..... अच्छे लिंक्स मिले, आभार

Dwarika Prasad Agrawal ने कहा…

#परेशानियां आती-जाती रहती हैं, मित्र.
एक शेर है : 'गुज़रते जा रहे हैं मौज-ए-हवादिस से, ग़र आसानियाँ हों ज़िन्दगी दुश्वार हो जाए."

शिवम् मिश्रा ने कहा…

सभी पाठकों और पूरी बुलेटिन टीम को ९०० वीं पोस्ट की हार्दिक बधाइयाँ |
ऐसे ही स्नेह बनाए रखिए |

सलिल दादा ,
प्रणाम |

Suman ने कहा…

बहुत बहुत बधाई भाई,
यह लिंक फेसबुक पर मिला सीधे चली आयी
रोचक कहानी पढ़ते-पढ़ते सोच रही थी ये किसके के इश्क में गिरफ्त हो गए
है हमारे सलिल भाई ? अंत सोच के एकदम विपरीत तो यह महबूबा आपकी परेशानी थी :)बहुत मजेदार लगा कहने का यह अंदाज, चलिए अब आप ब्लॉग पर नियमित तो होंगे !

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

हमें तो पहले ही यकीन था कि आपकी वह महबूबा बेवफा है । छोड़कर जाएगी ही । अब उसे याद करने की बजाय अपने पाठकों को याद करिये जो आपकी पोस्ट का इन्तज़ार कर रहे हैं ।

एक टिप्पणी भेजें

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!

लेखागार